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गर्भावस्था में हाइपरटेंशन, सावधानी जरूरी

गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप एक सामान्य समस्या मानी जाती है. लेकिन ये सामान्य समस्या उस समय परेशानी देने वाली हो जाती है, जब माता का रक्तचाप काफी अधिक बढ़ जाता है. मां की हाइपरटेंशन अवस्था उसके और बच्चे दोनों के लिए भारी ना पड़ जाए, इसलिए जरूरी है की पूरे गर्भकाल में उच्च रक्तचाप से पीड़ित माता के स्वास्थ्य को लेकर काफी सावधानियां बरती जाएं.

hypertension in pregnancy
गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप
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Published : Sep 9, 2020, 12:03 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:15 PM IST

रक्तचाप विशेषकर उच्च रक्तचाप के चलते गर्भवती महिलाओं की अवस्था पर क्या असर पड़ता है. इस बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम ने अपनी विशेषज्ञ गायनाकोलॉजिस्ट, ऑबस्टेट्रीशियन तथा बांझपन विशेषज्ञ डॉ. पुर्वा सहकारी से बात की.

गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप

डॉ. पूर्वा बताती है की यदि गर्भवती महिला को गर्भधारण करने से पहले ही उच्च रक्तचाप है, तो वह क्रोनिक हाइपरटेंशन की शिकार होती है और इस प्रकार बच्चे के जन्म के बाद भी महिला में यह अवस्था बनी रहती है. वहीं यदि उच्च रक्तचाप गर्भावस्था के बीसवें हफ्ते के बाद होता है, तो वह गर्भावधि हाइपरटेंशन कहलाता है. यह एक अस्थाई अवस्था होती है, जो बच्चे के जन्म के उपरांत ज्यादातर मामलों में ठीक हो जाती है.

उच्च रक्तचाप के मामलों में ज्यादातर उन महिलाओं को समस्या होती है, जिनकी या तो पहली गर्भावस्था हो, या फिर महिला की उम्र 40 या उससे अधिक हो. इसके अलावा ऐसी महिलायें, जिन्हें गर्भधारण करने से पहले ही उच्च रक्तचाप की समस्या हो, मधुमेह तथा मोटापा या अन्य बीमारियां हो.

हाइपरटेंशन के लक्षण

हाइपरटेंशन की समस्या होने पर गर्भवती महिला को तेज सिरदर्द, धुंधला दिखाई देना, सांस लेने में परेशानी, चिंता व बेचैनी, उलटी तथा चक्कर आने जैसी समस्याएं हो सकती है. इसके अलावा यदि रक्तचाप लगातार जांच के बाद भी 140/90 या उससे ऊपर बना रहता है, तो इसका मतलब गर्भवती महिला को उच्च रक्तचाप है.

आमतौर पर जब रक्तचाप का उपर वाला आंकड़ा 140 से 149 के बीच हो और नीचे वाला आंकड़ा 90 से 99 के बीच हो, तो यह चिंतनीय अवस्था नहीं होती है और गर्भवती महिला को उपचार की जरुरत नहीं होती है. लेकिन यदि रक्तचाप इससे ज्यादा बढ़ता है, तो रक्तचाप को कम करने की दवाई के साथ ही निर्धारित अंतराल पर बीपी की जांच, मूत्र में प्रोटीन की जांच तथा अल्ट्रासाउन्ड जांच के लिए सलाह दी जाती है.

उच्च रक्तचाप के मां और गर्भस्थ शिशु को नुकसान

डॉ. पूर्वा बताती है की हल्के और मध्यम ब्लड प्रेशर के अधिकांश मामलों में मां या गर्भस्थ शिशु को कोई खतरा नहीं होता है. लेकिन यदि माता को गंभीर उच्च रक्तचाप की समस्या हो तो माता और उसके भ्रूण दोनों की जान को खतरा हो सकता है. इस अवस्था में कई बार बच्चे का जन्म समय से पहले यानि प्री मैच्योर हो जाता है, या फिर जन्म के समय उसका वजन काफी कम होता है. प्रसव के समय कई बार उच्च रक्तचाप के कारण भारी रक्तस्राव भी होता है, जिसके चलते माता और बच्चे दोनों की जान को खतरा हो सकता है.

इसलिए कई बार माता और बच्चे के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए तथा प्रसव के दौरान हो सकने वाली जटिलताओं की आशंका के चलते चिकित्सक सामान्य प्रसव की बजाय सिजेरियन डिलीवरी की सलाह दी जाती है.

गर्भावस्था में कैसे करें उच्च रक्तचाप को नियंत्रित

गर्भावस्था के दौरान यदि उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में रखना हो, तो बहुत जरूरी है की गर्भवती महिला अपने चिकित्सक या दाई के निरंतर संपर्क में रहे. स्वस्थ तथा पोषक खाना खाए, खान-पान में पर्याप्त फल, सब्जियां और साबुत अनाज का सेवन करें. ये सभी विटामिन, ​खनिज और फाइबर का स्त्रोत होते हैं. नमक और कैफीन का सेवन कम करें. शराब और धूम्रपान ना करें. हर दिन कुछ शारीरिक गतिविधियां करना भी अच्छा रहता है, जैसे कि प्रसवपूर्व योग या वॉकिंग. लेकिन किसी भी प्रकार के व्यायाम से पहले अपने चिकित्सक की अनुमति लें. तनाव कम करने के लिए प्राणायाम, गहन श्वसन क्रिया से भी फायदा होता है.

रक्तचाप विशेषकर उच्च रक्तचाप के चलते गर्भवती महिलाओं की अवस्था पर क्या असर पड़ता है. इस बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम ने अपनी विशेषज्ञ गायनाकोलॉजिस्ट, ऑबस्टेट्रीशियन तथा बांझपन विशेषज्ञ डॉ. पुर्वा सहकारी से बात की.

गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप

डॉ. पूर्वा बताती है की यदि गर्भवती महिला को गर्भधारण करने से पहले ही उच्च रक्तचाप है, तो वह क्रोनिक हाइपरटेंशन की शिकार होती है और इस प्रकार बच्चे के जन्म के बाद भी महिला में यह अवस्था बनी रहती है. वहीं यदि उच्च रक्तचाप गर्भावस्था के बीसवें हफ्ते के बाद होता है, तो वह गर्भावधि हाइपरटेंशन कहलाता है. यह एक अस्थाई अवस्था होती है, जो बच्चे के जन्म के उपरांत ज्यादातर मामलों में ठीक हो जाती है.

उच्च रक्तचाप के मामलों में ज्यादातर उन महिलाओं को समस्या होती है, जिनकी या तो पहली गर्भावस्था हो, या फिर महिला की उम्र 40 या उससे अधिक हो. इसके अलावा ऐसी महिलायें, जिन्हें गर्भधारण करने से पहले ही उच्च रक्तचाप की समस्या हो, मधुमेह तथा मोटापा या अन्य बीमारियां हो.

हाइपरटेंशन के लक्षण

हाइपरटेंशन की समस्या होने पर गर्भवती महिला को तेज सिरदर्द, धुंधला दिखाई देना, सांस लेने में परेशानी, चिंता व बेचैनी, उलटी तथा चक्कर आने जैसी समस्याएं हो सकती है. इसके अलावा यदि रक्तचाप लगातार जांच के बाद भी 140/90 या उससे ऊपर बना रहता है, तो इसका मतलब गर्भवती महिला को उच्च रक्तचाप है.

आमतौर पर जब रक्तचाप का उपर वाला आंकड़ा 140 से 149 के बीच हो और नीचे वाला आंकड़ा 90 से 99 के बीच हो, तो यह चिंतनीय अवस्था नहीं होती है और गर्भवती महिला को उपचार की जरुरत नहीं होती है. लेकिन यदि रक्तचाप इससे ज्यादा बढ़ता है, तो रक्तचाप को कम करने की दवाई के साथ ही निर्धारित अंतराल पर बीपी की जांच, मूत्र में प्रोटीन की जांच तथा अल्ट्रासाउन्ड जांच के लिए सलाह दी जाती है.

उच्च रक्तचाप के मां और गर्भस्थ शिशु को नुकसान

डॉ. पूर्वा बताती है की हल्के और मध्यम ब्लड प्रेशर के अधिकांश मामलों में मां या गर्भस्थ शिशु को कोई खतरा नहीं होता है. लेकिन यदि माता को गंभीर उच्च रक्तचाप की समस्या हो तो माता और उसके भ्रूण दोनों की जान को खतरा हो सकता है. इस अवस्था में कई बार बच्चे का जन्म समय से पहले यानि प्री मैच्योर हो जाता है, या फिर जन्म के समय उसका वजन काफी कम होता है. प्रसव के समय कई बार उच्च रक्तचाप के कारण भारी रक्तस्राव भी होता है, जिसके चलते माता और बच्चे दोनों की जान को खतरा हो सकता है.

इसलिए कई बार माता और बच्चे के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए तथा प्रसव के दौरान हो सकने वाली जटिलताओं की आशंका के चलते चिकित्सक सामान्य प्रसव की बजाय सिजेरियन डिलीवरी की सलाह दी जाती है.

गर्भावस्था में कैसे करें उच्च रक्तचाप को नियंत्रित

गर्भावस्था के दौरान यदि उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में रखना हो, तो बहुत जरूरी है की गर्भवती महिला अपने चिकित्सक या दाई के निरंतर संपर्क में रहे. स्वस्थ तथा पोषक खाना खाए, खान-पान में पर्याप्त फल, सब्जियां और साबुत अनाज का सेवन करें. ये सभी विटामिन, ​खनिज और फाइबर का स्त्रोत होते हैं. नमक और कैफीन का सेवन कम करें. शराब और धूम्रपान ना करें. हर दिन कुछ शारीरिक गतिविधियां करना भी अच्छा रहता है, जैसे कि प्रसवपूर्व योग या वॉकिंग. लेकिन किसी भी प्रकार के व्यायाम से पहले अपने चिकित्सक की अनुमति लें. तनाव कम करने के लिए प्राणायाम, गहन श्वसन क्रिया से भी फायदा होता है.

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:15 PM IST
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