नई दिल्ली: समुद्री शैवाल जिन्हें अंग्रेजी में हम सी वीड्स भी कहते हैं, की खेती में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने की क्षमता है. साथ ही किसान इसे बेचकर वित्तीय लाभ प्राप्त कर सकते हैं. समुद्री शैवाल के बायोमास में कई पोषण और औषधीय गुण होते हैं जिनका उपयोग दवा खाद्य उद्योग में किया जा सकता है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के मुताबिक, समुद्री शैवाल की खेती करने के लिए किसी बड़ा लागत की जरूरत नहीं होती है. इसका उपयोग जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव को कम कर सकते हैं. शैवाल जलवायु को ठंडा रखने में काफी मददगार साबित होता है. इसका एक और फायदा यह है कि, समुद्री शैवाल से देश के लिए कार्बन क्रेडिट प्राप्त किया जा सकता है.
समुद्री शैवाल के कई सारे गुण हैं. गुजरात जैव प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के समुद्री जैव प्रौद्योगिकी के सहायक प्रोफेसर डॉ नितिन त्रिवदी ने ईटीवी भारत से समुद्री शैवाल के विषय में विस्तार से चर्चा की है.
उनका कहना है कि, समुद्री शैवाल की खेती जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार है. वह इसलिए क्योंकि ये प्रकाश संश्लेषक पौधे हैं जो अपने विकास के लिए पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं. दूसरा, यह समुद्र से CO2 को अवशोषित करके और समुद्री जल के पीएच को बढ़ाकर समुद्री एसिड को कम करने में मदद करता है. ये प्रक्रियाएं पर्यावरण में सुधार करती हैं और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करती हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सालाना रिपोर्ट 2023-24 में कहा गया है कि, जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को संबोधित करने के लिए, आईसीएआर-सीएमएफआरआई और सीएसआईआर-केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान ने देश के 9 तटीय राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में समुद्री शैवाल की खेती के लिए संभावित स्थलों की पहचान की है.
पहचान की गई साइट (384) को ग्रीन जोन (3999.37 हेक्टेयर), एम्बर जोन (14,076.77 हेक्टेयर) और ब्लू जोन (6,631 हेक्टेयर) में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें 24,707 हेक्टेयर को समुद्री शैवाल की खेती के लिए उपयुक्त माना गया है. अगर, एल्गिन, कैरेजीनन जैसे सल्फेटेड पॉलीसेकेराइड की उपस्थिति के कारण समुद्री शैवाल का औद्योगिक महत्व है. इसके अलावा समुद्री शैवाल खनिजों से भरपूर होते हैं जो उन्हें बायोस्टिमुलेंट्स का संभावित स्रोत बनाते हैं. उन्होंने कहा कि, समुद्री शैवाल बायोएक्टिव घटकों का एक समृद्ध स्रोत हैं जिनका फार्मास्यूटिकल, न्यूट्रास्युटिकल, कॉस्मेटोलॉजिकल, खाद्य और कृषि उद्योगों में अनुप्रयोग है.
क्या कहता है संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम 2023 की रिपोर्ट
पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) समुद्री शैवाल की खेती में बढ़ती वैश्विक रुचि को जलवायु परिवर्तन के लिए संभावित रूप से स्केलेबल महासागर-आधारित समाधान के रूप में पहचानता है जो लचीले और जलवायु स्मार्ट जलीय कृषि की उन्नति के हिस्से के रूप में पर्यावरणीय और सामाजिक सह-लाभ प्रदान कर सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री शैवाल तटीय जल में प्रदूषकों (नाइट्रोजन और फॉस्फोरस और भारी धातुओं सहित पोषक तत्व) को अवशोषित करते हैं.
संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास
एक स्थायी महासागर अर्थव्यवस्था के भीतर, समुद्री शैवाल संग्रह, संस्कृति, प्रसंस्करण और व्यापार 2030 तक सतत विकास प्राप्त करने के सबसे अधिक अवसरों वाले क्षेत्रों में से एक है. समुद्री शैवाल की खेती खासकर महिलाओं और स्वदेशी लोगों के लिए संस्कृति खाद्य सुरक्षा, आय, आजीविका और ग्रामीण तटीय समुदायों के पारंपरिक ज्ञान से निकटता से जुड़ी हुई है.
सरकार की पहल
एक महत्वपूर्ण कदम में, मंत्रालय ने ‘भारत में जीवित समुद्री शैवाल के आयात के लिए दिशानिर्देश को अधिसूचित किया है. इस पहल का उद्देश्य तटीय गांवों के लिए एक प्रमुख आर्थिक चालक के रूप में समुद्री शैवाल उद्यमों के विकास को बढ़ावा देना, आजीविका स्थिरता सुनिश्चित करना और मछुआरा समुदाय के सामाजिक-आर्थिक उत्थान को सुनिश्चित करना है. जबकि सभी कार्यों के मूल में पर्यावरण संरक्षण और जैव सुरक्षा चिंताओं को बनाए रखना है. भारत सरकार की प्रमुख योजना प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योयाना (पीएमएमएसवाई) ने समुद्री शैवाल क्षेत्र में क्रांति लाने की परिकल्पना की है, जिसका लक्ष्य 2025 तक देश के समुद्री शैवाल उत्पादन को 1.12 मिलियन टन से अधिक बढ़ाना है.
राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड
भारतीय समुद्रों से शैवाल की लगभग 844 प्रजातियां रिपोर्ट की गई हैं. इनका अनुमानित स्टॉक लगभग 5,715 टन (गीला वजन) है. इनमें से 221 प्रजातियां व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण हैं और तमिलनाडु और गुजरात तटों तथा लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के आसपास प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं. मुंबई, रत्नागिरी, गोवा, तमिलनाडु में कारवार, वर्कला, विझिनजाम और पुलिकट, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में चिल्का के आसपास समुद्री शैवाल की प्रचुर मात्रा पाई जाती है.
आईसीएआर रिपोर्ट
खाद्य, दवा, सौंदर्य प्रसाधन और खनन उद्योगों में समुद्री शैवाल के इस्तेमाल काफी महत्वपूर्ण है. भारत में हर साल 9.88 मिलियन टन गीले वजन की समुद्री शैवाल उत्पादन क्षमता है, जबकि वर्तमान उत्पादन प्रति वर्ष केवल 52,107 टन गीले वजन का है. देश में समुद्री शैवाल की खेती की अपार संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए, आईसीएआर-सीएमएफआरआई ने भारत में समुद्री शैवाल की टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने और समर्थन देने के लिए अच्छे प्रबंधन प्रथाओं पर एक दस्तावेज जारी किया है.
समुद्री शैवाल की खेती करने वाले किसान क्या कहते हैं
समुद्री शैवाल की खेती करने वाले अबला भाई वाघेल ने समुद्री शैवाल की खेती करने के बाद अपने जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव देखा है. समुद्री शैवाल बायोमास बेचने से उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हुई है. साथ ही इस क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने के कौशल में भी सुधार हुआ है.
अपनी प्रगति से संतुष्ट गुजरात के कच्छ तटीय क्षेत्र के अबला भाई ने ईटीवी भारत को बताया, "मैं पहले पारंपरिक मछली पकड़ने का काम करता था, जहां मैं अपने परिवार के लिए मुश्किल से रोजी-रोटी कमा पाता था. फिर मैंने समुद्री शैवाल की खेती पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया, जो अब वित्तीय दृष्टि से मेरे लिए वरदान साबित हुआ है."
उन्होंने कहा, "मैं साल में पांच बार समुद्री शैवाल की कटाई करता हूं और लगभग 200 से 300 किलोग्राम उपज प्राप्त करता हूं जो कि जलवायु और मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है. अब मैं अपने उत्पाद को ऑनलाइन प्रचारित करता हूं और इसे दवा से जुड़े लोगों को बेचकर अधिक कमाई करता हूं."
गुजरात के समुद्री शैवाल किसान अल्ताफ ने ईटीवी भारत को बताया, "मैं पिछले दो सालों से इस क्षेत्र में हूं और उपज से लाभ कमा रहा हूं. लेकिन पिछली बार भारी बारिश ने सामान्य स्थिति को ही बिगाड़ दिया था. शुरुआत में किसानों को बांस, रस्सी और अन्य उपकरणों में निवेश करना होगा और अपनी खेती शुरू करनी होगी."
प्रशिक्षण सुविधा
डॉ. नितिन त्रिवेदी ने बताया कि गुजरात के विभिन्न तटीय क्षेत्रों में समुद्री शैवाल की खेती के लिए ऑनसाइट प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए जीएसबीटीएम, डीएसटी-गुजरात सरकार को एक प्रस्ताव पेश किया गया है, ताकि समुद्री शैवाल की खेती और अनुसंधान को मजबूत किया जा सके. क्योंकि गुजरात में 1600 किलोमीटर लंबी तटरेखा है. हमारे पास तटीय समुदाय के 25-30 लोगों के समूह को प्रशिक्षण प्रदान करने की योजना है.
किसानों के सामने चुनौतियां
किसानों को उचित समुद्री स्थानिक योजनाओं की कमी, सबसे खराब मौसम की स्थिति, प्राकृतिक आपदा, वित्तीय स्थिति, उच्च तापमान के कारण फसल का नुकसान और कुछ अन्य मुद्दों सहित कई मुद्दों से निपटना पड़ता है.
ये भी पढ़ें: Life On Earth : इस बैक्टीरिया के कारण धरती पर जीवन हुआ संभव,भारतीय वैज्ञानिकों का दावा