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उत्तराखंड में लगेगा देश का पहला बायनरी जियोथर्मल पावर प्लांट, जानिए खासियत - Wadia Institute Dehradun

वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ने बताया कि हिमालय की उत्पत्ति के साथ ही जियोथर्मल स्प्रिंग्स की उत्पत्ति हुई थी. इन स्प्रिंग्स से निकलने वाले गर्म पानी का इस्तेमाल सदियों से होता आया है. जब यात्री हिमालयी क्षेत्रों में जाते थे तो वह इन्हीं स्प्रिंग्स में स्नान करते थे. इसके अलावा देश मे जियोथर्मल स्प्रिंग्स का अभी तक कोई इस्तेमाल नहीं हो पाया है.

Geothermal Springs
जियोथर्मल स्प्रिंग्स
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Published : Jul 24, 2021, 8:51 AM IST

देहरादून: हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद गर्म पानी के स्रोत (तप्त कुंड) हमेशा से ही लोगों के लिए आश्चर्य का केंद्र रहे हैं. ऐसे में अब इन गर्म पानी के स्रोतों (Hot Springs) का इस्तेमाल बिजली बनाने में किया जाएगा. जी हां, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक पिछले लंबे समय से जियोथर्मल स्प्रिंग्स पर काम कर रहे हैं. जिसमें उन्हें सफलता भी हाथ लगी है. लिहाजा, अब इंस्टीट्यूट एक कंपनी द्वारा तपोवन में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग पर बायनरी पावर प्लांट लगाए जाने के लिए डीपीआर तैयार करवा रही है. देखिए खास रिपोर्ट..

भारत के हिमालयी क्षेत्र में सैकड़ों गर्म पानी के स्रोत मौजूद हैं लेकिन अभी तक मात्र 340 गर्म पानी के स्रोतों को ही खोजा जा सका है. वहीं, इन स्रोतों पर वाडिया के वैज्ञानिक रिसर्च भी कर चुके हैं. उत्तराखंड की बात करें तो उत्तराखंड राज्य में करीब 40 गर्म पानी के स्रोत मौजूद हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. समीर कुमार तिवारी ने जोशीमठ के तपोवन में स्थित गर्म पानी के स्रोत पर काफी गहन अध्ययन किया है.

उत्तराखंड में लगेगा देश का पहला बायनरी जियोथर्मल पावर प्लांट.

अंतरराष्ट्रीय जर्नल हिमालयन जियोलॉजी में डॉ. समीर कुमार तिवारी की ये रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित भी हुई है. जिसमें गर्म पानी के स्रोत यानी जियोथर्मल स्प्रिंग्स (Geothermal springs) पर विस्तृत जानकारी भी दी गई है.

क्या होते हैं जियोथर्मल स्प्रिंग्स: हिमालयी क्षेत्र में 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर गर्म पानी के स्रोत देखें जा सकते हैं. उत्तराखंड के चारों धामों में भी पानी के तप्त कुंड मौजूद हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. समीर के तिवारी ने बताया कि गर्म पानी के इन्हीं स्रोत को साइंस की भाषा मे जियोथर्मल स्प्रिंग्स कहते हैं, क्योंकि यह पानी जमीन से ही गर्म होकर बाहर निकलता है. जब वर्षाजल या ग्लेशियर पिघलकर पानी जमीन में पड़ी दरारों के माध्यम से एक निश्चित गहराई तक जाता है, जो यह पानी धरती की आंतरिक ऊष्मा से गर्म होकर, बाहर निकलता है. जिसमें बहुत सारे मिनिरल्स भी होते हैं.

10,600 मेगावाट बिजली का हो सकता है उत्पादन: वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. समीर कुमार तिवारी ने बताया कि जियोथर्मल स्प्रिंग्स प्रकृति का एक वरदान है, जो हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद हैं. गर्म पानी के स्रोत को विभिन्न तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है. यही नहीं, हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद गर्म पानी के स्रोतों को टैपकर करीब 10,600 मेगावाट बिजली उत्पन्न की जा सकती है. हालांकि, ऐसी परियोजना अभी शुरू नहीं हुई है लेकिन जोशीमठ के तपोवन में मौजूद गर्म पानी के स्रोत के अध्ययन से पता चला है कि तपोवन के जियोथर्मल स्प्रिंग्स से 5 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है.

पढ़ें-सुलगते मुद्दों पर त्रिवेंद्र के बेबाक जवाब, देवस्थानम बोर्ड और भू-कानून पर खोले पत्ते

उत्तराखंड में मौजूद हैं 40 जियोथर्मल स्प्रिंग्स: उत्तराखंड राज्य में तप्त कुंड सिर्फ चारधामों में ही नहीं, बल्कि राज्य के तमाम क्षेत्रों में भी गर्म पानी के स्रोत मौजूद हैं. वाडिया इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ने बताया कि उत्तराखंड में करीब 40 गर्म पानी के स्रोत मौजूद हैं. जिसमें से 20 स्रोत कुमाऊं और करीब 20 स्रोत गढ़वाल क्षेत्र में हैं. इसके साथ ही ये तप्त कुंड पूरे उत्तराखंड में 3000 मीटर की ऊंचाई पर फैले हुए हैं. जो हिमालय, लद्दाख और नार्थ ईस्ट में भी पाए जाते हैं. हालांकि, संपूर्ण हिमालय में करीब 340 भूगर्भीय तप्त कुंड मौजूद हैं.

प्रदेश के 20 स्रोतों से मिल सकती है बिजली: डॉ. समीर तिवारी ने बताया तपोवन जियोथर्मल स्प्रिंग्स के अध्ययन से पता चला है कि तपोवन के जियोथर्मल स्प्रिंग्स से 300 लीटर प्रति मिनट पानी निकल रहा है. यही नहीं, 450 मीटर गहरे बोर होल भी हैं. तपोवन जियोथर्मल स्प्रिंग्स का क्षेत्र करीब 3 स्कवायर किलोमीटर में फैला हुआ है. जिसमें चार जियोथर्मल स्प्रिंग्स मौजूद हैं. इनको ड्रिल करके और एनर्जी को टैपकर बिजली उत्पादन किया जा सकता है. जो ऊर्जा का एक बेहतर विकल्प बन सकता है. लिहाजा, प्रदेश में मौजूद 40 गर्म पानी के स्रोत में से 20 स्रोतों पर बायनरी पावर प्लांट लगाकर बिजली उत्पादन किया जा सकता है.

कई देशों में बनाई जा रही है बिजली: वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ने बताया कि हिमालय की उत्पत्ति के साथ ही जियोथर्मल स्प्रिंग्स की उत्पत्ति हुई थी. इन स्प्रिंग्स से निकलने वाले गर्म पानी का इस्तेमाल सदियों से होता आया है. जब यात्री हिमालयी क्षेत्रों में जाते थे तो वह इन्हीं स्प्रिंग्स में स्नान करते थे. इसके अलावा देश मे जियोथर्मल स्प्रिंग्स का अभी तक कोई इस्तेमाल नहीं हो पाया है.

वहीं, न्यूजीलैंड, जापान, आइसलैंड, फिनलैंड, इटली आदि देशों में जियो थर्मल स्प्रिंग से बिजली का उत्पादन किया जा रहा है. भारत में करीब 70 प्रतिशत बिजली कोयले से और करीब 20 प्रतिशत बिजली हाइड्रोपावर से बनती है. कोयले के इस्तेमाल से बहुत ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है जबकि, हाइड्रो परियोजना से पर्यावरण सम्बंधी नुकसान झेलने पड़ते हैं. ऐसे में अगर गर्म पानी के स्रोत से बिजली बनाई जाए, तो कार्बन उत्सर्जन को कम किये जाने के साथ ही पर्यावरण संबधी नुकसान को भी कम किया जा सकता है.

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पिछले 40 सालों से तप्त कुंड में पानी का बहाव बरकार: वैज्ञानिक समीर तिवारी ने बताया कि पिछले 40 से 50 सालों के डाटा को भी एकत्र कर अध्ययन किया गया है लेकिन अभी तक जियो थर्मल स्प्रिंग्स से निकलने वाले गर्म पानी के फ्लो में कोई बदलाव नहीं देखा गया है. यही नहीं, अगर कोई जिओथर्मल स्प्रिंग किसी वजह से, क्षतिग्रस्त या फिर बंद हो जाता है, तो वहां पर ड्रिल किया जाए तो पहले की तरह ही वहां गर्म पानी का फ्लो देखने को मिलेगा.

एक निजी कंपनी तैयार कर रही है डीपीआर: बीते साल साल सितंबर महीने में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) और उत्तराखंड की ही कंपनी जयदेव एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के बीच एमओयू साइन किया गया था. जिसमें यह तय किया गया था कि वाडिया उनको साइंटिफिक जानकारी देगा और यह कंपनी बायनरी जियोथर्मल पावर प्लांट को स्थापित करेगी.

वैज्ञानिक समीर तिवारी के अनुसार बायनरी पावर प्लांट लगाए जाने को लेकर नए सिरे से अध्ययन किया गया है. जिसके बाद अब तपोवन के जियोथर्मल स्प्रिंग्स में बैटरी पावर प्लांट लगाए जाने को लेकर जयदेव एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी डीपीआर तैयार कर रही है.

देहरादून: हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद गर्म पानी के स्रोत (तप्त कुंड) हमेशा से ही लोगों के लिए आश्चर्य का केंद्र रहे हैं. ऐसे में अब इन गर्म पानी के स्रोतों (Hot Springs) का इस्तेमाल बिजली बनाने में किया जाएगा. जी हां, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक पिछले लंबे समय से जियोथर्मल स्प्रिंग्स पर काम कर रहे हैं. जिसमें उन्हें सफलता भी हाथ लगी है. लिहाजा, अब इंस्टीट्यूट एक कंपनी द्वारा तपोवन में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग पर बायनरी पावर प्लांट लगाए जाने के लिए डीपीआर तैयार करवा रही है. देखिए खास रिपोर्ट..

भारत के हिमालयी क्षेत्र में सैकड़ों गर्म पानी के स्रोत मौजूद हैं लेकिन अभी तक मात्र 340 गर्म पानी के स्रोतों को ही खोजा जा सका है. वहीं, इन स्रोतों पर वाडिया के वैज्ञानिक रिसर्च भी कर चुके हैं. उत्तराखंड की बात करें तो उत्तराखंड राज्य में करीब 40 गर्म पानी के स्रोत मौजूद हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. समीर कुमार तिवारी ने जोशीमठ के तपोवन में स्थित गर्म पानी के स्रोत पर काफी गहन अध्ययन किया है.

उत्तराखंड में लगेगा देश का पहला बायनरी जियोथर्मल पावर प्लांट.

अंतरराष्ट्रीय जर्नल हिमालयन जियोलॉजी में डॉ. समीर कुमार तिवारी की ये रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित भी हुई है. जिसमें गर्म पानी के स्रोत यानी जियोथर्मल स्प्रिंग्स (Geothermal springs) पर विस्तृत जानकारी भी दी गई है.

क्या होते हैं जियोथर्मल स्प्रिंग्स: हिमालयी क्षेत्र में 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर गर्म पानी के स्रोत देखें जा सकते हैं. उत्तराखंड के चारों धामों में भी पानी के तप्त कुंड मौजूद हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. समीर के तिवारी ने बताया कि गर्म पानी के इन्हीं स्रोत को साइंस की भाषा मे जियोथर्मल स्प्रिंग्स कहते हैं, क्योंकि यह पानी जमीन से ही गर्म होकर बाहर निकलता है. जब वर्षाजल या ग्लेशियर पिघलकर पानी जमीन में पड़ी दरारों के माध्यम से एक निश्चित गहराई तक जाता है, जो यह पानी धरती की आंतरिक ऊष्मा से गर्म होकर, बाहर निकलता है. जिसमें बहुत सारे मिनिरल्स भी होते हैं.

10,600 मेगावाट बिजली का हो सकता है उत्पादन: वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. समीर कुमार तिवारी ने बताया कि जियोथर्मल स्प्रिंग्स प्रकृति का एक वरदान है, जो हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद हैं. गर्म पानी के स्रोत को विभिन्न तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है. यही नहीं, हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद गर्म पानी के स्रोतों को टैपकर करीब 10,600 मेगावाट बिजली उत्पन्न की जा सकती है. हालांकि, ऐसी परियोजना अभी शुरू नहीं हुई है लेकिन जोशीमठ के तपोवन में मौजूद गर्म पानी के स्रोत के अध्ययन से पता चला है कि तपोवन के जियोथर्मल स्प्रिंग्स से 5 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है.

पढ़ें-सुलगते मुद्दों पर त्रिवेंद्र के बेबाक जवाब, देवस्थानम बोर्ड और भू-कानून पर खोले पत्ते

उत्तराखंड में मौजूद हैं 40 जियोथर्मल स्प्रिंग्स: उत्तराखंड राज्य में तप्त कुंड सिर्फ चारधामों में ही नहीं, बल्कि राज्य के तमाम क्षेत्रों में भी गर्म पानी के स्रोत मौजूद हैं. वाडिया इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ने बताया कि उत्तराखंड में करीब 40 गर्म पानी के स्रोत मौजूद हैं. जिसमें से 20 स्रोत कुमाऊं और करीब 20 स्रोत गढ़वाल क्षेत्र में हैं. इसके साथ ही ये तप्त कुंड पूरे उत्तराखंड में 3000 मीटर की ऊंचाई पर फैले हुए हैं. जो हिमालय, लद्दाख और नार्थ ईस्ट में भी पाए जाते हैं. हालांकि, संपूर्ण हिमालय में करीब 340 भूगर्भीय तप्त कुंड मौजूद हैं.

प्रदेश के 20 स्रोतों से मिल सकती है बिजली: डॉ. समीर तिवारी ने बताया तपोवन जियोथर्मल स्प्रिंग्स के अध्ययन से पता चला है कि तपोवन के जियोथर्मल स्प्रिंग्स से 300 लीटर प्रति मिनट पानी निकल रहा है. यही नहीं, 450 मीटर गहरे बोर होल भी हैं. तपोवन जियोथर्मल स्प्रिंग्स का क्षेत्र करीब 3 स्कवायर किलोमीटर में फैला हुआ है. जिसमें चार जियोथर्मल स्प्रिंग्स मौजूद हैं. इनको ड्रिल करके और एनर्जी को टैपकर बिजली उत्पादन किया जा सकता है. जो ऊर्जा का एक बेहतर विकल्प बन सकता है. लिहाजा, प्रदेश में मौजूद 40 गर्म पानी के स्रोत में से 20 स्रोतों पर बायनरी पावर प्लांट लगाकर बिजली उत्पादन किया जा सकता है.

कई देशों में बनाई जा रही है बिजली: वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ने बताया कि हिमालय की उत्पत्ति के साथ ही जियोथर्मल स्प्रिंग्स की उत्पत्ति हुई थी. इन स्प्रिंग्स से निकलने वाले गर्म पानी का इस्तेमाल सदियों से होता आया है. जब यात्री हिमालयी क्षेत्रों में जाते थे तो वह इन्हीं स्प्रिंग्स में स्नान करते थे. इसके अलावा देश मे जियोथर्मल स्प्रिंग्स का अभी तक कोई इस्तेमाल नहीं हो पाया है.

वहीं, न्यूजीलैंड, जापान, आइसलैंड, फिनलैंड, इटली आदि देशों में जियो थर्मल स्प्रिंग से बिजली का उत्पादन किया जा रहा है. भारत में करीब 70 प्रतिशत बिजली कोयले से और करीब 20 प्रतिशत बिजली हाइड्रोपावर से बनती है. कोयले के इस्तेमाल से बहुत ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है जबकि, हाइड्रो परियोजना से पर्यावरण सम्बंधी नुकसान झेलने पड़ते हैं. ऐसे में अगर गर्म पानी के स्रोत से बिजली बनाई जाए, तो कार्बन उत्सर्जन को कम किये जाने के साथ ही पर्यावरण संबधी नुकसान को भी कम किया जा सकता है.

पढ़ें-PCC चीफ बनने के बाद राहुल गांधी से पहली बार मिले गणेश गोदियाल, भेंट किया पौधा

पिछले 40 सालों से तप्त कुंड में पानी का बहाव बरकार: वैज्ञानिक समीर तिवारी ने बताया कि पिछले 40 से 50 सालों के डाटा को भी एकत्र कर अध्ययन किया गया है लेकिन अभी तक जियो थर्मल स्प्रिंग्स से निकलने वाले गर्म पानी के फ्लो में कोई बदलाव नहीं देखा गया है. यही नहीं, अगर कोई जिओथर्मल स्प्रिंग किसी वजह से, क्षतिग्रस्त या फिर बंद हो जाता है, तो वहां पर ड्रिल किया जाए तो पहले की तरह ही वहां गर्म पानी का फ्लो देखने को मिलेगा.

एक निजी कंपनी तैयार कर रही है डीपीआर: बीते साल साल सितंबर महीने में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) और उत्तराखंड की ही कंपनी जयदेव एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के बीच एमओयू साइन किया गया था. जिसमें यह तय किया गया था कि वाडिया उनको साइंटिफिक जानकारी देगा और यह कंपनी बायनरी जियोथर्मल पावर प्लांट को स्थापित करेगी.

वैज्ञानिक समीर तिवारी के अनुसार बायनरी पावर प्लांट लगाए जाने को लेकर नए सिरे से अध्ययन किया गया है. जिसके बाद अब तपोवन के जियोथर्मल स्प्रिंग्स में बैटरी पावर प्लांट लगाए जाने को लेकर जयदेव एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी डीपीआर तैयार कर रही है.

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