थरालीः साल 2013 में आई आपदा के छह साल बीत जाने के बाद धरातल पर व्यवस्था पटरी पर नहीं लौट पाई है. इसकी बानगी देवाल के ओडर गांव में देखने को मिल रही है. जहां पर सरकार एक अदद स्थायी पुल का निर्माण नहीं कर पाई है. आलम ये है कि पुल ना होने से ग्रामीणों को उफनती नदी को अस्थाई पुलिया के जरिए जान हथेली में रखकर पार करना पड़ रहा है. जबकि, इस पुलिया से कई गांवों के लोग आवाजाही करते हैं. जिसकी सुध शासन-प्रशासन नहीं ले रहा.
दरअसल, साल 2013 की आपदा से पहले यहां पर जिला पंचायत का एक पुल था. जिसे 2013 की आपदा बहा ले गई. ये पुल ओडर, ऐरठा और बजई के हजारों ग्रामीणों के आवागमन का एकमात्र विकल्प था. हालांकि, ग्रामीणों की मांग पर लोक निर्माण विभाग ने आवाजाही के लिए एक ट्रॉली भी लगवाई है, लेकिन केवल बरसात के दिनों में इस ट्रॉली का लाभ ग्रामीणों को मिल पाता है.
ये भी पढ़ेंः नए साल पर मिला नायाब तोहफा, परिजनों को मिला आपदा में लापता सदस्य
जबकि, पूरे नौ महीने ग्रामीणों को अपने संसाधनों से श्रमदान कर नदी के ऊपर लकड़ी का अस्थायी पुलिया तैयाकर आवाजाही करते हैं. ग्रामीणों का कहना है वे शासन-प्रशासन बीते छह सालों से गुहार लगा रहे हैं. इतना ही नहीं नेतागण चुनावों के दौरान इन गांवों में पुल तैयार करने की आश्वासन देते हैं, लेकिन चुनाव हो जाने के बाद वे अपने वादे भूल जाते हैं.
वहीं, लोक निर्माण विभाग थराली के अधिशासी अभियंता जगदीश रावत का कहना है कि आपदा में बहा पुल लोक निर्माण विभाग नहीं, बल्कि जिला पंचायत का था. साल 2014 में विभाग ने ट्रॉली लगवाई है, जिसे बरसात के दिनों में सुचारू रूप से चलाई जाती है. उन्होंने कहा कि पुल का डॉफ्ट तैयार कर शासन को भेजने के निर्देश मिले हैं. जल्द ही स्टीमेट तैयार कर शासन को भेज दिया जाएगा.