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लॉकडाउन: दून DM की मदद से बिहार पहुंची बेटी, पिता को दी मुखाग्नि, निभाया कर्मकांड - yogyata sinha bihar

लॉकडाउन के बीच सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सामाजिक और पारिवारिक दोनों जिम्मेदारियों का पालन करते हुए बेटी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया. लेकिन ये सबकुछ संभव हो सका देहरादून जिलाधिकारी आशीष श्रीवास्तव की मदद से.

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पिता के निधन के बाद देहरादून के DM की मदद से बिहार के सुपौल पहुंची बेटी
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Published : Apr 30, 2020, 6:33 PM IST

Updated : Apr 30, 2020, 7:40 PM IST

देहरादून: पूरी दुनिया के साथ-साथ देश जब आज कोरोना वायरस से जूझ रहा है, ऐसे में कुछ सुखद खबरें सुकून पहुंचा रही हैं. ऐसी ही एक खबर राजधानी दून से आई है. जिलाधिकारी आशीष श्रीवास्तव ने मानवता का परिचय देते हुये एक बेटी को उसके पिता के प्रति आखिरी जिम्मेदारी निभाने में मदद की है.

दरअसल, बिहार के सुपौल जिले की रहने वाली योग्यता सिन्हा देहरादून में पेट्रोलियम इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है. लॉकडाउन के बीच उसे 17 अप्रैल को पिता के मौत की खबर मिली. तीन बहनों में सबसे बड़ी बेटी होने के चलते योग्यता का ऐसे समय घर पर रहना भी जरूरी था. ऐसी परिस्थिति में मदद को आगे आये देहरादून जिलाधिकारी आशीष श्रीवास्तव, जिन्होंने गाड़ी और गार्ड की व्यवस्था की और योग्यता को उसके घर सुपौल पहुंचाया.

बेटी ने किया पिता का अंतिम संस्कार

सुपौल नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नंबर दस स्थित घर पहुंचकर योग्यता ने बड़ी बेटी होने का फर्ज अदा करते हुये अपने समाजसेवी पिता अश्विनी कुमार सिन्हा को मुखाग्नि दी. लॉकडाउन के बीच सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सामाजिक और पारिवारिक दोनों जिम्मेदारियों का पालन करते हुए बेटी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया.

ये भी पढ़ें: कहानी कमलेश की! अकाल मौत ने छीनी खुशियां, लंबी जद्दोजहद के बाद नसीब हुई वतन की 'मिट्टी'

पिता के निधन से दुखी योग्यता ने कहा कि उनकी इच्छा पूरी करने और पारिवारिक जिम्मेदारी संभालने में कोई कमी नहीं रखेगी. इस जिम्मेदारी को पूरा करने में कोरोना वायरस के कारण जारी लॉकडाउन के दौरान समस्या तो आई पर उन परेशानियों को दूर करने में समाज ने भी काफी मदद की.

'बेटा और बेटी में कोई फर्क नही रहा'
योग्यता के चाचा नलिन जायसवाल बताते हैं कि 17 अप्रैल को जब योग्यता के पिता का निधन हुआ तो वह देहरादून में थी और देश में लॉकडाउन था. तीन बहनों में योग्यता, रिया और आकांक्षा से बड़ी है, इसलिए उसका घर आना जरूरी था. उन्होंने देहरादून जिलाधिकारी का धन्यवाद करते हुये कहा कि उनकी मदद से योग्यता ऐसे समय घर पहुंच पाई.

18 अप्रैल की देर रात दो बजे वह घर पहुंची और 19 अप्रैल को अंतिम संस्कार हुआ. नलिन जयसवाल बताते हैं कि अब देश बदल रहा है और लोगों की सोच भी. अब तो बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं है.

देहरादून: पूरी दुनिया के साथ-साथ देश जब आज कोरोना वायरस से जूझ रहा है, ऐसे में कुछ सुखद खबरें सुकून पहुंचा रही हैं. ऐसी ही एक खबर राजधानी दून से आई है. जिलाधिकारी आशीष श्रीवास्तव ने मानवता का परिचय देते हुये एक बेटी को उसके पिता के प्रति आखिरी जिम्मेदारी निभाने में मदद की है.

दरअसल, बिहार के सुपौल जिले की रहने वाली योग्यता सिन्हा देहरादून में पेट्रोलियम इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है. लॉकडाउन के बीच उसे 17 अप्रैल को पिता के मौत की खबर मिली. तीन बहनों में सबसे बड़ी बेटी होने के चलते योग्यता का ऐसे समय घर पर रहना भी जरूरी था. ऐसी परिस्थिति में मदद को आगे आये देहरादून जिलाधिकारी आशीष श्रीवास्तव, जिन्होंने गाड़ी और गार्ड की व्यवस्था की और योग्यता को उसके घर सुपौल पहुंचाया.

बेटी ने किया पिता का अंतिम संस्कार

सुपौल नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नंबर दस स्थित घर पहुंचकर योग्यता ने बड़ी बेटी होने का फर्ज अदा करते हुये अपने समाजसेवी पिता अश्विनी कुमार सिन्हा को मुखाग्नि दी. लॉकडाउन के बीच सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सामाजिक और पारिवारिक दोनों जिम्मेदारियों का पालन करते हुए बेटी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया.

ये भी पढ़ें: कहानी कमलेश की! अकाल मौत ने छीनी खुशियां, लंबी जद्दोजहद के बाद नसीब हुई वतन की 'मिट्टी'

पिता के निधन से दुखी योग्यता ने कहा कि उनकी इच्छा पूरी करने और पारिवारिक जिम्मेदारी संभालने में कोई कमी नहीं रखेगी. इस जिम्मेदारी को पूरा करने में कोरोना वायरस के कारण जारी लॉकडाउन के दौरान समस्या तो आई पर उन परेशानियों को दूर करने में समाज ने भी काफी मदद की.

'बेटा और बेटी में कोई फर्क नही रहा'
योग्यता के चाचा नलिन जायसवाल बताते हैं कि 17 अप्रैल को जब योग्यता के पिता का निधन हुआ तो वह देहरादून में थी और देश में लॉकडाउन था. तीन बहनों में योग्यता, रिया और आकांक्षा से बड़ी है, इसलिए उसका घर आना जरूरी था. उन्होंने देहरादून जिलाधिकारी का धन्यवाद करते हुये कहा कि उनकी मदद से योग्यता ऐसे समय घर पहुंच पाई.

18 अप्रैल की देर रात दो बजे वह घर पहुंची और 19 अप्रैल को अंतिम संस्कार हुआ. नलिन जयसवाल बताते हैं कि अब देश बदल रहा है और लोगों की सोच भी. अब तो बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं है.

Last Updated : Apr 30, 2020, 7:40 PM IST
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