देहरादून: 'फ्वां बागा रे' ये गाना इन दिनों देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रहा है. शादी समारोह से लेकर सोशल प्लेटफॉर्म तक हर जगह ये गाना सुनाई देता है. आजकल सभी जगह युवा इस गाने की धुन पर जमकर थिरक रहे हैं. आज ईटीवी भारत अपने दर्शकों को इस गाने के पीछे की कहानी से लेकर इसके मार्मिक संदेश के बारे में बताने जा रहा हैं. दरअसल इस गाने के पीछे उस समय की एक बड़ी समस्या छुपी हुई है, जिसे उत्तराखंड के प्रसिद्ध गायक और लेखक चंद्र सिंह राही ने गीत के माध्यम से जनता के सामने रखा.
ईटीवी भारत से बात करते हुए चंद्र सिंह राही के पुत्र विरेंद्र राही ने इस गाने के लिखने के पीछे की कहानी से लेकर इसकी धुन के बारे में कई सारी बातें साझा की. उन्होंने बताया कि जब ये गाना लिखा गया था तब उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में आदमखोर बाघ पाये जाते थे. उन्होंने बताया कि 'फ्वां बागा रे' गीत एक लोक गीत है जो लेखक और एक अन्य व्यक्ति के बीच आदमखोर बाघ को लेकर हो रहे संवाद को प्रस्तुत करता है.
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विरेंद्र बताते हैं कि बहुत पुरानी बात है. बहुत साल पहले कोटद्वार रेलवे स्टेशन पर गाना गाकर पेट पालने वाले झोक्की नाम के एक व्यक्ति से उनके पिता की मुलाकात हुई. उस दौरान संचार के साधन इतने मजबूत नहीं थे. जिस कारण झोक्की वहां आस-पास होने वाली घटनाओं को गाकर सुनाता था, जिससे लोगों को भी घटना की जानकारी मिलती थी.
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जब उनके पिता झोक्की से मिले तो उसने गाना गाकर बताया कि कोटद्वार, लैंसडाउन, दुगड्डा में आदमखोर बाघ का आतंक बना हुआ है. इसके अलावा उसने इस गाने में वहां के लोगों की समस्या भी बताई. जिसके बाद चंद्र सिंह राही ने अपनी और झोक्की के बीच हुए संवाद को गाने का रूप देकर सबके सामने रखा. इस गाने में ये भी बताया गया है कि कैसे आदमखोर बाघ ने लैंसडाउन छावनी में तैनात हवलदार, कैप्टन और लेफ्टेनेंट तक के नाक में दम किया हुआ था.
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लोक गायक स्व. चंद्र सिंह राही के गाए मूल गीत को स्व. पप्पू कार्की व दूसरे गायकों ने नए अंदाज में प्रस्तुत किया था, जो सोशल मीडिया के जरिये अब लोगों के बीच काफी पसंद किया जा रहा है. 'फ्वां बागा रे' गीत आजकल सोशल मीडिया पर धूम मचाए हुए है. यू-ट्यूब पर इस गीत के व्यूज मिलियन से अधिक हैं. आज के युवा इस समय नये फ्लेवर के साथ इस गाने को बहुत ही पसंद कर रहे हैं. जहां कई युवा इस गाने के सही अर्थ को समझ पाते हैं तो कई ऐसे भी है जो केवल इसकी धुनों से प्यार करते हैं.
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दरअसल, यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आदमखोर बाघ का इतिहास उत्तराखंड के इतिहास के सामनांतर है. उत्तराखंड के लोक गीतों में और संस्कृति में यहां के जंगली जानवर और उनकी समस्याओं से सबंधित कई बातों का आज भी उल्लेख मिलता है. अफसोस इस बात का है कि समय तो बदल गया लेकिन प्रदेश की समस्याएं कम नहीं हुई. आज भी कई इलाकों ने 'फ्वां बागा रे' की कहानी से मिलती जुलती घटनाएं दिखाई और सुनाई देती हैं. जरूरत है तो उस दर्द और आतंक के संदेश को समझने की.