ETV Bharat / state

एक अदद पुल की आस में पथराई आंखें, जान जोखिम में डालने को मजबूर ग्रामीण - गोडर गांव पुल सुविधा

देवाल के ओडर, ऐरठा और बजई के हजारों ग्रामीणों को पुल न होने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में ग्रामीण नदी के ऊपर लकड़ी का अस्थायी पुलिया के जरिए आवाजाही करने को मजबूर हैं.

bridge
पुल की मांग
author img

By

Published : Jan 3, 2020, 11:04 PM IST

थरालीः साल 2013 में आई आपदा के छह साल बीत जाने के बाद धरातल पर व्यवस्था पटरी पर नहीं लौट पाई है. इसकी बानगी देवाल के ओडर गांव में देखने को मिल रही है. जहां पर सरकार एक अदद स्थायी पुल का निर्माण नहीं कर पाई है. आलम ये है कि पुल ना होने से ग्रामीणों को उफनती नदी को अस्थाई पुलिया के जरिए जान हथेली में रखकर पार करना पड़ रहा है. जबकि, इस पुलिया से कई गांवों के लोग आवाजाही करते हैं. जिसकी सुध शासन-प्रशासन नहीं ले रहा.

दरअसल, साल 2013 की आपदा से पहले यहां पर जिला पंचायत का एक पुल था. जिसे 2013 की आपदा बहा ले गई. ये पुल ओडर, ऐरठा और बजई के हजारों ग्रामीणों के आवागमन का एकमात्र विकल्प था. हालांकि, ग्रामीणों की मांग पर लोक निर्माण विभाग ने आवाजाही के लिए एक ट्रॉली भी लगवाई है, लेकिन केवल बरसात के दिनों में इस ट्रॉली का लाभ ग्रामीणों को मिल पाता है.

पुल ना होने से ग्रामीण परेशान.

ये भी पढ़ेंः नए साल पर मिला नायाब तोहफा, परिजनों को मिला आपदा में लापता सदस्य

जबकि, पूरे नौ महीने ग्रामीणों को अपने संसाधनों से श्रमदान कर नदी के ऊपर लकड़ी का अस्थायी पुलिया तैयाकर आवाजाही करते हैं. ग्रामीणों का कहना है वे शासन-प्रशासन बीते छह सालों से गुहार लगा रहे हैं. इतना ही नहीं नेतागण चुनावों के दौरान इन गांवों में पुल तैयार करने की आश्वासन देते हैं, लेकिन चुनाव हो जाने के बाद वे अपने वादे भूल जाते हैं.

वहीं, लोक निर्माण विभाग थराली के अधिशासी अभियंता जगदीश रावत का कहना है कि आपदा में बहा पुल लोक निर्माण विभाग नहीं, बल्कि जिला पंचायत का था. साल 2014 में विभाग ने ट्रॉली लगवाई है, जिसे बरसात के दिनों में सुचारू रूप से चलाई जाती है. उन्होंने कहा कि पुल का डॉफ्ट तैयार कर शासन को भेजने के निर्देश मिले हैं. जल्द ही स्टीमेट तैयार कर शासन को भेज दिया जाएगा.

थरालीः साल 2013 में आई आपदा के छह साल बीत जाने के बाद धरातल पर व्यवस्था पटरी पर नहीं लौट पाई है. इसकी बानगी देवाल के ओडर गांव में देखने को मिल रही है. जहां पर सरकार एक अदद स्थायी पुल का निर्माण नहीं कर पाई है. आलम ये है कि पुल ना होने से ग्रामीणों को उफनती नदी को अस्थाई पुलिया के जरिए जान हथेली में रखकर पार करना पड़ रहा है. जबकि, इस पुलिया से कई गांवों के लोग आवाजाही करते हैं. जिसकी सुध शासन-प्रशासन नहीं ले रहा.

दरअसल, साल 2013 की आपदा से पहले यहां पर जिला पंचायत का एक पुल था. जिसे 2013 की आपदा बहा ले गई. ये पुल ओडर, ऐरठा और बजई के हजारों ग्रामीणों के आवागमन का एकमात्र विकल्प था. हालांकि, ग्रामीणों की मांग पर लोक निर्माण विभाग ने आवाजाही के लिए एक ट्रॉली भी लगवाई है, लेकिन केवल बरसात के दिनों में इस ट्रॉली का लाभ ग्रामीणों को मिल पाता है.

पुल ना होने से ग्रामीण परेशान.

ये भी पढ़ेंः नए साल पर मिला नायाब तोहफा, परिजनों को मिला आपदा में लापता सदस्य

जबकि, पूरे नौ महीने ग्रामीणों को अपने संसाधनों से श्रमदान कर नदी के ऊपर लकड़ी का अस्थायी पुलिया तैयाकर आवाजाही करते हैं. ग्रामीणों का कहना है वे शासन-प्रशासन बीते छह सालों से गुहार लगा रहे हैं. इतना ही नहीं नेतागण चुनावों के दौरान इन गांवों में पुल तैयार करने की आश्वासन देते हैं, लेकिन चुनाव हो जाने के बाद वे अपने वादे भूल जाते हैं.

वहीं, लोक निर्माण विभाग थराली के अधिशासी अभियंता जगदीश रावत का कहना है कि आपदा में बहा पुल लोक निर्माण विभाग नहीं, बल्कि जिला पंचायत का था. साल 2014 में विभाग ने ट्रॉली लगवाई है, जिसे बरसात के दिनों में सुचारू रूप से चलाई जाती है. उन्होंने कहा कि पुल का डॉफ्ट तैयार कर शासन को भेजने के निर्देश मिले हैं. जल्द ही स्टीमेट तैयार कर शासन को भेज दिया जाएगा.

Intro:विकासखंड देवाल के ओडर गांव के लोग

पुल की आस ,जान हथेली पर रख नदी पार करने को मजबूर

उत्तराखंड की जनता ने बारी बारी से बीजेपी और कांग्रेस दोनो दलों को राज्य की सत्ता की चाभी सौंपी है अब ये दल इस राज्य का कितना विकास कर पाए हैं ये जानना है तो एक बार उत्तराखंड के रोते बिलखते पहाड़ो का रुख जरूर कीजियेगाBody:स्थान / थराली
रिपोर्ट / गिरीश चंदोला
स्लग/ पुल की आस ,जान हथेली पर रख नदी पार करने को मजबूर

एंकर-उत्तराखंड की जनता ने बारी बारी से बीजेपी और कांग्रेस दोनो दलों को राज्य की सत्ता की चाभी सौंपी है अब ये दल इस राज्य का कितना विकास कर पाए हैं ये जानना है तो एक बार उत्तराखंड के रोते बिलखते पहाड़ो का रुख जरूर कीजियेगा ,यूँ तो उत्तराखंड के पहाड़ो में लोग प्रकृति का आनंद उठाने आते हैं लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ो में जो दर्द छुपा है उसे कोई देख नहीं पाता है ,हर बार बस यही होता है कि मीडिया जब खबरे दिखाता है, तब कही जाकर सरकारें एक्सन मोड़ में आती हैं ,उत्तराखंड राज्य का सत्ता सुख भोगने वाले ये दोनो दल इन पहाड़ो का कितना विकास कर सके हैं इसकी एक बानगी हमे देखने को मिली देवाल विकासखण्ड के ओडर गांव में जहां अपने घर पहुंचने के लिए ,ग्रामीण ,छोटे छोटे मासूम बच्चे,और मातृशक्ति कहलाई जाने वाली पहाड़ की नारी उफनती नदी पर लकड़ी के बने पुल से आवाजाही को मजबूर हैं ,आपको ये तस्वीरें विचलित कर सकती हैं कि कैसे इन गांवों के ग्रामीण जान हथेली पर रखकर आवागमन को मजबूर हैं , ये तस्वीरें बताती हैं कि पहाड़ की पहाड़ सी समस्याओं के बावजूद कैसे आमजन पहाड़ो में जीवन यापन कर रहे हैं ,ऐसे दुर्गम रास्तो और नदियों को पार करना जब इतना दुश्कर हो तो भला कैसे पलायन रुकेगा ये कहना जरा मुश्किल है।

दरसल 2013 की आपदा से पहले यहां जिला पंचायत का एक पुल हुआ करता था 2013 कि आपदा इस पुल को भी बहा ले गई ,ये पुल ओडर,ऐरठा, ओर बजई के हजारो ग्रामीणों के आवागमन का एकमात्र विकल्प था ,यू तो कहने को ग्रामीणों के ज्ञापनों का संदर्भ लेते हुए लोक निर्माण विभाग ने यहां ग्रामीणों की आवाजाही के लिए ट्रॉली भी लगवाई है लेकिन केवल बरसात के दिनों में इस ट्रॉली का लाभ ग्रामीणों को मिल पाता है ,बाकी पूरे 9 माह ग्रामीण अपने खुद के संसाधनों से श्रमदान कर नदी के ऊपर लकड़ी डालकर पुल बनाते हैं ताकि आवाजाही हो सके ,ग्रामीणों की माने तो शासन प्रशासन से गुहार लगाते लगाते पूरे 7 साल होने को आये हैं ,चुनावों में इन गांवों के ग्रामीणों को पुल की आस के ढांडस बंधाये तो जाते हैं लेकिन चुनाव खत्म होते ही दोबारा इन लकड़ी के पुलों से ही ग्रामीण आवाजाही को मजबूर हो जाते हैं ,सरकार को इन ग्रामीणों की मजबूरी दिखती ही नही है और विपक्ष में बैठी कांग्रेस ये मुद्दे नजर ही नही आते ,

Vo-ओडर के ग्रामीणों ने बताया कि 2013 की आपदा में उनके गांव को जोड़ने वाला पुल बह गया था लेकिन तब से लगातार शासन प्रशासन से पत्राचार के बावजूद भी अब तक उन्हें पुल की सौगात नहीं मिली ,लिहाजा ग्रामीण जान हथेली पर रखकर लकड़ी के पुल से ही आवागमन को मजबूर हैं


Byte-पान सिंह गड़िया क्षेत्र पंचायत सदस्य ओडर


Byte- खीम राम ग्राम प्रधान ओडर


Byte- प्रेमा गड़ियाग्रामीण ओडर

Vo-वहीं लोक निर्माण विभाग थराली के अधिशासी अभियंता जगदीश रावत ने बताया कि आपदा में बहा पुल लोक निर्माण विभाग का नही था साथ ही उन्होंने बताया कि 2014 में विभाग ने वहां पर ट्रॉली लगवाई थी जो केवल बरसात के दिनों में सुचारू रूप से चलाई जाती है उन्होंने कहा कि शासन स्तर पर उनके विभाग से पुल का आगणन तैयार कर शासन को भेजने के निर्देश मिले हैं जल्द ही आगणन तैयार कर शासन को भेजे जाएंगे

Byte- जगदीश रावत अधिशासी अभियंता लोक निर्माण विभाग थरालीConclusion:Vo-ओडर के ग्रामीणों ने बताया कि 2013 की आपदा में उनके गांव को जोड़ने वाला पुल बह गया था लेकिन तब से लगातार शासन प्रशासन से पत्राचार के बावजूद भी अब तक उन्हें पुल की सौगात नहीं मिली ,लिहाजा ग्रामीण जान हथेली पर रखकर लकड़ी के पुल से ही आवागमन को मजबूर हैं


Byte-पान सिंह गड़िया क्षेत्र पंचायत सदस्य ओडर


Byte- खीम राम ग्राम प्रधान ओडर


Byte- प्रेमा गड़ियाग्रामीण ओडर

Vo-वहीं लोक निर्माण विभाग थराली के अधिशासी अभियंता जगदीश रावत ने बताया कि आपदा में बहा पुल लोक निर्माण विभाग का नही था साथ ही उन्होंने बताया कि 2014 में विभाग ने वहां पर ट्रॉली लगवाई थी जो केवल बरसात के दिनों में सुचारू रूप से चलाई जाती है उन्होंने कहा कि शासन स्तर पर उनके विभाग से पुल का आगणन तैयार कर शासन को भेजने के निर्देश मिले हैं जल्द ही आगणन तैयार कर शासन को भेजे जाएंगे

Byte- जगदीश रावत अधिशासी अभियंता लोक निर्माण विभाग थराली
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.