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उत्तराखंडः शिक्षा विभाग की लापरवाही, स्पॉन्सरशिप का नहीं हुआ सदुपयोग

शिक्षा के अधिकार कानून को लेकर उत्तराखंड बाल आयोग का चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. 2018 से पहले तक राज्य के सभी 13 जिलों में सुचारू रूप इसका कानून का पालन नहीं हो रहा है. हर वर्ष RTE के तहत केंद्र सरकार से आने वाली स्पॉन्सर स्कीम की धनराशि लेप्स हो रही थी.

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शिक्षा विभाग
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Published : Dec 31, 2019, 6:30 PM IST

देहरादूनः वर्ष 2002 से केंद्र सरकार द्वारा देशभर में शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) लागू किया गया. इस कानून को लेकर राज्य सरकार गंभीर नहीं है. इसके तहत गरीब परिवार के बच्चों के अलावा सड़क पर भिक्षावृत्ति व बाल मजदूरी जैसे असहाय बच्चों के नाम पर मिलने वाली सालाना प्रायोजित (स्पॉन्सर) धनराशि को लेकर उत्तराखंड शिक्षा विभाग 16 वर्षों तक कितना लापरवाह बना हुआ था, इसका खुलासा बाल आयोग ने किया है.

आयोग के मुताबिक, प्रदेशभर के सभी 13 जिलों में RTE योजना के तहत केंद्र सरकार से मिलने वाली अतिरिक्त स्पॉन्सर राशि का उत्तराखंड के किसी भी जनपद ने कानून लागू होने वर्ष 2002 से 2018 तक उपयोग ही नहीं किया जा रहा था.

स्पॉन्सर धनराशि लापरवाही की भेंट चढ़ी.

जिसके चलते आर्थिक तंगहाली के कारण शिक्षा से पूरी तरह वंचित रहने वाले बच्चों को इस केंद्र पोषित योजना का लाभ नहीं मिल रहा था, जबकि केंद्र सरकार द्वारा देश में सभी बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के तहत प्रत्येक जनपद को कम से कम 40 बच्चों के स्कूली खर्चे के लिए सालाना 10 लाख रुपए की धनराशि अतिरिक्त स्पॉन्सर के तौर जारी होती हैं.

शिक्षा विभाग की लचर कार्यशैली व इच्छाशक्ति की कमी के चलते केंद्र द्वारा मुहैया होने वाली धनराशि इस्तेमाल न होने के चलते हर साल लेप्स हो जाती थी. 2018 में इस मामले में खुलासा होने के बाद बाल आयोग ने पिछले 1 साल से इस पर कार्य करना शुरू किया और आज सैकड़ों बच्चों को इसका योजना का लाभ मिल रहा है.

उत्तराखंड बाल आयोग ने किया मामले का खुलासा
उत्तराखंड बाल आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी ने इस पूरे मामले का खुलासा किया. उनकी मानें तो सड़क पर भिक्षा मांगने व बाल मजदूरी के साथ गरीबी की तंगहाली में जीने वाले बच्चों के शिक्षा स्पॉन्सर राशि के संबंध में जब राज्य के सभी जिलों से 2018 में रिपोर्ट तलब की, तो पता चला कि इस राशि को शिक्षा विभाग इस्तेमाल ही नहीं करता है, जिसके कारण केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाली यह प्रायोजित राशि हर वर्ष लैप्स हो जाती है.

जबकि, केंद्र सरकार द्वारा सभी तबके के गरीब बच्चों को शिक्षा के अधिकार से जुड़ने के लिए सभी राज्यों के जिलों को स्पॉन्सर धनराशि प्रदान की जाती है, लेकिन अफसोस की बात है कि राज्य के किसी जिले द्वारा भी 2018 तक इस स्पॉन्सर राशि का इस्तेमाल नहीं हुआ.

ऐसे में बाल आयोग द्वारा इस पर ठोस कदम उठाते हुए केंद्र की इस अतिरिक्त आर्थिक सहायता के रूप में मिलने वाले धनराशि को टिहरी गढ़वाल से शुरू करवाया गया, जहां सबसे पहले 45 से बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने की व्यवस्था की गई, जो किसी भी रूप में स्कूलों का खर्चा नहीं उठा सकते थे.

इतना ही नहीं टिहरी के बाद हरिद्वार में 40 गरीब बच्चों को भी इस योजना का लाभ दिलाया गया, ऐसे में वर्तमान समय में उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में पिछले 1 साल से केंद्र सरकार की ओर से शिक्षा के लिए मिलने वाली स्पॉन्सर राशि का फायदा वर्तमान में राज्यभर के 354 बच्चों को योजना का लाभ अब हर जिले में दिलवाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि केंद्र से मिलने वाली शिक्षा प्रोत्साहन को इस्तेमाल न करना शिक्षा विभाग की लचर कारगुजारियों को उजागर करता हैं.

यह भी पढ़ेंः उत्तराखंड सचिवालय में लगी आग, मची अफरा-तफरी

उषा नेगी के मुताबिक शिक्षा के अधिकार योजना के तहत मिलने वाली अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि का लाभ अगर प्रत्येक जिलों में 40 बच्चों से शुरू कर 80 बच्चों तक पहुंचाई जाता तो यह सालाना स्पॉन्सर राशि 10 लाख की जगह बढ़कर आज 20 लाख रुपए प्रति सालाना हो सकती थी, लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा इस ओर कोई कदम न उठाना दुर्भाग्यपूर्ण है.

नेगी के मुताबिक, केंद्र द्वारा एक जिले के 40 बच्चों के लिए सालाना 10 लाख प्रोत्साहन धनराशि उनके स्कूली शिक्षा खर्चे के लिए दी जाती है. ऐसे में अगर इस योजना का गरीब बच्चों को फायदा पहुंचाकर आगे इसे बढ़ाया गया होता तो, यह राशि वर्तमान समय में दुगनी हो सकती थी.

देहरादूनः वर्ष 2002 से केंद्र सरकार द्वारा देशभर में शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) लागू किया गया. इस कानून को लेकर राज्य सरकार गंभीर नहीं है. इसके तहत गरीब परिवार के बच्चों के अलावा सड़क पर भिक्षावृत्ति व बाल मजदूरी जैसे असहाय बच्चों के नाम पर मिलने वाली सालाना प्रायोजित (स्पॉन्सर) धनराशि को लेकर उत्तराखंड शिक्षा विभाग 16 वर्षों तक कितना लापरवाह बना हुआ था, इसका खुलासा बाल आयोग ने किया है.

आयोग के मुताबिक, प्रदेशभर के सभी 13 जिलों में RTE योजना के तहत केंद्र सरकार से मिलने वाली अतिरिक्त स्पॉन्सर राशि का उत्तराखंड के किसी भी जनपद ने कानून लागू होने वर्ष 2002 से 2018 तक उपयोग ही नहीं किया जा रहा था.

स्पॉन्सर धनराशि लापरवाही की भेंट चढ़ी.

जिसके चलते आर्थिक तंगहाली के कारण शिक्षा से पूरी तरह वंचित रहने वाले बच्चों को इस केंद्र पोषित योजना का लाभ नहीं मिल रहा था, जबकि केंद्र सरकार द्वारा देश में सभी बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के तहत प्रत्येक जनपद को कम से कम 40 बच्चों के स्कूली खर्चे के लिए सालाना 10 लाख रुपए की धनराशि अतिरिक्त स्पॉन्सर के तौर जारी होती हैं.

शिक्षा विभाग की लचर कार्यशैली व इच्छाशक्ति की कमी के चलते केंद्र द्वारा मुहैया होने वाली धनराशि इस्तेमाल न होने के चलते हर साल लेप्स हो जाती थी. 2018 में इस मामले में खुलासा होने के बाद बाल आयोग ने पिछले 1 साल से इस पर कार्य करना शुरू किया और आज सैकड़ों बच्चों को इसका योजना का लाभ मिल रहा है.

उत्तराखंड बाल आयोग ने किया मामले का खुलासा
उत्तराखंड बाल आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी ने इस पूरे मामले का खुलासा किया. उनकी मानें तो सड़क पर भिक्षा मांगने व बाल मजदूरी के साथ गरीबी की तंगहाली में जीने वाले बच्चों के शिक्षा स्पॉन्सर राशि के संबंध में जब राज्य के सभी जिलों से 2018 में रिपोर्ट तलब की, तो पता चला कि इस राशि को शिक्षा विभाग इस्तेमाल ही नहीं करता है, जिसके कारण केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाली यह प्रायोजित राशि हर वर्ष लैप्स हो जाती है.

जबकि, केंद्र सरकार द्वारा सभी तबके के गरीब बच्चों को शिक्षा के अधिकार से जुड़ने के लिए सभी राज्यों के जिलों को स्पॉन्सर धनराशि प्रदान की जाती है, लेकिन अफसोस की बात है कि राज्य के किसी जिले द्वारा भी 2018 तक इस स्पॉन्सर राशि का इस्तेमाल नहीं हुआ.

ऐसे में बाल आयोग द्वारा इस पर ठोस कदम उठाते हुए केंद्र की इस अतिरिक्त आर्थिक सहायता के रूप में मिलने वाले धनराशि को टिहरी गढ़वाल से शुरू करवाया गया, जहां सबसे पहले 45 से बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने की व्यवस्था की गई, जो किसी भी रूप में स्कूलों का खर्चा नहीं उठा सकते थे.

इतना ही नहीं टिहरी के बाद हरिद्वार में 40 गरीब बच्चों को भी इस योजना का लाभ दिलाया गया, ऐसे में वर्तमान समय में उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में पिछले 1 साल से केंद्र सरकार की ओर से शिक्षा के लिए मिलने वाली स्पॉन्सर राशि का फायदा वर्तमान में राज्यभर के 354 बच्चों को योजना का लाभ अब हर जिले में दिलवाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि केंद्र से मिलने वाली शिक्षा प्रोत्साहन को इस्तेमाल न करना शिक्षा विभाग की लचर कारगुजारियों को उजागर करता हैं.

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उषा नेगी के मुताबिक शिक्षा के अधिकार योजना के तहत मिलने वाली अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि का लाभ अगर प्रत्येक जिलों में 40 बच्चों से शुरू कर 80 बच्चों तक पहुंचाई जाता तो यह सालाना स्पॉन्सर राशि 10 लाख की जगह बढ़कर आज 20 लाख रुपए प्रति सालाना हो सकती थी, लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा इस ओर कोई कदम न उठाना दुर्भाग्यपूर्ण है.

नेगी के मुताबिक, केंद्र द्वारा एक जिले के 40 बच्चों के लिए सालाना 10 लाख प्रोत्साहन धनराशि उनके स्कूली शिक्षा खर्चे के लिए दी जाती है. ऐसे में अगर इस योजना का गरीब बच्चों को फायदा पहुंचाकर आगे इसे बढ़ाया गया होता तो, यह राशि वर्तमान समय में दुगनी हो सकती थी.

Intro:pls नोट डेस्क- इस स्टोरी से संबंधित स्कूल के फाइल विसुअल ईमेल द्वारा भेज भेजे गए हैं,कृपया उठाने का कष्ट करें

summary-शिक्षा के अधिकार कानून को लेकर उत्तराखंड बाल आयोग का चोंकाने वाला खुलासा,2018 से पहले तक राज्य के सभी 13 जिलों सुचारू रूप नहीं हो रहा इस कानून का पालन,हर वर्ष RTE के तहत केंद्र सरकार से आने स्पॉन्सर स्कीम की धनराशि हो रही थी लेप्स।


वर्ष 2002 से केंद्र सरकार द्वारा देशभर में शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) के तहत गरीब परिवार के बच्चों के अलावा सड़क पर भिक्षावृत्ति व बाल मजदूरी जैसे असहाय बच्चों के नाम पर मिलने वाली सालाना प्रायोजित (स्पॉन्सर)धनराशि को लेकर उत्तराखंड शिक्षा विभाग 16 वर्षो तक कितना लापरवाह बना हुआ था,इसका खुलासा बाल आयोग ने किया हैं...आयोग के मुताबिक प्रदेशभर के सभी 13 जिलों में RTE योजना के तहत केंद्र सरकार से मिलने वाली अतिरिक्त स्पॉन्सर राशि का उत्तराखंड के किसी भी जनपद ने कानून लागू होने वर्ष 2002 से 2018 तक उपयोग ही नहीं किया जा रहा था। जिसके चलते आर्थिक तंगहाली के कारण शिक्षा से पूरी तरह वंचित रहने वाले बच्चों को इस केंद्र पोषित योजना का लाभ नहीं मिल रहा था,जबकि केंद्र सरकार द्वारा देश में सभी बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के तहत प्रत्येक जनपद को कम से कम 40 बच्चों के स्कूली खर्चे के लिए सालाना 10 लाख रुपए की धनराशि अतिरिक्त स्पॉन्सर के तौर जारी होती हैं। लेकिन शिक्षा विभाग की लचर कार्यशैली व इच्छाशक्ति की कमी के चलते केंद्र द्वारा मुहैया होने वाली धनराशि इस्तेमाल ना होने के चलते हर साल लेप्स हो जाती थी। 2018 में इस मामलें खुलासा होने के बाद...बाल आयोग ने पिछले 1 साल से इस पर कार्य करना शुरू किया और आज सैकड़ों बच्चों को इसका योजना का लाभ मिल रहा है।


Body:शिक्षा विभाग की लापरवाही से हर वर्ष मिलने वाली धनराशि होती थी लेप्स: बाल आयोग

उत्तराखंड बाल आयोग अध्यक्ष उषा नेगी की माने तो सड़क पर भिक्षा मांगने व बाल मजदूरी के साथ गरीबी की तंगहाली में जीने वाले बच्चों के शिक्षा स्पॉन्सर राशि के संबंध में जब राज्य के सभी जिलों से 2018 में रिपोर्ट तलब की, तो पता चला कि इस राशि को शिक्षा विभाग इस्तेमाल ही नहीं करता है,जिसके कारण केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाली यह प्रायोजित राशि हर वर्ष लैप्स हो जाती है। जबकि केंद्र सरकार द्वारा सभी तबके के गरीब बच्चों को शिक्षा के अधिकार से जुड़ने के लिए सभी राज्यों के जिलों को स्पॉन्सर धन राशि प्रदान की जाती है। लेकिन अफसोस की बात है कि राज्य के किसी जिले द्वारा भी 2018 तक इस स्पॉन्सर राशि का इस्तेमाल नहीं हुआ, ऐसे में बाल आयोग द्वारा इस पर ठोस कदम उठाते हुए केंद्र की इस अतिरिक्त आर्थिक सहायता के रूप में मिलने वाले धनराशि को टिहरी गढ़वाल से शुरू करवाया गया जहां सबसे पहले 45 से बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने की व्यवस्था की गई जो किसी भी रूप में स्कूलों का खर्चा नहीं उठा सकते थे। इतना ही नहीं टिहरी के बाद हरिद्वार में 40 गरीब बच्चों को भी इस योजना का लाभ दिलाया गया, ऐसे में वर्तमान समय में उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में पिछले 1 साल से केंद्र सरकार की ओर से शिक्षा के लिए मिलने वाली स्पॉन्सर राशि का फायदा वर्तमान में राज्यभर के 354 बच्चों को योजना का लाभ अब हर जिले दिलवाया जा रहा है।

बाइट- उषा नेगी,बाल आयोग अध्यक्ष,उत्तराखंड


Conclusion:केंद्र से मिलने वाली शिक्षा प्रोत्साहन को इस्तेमाल ना करना शिक्षा विभाग की लचर कारगुजारियों को उजागर करता हैं: बाल आयोग

बाल आयोग की अध्यक्ष उसने की के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा के अधिकार के तहत गरीब बच्चों की पठन-पाठन के लिए मिलने वाली इस केंद्र पोषित धनराशि का इस्तेमाल शिक्षा विभाग द्वारा ना हो पाना बड़ी लापरवाह के साथ विभाग की लचर कारगुजारी को उजागर करता है। उषा नेगी के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2002 से शुरू किये गए शिक्षा के अधिकार योजना के तहत मिलने वाली अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि का लाभ अगर शिक्षा विभाग राज्य के प्रत्येक जिलों में 40 बच्चों से शुरू कर 80 बच्चों तक पहुंचाई जाती तो यह सालाना स्पॉन्सर राशि 10 लाख की जगह बढ़कर आज 20 लाख रुपए प्रति सालाना हो सकती थी, लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा इस ओर कोई कदम न उठाना दुर्भाग्यपूर्ण है। नेगी के मुताबिक केंद्र द्वारा एक जिले को 40 बच्चों के लिए सालाना 10 लाख प्रोत्साहन धनराशि उनके स्कूली शिक्षा खर्चे के लिए दी जाती हैं, ऐसे में अगर इस योजना का गरीब बच्चों को फायदा पहुंचा कर आगे इसे बढ़ाया गया होता तो, यह राशि वर्तमान समय में दुगनी हो सकती थी।

बाइट- उषा नेगी,बाल आयोग अध्यक्ष,उत्तराखंड
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