देहरादून: उत्तराखंड जिला पंचायत सदस्य संगठन ने उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 में संशोधन की मांग की है. संगठन ने सरकार को चेतावनी दी है यदि वे उनकी मांगों पर विचार नहीं करते है तो वे उंग्र आंदोलन भी करेंगे.
उत्तराखंड जिला पंचायत संगठन के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप भट्ट ने कहा कि त्रिस्तरीय पंचायतों चुनाव में चुनकर आए पंचायत प्रतिनिधियों को विधायक और सांसद की तर्ज पर पंचायत एक्ट की धारा 161 के तहत लोक सेवक की श्रेणी में लाया गया है. लेकिन पंचायत एक्ट की धारा 161 के तहत ग्राम प्रधान, उप प्रधान, जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत सदस्य समेत अन्य सभी जनप्रतिनिधियों को केवल अपने वेतनमान पर निर्भर रहना होगा. जनप्रतिनिधि के किसी भी व्यवसायिक गतिविधि में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया गया है. बावजूद इसके कोई जनप्रतिनिधि व्यवसायिक गतिविधि में शामिल होता है तो उसके बर्खास्त किया जा सकता है. जिसका उत्तराखंड जिला पंचायत संगठन विरोध कर रहा है.
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भट्ट ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में संसाधनों का काफी अभाव है. ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत प्रतिनिधियों के पास आजीविका के अन्य विकल्प खत्म होते जा रहे हैं. इसके अलावा उन्हें जो मानदेय मिलता है वह नाकाफी है. इसीलिए उन्होंने मांग की है कि पंचायती राज अधिनियम 2016 की धारा 161 में संशोधन किया जाए. ताकि वह अपनी आजीविका चला सकें.
त्रिस्तरीय पंचायतों में जनप्रतिनिधियों को मिलने वाला वेतन
पद | प्रतिमाह वेतन |
ग्राम प्रधान | 1500 रुपए |
उप प्रधान | 500 रुपए |
जिला पंचायत अध्यक्ष | 10,000 रुपए |
जिला पंचायत उपाध्यक्ष | 5000 रुपए |
सदस्य जिला पंचायत | 1000 रुपए |
प्रमुख क्षेत्र पंचायत | 6000 रुपए |
उप/कनिष्ठ/जेष्ठ प्रमुख | 1500 |
सदस्य क्षेत्र पंचायत सदस्य | 500 रुपए प्रति बैठक |
प्रदीप भट्ट ने कहा कि पंचायत प्रतिनिधियों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार को एक्ट की धारा में संशोधन करना होगा नहीं तो ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पंचायत प्रतिनिधियों की आजीविका पर गहरा असर पड़ेगा. उत्तराखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आजीविका को लेकर पहले से ही हालात नाजुक हैं. वहां पर पंचायत प्रतिनिधियों के हितों पर यह एक गहरा कुठाराघात होगा तो इसके बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. यदि सरकार ने उनके हितों की रक्षा नहीं की तो वे बड़ा आंदोलन करेंगे.