हल्द्वानीः उत्तराखंड में विलुप्त हो रहे पौधों के संरक्षण के लिए वन अनुसंधान केंद्र लालकुआं एक सराहनीय पहल करने जा रहा है, जिसके तहत बदलते दौर में विलुप्त हो रहे 14 प्रजातियों के पौधों को संरक्षित करने का काम किया जा रहा है.
वन अनुसंधान केंद्र लालकुआं के प्रभारी मदन सिंह बिष्ट ने बताया कि साल 2018 में अनुसंधान केंद्र ने पहल करते हुए 1,116 हेक्टेयर में विलुप्त हो रहे प्राकृतिक रंगों के 14 प्रजातियों के 930 पौधों को संरक्षित करने का काम किया. जिसके जरिए पौधों को नर्सरी के माध्यम से तैयार किया जा रहा है. उत्तराखंड के अलग-अलग जंगलों में प्राकृतिक रंग उत्पादित करने वाले पौधों को ज्यादा से ज्यादा लगाकर संरक्षित करने का काम किया जा रहा है.
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उन्होंने बताया कि मुख्य रूप से मैदा, कुंभी, मिलावा, कंजी, सिंदूरी, हरड़, महुआ, कचधार, घोड़ी, पनियाल, अमलतास, धौला, रोहिणी और हरसिंगार के पौधों को रोपित कर संरक्षित करने का काम किया गया है. प्राकृतिक रंगों के पौधे के जड़, छाल, पत्तियों और फूल के अलावा बीज से पारंपरिक विधियों से शोध कर रंग प्राप्त किया जा सकता है.
रासायनिक रंग नुकसानदायक
मदन सिंह बिष्ट ने बताया कि मानव उत्पत्ति के बाद से ही प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता आ रहा है, लेकिन बदलते दौर में रासायनिक रंग काफी खतरनाक होते हैं. ऐसे में अगर प्राकृतिक रंगों के माध्यम से खाने में प्रयोग होने वाले रंगों के अलावा अन्य जगहों पर प्रयोग होने वाले रंगों का इस्तेमाल किया जाए तो मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक भी नहीं रहेगा.