नैनीताल: उत्तराखंड में विशेषज्ञ जल क्रीड़ा के पद पर नियम विरुद्ध की गई नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई की. मामले की सुनने के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार, सचिव पर्यटन, यूजीसी व सीईओ पर्यटन विकास परिषद से जवाब मांगा है. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ में हुई.
दरअसल, आरटीआई कार्यकर्ता शक्ति सिंह बर्त्वाल ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा कि उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड ने 19 जून 2024 को विशेषज्ञ (जल क्रीड़ा) के पद पर एक शख्स की नियुक्ति की थी. इस पद के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता स्नातक निर्धारित थी.
आरोप है कि चयनित अभ्यर्थी ने आवेदन पत्र के साथ डिप्लोमा प्रमाण पत्र पेश किया था. उनका शैक्षणिक योग्यता प्रमाण पत्र एक ओपन यूनिवर्सिटी से प्राप्त एसोसिएट डिग्री (एडवांस डिप्लोमा) इन आर्ट्स था, जिसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से स्नातक के समकक्ष मान्यता प्राप्त नहीं है.
याचिकाकर्ता ने आरटीआई के माध्यम से नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित समस्त दस्तावेज प्राप्त किए. जिनसे ये स्पष्ट हुआ कि चयनित अभ्यर्थी ने अपने आवेदन पत्र में स्नातक की अंकों की प्रविष्टि के स्थान पर 'लागू नहीं' लिखा था. जिससे यह प्रमाणित होता है कि उनके पास स्नातक डिग्री नहीं है. मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने चयनित अभ्यर्थी की शैक्षिक योग्यता पर गंभीर सवाल उठाए.
कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि सेना में कार्यरत रहते हुए कोई अभ्यर्थी नियमित कक्षाओं में भाग लिए बिना स्नातक डिग्री कैसे प्राप्त कर सकता है? कोर्ट ने ओपन यूनिवर्सिटी के कुछ पाठ्यक्रमों पर भी संदेह जताया. क्योंकि, इन विश्वविद्यालयों में न तो नियमित कक्षाएं संचालित होती हैं और न ही प्रत्यक्ष शिक्षण प्रदान किया जाता है.
चयनित अभ्यर्थी को कोर्ट में पेश होने के आदेश: कोर्ट ने ये भी प्रश्न उठाया कि बिना कक्षाओं में भाग लिए कोई जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) या हवलदार इन पाठ्यक्रमों को सफलतापूर्वक कैसे पूरा कर सकता है. वहीं, हाईकोर्ट ने चयनित अभ्यर्थी को निर्देश दिया गया कि वो 5 मार्च को कोर्ट के समक्ष उपस्थित होकर अपना पक्ष रखेंगे.
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