बेंगलुरु : चाहे किसी भी राज्य का चुनाव हो, वहां पर जाति बड़ी भूमिका ना निभाए, ऐसा संभव नहीं है. जाति हमारे समाज की एक हकीकत है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. क्या हैं कर्नाटक के जातीय समीकरण, आइए इस पर एक नजर डालते हैं.
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की आबादी 17 फीसदी है और वे विधानसभा की करीब 70 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं. इसी तरह से वोक्कालिगा, जिनकी आबादी 15 फीसदी है, वे करीब 35 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं. जाहिर है, कर्नाटक चुनाव में इन दोनों जातियों का बोलवाला सबसे अधिक रहा है. इसलिए हर पार्टी की कोशिश रहती है कि वे इन्हें रिझाएं, और जिसने भी यहां पर अपना समीकरण ठीक कर लिया, उसकी स्थिति हमेशा से बेहतर रही है.
लिंगायत और वोक्कालिगा के अलावा कर्नाटक में 24 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की है. उनके लिए 51 सीटें आरक्षित हैं. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यहां पर जिस भी पार्टी ने बाजी मार ली, उनकी सरकार बननी लगभग तय मानी जाती है.
इसे और अधिक बेहतर तरीके से समझना चाहते हैं, तो हम आपको पिछले विधानसभा चुनाव 2018 के आंकड़ों की जानकारी देते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में लिंगायत समुदाय के कुल 54 विधायक थे. इनमें से 37 भाजपा के थे. लिंगायत समुदाय कितना प्रभावशाली है, इसका अंदाजा लगाइए, अभी तक कर्नाटक में कुल 23 मुख्यमंत्री हुए हैं और इनमें से 10 मुख्यमंत्री अकेले लिंगायत समाज से रहे हैं.
इसी तरह से 2018 में 34 विधायक वोक्कालिगा समुदाय से थे. इनमें आठ भाजपा के थे. ओबीसी की बात करें तो राज्य में उनकी आबादी 35 फीसदी है. पिछली बार 99 विधायक ओबीसी समुदाय से थे. इनमें से 61 भाजपा से थे.
मुस्लिम की आबादी करीब लगभग 13 फीसदी है. 35 सीटों पर इनका मत उम्मीदवारों की जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाता है. इनमें से भी 20 विधानसभा क्षेत्र सबसे अधिक निर्णायक हैं. ये हैं - सर्वागनानगर, कलुबर्गी, विजयपुर, रायचूर, तुमकुर, मंगलुरु, चामराज नगर, जयनगर, बीदर, शिवाजीनगर, शांतिनगर और पुलकेशीनगर. यहां पर 30 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिमों की है. कांग्रेस पार्टी को भरोसा है कि वह यहां पर बेहतर करेगी.
2018 में अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के 49 उम्मीदवार विधायक बने. इनमें 27 कांग्रेस के और 12 भाजपा के हैं. ब्राह्मण समुदाय से पांच विधायक हैं. सभी भाजपा सदस्य हैं. अब उन विधानसभा क्षेत्रों की बात करें, जहां पर लिंगायत निर्णायक स्थिति में हैं. उनका प्रभाव 67 विधानसभा क्षेत्र में है. इनमें से 40 सीटों पर भाजपा जीती, 20 सीटों पर कांग्रेस और छह सीटों पर जेडीएस के उम्मीदवारों की जीत हुई थी. वोट प्रतिशत के हिसाब से देखें, तो भाजपा को लिंगायत समुदाय का 42 फीसदी, कांग्रेस को 38 फीसदी और जेडीएस को 11 फीसदी वोट मिले.
वोक्कालिगा की बात करते हैं. उनका प्रभाव 44 विधानसभा की सीटों पर है. इनमें से 21 सीटें जेडीएस को, 14 सीटें भाजपा को और नौ सीटें कांग्रेस को मिले. वोट प्रतिशत के नजरिए से देखेंगे, तो जेडीएस को 34.66 फीसदी, कांग्रेस को 33 फीसदी और भाजपा को 26 फीसदी वोट हासिल हुए.
राज्य में कुरुबा समुदाय भी अपना प्रभुत्व रखता है. 50 लाख इनकी आबादी है. 50 विधानसभा क्षेत्रों में ये फैले हुए हैं. बीदर, कलबुर्गी, यादगिरि, कोप्पाला और दावनगेरे में कुरुबा काफी मजबूत माने जाते हैं. कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया इसी समुदाय से आते हैं.
मार्च महीने में भाजपा सरकार ने मुस्लिम आरक्षण को समाप्त करने की घोषणा कर दी. पार्टी ने इनके लिए निर्धारित चार फीसदी आरक्षण को लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के बीच बांटने का ऐलान किया. मुस्लिमों को ईडब्लूएस के लिए निर्धारित 10 फीसदी कोटे में ही है. ईडब्लूएस का कोटा आय के आधार पर तय होता है.
इसी तरह से भाजपा सरकार ने एससी आरक्षण को लेकर भी एक अलग फैसला किया. उनके लिए आरक्षण की सीमा 15 फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी की घोषणा कर दी. लेकिन इस फैसले से बंजारा कम्युनिटी नाराज है. उन्हें लगता है कि आंतरिक रिजर्वेशन की इस व्यवस्था के तहत उन्हें एससी लिस्ट से बाहर किया जा सकता है. इसलिए उन्होंने इस फैसले का विरोध किया. बंजारा समूह के कुछ प्रदर्शनकारियों ने बीएस येदियुरप्पा के घर के बाहर पत्थरबाजी भी की थी. उनका मानना है कि यह फैसला येदियुरप्पा के कहने पर लिया गया है. लिंगायत समुदाय ने आरक्षण के नए फैसले का स्वागत किया है. दलितों का एक वर्ग भी आरक्षण के नए फैसले का समर्थन कर रहा है. लेकिन वोक्कालिगा और मुस्लिम विरोध कर रहे हैं. वोक्कालिगा का मानना है कि भाजपा इस फैसले से लिंगायत समुदाय को अधिक फेवर कर रही है. वोक्कालिगा के अनुसार लिंगायत समुदाय के लोग पहले से राज्य सरकार की नौकरी में अच्छी खासी संख्या में हैं. मुस्लिमों के बीच विरोध होना तो स्वाभाविक है.
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