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Rajya Sabha Election: कल्पना सैनी के राज्यसभा जाने के इन दिग्गजों की राजनीति पर लगा प्रश्नचिह्न

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Published : May 30, 2022, 10:01 PM IST

डॉ कल्पना सैनी के राज्यसभा उम्मीदवार बनाये जाने के बाद प्रदेश के कई नेताओं की राजनीति को बड़ा झटका लगा है. आखिरकार क्यों बीजेपी ने ऐसा कदम उठाया? इसके पीछे की क्या वजह है, आइये आपको बताते हैं.

Kalpana Saini a Rajya Sabha candidate,
कल्पना सैनी के राज्यसभा जाने के कई दिग्गजों की राजनीति पर लगा प्रश्नचिह्न

देहरादून: उत्तराखंड में राज्यसभा की सीट के लिए 10 जून को चुनाव होना है. भाजपा की ओर से प्रत्याशी बनाने के लिए कई लोगों के नाम केंद्रीय चुनाव समिति को भेजे गए थे. जिसमें वर्तमान में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्ष डॉ कल्पना सैनी के नाम की घोषणा हुई है. कल्पना सैनी के नाम की घोषणा होने के बाद उत्तराखंड में कई दिग्गज नेताओं की राजनीति पर प्रश्नचिह्न लग गया है. इनमें सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और विजय बहुगुणा का है.

संगठन की लिस्ट में नहीं था कल्पना सैनी का नाम: उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी महिलाओं को एक बड़े वोट बैंक के रूप में देख रही है. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने खुलकर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया. ऐसे में बीजेपी राज्यसभा टिकट के लिए सभी मापदंड देख रही थी. जिससे महिलाओं को और रिझाया जा सके. लिहाजा बीजेपी संगठन उत्तराखंड से भेजे गए लगभग 10 नामों में से दिल्ली में बैठे नेताओं ने किसी भी नाम का चयन नहीं किया.

हाईकमान ने एक ऐसा नाम को आगे किया जिसने सबकों चौंका दिया. हाईकमान ने डॉ कल्पना सैनी उम्मीदवार बनाकर एक तीर से दो शिकार किए. इससे जहां एक ओर बीजेपी ने साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए महिलाओं को भी लुभाने की कोशिश की है, वहीं, ओबीसी वर्ग को भी इस फैसले से साधा गया है.

पढ़ें- सिद्धू मूसेवाला की हत्या पर बॉलीवुड में शोक की लहर, रणवीर सिंह से कपिल शर्मा तक ने जताया दुख

विजय बहुगुणा को इसलिए किया किनारे: उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा हो या त्रिवेंद्र सिंह रावत यह दो ऐसे नाम थे. जिनकी चर्चा राज्यसभा के लिए सबसे ज्यादा की जा रही थी. विजय बहुगुणा को लेकर चर्चाएं इसलिए तेज थी. क्योंकि हरीश रावत की सरकार अल्पमत में लाने का श्रेय बहुगुणा को ही जाता है. उन्होंने हरीश रावत के खेमे के कई नेताओं, विधायकों को बीजेपी में शामिल करवाया. इसके बाद लगा था कि साल 2016 के बाद विजय बहुगुणा को राज्यसभा भेजा जाएगा, लेकिन बहुगुणा के हाथ खाली ही रहे.

अब खबर आ रही है कि विजय बहुगुणा को राज्यसभा इसलिए नहीं भेजा गया, क्योंकि उनके बेटे सौरभ बहुगुणा को बीजेपी ने विधायक का टिकट दिया. जीतने के बाद उन्हें कैबिनेट मंत्री भी बनाया. लिहाजा बीजेपी के दूसरे नेता परिवारवाद का आरोप ना लगाएं, ऐसे में विजय बहुगुणा को पार्टी ने इस बार राज्यसभा से अलग ही रखा.

पढ़ें- कचरे का ढेर बनता जा रहा चारधाम, सॉलिड वेस्ट के असर से 'हिला' हिमालय

त्रिवेंद्र भी पार्टी नेता की नजरों में नही बना पाए जगह: मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से त्रिवेंद्र सिंह रावत लगातार पार्टी की नजरों में यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि वह भले ही मुख्यमंत्री पद से हट गए हो या हटा दिए गए हो. लेकिन आज भी संगठन और सरकार के लिए काम कर रहे हैं. बीते कई दिनों से अपनी सक्रियता को लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत चर्चाओं में थे. कुमाऊं से लेकर गढ़वाल और मैदान से लेकर पहाड़ तक त्रिवेंद्र सिंह रावत तमाम कार्यक्रमों में पार्टी के कार्यकर्ताओं के घर जाकर पार्टी के लिए काम कर रहे थे.

उम्मीद जताई जा रही थी कि उन्हें राज्यसभा भेजा जा सकता था. लेकिन अब डॉ कल्पना सैनी का नाम सामने के आने के बाद उनकी राजनीति पर भी प्रश्न चिन्ह लगा है. हालांकि, त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए जानकार मानते हैं कि अभी उनके पास समय बहुत है. लिहाजा अगर पार्टी चाहेगी तो उनको आगे और मौके दिए जा सकते हैं.

पढ़ें- चारधाम यात्रा में बदइंतजामी, उम्मीद छोड़ बिना दर्शन के ही वापस लौट रहे श्रद्धालु

ये नाम भी दौड़ में थे शामिल: विजय बहुगुणा और त्रिवेंद्र सिंह रावत ही नहीं बल्कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से अनिल गोयल, कुलदीप सिंह, आशा नौटियाल, श्यामवीर जैसे नाम भी इस दौड़ में शामिल थे. इन सभी के हाथ मायूसी लगी है. इन सभी के नाम हाईकमान को भेजी गई लिस्ट में शामिल थे, मगर हाईकमान ने कल्पना के नाम पर मुहर लगाकर इनकी उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया.

निर्विरोध चुनी जा सकती हैं कल्पना सैनी: बता दें राज्य में 4 जुलाई को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप टम्टा का कार्यकाल खत्म हो रहा है. ऐसे में 47 विधायकों की वजह से उम्मीद यही जताई जा रही है कि डॉ कल्पना सैनी को निर्विरोध चुन लिया जाएगा. उत्तराखंड में 10 जून को राज्यसभा के लिए मतदान होना है. डॉ कल्पना सैनी के बारे में बताया जाता है कि वह बीजेपी की पुरानी नेता हैं. साथ ही साथ उनके भाई आरएसएस के बड़े नेता हैं जो विदेश में प्रचार का बीड़ा संभाल रहे हैं.

पढ़ें- चंपावत उपचुनावः CM धामी का डोर टू डोर कैंपेन, बाइक चलाकर पहुंचे बनबसा से टनकपुर

हाईकमान ने एक तीर से साधे दो निशाने: डॉ कल्पना सैनी को राज्यसभा भेजने के पीछे बीजेपी का सीधा मकसद ओबीसी वोट बैंक को साधना है. जिस तरह से उत्तर प्रदेश में 5 ओबीसी उम्मीदवारों का चयन किया गया है उसी तरह से उत्तराखंड में भी उधम सिंह नगर हो या हरिद्वार, ओबीसी वर्ग की संख्या अच्छी खासी है. 2024 के चुनावों में यह वर्ग चुनाव में बड़ा असर डाल सकता है. ऐसे में पार्टी महिलाओं के साथ-साथ ओबीसी वर्ग को साधने की भी कोशिश कर रही है.

बताया जा रहा है कि पार्टी ने इसलिए भी हरिद्वार से उम्मीदवार बनाया क्योंकि बीते दिनों हुए विधानसभा चुनावों में हरिद्वार से लेकर रुड़की तक पार्टी का रिजल्ट अच्छा नहीं रहा. ऐसे में 2024 में कोई कमी ना हो, उसके लिए भी पार्टी ने डॉ कल्पना सैनी को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया है.

देहरादून: उत्तराखंड में राज्यसभा की सीट के लिए 10 जून को चुनाव होना है. भाजपा की ओर से प्रत्याशी बनाने के लिए कई लोगों के नाम केंद्रीय चुनाव समिति को भेजे गए थे. जिसमें वर्तमान में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्ष डॉ कल्पना सैनी के नाम की घोषणा हुई है. कल्पना सैनी के नाम की घोषणा होने के बाद उत्तराखंड में कई दिग्गज नेताओं की राजनीति पर प्रश्नचिह्न लग गया है. इनमें सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और विजय बहुगुणा का है.

संगठन की लिस्ट में नहीं था कल्पना सैनी का नाम: उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी महिलाओं को एक बड़े वोट बैंक के रूप में देख रही है. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने खुलकर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया. ऐसे में बीजेपी राज्यसभा टिकट के लिए सभी मापदंड देख रही थी. जिससे महिलाओं को और रिझाया जा सके. लिहाजा बीजेपी संगठन उत्तराखंड से भेजे गए लगभग 10 नामों में से दिल्ली में बैठे नेताओं ने किसी भी नाम का चयन नहीं किया.

हाईकमान ने एक ऐसा नाम को आगे किया जिसने सबकों चौंका दिया. हाईकमान ने डॉ कल्पना सैनी उम्मीदवार बनाकर एक तीर से दो शिकार किए. इससे जहां एक ओर बीजेपी ने साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए महिलाओं को भी लुभाने की कोशिश की है, वहीं, ओबीसी वर्ग को भी इस फैसले से साधा गया है.

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विजय बहुगुणा को इसलिए किया किनारे: उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा हो या त्रिवेंद्र सिंह रावत यह दो ऐसे नाम थे. जिनकी चर्चा राज्यसभा के लिए सबसे ज्यादा की जा रही थी. विजय बहुगुणा को लेकर चर्चाएं इसलिए तेज थी. क्योंकि हरीश रावत की सरकार अल्पमत में लाने का श्रेय बहुगुणा को ही जाता है. उन्होंने हरीश रावत के खेमे के कई नेताओं, विधायकों को बीजेपी में शामिल करवाया. इसके बाद लगा था कि साल 2016 के बाद विजय बहुगुणा को राज्यसभा भेजा जाएगा, लेकिन बहुगुणा के हाथ खाली ही रहे.

अब खबर आ रही है कि विजय बहुगुणा को राज्यसभा इसलिए नहीं भेजा गया, क्योंकि उनके बेटे सौरभ बहुगुणा को बीजेपी ने विधायक का टिकट दिया. जीतने के बाद उन्हें कैबिनेट मंत्री भी बनाया. लिहाजा बीजेपी के दूसरे नेता परिवारवाद का आरोप ना लगाएं, ऐसे में विजय बहुगुणा को पार्टी ने इस बार राज्यसभा से अलग ही रखा.

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त्रिवेंद्र भी पार्टी नेता की नजरों में नही बना पाए जगह: मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से त्रिवेंद्र सिंह रावत लगातार पार्टी की नजरों में यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि वह भले ही मुख्यमंत्री पद से हट गए हो या हटा दिए गए हो. लेकिन आज भी संगठन और सरकार के लिए काम कर रहे हैं. बीते कई दिनों से अपनी सक्रियता को लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत चर्चाओं में थे. कुमाऊं से लेकर गढ़वाल और मैदान से लेकर पहाड़ तक त्रिवेंद्र सिंह रावत तमाम कार्यक्रमों में पार्टी के कार्यकर्ताओं के घर जाकर पार्टी के लिए काम कर रहे थे.

उम्मीद जताई जा रही थी कि उन्हें राज्यसभा भेजा जा सकता था. लेकिन अब डॉ कल्पना सैनी का नाम सामने के आने के बाद उनकी राजनीति पर भी प्रश्न चिन्ह लगा है. हालांकि, त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए जानकार मानते हैं कि अभी उनके पास समय बहुत है. लिहाजा अगर पार्टी चाहेगी तो उनको आगे और मौके दिए जा सकते हैं.

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ये नाम भी दौड़ में थे शामिल: विजय बहुगुणा और त्रिवेंद्र सिंह रावत ही नहीं बल्कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से अनिल गोयल, कुलदीप सिंह, आशा नौटियाल, श्यामवीर जैसे नाम भी इस दौड़ में शामिल थे. इन सभी के हाथ मायूसी लगी है. इन सभी के नाम हाईकमान को भेजी गई लिस्ट में शामिल थे, मगर हाईकमान ने कल्पना के नाम पर मुहर लगाकर इनकी उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया.

निर्विरोध चुनी जा सकती हैं कल्पना सैनी: बता दें राज्य में 4 जुलाई को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप टम्टा का कार्यकाल खत्म हो रहा है. ऐसे में 47 विधायकों की वजह से उम्मीद यही जताई जा रही है कि डॉ कल्पना सैनी को निर्विरोध चुन लिया जाएगा. उत्तराखंड में 10 जून को राज्यसभा के लिए मतदान होना है. डॉ कल्पना सैनी के बारे में बताया जाता है कि वह बीजेपी की पुरानी नेता हैं. साथ ही साथ उनके भाई आरएसएस के बड़े नेता हैं जो विदेश में प्रचार का बीड़ा संभाल रहे हैं.

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हाईकमान ने एक तीर से साधे दो निशाने: डॉ कल्पना सैनी को राज्यसभा भेजने के पीछे बीजेपी का सीधा मकसद ओबीसी वोट बैंक को साधना है. जिस तरह से उत्तर प्रदेश में 5 ओबीसी उम्मीदवारों का चयन किया गया है उसी तरह से उत्तराखंड में भी उधम सिंह नगर हो या हरिद्वार, ओबीसी वर्ग की संख्या अच्छी खासी है. 2024 के चुनावों में यह वर्ग चुनाव में बड़ा असर डाल सकता है. ऐसे में पार्टी महिलाओं के साथ-साथ ओबीसी वर्ग को साधने की भी कोशिश कर रही है.

बताया जा रहा है कि पार्टी ने इसलिए भी हरिद्वार से उम्मीदवार बनाया क्योंकि बीते दिनों हुए विधानसभा चुनावों में हरिद्वार से लेकर रुड़की तक पार्टी का रिजल्ट अच्छा नहीं रहा. ऐसे में 2024 में कोई कमी ना हो, उसके लिए भी पार्टी ने डॉ कल्पना सैनी को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया है.

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