देहरादून: धूल चेहरे पे थी और हम आइना साफ करते रहे...ये कहावत इन दिनों उत्तराखंड की राजनाति में सत्ताधारी बीजेपी पर सटीक बैठ रही है. प्रचंड बहुमत के बाद सत्ता पर काबिज होने के साढ़े चार सालों में बीजेपी ने तीन मुख्यमंत्री बदल दिए हैं. बात अगर इन बीते सालों की करें तो यहां बीजेपी ने जनता के हालात से ज्यादा प्रदेश में सीएम का चेहरा बदलकर पार्टी की छवि सुधारने का प्रयास किया है. इन चार सालों में स्वास्थ्य सेवा, पलायन, बेरोजगारी पर कुछ ध्यान नहीं दिया गया. बीजेपी ने विकास करने से ज्यादा चेहरों को बदलने पर ध्यान दिया है.
प्रदेश में आज भी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं खस्ताहाल हैं. स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सरकार हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है. कैग की रिपोर्ट में ही साबित हुआ है कि राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर न तो मानव संसाधन जुटाये गये और न ही तकनीकी रूप से राज्य को इसके लिए सक्षम किया गया. आज भी प्रदेश में निरंतर पलायन बढ़ा है. प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं. बेरोजगारी आसमान छू रही है. जनता महंगाई की मार झेल रही है.
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बीते साढ़े चार सालों में राज्य में कई भर्तियां लटकी हुई हैं, जिसके लिए युवा न जाने कब से इंतजार कर रहे हैं. मगर हालात तो देखिये कि प्रदेश में मुख्यमंत्रियों की भर्ती को लेकर ही मीम्स (Memes) वायरल हो रहे हैं, जो कि काफी दुखद है. इसके अलावा प्रदेश में कोविड मिसमैनेजमेंट, कुंभ कोरोना टेस्टिंग फर्जीवाड़ा, लाइब्रेरी घोटला, कर्मकार कल्याण बोर्ड घोटाला जैसे कई विवाद हैं, जिन्हें सुलझाकर जनता के सामने साफ छवि पेश करने की बजाय बीजेपी ने चेहरा बदलकर फिर से पुराने विवादों से पल्ला झाड़ा है. साढ़े चार सालों में बीजेपी इन सब मुद्दों को दरकिनार करते हुए प्रदेश में 'चेहरों का खेल' खेल रही है.
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बीजेपी ने पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत के काम का हवाला देते हुए उन्हें पद से हटाया. तब बीजेपी ने सर्वे में पाया कि अगर पार्टी 2022 विधानसभा चुनाव में त्रिवेंद्र सिंह रावत के नाम पर चुनाव लड़ती है तो उसे नुकसान हो सकता है. जिसके बाद बदलाव के तौर पर तीरथ सिंह रावत को सत्ता सौंपी गई. तब भी बीजेपी के प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व ने किसी भी तरह से विकास को आधार नहीं बनाया. त्रिवेंद्र रावत को सिर्फ इसलिए हटा दिया कि उनके कामों से जनता खुश नहीं थी, इससे जनता में सही मैसेज नहीं जा रहा था.
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अब तीरथ सिंह रावत को भी उनके बयानों, विवादों, पार्टी की छवि बचाने और आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की जंप लगाने के लिए हटा दिया गया. अब भी राज्य में सबसे पहले सियासी समीकरणों को साधते हुए कुमाऊं क्षेत्र से पुष्कर धामी को सीएम बनाया गया है. चाल, चरित्र और चेहरे का स्लोगन लेकर चलने वाली पार्टी शायद चेहरों को लेकर ही आगे बढ़ रही है. यही कारण है कि अब तक प्रदेश में बीजेपी सबसे ज्यादा सीएम के चेहरे बदल चुकी है.
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ये हालात देखकर लगता है कि पार्टी आलाकमान ने कभी भी प्रदेश में विकास कार्यों को प्राथमिकता नहीं दी. प्रदेश में अगर कोई भी विकास कार्य करता तो उसकी इस तरह से विदाई न होती. इसलिए कहा जा रहा है कि बीजेपी के चेहरे पर धूल जमी है यानि कि उनके नेता अपने विकास कार्यों के जरिए जनता से जुड़ाव नहीं कर पा रहे हैं. उस पर जोर देने की बजाय बीजेपी चेहेरे पर चेहरे बदल रही है.