देहरादूनः उत्तराखंड में बंजर होते जमीन और घटती खेती चिंता बढ़ा रही है. ऐसे में एक तरफ चकबंदी को एक बेहतर विकल्प के रूप में सुझाया गया था, लेकिन जमीनी समस्याओं को देखते हुए चकबंदी उत्तराखंड में संभव नहीं माना गया. लिहाजा, उत्तराखंड सहकारिता विभाग ने एक रणनीति तैयार की है. जिसके तहत अब सहकारिता विभाग अपने संसाधनों से बंजर होते खेतों को एक बार फिर से आबाद करेगी. सहकारिता विभाग उत्तराखंड में कोऑपरेटिव फार्मिंग लॉन्च करने जा रहा है. जिसके तहत ग्रामीण कहीं भी हो, लेकिन उसके खेतों की जिम्मेदारी सहकारिता विभाग की होगी और भूमि धारक को इसका लाभ भी मिलेगा.
उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या है, जिसके पीछे वीरान होते गांव और बंजर होते खेत सबसे बड़ी वजह है. एक तरफ जहां नई तकनीक और नई संसाधनों का विकास हो रहा है तो वहीं सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में हालत ठीक उलट नजर आ रहे हैं. पहाड़ों में लोग लगातार खेती से मुंह मोड़ रहे हैं. खेती बाड़ी न होने की वजह से हर साल कई हेक्टेयर जमीन बंजर हो रही है. जहां पहले गांवों में खेत ही खेत नजर आते थे, वहां अब झाडियां और जंगल नजर आ रहे हैं.
खासकर मौसम की मार और वन्यजीवों की ओर से फसलों को नुकसान पहुंचाने से भी लोग खेती पर ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. एक पहलू ये भी है कि पुरुष वर्ग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर रुख गए हैं, ऐसे में गांव में महिलाएं और बुजुर्ग ही बचे हैं, जिनके कंधे पर ही खेती बाड़ी से लेकर पशुओं की देखभाल का जिम्मा है. जिसके चलते खेती बाड़ी करने वाला गांव में कोई बचा ही नहीं. अब सहकारिता विभाग खेती को बढ़ावा देने के लिए कोऑपरेटिव फार्मिंग लॉन्च करने की कवायद में है.
कोऑपरेटिव फार्मिंग के जरिए आबाद होंगे बजर खेतः सहकारिता सचिव बीआरसी पुरुषोत्तम ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कोऑपरेटिव फार्मिंग की परिकल्पना के बारे में जानकारी दी. उनका कहना है कि उत्तराखंड में पलायन की समस्या विकट होती जा रही है. लोग पहाड़ों की उपजाऊ भूमि छोड़कर मैदानों में अपनी आजीविका चलाने के लिए रुख कर रहे हैं. लिहाजा, इस समस्या को एक अवसर के रूप में तब्दील करने की दिशा में कोऑपरेटिव फार्मिंग का कांसेप्ट लाया गया है.
उन्होंने बताया कि जिस तरह से पहाड़ों पर भूमि को लीज पर देने पर कहीं न कहीं भूमि स्वामी के मन में कब्जे की आशंका रहती है. ऐसे उसे एक चुनौती की तरह लेते हुए भूमि को अपनी प्राइमरी एग्रीकल्चर कोऑपरेटिव सोसायटी यानी पैक्स (PACS) कमेटियों के जरिए सहकारिता विभाग लेगा और इस पर खेती करेगा. उन्होंने बताया कि कोऑपरेटिव फार्मिंग योजना की शुरुआत गृहमंत्री अमित शाह ने हरिद्वार से कर दी है. अब इस योजना को सहकारिता विभाग, कृषि विभाग और उद्यान विभाग के सहयोग से धरातल पर उतारा जाएगा.
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टिहरी के मोगी गांव में पहला मॉडल तैयारः सहकारिता विभाग की ओर से टिहरी के जौनपुर ब्लॉक के मोगी गांव में एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पैक्स कमेटी के जरिए कोऑपरेटिव फार्मिंग के मॉडल को धरातल पर उतारा गया है. सचिव बीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया कि मोगी गांव में सक्सेसफुल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर उतरने के बाद इस योजना को अब पूरे प्रदेश में लागू करवाया जा रहा है. जिसके तहत पहले चरण में प्रदेश के 13 जिलों के हर एक ब्लॉक के एक गांव से प्रस्ताव मंगवाए जा रहे हैं.
हर ब्लॉक में एक गांव की हजार नाली जमीन पर होगी सामूहिक खेतीः सहकारिता सचिव बीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया कि पहले चरण में हर एक ब्लॉक से ऐसे गांवों को चिन्हित किया जाएगा, जिसमें बंजर भूमि ज्यादा है. गांव में बंजर पड़ी तकरीबन हजार नाली भूमि को सहकारिता की पैक्स कमेटी अगले 30 सालों के लिए लीज पर लेगी और उस पर सामूहिक खेती करेगी. उन्होंने कहा कि इससे पहले चकबंदी का प्लान उत्तराखंड में फेल हो चुका है. लिहाजा अब कोऑपरेटिव फार्मिंग के जरिए वो सभी समस्याएं दूर होगी, जो कि चकबंदी में सामने आती थी.
उन्होंने कहा कि जिस तरह से लीज पर किसी प्राइवेट व्यक्ति को देने में इंसान संदेह के घेरे में रहता था तो अब यह पैक्स समिति यानी सीधे तौर से सरकार के साथ भूमि धारकों का अनुबंध होगा. जिसमें किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं आएगी. उन्होंने बताया कि वीरान पड़े गांव में बंजर भूमि को आबाद किया जाएगा. यह खेती गांव में जो लोग लोग बचे हैं, उनकी ओर से की जाएगी. यदि लोगों की कमी होती है तो सहकारिता विभाग की ओर से लेबर को आउटसोर्स भी किया जा सकता है.
बीती 22 सालों में उत्तराखंड में बंजर हुई 1.49 लाख हेक्टेयर भूमिः राज्य गठन के समय साल 2000-01 में उत्तराखंड में कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था, जिसमें पिछले 22 सालों में तकरीबन 1.49 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल की कमी आई है. यानी बंजर भूमि इन 22 सालों मे बढ़ गई है. यह साफ है कि कृषि क्षेत्र में यह गिरावट आवासीय, शैक्षणिक संस्थानों, उद्योगों, सड़कों आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं के तेजी से विकास और पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन के कारण आई है.
कृषि क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए परती भूमि को क्रमबद्ध तरीके से खेती के अंतर्गत लाने की आवश्यकता है. उधर, अब सरकारिता विभाग ने कोऑपरेटिव फार्मिंग के जरिए उत्तराखंड के बंजर खेतों को आबाद करने का बीड़ा उठाया है. जिसके तहत उत्तराखंड में कृषि, उद्यान और पशुपालन विभाग मिलकर पहाड़ों को बहाल करने के मकसद से लाई गई इस नए एग्रीकल्चर मॉडल पर काम करेंगे. हालांकि, यह कितना कारगर साबित होता है, देखने वाली बात होगी.