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जानिए क्यों, कहां और कब होता है वज्रपात, कैसे बरतें सावधानी

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Published : Aug 27, 2020, 6:04 AM IST

Updated : Aug 27, 2020, 6:11 AM IST

पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में आकाशीय बिजली गिरने से हर साल जानमाल का नुकसान होता है. प्रदेश में इस साल वज्रपात की 75 घटनाएं हुई हैं, जबकि पिछले पांच साल में 169 घटनाएं. आइए जानते हैं कि आखिर क्या होता है बिजली गिरना और इससे कैसे खुद को सुरक्षित रखें.

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आखिर क्यों होता है वज्रपात

देहरादून: उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां दैवीय आपदाएं हर साल कई जिंदगियां लील लेती हैं, वहां पर आकाशीय बिजली हर साल घटने वाली घटनाओं में से एक बड़ी वजह है. आज की स्पेशल रिपोर्ट में जानते हैं कि आकाशीय बिजली जिसे की वज्रपात भी कहते हैं. आखिर क्यों होता है वज्रपात ? और उत्तराखंड में पिछले पांच साल में आकाशीय बिजली से कितनी घटनाएं हुई हैं ?

आखिर क्यों होता है वज्रपात.

उत्तराखंड में दैवीय आपदाओं का इतिहास पुराना है. हर साल सैकड़ों लोग दैवीय आपदाओं में अपनी जान गंवा देते हैं. बीते कुछ सालों की बात करें तो साल 2015 से लेकर अब तक प्रदेश में दैवीय आपदा की कुल 7,829 से ज्यादा घटनाएं हुई है, जिसमें 169 घटनाएं बिजली गिरने की हुई हैं.

उत्तराखंड में 2015 से अबतक बिजली गिरने की घटनाएं-

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उत्तराखंड में 2015 से अबतक बिजली गिरने की घटनाएं.

साल 2015 से आज की तारीख तक उत्तराखंड में 7,829 दैवीय आपदाएं की घटनाएं घटी हैं, जिनमें से अगर आकाशीय बिजली या फिर वज्रपात की बात करें तो कुल 169 घटनाएं केवल आकाशीय बिजली गिरने की हुई है. जिसमें भारी जानमाल का नुकसान प्रदेशवासियों को उठाना पड़ा है.

क्या होती है आकाशीय बिजली और कब गिरती है जमीन पर ?

राष्ट्रीय क्लाइमेट रेसिलिएंट प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष कर्नल संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि आसमान में मौजूद बादलों के घर्षण से जो बिजली उतपन्न होती है. उसे आकाशीय बिजली कहते हैं. इसमें नेगेटिव चार्ज होता है, जबकि हमारी धरती में पॉजिटिव चार्ज होता है. ऐसे में नेगेटिव चार्ज पॉजिटिव चार्ज की ओर आकर्षित होता है. अगर एक कंडक्टर दोनों माध्यमों के बीच में आता है तो इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज होता है. सामान्यतः वातावरण में नमी आने पर बादल और धरती के बीच में नमी एक कंडक्टर का काम करती है, जिसके कारण आकाशीय बिजली जमीन पर गिरती है.

कहां गिरती है आकाशीय बिजली ?

संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि बिजली गिरने की सबसे ज्यादा संभावना ऊंचे इलाकों में होती है. जैसे कि पहाड़ की ऊंची चोटी पर या फिर अकेला ऊंचा पेड़ आकाशीय बिजली के लिहाज से खतरनाक माना जाता है. इसके साथ ही जहां पर पानी की अधिकता है यानी तालाब या झील होती है. वहां पर भी बिजली गिरने का खतरा अधिक होता है. इसका कारण यही है कि पानी इलेक्ट्रिसिटी का एक सुगम चालक माना जाता है.

आकाशीय बिजली से बचने के लिए क्या करें ?

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आकाशीय बिजली से बचने के लिए क्या करें ?

आकाशीय बिजली से सुरक्षित निर्माण के उपाय-

1. तड़ी चालक (पारम्परिक तरीका)

वज्रपात से बचने के लिए समय-समय पर पारंपरिक तरीके इजाद किए गए. पुराने तौर-तरीकों की बात करें तो पुराने समय में किसी भी निर्माण को आकाशीय बिजली के प्रकोप से बचाने के लिए तड़ी चालक का प्रयोग करते थे. जिसमें बिजली के तार के माध्यम से आकाशीय बिजली के डिस्चार्ज पाथ को जमीन में दबी एक तांबे की प्लेट में ले जाया जाता था.

2. लाइटनिंग अरेस्टर (आधुनिक तरीका)

तड़ी चालक की जगह अब आधुनिक लाइटनिंग अरेस्टर ने ले ली है. लाइटनिंग अरेस्टर को घनी बसावट वाले क्षेत्र में किसी ऊंची जगह पर लगाया जाता है. यह एक निश्चित दायरे में होने वाली सभी आकाशीय बिजली घटनाओं को अवशोषित कर लेता है. उस क्षेत्र में बिजली गिरने की घटना से जान माल का नुकसान को कम कर देता है.

आकाशीय बिजली को लेकर बड़े स्तर पर हुआ है कार्य

आकाशीय बिजली से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए पिछले 9 सालों से शोध चल रहा है. इसके लिए आकाशीय बिजली को पहचानने वाले सेंसर को विकसित किया गया है और एक पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर नेटवर्क तैयार किया गया है. आकाशीय बिजली की भविष्यवाणी को इस शोध के जरिए किया जा सका है. इसके बाद उसका एक मोबाइल एप भी तैयार किया गया है, जिसे दामिनी एप नाम दिया गया है. 2016 में नेशनल डिजास्टर अथॉरिटी से अप्रूव होने के बाद 2017-18 में कई राज्यों ने इस एप का प्रयोग शुरू किया. इस ऐप के जरिए बिजली की भविष्यवाणी की जा रही है. साथ ही उन इलाकों को चिन्हित किया जा रहा है, जहां पर बिजली गिरने का ज्यादा जोखिम है और इन क्षेत्रों को को हॉटस्पॉट एरिया से मैप किया जा रहा है.

देहरादून: उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां दैवीय आपदाएं हर साल कई जिंदगियां लील लेती हैं, वहां पर आकाशीय बिजली हर साल घटने वाली घटनाओं में से एक बड़ी वजह है. आज की स्पेशल रिपोर्ट में जानते हैं कि आकाशीय बिजली जिसे की वज्रपात भी कहते हैं. आखिर क्यों होता है वज्रपात ? और उत्तराखंड में पिछले पांच साल में आकाशीय बिजली से कितनी घटनाएं हुई हैं ?

आखिर क्यों होता है वज्रपात.

उत्तराखंड में दैवीय आपदाओं का इतिहास पुराना है. हर साल सैकड़ों लोग दैवीय आपदाओं में अपनी जान गंवा देते हैं. बीते कुछ सालों की बात करें तो साल 2015 से लेकर अब तक प्रदेश में दैवीय आपदा की कुल 7,829 से ज्यादा घटनाएं हुई है, जिसमें 169 घटनाएं बिजली गिरने की हुई हैं.

उत्तराखंड में 2015 से अबतक बिजली गिरने की घटनाएं-

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उत्तराखंड में 2015 से अबतक बिजली गिरने की घटनाएं.

साल 2015 से आज की तारीख तक उत्तराखंड में 7,829 दैवीय आपदाएं की घटनाएं घटी हैं, जिनमें से अगर आकाशीय बिजली या फिर वज्रपात की बात करें तो कुल 169 घटनाएं केवल आकाशीय बिजली गिरने की हुई है. जिसमें भारी जानमाल का नुकसान प्रदेशवासियों को उठाना पड़ा है.

क्या होती है आकाशीय बिजली और कब गिरती है जमीन पर ?

राष्ट्रीय क्लाइमेट रेसिलिएंट प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष कर्नल संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि आसमान में मौजूद बादलों के घर्षण से जो बिजली उतपन्न होती है. उसे आकाशीय बिजली कहते हैं. इसमें नेगेटिव चार्ज होता है, जबकि हमारी धरती में पॉजिटिव चार्ज होता है. ऐसे में नेगेटिव चार्ज पॉजिटिव चार्ज की ओर आकर्षित होता है. अगर एक कंडक्टर दोनों माध्यमों के बीच में आता है तो इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज होता है. सामान्यतः वातावरण में नमी आने पर बादल और धरती के बीच में नमी एक कंडक्टर का काम करती है, जिसके कारण आकाशीय बिजली जमीन पर गिरती है.

कहां गिरती है आकाशीय बिजली ?

संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि बिजली गिरने की सबसे ज्यादा संभावना ऊंचे इलाकों में होती है. जैसे कि पहाड़ की ऊंची चोटी पर या फिर अकेला ऊंचा पेड़ आकाशीय बिजली के लिहाज से खतरनाक माना जाता है. इसके साथ ही जहां पर पानी की अधिकता है यानी तालाब या झील होती है. वहां पर भी बिजली गिरने का खतरा अधिक होता है. इसका कारण यही है कि पानी इलेक्ट्रिसिटी का एक सुगम चालक माना जाता है.

आकाशीय बिजली से बचने के लिए क्या करें ?

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आकाशीय बिजली से बचने के लिए क्या करें ?

आकाशीय बिजली से सुरक्षित निर्माण के उपाय-

1. तड़ी चालक (पारम्परिक तरीका)

वज्रपात से बचने के लिए समय-समय पर पारंपरिक तरीके इजाद किए गए. पुराने तौर-तरीकों की बात करें तो पुराने समय में किसी भी निर्माण को आकाशीय बिजली के प्रकोप से बचाने के लिए तड़ी चालक का प्रयोग करते थे. जिसमें बिजली के तार के माध्यम से आकाशीय बिजली के डिस्चार्ज पाथ को जमीन में दबी एक तांबे की प्लेट में ले जाया जाता था.

2. लाइटनिंग अरेस्टर (आधुनिक तरीका)

तड़ी चालक की जगह अब आधुनिक लाइटनिंग अरेस्टर ने ले ली है. लाइटनिंग अरेस्टर को घनी बसावट वाले क्षेत्र में किसी ऊंची जगह पर लगाया जाता है. यह एक निश्चित दायरे में होने वाली सभी आकाशीय बिजली घटनाओं को अवशोषित कर लेता है. उस क्षेत्र में बिजली गिरने की घटना से जान माल का नुकसान को कम कर देता है.

आकाशीय बिजली को लेकर बड़े स्तर पर हुआ है कार्य

आकाशीय बिजली से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए पिछले 9 सालों से शोध चल रहा है. इसके लिए आकाशीय बिजली को पहचानने वाले सेंसर को विकसित किया गया है और एक पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर नेटवर्क तैयार किया गया है. आकाशीय बिजली की भविष्यवाणी को इस शोध के जरिए किया जा सका है. इसके बाद उसका एक मोबाइल एप भी तैयार किया गया है, जिसे दामिनी एप नाम दिया गया है. 2016 में नेशनल डिजास्टर अथॉरिटी से अप्रूव होने के बाद 2017-18 में कई राज्यों ने इस एप का प्रयोग शुरू किया. इस ऐप के जरिए बिजली की भविष्यवाणी की जा रही है. साथ ही उन इलाकों को चिन्हित किया जा रहा है, जहां पर बिजली गिरने का ज्यादा जोखिम है और इन क्षेत्रों को को हॉटस्पॉट एरिया से मैप किया जा रहा है.

Last Updated : Aug 27, 2020, 6:11 AM IST
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