देहरादून: उत्तराखंड में भी गॉल ब्लैडर के रोगियों की तादाद तेजी से बढ़ती जा रही है, जो चिंता का विषय है. सबसे ज्यादा मामले पहाड़ी जिलों में सामने आ रहे हैं. हालांकि इसकी एक बड़ी वजह खानपान में बदलाव के तौर पर भी देखी जा रही है.
कैलाश ओमेगा कैंसर सेंटर के वरिष्ठ सर्जिकल ऑंकोलॉजिस्ट और विभाग के प्रमुख डॉ. आकाश की मानें तो उत्तर भारत के मुकाबले साउथ में गॉल ब्लैडर कैसर के मामले काफी कम मिल रहे हैं. उत्तर भारत में उत्तराखंड राज्य की बात करें तो यहां भी गॉल ब्लैडर के मामले काफी बढ़े हैं. पहाड़ी जिलों में भी गॉल ब्लैडर के मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही है.
डॉ. आकाश का कहना है कि ये शोध के बाद ही पता चल पाएगा कि उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में गॉल ब्लैडर के मरीज क्यों बढ़ रहे हैं. हालांकि इसकी एक वजह पथरी भी हो सकती है. हालांकि शोध के जरिए इतना तो पता चला है कि इस प्रकार का कैंसर पानी या मिनरल की वजह से तो नहीं हो रहा है.
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इसके अलावा राज्य में ब्रेस्ट, मुंह और जीभ के कैंसर के मरीज भी ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि तंबाकू का सेवन करने से मुंह, जीभ और गले के कैंसर के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है.
डॉ. आकाश ने बताया कि खानपान और दिनचर्या में बदलाव लाकर कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है. लोगों को अपनी दिनचर्या में no to tobbaco अपनाना होगा. अल्कोहल का सेवन भी कैंसर का कारण बनता है. इसका एकमात्र इलाज अर्ली डिटेक्शन है. इसके अलावा यदि अपकी उम्र 45 साल से ज्यादा है तो अपको समय-समय पर स्क्रीनिंग करवानी चाहिए.
कैंसर रोगियों के इलाज के लिए हल्द्वानी शहर में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट की कवायद चल रही है. प्रस्तावित स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट की डीपीआर तैयार होने के बाद जल्द ही इसका निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा. कैंसर इंस्टीट्यूट के निर्माण के लिए 86 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तावित है.
क्या होता है गॉल ब्लैडर: गॉल ब्लैडर जिसे हिंदी में पित्त की थैली बोलते हैं, यह लिवर के ठीक नीचे नाशपती के आकार का होता है. यह 3 से 4 इंच लंबा और करीब 1 इंच तक चौड़ा होता है.
गॉल ब्लैडर का क्या काम होता है?: इसका काम जो बाइल बनता उसे पाचन क्रिया तक पहुंचाना होता है. हम जो भी खाते हैं बाइल उसे पचाने में मदद करता है. हम जो भी खाते हैं पित्त की थैली उसे पकड़कर निचोड़ती है और फिर जो बाइल बनता है उसे डाइजेस्टिव ट्रेक्ट में भेजती है. लेकिन जब पित्त की थैली में कैंसर हो जाता है, तो ये काम करना बंद कर देती है.
किसे होता है गॉल ब्लैडर कैंसर: गॉल ब्लैडर में कैंसर किसी भी व्यक्ति को हो सकता है. वैसे तो यह पुरुषों में ज्यादा होता है, लेकिन महिलाएं भी तेजी से पित्त की थैली में कैंसर का शिकार हो रही हैं. जब गॉल ब्लैडर में कैंसर होता है तो शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित होने लगते हैं.
लास्ट स्टेज में चलता है पता: सबसे बड़ी बात ये है कि गॉल ब्लैडर के कैंसर का लास्ट स्टेज तक पता चल पाता है. क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण खास गंभीर नहीं होते हैं. 70% तक ऐसे केस आते हैं, जब मरीज गॉल ब्लैडर की लास्ट स्टेज में अस्पताल जाते हैं.
गॉल ब्लैडर में कैंसर के लक्षण: इसमें बुखार आता है, जो 4 से 5 दिन तक रह सकता है. स्टूल का सफेद या ग्रे कलर का होना लक्षण है. पेशाब का भूरा आता है. गॉल ब्लैडर का साइज बढ़ जाता है. भूख में कमी और वजन घटना इसके शुरुआती लक्षण हो सकते हैं. उल्टी होना या ऐसा मन करना और पेट में दर्द भी होता है.
कैसे होता है गॉल ब्लैडर में कैंसर का टेस्ट: डॉक्टर सबसे पहले अल्ट्रासाउंड करते हैं. इसमें गॉल ब्लैडर में कैंसर के साथ ही ट्यूमर की स्टेज का भी पता चल जाता है. पित्त की थैली के कैंसर का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट भी किया जाता है. सीटी स्कैन डॉक्टर उस स्थिति में करते हैं, जब उन्हें यह देखना होता है कि कहीं कैंसर सेल्स कॉमन बाइल डक्ट, लिंफ नॉड या लिवर में तो नहीं जा रहे हैं. इसके लिए डॉक्टर MRI कराने की भी सलाह देते हैं. एंडोस्कोपी, लेप्रोस्कोपी कराने के लिए डॉक्टर उस स्टेज में कहते हैं जब ये देखना हो कि कैंसर कितना फैल चुका है. बायोप्सी में शरीर से सेल्स का सैंपल लेकर कैंसर का पता लगाया जाता है.