ETV Bharat / state

देहरादून में फ्लाईओवर के गलत नक्शे की वजह से कई लोग गंवा चुके जान, HC ने सचिव शहरी विकास को किया तलब

Nainital High Court Heard on Flyover of Dehradun नैनीताल हाईकोर्ट ने दून घाटी का मास्टर प्लान के मुताबिक विकास कार्य न होने के मामले में सख्त रुख अपनाया है. साथ ही मामले में सचिव शहरी विकास से जवाब तलब किया है. कोर्ट ने सख्त लहजे में टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार ने विकास के नाम का चश्मा पहन रखा है. बल्लीवाला और आईएसबीटी का फ्लाईओवर का निर्माण स्वीकृत नक्शे के अनुसार नहीं हुआ है. गलत नक्शे की वजह से कई लोग जान गंवा चुके हैं.

Nainital High Court
नैनीताल उच्च न्यायालय
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 11, 2023, 8:46 PM IST

नैनीतालः दून घाटी को साल 1989 में इको सेंसिटिव जोन घोषित करने के साथ उसका मास्टर पालन के तहत विकास कार्य न करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने सचिव शहरी विकास से पूछा है कि बल्लीवाला और आईएसबीटी फ्लाईओवर का निर्माण किस स्वीकृत मैप के अनुसार किया गया? अभी तक स्वीकृत मैप के अनुसार फ्लाईओवर का निर्माण भी नहीं हुआ है. गलत मैप की वजह से अभी तक 40 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. प्रदेश के स्थायी अधिवक्ता से इस मामले को प्राथमिकता से देखने को कहा है.

मामले को हाईकोर्ट ने आज गंभीरता से लेते हुए कहा कि साल 1989 में जब देहरादून शहर को केंद्र सरकार ने पर्यटन विकास की तर्ज पर विकास करने का शासनादेश जारी किया था. उसके बाद भी वहां अनियमित और अनियोजित तरीके से विकास कार्य हो रहे हैं. वैसे भी देहरादून प्रदेश की राजधानी है. उसका विकास तो स्वीकृत मास्टर प्लान के मुताबिक किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में टिप्पणी कर कहा कि सरकार ने तो विकास का चश्मा पहन रखा है. सरकार को क्या पता अन्य जगहों का विकास कैसा हो रहा है?
ये भी पढ़ेंः बल्लीवाला फ्लाईओवर पर हर मोड़ पर 'यमराज', अब स्पीड ब्रेकर दे रहे 'दर्द'

दरअसल, देहरादून निवासी आकाश वशिष्ठ ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि साल 1989 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (केंद्र सरकार) ने दून घाटी को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था, लेकिन 34 साल बीतने के बाद भी शासनादेश को प्रभावी तौर पर लागू ही नहीं किया गया. जिसकी वजह से दून घाटी में नियम विरुद्ध तरीके से विकास कार्य, खनन, पर्यटन समेत अन्य गतिविधियां जारी है.

याचिकाकर्ता का कहना है कि विकास कार्यों के लिए मास्टर प्लान नहीं है, न ही पर्यटन के लिए पर्यटन विकास योजना बनाई गई है. जिसकी वजह से नियमों को ताक पर रखकर विकास कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है. याचिका में ये भी कहा गया कि दून घाटी में सभी विकास के कार्य मास्टर प्लान के अनुरूप होने चाहिए. विकास कार्य करने से पहले वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति ली जाए. वहीं, अब पूरे मामले में कोर्ट अगली सुनवाई 5 जनवरी को करेगा.
ये भी पढ़ेंः देहरादून में बिना मास्टर प्लान के अवैध निर्माण पर HC में सुनवाई, केंद्र और राज्य सरकार से मांगा शपथ पत्र

नैनीतालः दून घाटी को साल 1989 में इको सेंसिटिव जोन घोषित करने के साथ उसका मास्टर पालन के तहत विकास कार्य न करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने सचिव शहरी विकास से पूछा है कि बल्लीवाला और आईएसबीटी फ्लाईओवर का निर्माण किस स्वीकृत मैप के अनुसार किया गया? अभी तक स्वीकृत मैप के अनुसार फ्लाईओवर का निर्माण भी नहीं हुआ है. गलत मैप की वजह से अभी तक 40 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. प्रदेश के स्थायी अधिवक्ता से इस मामले को प्राथमिकता से देखने को कहा है.

मामले को हाईकोर्ट ने आज गंभीरता से लेते हुए कहा कि साल 1989 में जब देहरादून शहर को केंद्र सरकार ने पर्यटन विकास की तर्ज पर विकास करने का शासनादेश जारी किया था. उसके बाद भी वहां अनियमित और अनियोजित तरीके से विकास कार्य हो रहे हैं. वैसे भी देहरादून प्रदेश की राजधानी है. उसका विकास तो स्वीकृत मास्टर प्लान के मुताबिक किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में टिप्पणी कर कहा कि सरकार ने तो विकास का चश्मा पहन रखा है. सरकार को क्या पता अन्य जगहों का विकास कैसा हो रहा है?
ये भी पढ़ेंः बल्लीवाला फ्लाईओवर पर हर मोड़ पर 'यमराज', अब स्पीड ब्रेकर दे रहे 'दर्द'

दरअसल, देहरादून निवासी आकाश वशिष्ठ ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि साल 1989 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (केंद्र सरकार) ने दून घाटी को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था, लेकिन 34 साल बीतने के बाद भी शासनादेश को प्रभावी तौर पर लागू ही नहीं किया गया. जिसकी वजह से दून घाटी में नियम विरुद्ध तरीके से विकास कार्य, खनन, पर्यटन समेत अन्य गतिविधियां जारी है.

याचिकाकर्ता का कहना है कि विकास कार्यों के लिए मास्टर प्लान नहीं है, न ही पर्यटन के लिए पर्यटन विकास योजना बनाई गई है. जिसकी वजह से नियमों को ताक पर रखकर विकास कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है. याचिका में ये भी कहा गया कि दून घाटी में सभी विकास के कार्य मास्टर प्लान के अनुरूप होने चाहिए. विकास कार्य करने से पहले वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति ली जाए. वहीं, अब पूरे मामले में कोर्ट अगली सुनवाई 5 जनवरी को करेगा.
ये भी पढ़ेंः देहरादून में बिना मास्टर प्लान के अवैध निर्माण पर HC में सुनवाई, केंद्र और राज्य सरकार से मांगा शपथ पत्र

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.