देहरादूनः साल 2019 राज्य के लिए कई मायने में बेहद खास रहा तो कई मायने में निराशा हाथ लगी है. साल 2019 लगभग बीतने को है, लेकिन इस साल उत्तराखंड की धरती को ना सिर्फ हजारों बार भूकंप के झटके झेलने पड़े, बल्कि कई बड़े ऐसे भूकंप भी आये हैं जिसने लोगों को सहमा दिया. आखिर इस साल कितनी बार डोली है उत्तराखंड की धरती, भूकंप को लेकर क्या मानना है वैज्ञानिकों का? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
क्यों आता है भूकंप
वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय रीजन में इंडियन प्लेट 40 से 50 मिलीमीटर सालाना गति कर रही है और जब दो या दो से अधिक प्लेटें आपस में टकराती हैं या फिर प्लेटों के बीच घर्षण होता है तो उससे उस क्षेत्र में तनाव पैदा है. जिस वजह से भूकंप आता है.
साथ ही जो भूकंप हिमालय क्षेत्रों में आते हैं उसे टेस्टानिक भूकंप कहते हैं और सामान्यतः हिमालय क्षेत्रों में जो भूकंप आते हैं, उसका केंद्र बिंदु जमीन की सतह से 10 से 20 किलोमीटर नीचे होता है.
एक हजार से ज्यादा आये हैं भूकंप.
साल 2019 उत्तराखंड में भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील रहा है, क्योंकि इस साल करीब एक हजार से ज्यादा भूकंप के झटके उत्तराखंड की धरती पर आए हैं, जो मात्र उपकरणों में रिकॉर्ड किए गए हैं और ये 1.5 मैग्नीट्यूड से कम के रहे हैं, जिन्हें लोगों ने महसूस नहीं किया.
इसके साथ ही 6 बड़े भूकंप भी आए हैं जिसे लोगों ने महसूस किया है और ये भूकंप 3.5 से लेकर 4.5 मैग्नीट्यूड तक के थे. जिसकी डेप्थ स्लो थी यानी 8 किलोमीटर से 15 किलोमीटर तक की डेप्थ थी.
70 सालो में नहीं आया कोई बड़ा भूकंप
साल 1897 से 1950 के बीच 4 बड़े भूकंप आए हैं. जिसमें साल 1897 में असम, साल 1905 में कांगड़ा में जिसका मैग्नीट्यूड 7.8 था, साल 1934 में बिहार-नेपाल में जिसका मैग्नीट्यूड 8.4 था. इसके साथ ही साल 1950 में असम में आया था जिसका मैग्नीट्यूड 8.7 था, लेकिन इसके बाद से अभी तक इन 70 सालों में कोई बड़े भूकंप के झटके महसूस नहीं किए गए हैं. ऐसे में तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं कि कहीं एनर्जी स्टोर तो नहीं हो रही है.
स्लो अर्थक्वेक के रूप में एलर्जी हो रही है रिलीज
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सुशील कुमार ने बताया कि इन 70 सालों में कोई बड़ी एनर्जी रिलीज नहीं हुई है, लेकिन साल 1991 में उत्तरकाशी में 6.5 मैग्नीट्यूड, साल 1999 में चमोली में 6.0 मैग्नीट्यूड इसके साथ ही साल 2017 में रुद्रप्रयाग में करीब 6.0 मैग्नीट्यूड के भूकंप आए थे, जो मॉडरेट अर्थ क्विक है और स्लो डेप्थ से आये थे, जिससे हिमालय की भूमि की एनर्जी रिलीज हुई थी.
ऐसे में या अभी हो सकता है कि स्लो अर्थक्वेक के माध्यम से भूमि की एनर्जी रिलीज हो रही हो और जापान के वैज्ञानिकों ने इस चीज की पहचान भी किया है कि एनर्जी स्लो अर्थक्वेक के रूप में रिलीज हो रही है.
भूगर्भीय हलचल पर नजर रखने के लिए लगाए गए हैं उपकरण
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सुशील कुमार ने बताया कि हिमालय की जो सैस्मिक बेल्ट है वह नॉर्थ वेस्ट साउथ स्टैंडिंग है. हिमालय बेल्ट के भूगर्भीय हलचल पर नजर रखने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ने 17 ब्रॉडबैंड सीस्मोग्राफ और 9 जीपीएस स्टेशन को स्थाई रूप से लगा रखे हैं, जो लगातार भूगर्भीय हलचल को रिकॉर्ड कर रहे हैं. इस साल वाडिया के उपकरण ने एक हजार से ज्यादा भूकंप के झटके को रिकॉर्ड किया है, जिसे लोगों ने महसूस नहीं किया है. यही नहीं 6 भूकंप के झटके ऐसे आये है जिन्हें महसूस किया गया है.
साल 2019 में आये मुख्य भूकंप के झटके
- 17 मई 2019 को चमोली में 3.6 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था.
- जुलाई 2019 में उत्तरकाशी में 3.3 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था.
- 11 सितंबर 2019 को चमोली में 3.5 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था.
- 16 सितंबर 2019 को चमोली में 4.5 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था.
- 12 नवंबर 2019 को पिथौरागढ़ में 4.1 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था.
- 13 दिसंबर 2019 को चमोली और रुद्रप्रयाग में 3.8 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था.