देहरादून: वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण की पहली लहर ने जब दस्तक दी थी तो आवश्यक सेवाओं से जुड़ी इंडस्ट्रीज को छोड़कर पूरा उद्योग जगत ठप पड़ गया था. उस दौरान कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर लॉकडाउन लागू हो गया था. हालांकि, अनलॉक के दौरान धीरे-धीरे उद्योग जगत अपने पैरों पर खड़ा होने लगा था. लेकिन कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में एक बार फिर उद्योग जगत लड़खड़ाने लगा है. इंडस्ट्रीज के हालात पिछले साल की तरह ही बन गए हैं. आखिर इंडस्ट्रीज के सामने किस तरह की समस्याएं आ रही हैं. क्या है इंडस्ट्रीज की मौजूदा हालात? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...
पिछले साल अनलॉक के दौरान केंद्र सरकार से मिली राहत के बाद धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियां शुरू होने लगी थीं. जिसके बाद से ही हर वर्ग, एक बार फिर से ना सिर्फ अपने पैरों पर खड़ा होने लगा था बल्कि अपनी आर्थिकी को मजबूत करने में जुट गया था. यही नहीं, तमाम वर्ग ऐसे भी थे जो अपने नुकसान की भरपाई कर चुके थे. कुछ ऐसे भी थे जो अपने नुकसान की भरपाई करने की कवायद में जुटे हुए थे. ताकि अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकें. इसी क्रम में उद्योग जगत भी अपने आर्थिक संकट से उबरने को लेकर धीरे- धीरे अपने प्रोडक्शन को बढ़ा रहा था. लेकिन कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बाद स्थितियां विपरीत हो गयी हैं.
उत्तराखंड की औद्योगिक स्थिति
उत्तराखंड में वर्तमान समय में 67,726 एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम) हैं. इनमें 14,187.99 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश है. वहीं इन सभी एमएसएमई से 3,39,841 लोगों को रोजगार उपलब्ध हुआ है. इसके साथ ही प्रदेश में 329 वृहद औद्योगिक इकाइयां हैं, जिनमें 37,957.94 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश है. वृहद औद्योगिक इकाई से 1,11,451 लोगों को रोजगार मिल रहा है. हालांकि, राज्य गठन से पहले इस पहाड़ी क्षेत्र में 14,163 एमएसएमई और 39 बृहद औद्योगिक इकाइयां ही स्थापित थीं. जिनमें कुल 9,070.07 करोड़ का पूंजी निवेश था. इनसे 67,706 लोगों को ही रोजगार मिल रहा था.
जिलों में मौजूद मुख्य उद्यमों की स्थिति
उत्तराखंड में मुख्य रूप से 5 जिलों में ही इंडस्ट्रियां स्थापित हैं. इनमें देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर, पौड़ी गढ़वाल और नैनीताल शामिल हैं. देहरादून जिले में खाद्य प्रसंस्करण, जूता निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवा उद्योग, भारी मशीनरी के उद्योग स्थापित हैं. हरिद्वार जिले में ऑटोमोबाइल, ऑटो कंपोनेंट, एफएमसीजी, इलेक्ट्रॉनिक्स, भारी मशीनरी, दवा उद्योग, पैकेजिंग सामग्री, वस्त्र उद्योग यूनिट, प्लास्टिक की बोतलें, स्टील, कांच के सामान संबंधी उद्योग स्थापित हैं. उधमसिंह नगर जिले में खाद्य प्रसंस्करण, ऑटोमोबाइल, ऑटो कंपोनेंट, एफएमसीजी, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, स्टील, प्लास्टिक कंटेनर, कांच का सामान, कालीन संबंधी उद्योग स्थापित हैं. पौड़ी गढ़वाल जिले में इलेक्ट्रॉनिक, इस्पात बार निर्माण इकाइयों के मुख्य उद्यम स्थापित हैं. इसी तरह नैनीताल जिले में इलेक्ट्रॉनिक, कागज, एलपीजी, बॉटलिंग प्लांट के मुख्य उद्यम स्थापित हैं.
रॉ मटेरियल के दाम तीन से चार गुना तक बढ़े
पिछले साल वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के बाद रॉ मटेरियल के दामों में करीब 20 से 30 फ़ीसदी तक उछाल आया था. कोरोना की दूसरी लहर के बाद रॉ मटेरियल के दामों में तीन से चार गुना तक कि बढ़ोत्तरी हो गयी है. इसके चलते इंडस्ट्री से जुड़े कारोबारियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. जिसकी मुख्य वजह यह है कि रॉ मटेरियल सप्लाई करने वाले तमाम छोटे-छोटे व्यापारी पूरी तरह से खत्म हो गए हैं. इसके साथ ही, रॉ मटेरियल सप्लाई करने वाले व्यापारी अपने नुकसान की भरपाई को लेकर, रॉ मटेरियल के दामों में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं.
अभी तक नहीं बढ़ पाया है बाजार का दायरा
वहीं, इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के अध्यक्ष पंकज गुप्ता ने बताया कि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान पूरा बाजार ठप रहा था. हालांकि अनलॉक के दौरान बाजार धीरे-धीरे उठने लगा था. लेकिन दूसरी लहर के बाद एक बार फिर पिछले साल जैसे हालात बन गए हैं. संक्रमण की वजह से इस बार भी बाजार पूरी तरह से ठप पड़ गए हैं. इसके चलते इंडस्ट्रीज के पास बड़ी समस्या आन पड़ी है. क्योंकि रॉ मटेरियल के दाम बढ़ने के बावजूद भी वह अपने उत्पाद के दाम नहीं बढ़ा सकते हैं. खुद को सरवाइव करने के लिए "नो प्रॉफिट नो लॉस" पर काम कर रहे हैं.
एडिशनल खर्चों पर अभी तक नहीं मिल पाई है राहत
पंकज गुप्ता ने बताया कि साल 2020 से उद्योग जगत अपने बुरे दौर से गुजर रहा है, लेकिन राज्य सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है. यहां तक की उद्योगों के एडिशनल खर्चे पर भी अभी तक राहत नहीं मिल पाई है. हालांकि, जीएसटी रिटर्न में थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन इसके अतिरिक्त बिजली, पानी, टेलीफोन आदि के किसी भी बिल पर कोई राहत नहीं मिली है. यही नहीं, पंकज गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन के समय केंद्र सरकार ने इंडस्ट्रीज को बिजली के टैक्स में छूट देने की बात कही थी, जिसका अभी तक लाभ नहीं मिल पाया है.
30 से 40 फीसदी लेबरों से ही चल रही है इंडस्ट्री
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान अधिकांश लेबर अपने घर को रवाना हो गए. इसके चलते पिछले साल की तरह इस साल भी इंडस्ट्री को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि वर्तमान समय में 30 से 40 फ़ीसदी लेबर ही इंडस्ट्रीज के पास मौजूद हैं, जिनसे काम कराया जा रहा है. लेकिन उन्हें इस बात का भी डर सता रहा है कि जो लेबर अभी काम कर रहे हैं वह कहीं कोरोना संक्रमित ना हो जाएं. जिससे उनका काम पूरी तरह से ठप पड़ जाएगा.
इंडस्ट्रीज कर रही हैं लेबरों का वैक्सीनेशन कराने की मांग
केंद्र और राज्य सरकार लगातार वैक्सीन लगाने पर जोर दे रही हैं. इसी क्रम में फ्रंटलाइन वर्कर्स के बाद आम जनता को भी इसी साल से वैक्सीन लगनी शुरू हो गई थी. ऐसे में उद्योग जगत के लोग इस बात की भी मांग कर रहे हैं कि उनके उद्योगों में काम करने वाले लेबर और कामगारों को राज्य सरकार प्रायोरिटी के तौर पर वैक्सीन लगाए. इसके लिए इंडस्ट्रीज के लोग कैंप लगाने के लिए भी तैयार हैं. लेकिन अभी तक इस ओर कोई पहल नहीं की गयी है. पंकज गुप्ता ने बताया कि उद्योग विभाग के अधिकारियों और मंत्री से भी इस बाबत बात हुई थी कि अगर कोई लेबर या कामगार संक्रमित हो जाता है तो उसके लिए प्राइवेट अस्पताल में भी इलाज की व्यवस्था किया जाए. लेकिन अभी तक उसका जीओ जारी नहीं हो पाया है.
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सरकार का है अपना तर्क
वहीं, उद्योग मंत्री गणेश जोशी ने बताया कि प्रदेश में जब कोरोना कर्फ्यू की शुरुआत हुई थी, उस दौरान इंडस्ट्री को इससे राहत दी गई थी. अभी भी इंडस्ट्रीज को कर्फ्यू में छूट दी गई है. इसके साथ ही इंडस्ट्रीज के लोगों को आवाजाही में कोई दिक्कत ना हो, इसके लिए पास की व्यवस्था की जा रही है. ताकि इंडस्ट्रीज प्रभावित ना हों. हालांकि राज्य सरकार इस ओर भी चिंता कर रही है कि लेबरों की संख्या कम होने लगी है, ऐसे में उनके लिए क्या व्यवस्था की जाए.