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आधुनिकता के रंग में रंगी दिवाली, चाइनीज लाइट्स और पटाखों के शोर में दीयों की रौनक हुई कम

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Published : Oct 21, 2019, 5:26 PM IST

Updated : Oct 21, 2019, 7:57 PM IST

दीपावली यानी दीप + अवली. दीप का अर्थ दीपक और अवली का अर्थ पंक्ति से है. दीपावली जिसे दीपों की एक पंक्ति कहते हैं. इसीलिए दीपावली को दीपों का त्योहार भी कहा जाता है, लेकिन आज के आधुनिक भारत में दीपावली पटाखों और शोर-शराबे का त्योहार बन गया है.

दिवाली

देहरादून: भारत में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों का एक विशेष महत्व होता है. ऐसा ही एक त्योहार है दीपावली जिसकी कहानी प्राचीन काल से जुड़ी हुई है. यही कारण है कि इस पर्व का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है. साल भर लोगों को दीपावली पर्व का इंतजार रहता है. ये अलग बात है कि आधुनिकता के इस दौर में त्योहार मनाने के तरीके बदल गए हैं. मिट्टी के दीयों की जगह चाइनीज लाइटों और पटाखों के शोर ने ले ली है. दीपावली के बाजार पर इस आधुनिकता का क्या प्रभाव पड़ा है इस पर देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

दीपावली यानी दीप + अवली. दीप का अर्थ दीपक और अवली का अर्थ पंक्ति से है. दीपावली जिसे दीपों की एक पंक्ति कहते हैं. इसीलिए दीपावली को दीपों का त्योहार भी कहा जाता है, लेकिन आज के आधुनिक भारत में दीपावली पटाखों और शोर-शराबे का त्योहार बन गया है.

आधुनिकता के रंग में रंगी दिवाली

पढ़ें- दिगंबर जैन की मुमुक्षु मंडल संस्था ने किया पटाखों का बहिष्कार, चलाया जागरुकता अभियान

इतिहास के प्रोफेसर एम.एस गोसाईं की मानें तो शास्त्रों के अनुसार जब भगवान राम 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटे थे तो उनके स्वागत में लोगों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं, लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है. आज दीपावली के दीपों की जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली है. जैसे-जैसे देश तरक्की कर रहा है नई टेक्नोलॉजी आ रही है. वैसे-वैसे दीपावली का रूप भी बदलता जा रहा है. क्योंकि अब खुशी का अर्थ मात्र शोर-शराबे तक सीमित रह गया है.

शास्त्रों में बम-पटाखों का नहीं है कोई जिक्र
दीपावली का अर्थ दीपों से है. प्राचीन समय से दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है, लेकिन वर्तमान समय में दीपावली पर्व पर जो पटाखों का इस्तेमाल किया जा रहा है इसका जिक्र शास्त्र, पुराण, वेद और उपनिषदों में कहीं भी नहीं है, लेकिन आधुनिकता के साथ हमने दीपावली मनाने के तौर तरीकों को बदल दिया है.

दीपक जलाकर मनाई जाती थी दीपावली
हिंदू मान्यता के अनुसार घर में जब भी कोई शुभ कार्य होता है तो दीपक जलाया जाता है. शुभ अवसर पर बम-पटाखे इत्यादि का प्रयोग किया जाता है ये कहीं भी देखने को नहीं मिलता है. हालांकि बम-पटाखों का इस्तेमाल शस्त्र के रूप में जरूर किया जाता था. लेकिन अब असल दीपावली धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है.

पढ़ें- संतान की रक्षा के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी का व्रत, ऐसे करें पूजा

दीपावली में मिट्टी के दीए का है विशेष महत्व
दीपावली में मिट्टी के दीए का विशेष महत्व है. क्योंकि मिट्टी का प्रकृति से सीधा संबंध है. इसके अलावा हम लोग मिट्टी के दीए जलाकर प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण में भी बड़ा योगदान दे सकते हैं, लेकिन जो वास्तविक दीपावली है जिसमें लक्ष्मी मां की पूजा की जाती है. वह अब बम-पटाखों में बदल गयी है. धर्माचार्य सुभाष जोशी की मानें तो इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि मां लक्ष्मी कभी प्रसन्न नहीं हो होंगी.

पर्यावरण विद्द डॉ. अनिल जोशी ने कहा कि दीपावली एक ऐसा पर्व है जो पूरे देश को रोशन करता है, लेकिन आज के समय में रोशनी और उजाले मात्र पटाखों तक सीमित रह गई है. लोगों को दीपावली पर पटाखे जलाकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के बचाए उसे संरक्षण के लिए काम करना चाहिए.

देहरादून: भारत में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों का एक विशेष महत्व होता है. ऐसा ही एक त्योहार है दीपावली जिसकी कहानी प्राचीन काल से जुड़ी हुई है. यही कारण है कि इस पर्व का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है. साल भर लोगों को दीपावली पर्व का इंतजार रहता है. ये अलग बात है कि आधुनिकता के इस दौर में त्योहार मनाने के तरीके बदल गए हैं. मिट्टी के दीयों की जगह चाइनीज लाइटों और पटाखों के शोर ने ले ली है. दीपावली के बाजार पर इस आधुनिकता का क्या प्रभाव पड़ा है इस पर देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

दीपावली यानी दीप + अवली. दीप का अर्थ दीपक और अवली का अर्थ पंक्ति से है. दीपावली जिसे दीपों की एक पंक्ति कहते हैं. इसीलिए दीपावली को दीपों का त्योहार भी कहा जाता है, लेकिन आज के आधुनिक भारत में दीपावली पटाखों और शोर-शराबे का त्योहार बन गया है.

आधुनिकता के रंग में रंगी दिवाली

पढ़ें- दिगंबर जैन की मुमुक्षु मंडल संस्था ने किया पटाखों का बहिष्कार, चलाया जागरुकता अभियान

इतिहास के प्रोफेसर एम.एस गोसाईं की मानें तो शास्त्रों के अनुसार जब भगवान राम 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटे थे तो उनके स्वागत में लोगों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं, लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है. आज दीपावली के दीपों की जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली है. जैसे-जैसे देश तरक्की कर रहा है नई टेक्नोलॉजी आ रही है. वैसे-वैसे दीपावली का रूप भी बदलता जा रहा है. क्योंकि अब खुशी का अर्थ मात्र शोर-शराबे तक सीमित रह गया है.

शास्त्रों में बम-पटाखों का नहीं है कोई जिक्र
दीपावली का अर्थ दीपों से है. प्राचीन समय से दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है, लेकिन वर्तमान समय में दीपावली पर्व पर जो पटाखों का इस्तेमाल किया जा रहा है इसका जिक्र शास्त्र, पुराण, वेद और उपनिषदों में कहीं भी नहीं है, लेकिन आधुनिकता के साथ हमने दीपावली मनाने के तौर तरीकों को बदल दिया है.

दीपक जलाकर मनाई जाती थी दीपावली
हिंदू मान्यता के अनुसार घर में जब भी कोई शुभ कार्य होता है तो दीपक जलाया जाता है. शुभ अवसर पर बम-पटाखे इत्यादि का प्रयोग किया जाता है ये कहीं भी देखने को नहीं मिलता है. हालांकि बम-पटाखों का इस्तेमाल शस्त्र के रूप में जरूर किया जाता था. लेकिन अब असल दीपावली धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है.

पढ़ें- संतान की रक्षा के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी का व्रत, ऐसे करें पूजा

दीपावली में मिट्टी के दीए का है विशेष महत्व
दीपावली में मिट्टी के दीए का विशेष महत्व है. क्योंकि मिट्टी का प्रकृति से सीधा संबंध है. इसके अलावा हम लोग मिट्टी के दीए जलाकर प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण में भी बड़ा योगदान दे सकते हैं, लेकिन जो वास्तविक दीपावली है जिसमें लक्ष्मी मां की पूजा की जाती है. वह अब बम-पटाखों में बदल गयी है. धर्माचार्य सुभाष जोशी की मानें तो इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि मां लक्ष्मी कभी प्रसन्न नहीं हो होंगी.

पर्यावरण विद्द डॉ. अनिल जोशी ने कहा कि दीपावली एक ऐसा पर्व है जो पूरे देश को रोशन करता है, लेकिन आज के समय में रोशनी और उजाले मात्र पटाखों तक सीमित रह गई है. लोगों को दीपावली पर पटाखे जलाकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के बचाए उसे संरक्षण के लिए काम करना चाहिए.

Intro:नोट - फीड ftp से भेजी गयी है..............
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भारत में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों का एक विशेष महत्व है। उसी में से हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार है दीपावली, जो सभी त्यौहारों में से सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। दीपावली का ये पर्व भारत के प्राचीन काल से जुड़ा है। यही कारण है की इस पर्व का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। यही कारण है की लोग इस पर्व का साल भर इंतज़ार करते है। लेकिन आधुनिकता के इस दौर में प्राचीन दीपावली मानाने की विधि लुप्त होती जा रही है और इसकी जगह चाइनीज लाइटों और बम-पटाखों ने ले ली है। आखिर क्या है दीपावली का प्राचीन महत्त्व, और बदल रहे दीपावली पर्व के रूप से समाज पर क्या पड़ रहा है फर्क, देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.......


Body:दीपावली यानी दीप + अवली , ‘दीप’ का अर्थ दीपक तथा ‘अवली’ का अर्थ पंक्ति से है। दीपावली जिसे दीपकों की एक पंक्ति कहते है। दीपावली दिपको का त्योहार है तो आखिर अब दिपावली क्यों पटाखों और शोरसराबे का त्योहार बनता  जा रहा है। यह एक सोचनिय विषय है। कि आखिर  कैसे दीपावली बदल गयी है। शस्त्रों में वर्णन है की जब भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काटकर वापस लौटे थे तो उनके स्वागत में दीप जलाए गए थे। और खुशीया मनाई गई थी। लेकिन अब सबकुछ बदल चुका है। आज दीपावली के दीपों की जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली है। जैसे-जैसे देश तरिक्की कर रहा है नई टेक्नोलाजी आ रही है वैसे-वैसे दीपावली का रुप भी बदलता जा रहा है। क्योंकि अब खुशी का अर्थ मात्र शोर शराबे तक सीमित रह गया है।   


शास्त्रो में बम-पटाखों का नही है कोई जिक्र...........

दीपावली का अर्थ दीपों से है, और प्राचीन समय से दीपावली का पर्व चला आ रहा है। लेकिन वर्तमान समय में दीपावली पर्व पर, जो पटाखों का इस्तेमाल किया जा रहा है इसका जिक्र शास्त्र, पुराण, वेद और उपनिषदों में कहीं भी नहीं है। और यह भी जिक्र नहीं है कि प्रदूषण युक्त होकर हर्ष-उल्लास मनाया जाए। हालांकि प्राचीन समय में दीपोत्सव और दीपार्यचन करके दीपावली मनाने की व्यवस्था थी। 


प्राचीन में दीपक जलाकर मनाया जाता था दिपावली........

घर में जब कोई भी शुभ कार्य होता है तो दीपक जलाकर मनाया जाता है, यही नहीं शास्त्रों में किसी भी तरह के बम-पटाखे इत्यादि का दीपावली में प्रयोग करने का वर्णन नहीं है। हालांकि बम-पटाखों का इस्तेमाल, शस्त्र के रूप में जरूर किया जाता था। लेकिन अब असल दीपावली धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। ऐसे में मिट्टी के दिए जलाकर ही प्राचीन दीपावली लायी जा सकती है। 


दीपावली में मिट्टी के दीए का है विशेष महत्व........

दीपावली में मिट्टी के दीए का विशेष महत्व है क्योंकि मिट्टी का प्रकृति से सीधा संबंध है और मिट्टी के दीए जलाकर प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ा योगदान दे सकते हैं। लेकिन जो वास्तविक दीपावली है जिसमे लक्ष्मी माँ की पूजा की जाती है। वह अब बम-पटाखों में बदल गयी है। यही वजह है कि लोगों की बुद्धि भ्रष्ट होती जा रही हैं। हालांकि दीपावली मे माँ लक्ष्मी का पूजन करने का सीधा संबंध धर्म, धन, दया और दान से है। लेकिन इस प्रदूषण की दीपावली से माँ लक्ष्मी कभी प्रसन्न नही हो सकती। 

बाइट - सुभाष जोशी, धर्माचार्य


पपपर्यावरण का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण शुद्धिकरण है............

वही अगर भारतीय साहित्य और इतिहास की माने तो दीपावली का पर्व शास्त्र के अनुसार भगवान राम के 14 साल वनवास पूरा होने के बाद वापसी पर लोगों ने मिट्टी के दीए जलाकर भगवान राम का स्वागत किया था। जिसका वास्तविक उद्देश्य पर्यावरण का शुद्धिकरण करना था। जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता था और लोग अपनी खुशी का इजहार भी कर लेते थे। लेकिन उस दौरान बम-पटाखों का कहीं भी जिक्र नहीं था। हलाकि दीपावली के त्यौहार को अज्ञान पर ज्ञान का विजय और असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाते हैं। 

बाइट - प्रोफेसर एम एस गोसाईं, इतिहास


हृदय की रोशनी को जगाने का पर्व है दीपावली............

वही पर्यावरणविद की माने तो दीपावली एक ऐसा पर्व है जो पूरे देश को रोशनी और उजालों का संदेश देती है। लेकिन यह रोशनी और उजाले मात्र पटाखों से नहीं होती। बल्कि ये रोशनी और उजाले, हृदय के होते हैं और असल दीपावली का उद्देश्य यही था। इसके साथ ही नई ऊर्जा के साथ बदलते मौसम को स्वीकारते हुए और भाईचारे के साथ आगे बढ़े। ताकि सामूहिक ऊर्जा समाज के बीच बरक़रार रहे, यही नहीं आपसी मतभेदों को खत्म कर यह पर्व एक साथ जोड़ने का काम करती है। लेकिन इस पर्व का महत्व यह नही है कि पटाखे छोड़कर, प्राणवायु के लिए संकट पैदा करे।

बाइट - डॉ अनिल जोशी, पर्यावरण विद्द




Conclusion:
Last Updated : Oct 21, 2019, 7:57 PM IST
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