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नैनीताल HC में वृद्ध आश्रम खोले जाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई, स्वास्थ्य सचिव को किया तलब

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Published : Nov 16, 2022, 5:09 PM IST

2018 में उच्च न्यायालय ने सरकार को सभी जिलों में वृद्ध आश्रम खोलने एवं आश्रम में बुजुर्गों के लिए अन्य सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे. लेकिन 4 साल बीतने के बाद भी राज्य सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए न तो आश्रम खोले और न ही उन्हें कोई सुविधाएं उपलब्ध कराई गई. ऐसे में इस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उत्तराखंड सचिव स्वास्थ्य और परिवार कल्याण से 7 दिसंबर तक जवाब पेश करने को कहा है.

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नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने समाधान एनजीओ द्वारा प्रदेश के जनपदों में वृद्ध आश्रम खोलने और आश्रमों में अन्य सभी सुविधाओं के साथ ही चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. इस मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने सचिव स्वास्थ्य व परिवार कल्याण से 7 दिसंबर तक जवाब पेश करने को कहा है. ऐसे में इस मामले की सुनवाई के लिए अब 7 दिसंबर की तिथि नियत की गई है.

इस मामले के अनुसार देहरादून के समाधान एनजीओ ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि 2018 में उच्च न्यायालय ने सरकार को सभी जिलों में वृद्ध आश्रम खोलने व आश्रम में बुजुर्गों के लिए अन्य सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे. लेकिन 4 साल बीतने के बाद भी राज्य सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए न तो आश्रम खोले और न ही उन्हें कोई सुविधाएं उपलब्ध कराई गई. ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. यह प्रदेश सरकार का दायित्व है कि प्रत्येक जिले में वृद्ध आश्रम खोले जाएं. याचिकाकर्ता ने वृद्ध आश्रमों में पर्याप्त सुविधाओं की उपलब्धता पर भी जोर दिया और कहा कि सरकार द्वारा केवल नाम के लिए आश्रम न खोले जाएं.

पढ़ें- उत्तराखंड HC ने रामनगर खेल मैदान में जारी नुमाइश पर लगाई रोक, सरकार समेत 7 को भेजा नोटिस

बता दें कि 2018 में कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक को सम्मान के साथ जीने का उनका मौलिक अधिकार है. वरिष्ठ नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति सहित सम्मान और शालीनता की रक्षा करना राज्य सरकार का कर्तव्य है. हमारा एक कल्याणकारी और समाजवादी राज्य है. राज्य से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने नागरिकों का सम्मान की रक्षा करें. वहीं, कोर्ट ने इस समस्या से निबटने के लिए राज्य सरकार को कई निर्देश जारी किए थे.

जिसमें राज्य के पदाधिकारियों से अधिनियम, 2007 के प्रावधानों को लागू करने की अपेक्षा की थी. हालांकि, 15 साल बीत जाने के बाद भी आज तक अधिनियम को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है. एक बार कानून बनने के बाद, इसे प्रत्यक्ष रूप से लागू किया जाय. साथ ही राज्य सरकार को छह महीने की अवधि के भीतर उत्तराखंड राज्य के प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम स्थापित करने के निर्देश थे. आदेश में यह भी स्पष्ट किया था कि जब तक स्थायी व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक राज्य सरकार अस्थायी तौर पर निजी आवासों को किराए पर ले सकती है.

वहीं, राज्य सरकार वरिष्ठ नागरिकों के लिए पौष्टिक भोजन, गर्मी व जाड़े के लिए दो-दो जोड़ी कपड़े, बिजली, पानी, पंखे व आश्रमों की साफ सफाई के लिए पर्याप्त सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति करने को कहा था. साथ ही सभी वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य परीक्षण की जांच राज्य सरकार समय समय पर कराएगी और उसका खर्च सरकार वहन करेगी. वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 का समय समय पर व्यापक प्रचार प्रसार किया जाय और महिला व पुरुष वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग-अलग आश्रम या कक्ष की व्यवस्था की जाय. ऐसे में इस आदेश में दिए गए सभी निर्देशों का पालन करवाने की जिम्मेदारी सचिव स्वास्थ्य व परिवार कल्याण को सौंपी थी.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने समाधान एनजीओ द्वारा प्रदेश के जनपदों में वृद्ध आश्रम खोलने और आश्रमों में अन्य सभी सुविधाओं के साथ ही चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. इस मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने सचिव स्वास्थ्य व परिवार कल्याण से 7 दिसंबर तक जवाब पेश करने को कहा है. ऐसे में इस मामले की सुनवाई के लिए अब 7 दिसंबर की तिथि नियत की गई है.

इस मामले के अनुसार देहरादून के समाधान एनजीओ ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि 2018 में उच्च न्यायालय ने सरकार को सभी जिलों में वृद्ध आश्रम खोलने व आश्रम में बुजुर्गों के लिए अन्य सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे. लेकिन 4 साल बीतने के बाद भी राज्य सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए न तो आश्रम खोले और न ही उन्हें कोई सुविधाएं उपलब्ध कराई गई. ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. यह प्रदेश सरकार का दायित्व है कि प्रत्येक जिले में वृद्ध आश्रम खोले जाएं. याचिकाकर्ता ने वृद्ध आश्रमों में पर्याप्त सुविधाओं की उपलब्धता पर भी जोर दिया और कहा कि सरकार द्वारा केवल नाम के लिए आश्रम न खोले जाएं.

पढ़ें- उत्तराखंड HC ने रामनगर खेल मैदान में जारी नुमाइश पर लगाई रोक, सरकार समेत 7 को भेजा नोटिस

बता दें कि 2018 में कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक को सम्मान के साथ जीने का उनका मौलिक अधिकार है. वरिष्ठ नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति सहित सम्मान और शालीनता की रक्षा करना राज्य सरकार का कर्तव्य है. हमारा एक कल्याणकारी और समाजवादी राज्य है. राज्य से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने नागरिकों का सम्मान की रक्षा करें. वहीं, कोर्ट ने इस समस्या से निबटने के लिए राज्य सरकार को कई निर्देश जारी किए थे.

जिसमें राज्य के पदाधिकारियों से अधिनियम, 2007 के प्रावधानों को लागू करने की अपेक्षा की थी. हालांकि, 15 साल बीत जाने के बाद भी आज तक अधिनियम को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है. एक बार कानून बनने के बाद, इसे प्रत्यक्ष रूप से लागू किया जाय. साथ ही राज्य सरकार को छह महीने की अवधि के भीतर उत्तराखंड राज्य के प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम स्थापित करने के निर्देश थे. आदेश में यह भी स्पष्ट किया था कि जब तक स्थायी व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक राज्य सरकार अस्थायी तौर पर निजी आवासों को किराए पर ले सकती है.

वहीं, राज्य सरकार वरिष्ठ नागरिकों के लिए पौष्टिक भोजन, गर्मी व जाड़े के लिए दो-दो जोड़ी कपड़े, बिजली, पानी, पंखे व आश्रमों की साफ सफाई के लिए पर्याप्त सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति करने को कहा था. साथ ही सभी वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य परीक्षण की जांच राज्य सरकार समय समय पर कराएगी और उसका खर्च सरकार वहन करेगी. वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 का समय समय पर व्यापक प्रचार प्रसार किया जाय और महिला व पुरुष वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग-अलग आश्रम या कक्ष की व्यवस्था की जाय. ऐसे में इस आदेश में दिए गए सभी निर्देशों का पालन करवाने की जिम्मेदारी सचिव स्वास्थ्य व परिवार कल्याण को सौंपी थी.

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