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यूं ही नहीं लिखा गया 'फ्वां बागा रे', जानिए गाने के पीछे की मार्मिक कहानी

'फ्वां बागा रे' गीत आजकल सोशल मीडिया पर धूम मचाए हुए है. यू-ट्यूब पर इस गीत के व्यूज  मिलियन से अधिक हैं. आज के युवा इस समय नये फ्लेवर के साथ इस गाने को बहुत ही पसंद कर रहे हैं.

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यूं ही नहीं लिखा गया 'फ्वां बागा रे'
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Published : Dec 8, 2019, 11:38 PM IST

Updated : Dec 9, 2019, 3:25 PM IST

देहरादून: 'फ्वां बागा रे' ये गाना इन दिनों देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रहा है. शादी समारोह से लेकर सोशल प्लेटफॉर्म तक हर जगह ये गाना सुनाई देता है. आजकल सभी जगह युवा इस गाने की धुन पर जमकर थिरक रहे हैं. आज ईटीवी भारत अपने दर्शकों को इस गाने के पीछे की कहानी से लेकर इसके मार्मिक संदेश के बारे में बताने जा रहा हैं. दरअसल इस गाने के पीछे उस समय की एक बड़ी समस्या छुपी हुई है, जिसे उत्तराखंड के प्रसिद्ध गायक और लेखक चंद्र सिंह राही ने गीत के माध्यम से जनता के सामने रखा.

ईटीवी भारत से बात करते हुए चंद्र सिंह राही के पुत्र विरेंद्र राही ने इस गाने के लिखने के पीछे की कहानी से लेकर इसकी धुन के बारे में कई सारी बातें साझा की. उन्होंने बताया कि जब ये गाना लिखा गया था तब उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में आदमखोर बाघ पाये जाते थे. उन्होंने बताया कि 'फ्वां बागा रे' गीत एक लोक गीत है जो लेखक और एक अन्य व्यक्ति के बीच आदमखोर बाघ को लेकर हो रहे संवाद को प्रस्तुत करता है.

यूं ही नहीं लिखा गया 'फ्वां बागा रे'

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विरेंद्र बताते हैं कि बहुत पुरानी बात है. बहुत साल पहले कोटद्वार रेलवे स्टेशन पर गाना गाकर पेट पालने वाले झोक्की नाम के एक व्यक्ति से उनके पिता की मुलाकात हुई. उस दौरान संचार के साधन इतने मजबूत नहीं थे. जिस कारण झोक्की वहां आस-पास होने वाली घटनाओं को गाकर सुनाता था, जिससे लोगों को भी घटना की जानकारी मिलती थी.

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जब उनके पिता झोक्की से मिले तो उसने गाना गाकर बताया कि कोटद्वार, लैंसडाउन, दुगड्डा में आदमखोर बाघ का आतंक बना हुआ है. इसके अलावा उसने इस गाने में वहां के लोगों की समस्या भी बताई. जिसके बाद चंद्र सिंह राही ने अपनी और झोक्की के बीच हुए संवाद को गाने का रूप देकर सबके सामने रखा. इस गाने में ये भी बताया गया है कि कैसे आदमखोर बाघ ने लैंसडाउन छावनी में तैनात हवलदार, कैप्टन और लेफ्टेनेंट तक के नाक में दम किया हुआ था.

पढ़ें- उत्तरकाशी: श्राइन बोर्ड के खिलाफ गंगोत्री में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे तीर्थ पुरोहित

लोक गायक स्व. चंद्र सिंह राही के गाए मूल गीत को स्व. पप्पू कार्की व दूसरे गायकों ने नए अंदाज में प्रस्तुत किया था, जो सोशल मीडिया के जरिये अब लोगों के बीच काफी पसंद किया जा रहा है. 'फ्वां बागा रे' गीत आजकल सोशल मीडिया पर धूम मचाए हुए है. यू-ट्यूब पर इस गीत के व्यूज मिलियन से अधिक हैं. आज के युवा इस समय नये फ्लेवर के साथ इस गाने को बहुत ही पसंद कर रहे हैं. जहां कई युवा इस गाने के सही अर्थ को समझ पाते हैं तो कई ऐसे भी है जो केवल इसकी धुनों से प्यार करते हैं.

पढ़ें- पढ़ेंः हरदा ने उड़ाई 'अपनों' की खिल्ली, कांग्रेस में 'झगड़े' से बीजेपी को राहत?

दरअसल, यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आदमखोर बाघ का इतिहास उत्तराखंड के इतिहास के सामनांतर है. उत्तराखंड के लोक गीतों में और संस्कृति में यहां के जंगली जानवर और उनकी समस्याओं से सबंधित कई बातों का आज भी उल्लेख मिलता है. अफसोस इस बात का है कि समय तो बदल गया लेकिन प्रदेश की समस्याएं कम नहीं हुई. आज भी कई इलाकों ने 'फ्वां बागा रे' की कहानी से मिलती जुलती घटनाएं दिखाई और सुनाई देती हैं. जरूरत है तो उस दर्द और आतंक के संदेश को समझने की.

देहरादून: 'फ्वां बागा रे' ये गाना इन दिनों देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रहा है. शादी समारोह से लेकर सोशल प्लेटफॉर्म तक हर जगह ये गाना सुनाई देता है. आजकल सभी जगह युवा इस गाने की धुन पर जमकर थिरक रहे हैं. आज ईटीवी भारत अपने दर्शकों को इस गाने के पीछे की कहानी से लेकर इसके मार्मिक संदेश के बारे में बताने जा रहा हैं. दरअसल इस गाने के पीछे उस समय की एक बड़ी समस्या छुपी हुई है, जिसे उत्तराखंड के प्रसिद्ध गायक और लेखक चंद्र सिंह राही ने गीत के माध्यम से जनता के सामने रखा.

ईटीवी भारत से बात करते हुए चंद्र सिंह राही के पुत्र विरेंद्र राही ने इस गाने के लिखने के पीछे की कहानी से लेकर इसकी धुन के बारे में कई सारी बातें साझा की. उन्होंने बताया कि जब ये गाना लिखा गया था तब उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में आदमखोर बाघ पाये जाते थे. उन्होंने बताया कि 'फ्वां बागा रे' गीत एक लोक गीत है जो लेखक और एक अन्य व्यक्ति के बीच आदमखोर बाघ को लेकर हो रहे संवाद को प्रस्तुत करता है.

यूं ही नहीं लिखा गया 'फ्वां बागा रे'

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विरेंद्र बताते हैं कि बहुत पुरानी बात है. बहुत साल पहले कोटद्वार रेलवे स्टेशन पर गाना गाकर पेट पालने वाले झोक्की नाम के एक व्यक्ति से उनके पिता की मुलाकात हुई. उस दौरान संचार के साधन इतने मजबूत नहीं थे. जिस कारण झोक्की वहां आस-पास होने वाली घटनाओं को गाकर सुनाता था, जिससे लोगों को भी घटना की जानकारी मिलती थी.

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जब उनके पिता झोक्की से मिले तो उसने गाना गाकर बताया कि कोटद्वार, लैंसडाउन, दुगड्डा में आदमखोर बाघ का आतंक बना हुआ है. इसके अलावा उसने इस गाने में वहां के लोगों की समस्या भी बताई. जिसके बाद चंद्र सिंह राही ने अपनी और झोक्की के बीच हुए संवाद को गाने का रूप देकर सबके सामने रखा. इस गाने में ये भी बताया गया है कि कैसे आदमखोर बाघ ने लैंसडाउन छावनी में तैनात हवलदार, कैप्टन और लेफ्टेनेंट तक के नाक में दम किया हुआ था.

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लोक गायक स्व. चंद्र सिंह राही के गाए मूल गीत को स्व. पप्पू कार्की व दूसरे गायकों ने नए अंदाज में प्रस्तुत किया था, जो सोशल मीडिया के जरिये अब लोगों के बीच काफी पसंद किया जा रहा है. 'फ्वां बागा रे' गीत आजकल सोशल मीडिया पर धूम मचाए हुए है. यू-ट्यूब पर इस गीत के व्यूज मिलियन से अधिक हैं. आज के युवा इस समय नये फ्लेवर के साथ इस गाने को बहुत ही पसंद कर रहे हैं. जहां कई युवा इस गाने के सही अर्थ को समझ पाते हैं तो कई ऐसे भी है जो केवल इसकी धुनों से प्यार करते हैं.

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दरअसल, यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आदमखोर बाघ का इतिहास उत्तराखंड के इतिहास के सामनांतर है. उत्तराखंड के लोक गीतों में और संस्कृति में यहां के जंगली जानवर और उनकी समस्याओं से सबंधित कई बातों का आज भी उल्लेख मिलता है. अफसोस इस बात का है कि समय तो बदल गया लेकिन प्रदेश की समस्याएं कम नहीं हुई. आज भी कई इलाकों ने 'फ्वां बागा रे' की कहानी से मिलती जुलती घटनाएं दिखाई और सुनाई देती हैं. जरूरत है तो उस दर्द और आतंक के संदेश को समझने की.

Intro:एंकर- मौजूदा समय में एक गाना है जो उत्तराखंड सहित उत्तराखंड से संबध रखने वाली हर शादी पार्टी में जरुर बजता है वो गाना है फ्वा बागा रे। ये वो गाना है जो कि टिक-टॉक से लेकर शोसल मिडीया के हर प्लेट फार्म पर वायरल है। भले आज हम इसकी बीट पर खूब थिरकतें हैं लेकिन क्या आप जानते है इसके पीछे छुपा है एक बहुत ही मार्मिक संदेश।Body:यह गाना उत्तराखंड के महान प्रसिध्द गायक और लेखक चंद्र सिंह राही ने लिखा है और यह गीत भले ही आज आधुनिक फ्लेवर में युवाओं की पहली पसंद है लेकिन इस गढ़वाली गीत की पेछे की कहानी उसी समस्या से जुड़ी हूई है जो आज भी हमारे सामने जस की तस है वह है उत्तराखंड के अलग अलग इलाकों में पाये जाने वाले आदमखोर बाग से। दरसल फ्वां बागा रे गीत एक लोग गीत है जो दो लेखक और एक अन्य वक्ती के बीच आदमखोर बाग को लेकर हो रहे संवाद को प्रस्तुत करता है।

गाने को लिखने वाले चंद्र सिंह राही तो अब हमारे बीच नही है लेकिन उनके सुपुत्र विरेंद्र जी बताते हैं कि ये दलसल बहुत पूरानी बात है जब पहली बार उनके पीता जी चंद्र सिंह राही ने इस लोग गीत को कागज में लिखा था। विरेंद्र बताते हैं कि बहुत पुरानी बात है जब गढ़वाल का द्वारा कहे जाने वाले कोटद्वार में रेलवे स्टेशन के बात एक झक्की नाम का व्यक्ती गाना गा-गा कर और पैसा मांग कर अपना पेट पालता था और लेखक चंद्र सिंह राही की इस व्यक्ती से मुलाकात हुई। उस दौरान संचार का इतना मजबूत साधन ना होने के चलते ये झक्की नाम का ये व्यक्ती आस पास की तमाम घटनाओं को गा-गा कर लोगों तक पंहुचाता था और जब लेखक इससे मिला तो इस व्यक्ती ने गाते हुए बताया कि कोटद्वार, लेसिंडोन, दुगड्डा में बाग लगा हुआ है, यानी आदमखोर बाग उन दिनो कोटद्वार में आंतक था और वहीं पूरा संवाद इस गाने में लिखा गया है। गाने में ये भी बताया गया है कि कैसे लेसिंडोन छावनी में हवलदार से लेकर कैप्टन और लेफ्टेनेंट अफसरों तक के इस बाग ने नाक में दम किया हुआ था। 

बाइट- विरेंद्र राही, लेखक के पुत्र

दरसल यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आदमखोर बाग का इतिहास उत्तराखंड के इतिहास के सामनांतर है। और उत्तराखंड के लोक गीतों में यहां की संस्कृती में यहां के जगंली जानवर और उनकी समस्याओं से सबंधित कई बाते आज भी हमारे पारम्परिक लोक गीतों और परम्पराओं में झलकती है लेकर अफसोस की समय बदल गया प्रदेश ने कई माइनों में विकास के नये खम्बे गाढ़ दिये लेकिन कुछ विषय हैं जो आज भी जस के तस है जिसमें आदमखोर बाघों की समस्या एक सबसे बड़ा उदाहरण है। बहर फ्वां बागा रे गीत पर भले ही बिना मतलब समझे हम चाहें कितना भी झूम लें लेकिन उस दर्द और उस आंतक और संदेश को भी थोड़ा समझने की जरुरत है जिसे गीतकार और लेखक ने अपने शब्दों में दिया है। Conclusion:
Last Updated : Dec 9, 2019, 3:25 PM IST
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