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विजय बहुगुणा की खामोशी का अनजाना 'राज', किसके लिए लगाई दांव पर राजनीति - Former CM Trivendra Singh Rawat

प्रदेश की सियासत में पूर्व सीएम विजय बहुगुणा की खामोशी के कई मायने निकाले जा रहे हैं. अचानक एंट्री मारने वाले विजय बहुगुणा की बागियों और सीएम से हुई मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं.

dehradun
पूर्व सीएम विजय बहुगुणा
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Published : Oct 29, 2021, 9:43 AM IST

Updated : Oct 29, 2021, 9:57 AM IST

देहरादून: दलबदल की अटकलों के बीच उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की देहरादून में एंट्री ने सियासत गर्मा दी है. वहीं, अचानक एंट्री मारने वाले विजय बहुगुणा की बागियों और सीएम से हुई मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं. क्योंकि उन्हें खुद भाजपा पिछले 5 साल से खाली बैठाए हुए हैं. बावजूद इसके विजय बहुगुणा ने कभी भाजपा के नेताओं या सरकार के खिलाफ मुंह नहीं खोला. उल्टा वह अब नाराज बागियों को मनाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में कई सवाल उठ रहे हैं.

कांग्रेस में बगावत के सूत्रधार: उत्तराखंड में विजय बहुगुणा को साल 2012 में कांग्रेस ने सिर आंखों पर बिठाया और प्रदेश का मुख्यमंत्री पद दे दिया. इससे पहले विजय बहुगुणा को टिहरी लोकसभा सीट का टिकट देकर संसद तक का सफर भी कांग्रेस नहीं करवाया.लेकिन जब परिस्थितियां बदली तो विजय बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ने में एक पल का समय भी नहीं लगाया और वह 2016 में हरक सिंह समेत कई नेताओं के साथ कांग्रेस की सरकार गिराने के इरादे के साथ भाजपा में शामिल हो गए. अतीत की बातों को याद करना इसलिए जरूरी है क्योंकि आज वही विजय बहुगुणा भारतीय जनता पार्टी में रुसवाई मिलने पर भी खामोशी अख्तियार किए हुए हैं.

विजय बहुगुणा की खामोशी का अनजाना 'राज'.

शांत रहने पर उठ रहे सवाल: लिहाजा सवाल उठ रहा है कि विजय बहुगुणा को भाजपा में आकर जब कुछ भी नहीं मिला तो वह इतने शांत क्यों हैं. और उन्होंने अपने राजनीतिक सफर को खत्म करने का रिस्क कैसे ले लिया.इसके कई राजनीतिक जवाब भी हैं और मायने भी. इस मामले पर जब ईटीवी भारत ने उत्तराखंड में भाजपा सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से बात की तो उन्होंने कहा कि कुछ लोग खुद के लिए लड़ते हैं और कुछ लोग अपनों के लिए, विजय बहुगुणा एक अच्छे व्यक्ति हैं और उन्होंने राजनीति में अपनों के लिए काम किया है.

पढ़ें-कैबिनेट: 1 लाख 60 हजार कर्मचारियों को बोनस का तोहफा, आशाओं का बढ़ेगा वेतन, मेडिकल छात्रों को दी राहत

वे प्रदेश के विकास के लिए काम कर रहे हैं, त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बन चुके हैं और सांसद भी ऐसे में उन्हें अब और क्या चाहिए होगा. विजय बहुगुणा को लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत का यह बयान राजनीतिक रहा, क्योंकि राजनीति में इच्छाएं अपार होती हैं और इन इच्छाओं के पूरा होने की संभावनाएं कम. जाहिर है कि विजय बहुगुणा भी राजनीति में लंबी पारी खेलने की इच्छा रखते हैं लेकिन भाजपा में अब तक यह इच्छाएं सपना ही रही है. लेकिन यदि ऐसा है तो फिर विजय बहुगुणा ने बगावती तेवरों से क्यों परहेज किया हुआ है.

अपनों के लिए इच्छाओं का दमन: इसके भी कई कारण मानें जा रहे हैं.राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए दांव पर लगाया अपना राजनीतिक सफर माना जा रहा है कि विजय बहुगुणा का भाजपा को लेकर नर्म रुख अपने बेटों को लेकर है, कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने के बाद वह पहले ही अपने छोटे बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से भारतीय जनता पार्टी का टिकट दिलवाने में कामयाब रहे, और इसी टिकट पर उनका बेटा अब पहली बार विधायक भी बन चुका है. उम्मीद है कि अब वह अपने बड़े बेटे साकेत बहुगुणा को भी भाजपा की ही सीढ़ी पर चढ़ा कर राजनीति में पहला ब्रेक थ्रू दिलाना चाहते हैंं और इसीलिए उन्होंने अपनी राजनीति को पीछे छोड़ दिया.

पढ़ें-केदारनाथ धाम से एक साथ 11 ज्योतिर्लिंगों से वर्चुअली जुड़ेंगे PM मोदी, सभी जगह एक साथ होगी पूजा

बेटों को स्थापित करना मकसद: धैर्य का फल मीठा होता है फार्मूले पर चल रहे विजय बहुगुणा को बेटों की राजनीति को आगे बढ़ाने की तो तमन्ना होगी ही, साथ ही उनके भाजपा में देरी से ही सही लेकिन किसी बड़ी जिम्मेदारी के मिलने का इंतजार भी होगा. माना जा रहा है कि विजय बहुगुणा को अब भी उम्मीद है कि उन्हें लोकसभा से टिहरी सीट पर टिकट दिया जा सकता है या राज्यसभा से लेकर राज्यपाल तक की कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है इसी उम्मीद के साथ उन्होंने धैर्य रखते हुए मीठे फल की उम्मीद भी की होगी.

विकल्प नहीं आ रहा नजर: विजय बहुगुणा की पिछले 5 सालों से चुप्पी की एक बड़ी वजह भाजपा के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होना भी है, एक तरफ विजय बहुगुणा को मोदी लहर पर इतना विश्वास है कि उन्हें फिलहाल भाजपा का ही साथ सही लग रहा है. दूसरी तरफ विजय बहुगुणा का कांग्रेस में पहले जैसे ही हालात होने की बात कहना यह भी जाहिर करते हैं कि उन्हें भी फिलहाल भाजपा के अलावा राजनीति करने के लिए दूसरा कोई विकल्प नहीं नजर आ रहा है.

करीबियों को मिला पद: उधर भाजपा ने भले ही उन्हें जिम्मेदारियों से दूर रखा हो, लेकिन उनके बेटे को विधायक जबकि, उनके करीबी सुबोध उनियाल को मंत्री के रूप में स्थापित कर दिया है. विजय बहुगुणा को लेकर जब हरक सिंह रावत से सवाल पूछा गया तो उन्होंने इशारों ही इशारों में यह साफ कर दिया कि बहुगुणा ने अपनों के लिए अपनी राजनीति को दरकिनार किया है, हरक सिंह रावत ने सवाल पूछे जाने पर सबसे पहले सौरभ बहुगुणा का जिक्र करते हुए कहा कि विजय बहुगुणा में अपनों के लिए ऐसा किया है, हालांकि इसके बाद उन्होंने बाकी नामों को भी जोड़ते हुए सुबोध उनियाल और अपने साथियों को मंत्री पद दिलाने की भी बात कही.

देहरादून: दलबदल की अटकलों के बीच उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की देहरादून में एंट्री ने सियासत गर्मा दी है. वहीं, अचानक एंट्री मारने वाले विजय बहुगुणा की बागियों और सीएम से हुई मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं. क्योंकि उन्हें खुद भाजपा पिछले 5 साल से खाली बैठाए हुए हैं. बावजूद इसके विजय बहुगुणा ने कभी भाजपा के नेताओं या सरकार के खिलाफ मुंह नहीं खोला. उल्टा वह अब नाराज बागियों को मनाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में कई सवाल उठ रहे हैं.

कांग्रेस में बगावत के सूत्रधार: उत्तराखंड में विजय बहुगुणा को साल 2012 में कांग्रेस ने सिर आंखों पर बिठाया और प्रदेश का मुख्यमंत्री पद दे दिया. इससे पहले विजय बहुगुणा को टिहरी लोकसभा सीट का टिकट देकर संसद तक का सफर भी कांग्रेस नहीं करवाया.लेकिन जब परिस्थितियां बदली तो विजय बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ने में एक पल का समय भी नहीं लगाया और वह 2016 में हरक सिंह समेत कई नेताओं के साथ कांग्रेस की सरकार गिराने के इरादे के साथ भाजपा में शामिल हो गए. अतीत की बातों को याद करना इसलिए जरूरी है क्योंकि आज वही विजय बहुगुणा भारतीय जनता पार्टी में रुसवाई मिलने पर भी खामोशी अख्तियार किए हुए हैं.

विजय बहुगुणा की खामोशी का अनजाना 'राज'.

शांत रहने पर उठ रहे सवाल: लिहाजा सवाल उठ रहा है कि विजय बहुगुणा को भाजपा में आकर जब कुछ भी नहीं मिला तो वह इतने शांत क्यों हैं. और उन्होंने अपने राजनीतिक सफर को खत्म करने का रिस्क कैसे ले लिया.इसके कई राजनीतिक जवाब भी हैं और मायने भी. इस मामले पर जब ईटीवी भारत ने उत्तराखंड में भाजपा सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से बात की तो उन्होंने कहा कि कुछ लोग खुद के लिए लड़ते हैं और कुछ लोग अपनों के लिए, विजय बहुगुणा एक अच्छे व्यक्ति हैं और उन्होंने राजनीति में अपनों के लिए काम किया है.

पढ़ें-कैबिनेट: 1 लाख 60 हजार कर्मचारियों को बोनस का तोहफा, आशाओं का बढ़ेगा वेतन, मेडिकल छात्रों को दी राहत

वे प्रदेश के विकास के लिए काम कर रहे हैं, त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बन चुके हैं और सांसद भी ऐसे में उन्हें अब और क्या चाहिए होगा. विजय बहुगुणा को लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत का यह बयान राजनीतिक रहा, क्योंकि राजनीति में इच्छाएं अपार होती हैं और इन इच्छाओं के पूरा होने की संभावनाएं कम. जाहिर है कि विजय बहुगुणा भी राजनीति में लंबी पारी खेलने की इच्छा रखते हैं लेकिन भाजपा में अब तक यह इच्छाएं सपना ही रही है. लेकिन यदि ऐसा है तो फिर विजय बहुगुणा ने बगावती तेवरों से क्यों परहेज किया हुआ है.

अपनों के लिए इच्छाओं का दमन: इसके भी कई कारण मानें जा रहे हैं.राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए दांव पर लगाया अपना राजनीतिक सफर माना जा रहा है कि विजय बहुगुणा का भाजपा को लेकर नर्म रुख अपने बेटों को लेकर है, कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने के बाद वह पहले ही अपने छोटे बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से भारतीय जनता पार्टी का टिकट दिलवाने में कामयाब रहे, और इसी टिकट पर उनका बेटा अब पहली बार विधायक भी बन चुका है. उम्मीद है कि अब वह अपने बड़े बेटे साकेत बहुगुणा को भी भाजपा की ही सीढ़ी पर चढ़ा कर राजनीति में पहला ब्रेक थ्रू दिलाना चाहते हैंं और इसीलिए उन्होंने अपनी राजनीति को पीछे छोड़ दिया.

पढ़ें-केदारनाथ धाम से एक साथ 11 ज्योतिर्लिंगों से वर्चुअली जुड़ेंगे PM मोदी, सभी जगह एक साथ होगी पूजा

बेटों को स्थापित करना मकसद: धैर्य का फल मीठा होता है फार्मूले पर चल रहे विजय बहुगुणा को बेटों की राजनीति को आगे बढ़ाने की तो तमन्ना होगी ही, साथ ही उनके भाजपा में देरी से ही सही लेकिन किसी बड़ी जिम्मेदारी के मिलने का इंतजार भी होगा. माना जा रहा है कि विजय बहुगुणा को अब भी उम्मीद है कि उन्हें लोकसभा से टिहरी सीट पर टिकट दिया जा सकता है या राज्यसभा से लेकर राज्यपाल तक की कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है इसी उम्मीद के साथ उन्होंने धैर्य रखते हुए मीठे फल की उम्मीद भी की होगी.

विकल्प नहीं आ रहा नजर: विजय बहुगुणा की पिछले 5 सालों से चुप्पी की एक बड़ी वजह भाजपा के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होना भी है, एक तरफ विजय बहुगुणा को मोदी लहर पर इतना विश्वास है कि उन्हें फिलहाल भाजपा का ही साथ सही लग रहा है. दूसरी तरफ विजय बहुगुणा का कांग्रेस में पहले जैसे ही हालात होने की बात कहना यह भी जाहिर करते हैं कि उन्हें भी फिलहाल भाजपा के अलावा राजनीति करने के लिए दूसरा कोई विकल्प नहीं नजर आ रहा है.

करीबियों को मिला पद: उधर भाजपा ने भले ही उन्हें जिम्मेदारियों से दूर रखा हो, लेकिन उनके बेटे को विधायक जबकि, उनके करीबी सुबोध उनियाल को मंत्री के रूप में स्थापित कर दिया है. विजय बहुगुणा को लेकर जब हरक सिंह रावत से सवाल पूछा गया तो उन्होंने इशारों ही इशारों में यह साफ कर दिया कि बहुगुणा ने अपनों के लिए अपनी राजनीति को दरकिनार किया है, हरक सिंह रावत ने सवाल पूछे जाने पर सबसे पहले सौरभ बहुगुणा का जिक्र करते हुए कहा कि विजय बहुगुणा में अपनों के लिए ऐसा किया है, हालांकि इसके बाद उन्होंने बाकी नामों को भी जोड़ते हुए सुबोध उनियाल और अपने साथियों को मंत्री पद दिलाने की भी बात कही.

Last Updated : Oct 29, 2021, 9:57 AM IST
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