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बिना मास्क दिखे या क्वारंटाइन का किया उल्लंघन तो लगेगा बड़ा जुर्माना, राज्यपाल ने अध्यादेश को दी मंजूरी

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Published : Jun 13, 2020, 3:35 PM IST

Updated : Jun 13, 2020, 5:15 PM IST

महामारी अधिनियम 1897 में संशोधन करने वाला उत्तराखंड देश का तीसरा राज्य बन गया है. राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उत्तराखंड राज्य संशोधन अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) को मंजूरी दी.

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राज्यपाल

देहरादून: केरल और ओडिशा के बाद अब महामारी रोग अधिनियम अध्यादेश 1897 में संशोधन करने वाला उत्तराखंड देश का तीसरा राज्य बन गया है. जिसको राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उत्तराखंड राज्य संशोधन अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) को मंजूरी दी.


राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने महामारी रोग अधिनियम अध्यादेश 1897 उत्तराखंड धारा 2 और 3 में संशोधन किया है. जिसके बाद अब एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 के तहत राज्य में जो भी व्यक्ति कोरोना वायरस, फेस मास्क और क्वारंटाइन आदि के संबंधित नियमों का उल्लंघन करता पाया जाएगा, उसके खिलाफ अधिकतम छह महीने की सजा और पांच हजार रुपये जुर्माने की कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

पढ़ें: विधायक रितु खंडूड़ी ने किया पंपिंग योजना का शुभारंभ, नहीं होगी पानी की किल्लत

गौरतलब है कि अभी तक एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 के तहत कम्पाउंडिंग की सुविधा नहीं थी. लेकिन अब राज्यपाल द्वारा किए गए संशोधन के बाद कोरोना से जुड़े नियमों का सख्ती से लागू किए जा सकेंगे.

गौर हो कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 अप्रैल, 2020 को एपीडेमिक डिजीज एक्ट 1897 (महामारी बीमारी कानून) में नए संशोधन का प्रस्ताव करते हुए एक अध्यादेश को मंजूरी दी है. संशोधनों के बाद स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने का दोषी पाए जाने पर 6 महीने से लेकर 7 साल तक की कैद शामिल है. इसके अलावा हमले को गैर-जमानती अपराध भी घोषित कर दिया गया है.

क्या है एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897

इस एक्ट में कुल मिलाकर केवल 4 सेक्शन हैं.

इस एक्ट के सेक्शन 2 में इसे लागू करने के लिए कुछ शक्तियां राज्य और सेक्शन 2 (A) की शक्तियां केंद्र सरकार को किसी महामारी को दूर करने या रोकथाम के लिए दी गयी हैं.

एक्ट 1897 की धारा-2 में लिखा है कि जब राज्य सरकार को ऐसा लगे कि उस राज्य के किसी भाग में किसी खतरनाक महामारी फैल रही है या फैलने की आशंका है, तब अगर राज्य सरकार को ये लगे कि उस समय मौजूद कानून इस महामारी को रोकने के लिए काफी नहीं हैं, तो राज्य सरकार कुछ उपाय कर सकती है. इन उपायों में लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम बताये जाते हैं.

इसी एक्ट की धारा 2b में राज्य सरकार को यह अधिकार होगा कि वो रेल या बंदरगाह या अन्य प्रकार से यात्रा करने वाले व्यक्तियों को, जिनके बारे में निरीक्षक अधिकारी को ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा और यदि कोई संदिग्ध संक्रमित व्यक्ति है तो उसकी जांच भी किसी निरीक्षण अधिकारी द्वारा करवा सकती है.

वहीं, धारा-2 (A) में लिखा है कि जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फैल चुकी है या फैलने की संभावना है और केंद्र सरकार को यह लगता है कि मौजूदा कानून इस महामारी को रोकने में सक्षम नहीं हैं तो वह कुछ कड़े कदम उठा सकती हैं जिनमें शामिल हैं कि किसी भी संभावित क्षेत्र में आने वाले किसी व्यक्ति, जहाज का निरीक्षण कर सकती है.

एक्ट की धारा-3 में लिखा है कि एक्ट का सेक्शन 3 लागू हो गया, तो महामारी के संबंध में सरकार का आदेश न मानना अपराध होगा. इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत सजा मिल सकती है. इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति इस बीमारी को रोकने के लिए कोई अच्छा कदम उठाता है तो उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी.

एक्ट में क्या संशोधन किये गए हैं-

यदि कोई व्यक्ति स्वास्थ्य कर्मियों पर किसी भी तरह की हिंसा करता है तो उसको 7 साल तक की कैद के साथ भारी जुर्माना भी देना पड़ेगा. हमले को गैर-जमानती अपराध भी बनाया गया है. ऐसे मामलों में जांच 30 दिनों के भीतर की जाएगी. दोषी पाए जाने वालों को 6 महीने से लेकर 7 साल तक की जेल की सजा सुनाई जाएगी और 50 हजार से 2 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगेगा.

देहरादून: केरल और ओडिशा के बाद अब महामारी रोग अधिनियम अध्यादेश 1897 में संशोधन करने वाला उत्तराखंड देश का तीसरा राज्य बन गया है. जिसको राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उत्तराखंड राज्य संशोधन अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) को मंजूरी दी.


राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने महामारी रोग अधिनियम अध्यादेश 1897 उत्तराखंड धारा 2 और 3 में संशोधन किया है. जिसके बाद अब एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 के तहत राज्य में जो भी व्यक्ति कोरोना वायरस, फेस मास्क और क्वारंटाइन आदि के संबंधित नियमों का उल्लंघन करता पाया जाएगा, उसके खिलाफ अधिकतम छह महीने की सजा और पांच हजार रुपये जुर्माने की कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

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गौरतलब है कि अभी तक एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 के तहत कम्पाउंडिंग की सुविधा नहीं थी. लेकिन अब राज्यपाल द्वारा किए गए संशोधन के बाद कोरोना से जुड़े नियमों का सख्ती से लागू किए जा सकेंगे.

गौर हो कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 अप्रैल, 2020 को एपीडेमिक डिजीज एक्ट 1897 (महामारी बीमारी कानून) में नए संशोधन का प्रस्ताव करते हुए एक अध्यादेश को मंजूरी दी है. संशोधनों के बाद स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने का दोषी पाए जाने पर 6 महीने से लेकर 7 साल तक की कैद शामिल है. इसके अलावा हमले को गैर-जमानती अपराध भी घोषित कर दिया गया है.

क्या है एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897

इस एक्ट में कुल मिलाकर केवल 4 सेक्शन हैं.

इस एक्ट के सेक्शन 2 में इसे लागू करने के लिए कुछ शक्तियां राज्य और सेक्शन 2 (A) की शक्तियां केंद्र सरकार को किसी महामारी को दूर करने या रोकथाम के लिए दी गयी हैं.

एक्ट 1897 की धारा-2 में लिखा है कि जब राज्य सरकार को ऐसा लगे कि उस राज्य के किसी भाग में किसी खतरनाक महामारी फैल रही है या फैलने की आशंका है, तब अगर राज्य सरकार को ये लगे कि उस समय मौजूद कानून इस महामारी को रोकने के लिए काफी नहीं हैं, तो राज्य सरकार कुछ उपाय कर सकती है. इन उपायों में लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम बताये जाते हैं.

इसी एक्ट की धारा 2b में राज्य सरकार को यह अधिकार होगा कि वो रेल या बंदरगाह या अन्य प्रकार से यात्रा करने वाले व्यक्तियों को, जिनके बारे में निरीक्षक अधिकारी को ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा और यदि कोई संदिग्ध संक्रमित व्यक्ति है तो उसकी जांच भी किसी निरीक्षण अधिकारी द्वारा करवा सकती है.

वहीं, धारा-2 (A) में लिखा है कि जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फैल चुकी है या फैलने की संभावना है और केंद्र सरकार को यह लगता है कि मौजूदा कानून इस महामारी को रोकने में सक्षम नहीं हैं तो वह कुछ कड़े कदम उठा सकती हैं जिनमें शामिल हैं कि किसी भी संभावित क्षेत्र में आने वाले किसी व्यक्ति, जहाज का निरीक्षण कर सकती है.

एक्ट की धारा-3 में लिखा है कि एक्ट का सेक्शन 3 लागू हो गया, तो महामारी के संबंध में सरकार का आदेश न मानना अपराध होगा. इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत सजा मिल सकती है. इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति इस बीमारी को रोकने के लिए कोई अच्छा कदम उठाता है तो उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी.

एक्ट में क्या संशोधन किये गए हैं-

यदि कोई व्यक्ति स्वास्थ्य कर्मियों पर किसी भी तरह की हिंसा करता है तो उसको 7 साल तक की कैद के साथ भारी जुर्माना भी देना पड़ेगा. हमले को गैर-जमानती अपराध भी बनाया गया है. ऐसे मामलों में जांच 30 दिनों के भीतर की जाएगी. दोषी पाए जाने वालों को 6 महीने से लेकर 7 साल तक की जेल की सजा सुनाई जाएगी और 50 हजार से 2 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगेगा.

Last Updated : Jun 13, 2020, 5:15 PM IST
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