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पूर्ण टीकाकरण के बाद भी संभव है  'ब्रेकथ्रू संक्रमण' - ब्रेकथ्रू संक्रमण

भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद टीकाकरण रोल-आउट बहुत बढ़ गया है। हालांकि माना जा रहा है की देश अब वायरस की संभावित तीसरी लहर का सामना करने के लिए तैयार है, लेकिन लोग पूरी तरह से टीकाकरण के बाद संक्रमण यानी 'ब्रेकथ्रू संक्रमण' को लेकर चिंतित हैं।

ब्रेकथ्रू संक्रमण, vaccination, delta variant, COVID-19
ब्रेकथ्रू संक्रमण
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Published : Aug 6, 2021, 4:10 PM IST

Updated : Aug 6, 2021, 4:16 PM IST

ज्यादातर लोग इस भ्रम में हैं की टीकाकरण के बाद वे कोरोना संक्रमण से 100% सुरक्षित हैं। लेकिन यह सही नहीं है। कोरोना के दोनों वैक्सीन लगवाने के बावजूद भी कोरोना संक्रमण की आशंका बनी रहती है। इसे 'ब्रेकथ्रू संक्रमण' कहा जाता है। जानकार बताते हैं की कोरोना के टीके का असर शरीर पर आमतौर पर टीका लगवाने (टीके की दोनों खुराक के बाद) के 14 दिन बाद शुरू होता है। साथ ही यह भी सत्य है की न सिर्फ कोरोना का, बल्कि कोई भी टीका शत-प्रतिशत प्रभावी नहीं होता है। आंकड़ों की माने तो डॉ. जोनास साल्क द्वारा विकसित पोलियो का टीका 80-90% और खसरा का 94% प्रभावी था।

वहीं कोविड-19 के लिए फाइजर और मॉडर्न के टीके को भी 94-95% तक ही प्रभावी माना गया है। इसलिए पूर्ण टीकाकरण के बाद भी, वायरस का शरीर पर प्रभाव होना संभव है।

'ब्रेकथ्रू संक्रमण'

भले ही टीकाकरण से व्यक्ति को संक्रमण से शत प्रतिशत सुरक्षा ना मिले लेकिन चिकित्सक तथा जानकार बताते हैं की टीकाकरण के उपरांत यदि व्यक्ति को संक्रमण होता है तो उसके शरीर पर संक्रमण के ज्यादा गंभीर लक्षण या प्रभाव नजर नहीं आते हैं| वर्तमान में चूंकि कोरोना डेल्टा संक्रमण के फैलने की रफ्तार लगातार बढ़ रही है ऐसे में विशेषज्ञ उन लोगों को भी जिन्हे टीकों की दोनों खुराकों की सुरक्षा मिल चुकी है, सतर्क रहने और सभी सुरक्षात्मक उपायों का पालन करने की सलाह दे रहे हैं।

अमेरिका में 15 दिसंबर 2020 और 31 मार्च 2021 के बीच ऐसे 2,58,716 लोगों, जिन्हे फाइजर या मॉडर्न के दोनों टीके लगवाए गए थे, पर किए गए अध्धयन में सामने आया है की उनमें से सिर्फ 410 लोगों पर ही संक्रमण का व्यापक असर हुआ था, जो की कुल संख्या का मात्र 0.16% है। इसी तरह, 1 फरवरी और 20 अप्रैल के बीच न्यूयॉर्क में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि पूरी तरह से टीकाकरण करवा चुके 1,26,367 लोगों में से केवल 86 लोगों में संक्रमण का व्यापक असर नजर आया था, जो पूरी तरह से टीकाकरण की गई आबादी के 0.07% के बराबर था।

गौरतलब है की 'ब्रेकथ्रू संक्रमण' से पीड़ित लोगों में बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जिनमें संक्रमण के लक्षण नजर नहीं आ रहे थे। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार 'ब्रेकथ्रू संक्रमण' के कुल मामलों में से लगभग 27% ऐसे थे जिनमें संक्रमण का कोई लक्षण नहीं था। जिसके चलते उनमें से केवाल 10% मरीज अस्पताल में भर्ती हुए। ऐसे मरीजों में मृत्यु का आंकड़ा केवल 2% था।

'ब्रेकथ्रू संक्रमण' के कारण

सम्पूर्ण तालाबंदी के उपरांत जैसे-जैसे प्रतिबंधों में ढील दी जाने लगी, कोविड-19 संक्रमण के पीड़ितों की संख्या भी पुनः बढ़ने लगी। संक्रमण के दोबारा तीव्र गति से फैलने के लिए कुछ कारणों को जिम्मेदार माना जा सकता है।

  • रेस्तरां, त्योहारों और पार्टियों जैसे सार्वजनिक समारोहों से लोगों के एकत्रित होने से 'ब्रेकथ्रू संक्रमण' की आशंका बढ़ी है।
  • कोविड रोगियों की सेवा करने वाले स्वास्थ्य और स्वच्छता कर्मियों में संक्रमण होने की पूरी आशंका रहती है।
  • उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर और हृदय, गुर्दे और फेफड़ों जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों में भी इस बीमारी के टीकाकरण के उपरांत भी होने की आशंका अधिक होती है।
  • ट्रांसप्लांटेशन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों का अंग प्रत्यारोपण हुआ है, उनमें हालांकि टीकाकरण के उपरांत संक्रमण होने की दर अपेक्षाकृत कम यानी केवल 0.83%, थी लेकिन सामूहिक स्तर पर आंकड़ों की बात की जाय तो यह अभी भी सामान्य टीकाकरण करवा चुके लोगों की तुलना में 82 गुना अधिक है। वहीं गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों में यह दर 485 गुना अधिक थी। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के एक ट्रांसप्लांट सर्जन डोर्री सेगेव बताते हैं की इस अध्ययन में सामने आया है अंग प्रत्यारोपण करवा चुके लोगों में टीकाकरण से मिलने वाली सुरक्षा अपेक्षाकृत कम पाई गई है।

डेल्टा संक्रमण का प्रभाव

सर्व विदित है की बहुत से वैज्ञानिक एस.ए.आर.एस-सीओवी-2 वायरस के उपभेदों को रोकने के लिए टीके विकसित कर चुके हैं। जिनसे वायरस के नित नए उभरते संस्करणों को भी प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है। ये टीके संक्रमण के प्रभाव को नियंत्रण में रखने तथा मरीज को अस्पताल जाने जैसी गंभीर अवस्था से बचाने में काफी हद तक कारगर हैं।

पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के अनुसार, एमआरएनए टीकों की दो खुराक, लक्षणों से पूर्ण डेल्टा के प्रभाव को रोकने में केवल 79% तक प्रभावी रहे हैं, वहीं अल्फा संस्करण के मामले में यह 89% तक प्रभावी थीं। इसके अतिरिक्त इस टीके की एक एकल खुराक डेल्टा के खिलाफ केवल 35% सुरक्षात्मक मानी जा रही है।

इज़राइल से जारी एक सूचना में बताया गया है की फाइजर वैक्सीन का पूर्ण टीकाकरण, डेल्टा संक्रमण के चलते होने वाली गम्भीरता के मामलों में केवल 39% से 40.5% तक प्रभावी हो सकता है। जो की पहले माने जा रहे अनुमानित आंकड़ों से 90% तक कम है। हालांकि, यह टीका अभी भी डेल्टा संस्करण से पीड़ित कोरोना मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने जैसी स्तिथि से बचाव करने में 88% तक और कोरोना की गंभीर अवस्था से बचाने में 91.4% तक कारगर माना जा रहा है।

पढ़ें: यात्रा के दौरान नियमों के पालन के साथ सावधानियां भी बरते यात्री

ज्यादातर लोग इस भ्रम में हैं की टीकाकरण के बाद वे कोरोना संक्रमण से 100% सुरक्षित हैं। लेकिन यह सही नहीं है। कोरोना के दोनों वैक्सीन लगवाने के बावजूद भी कोरोना संक्रमण की आशंका बनी रहती है। इसे 'ब्रेकथ्रू संक्रमण' कहा जाता है। जानकार बताते हैं की कोरोना के टीके का असर शरीर पर आमतौर पर टीका लगवाने (टीके की दोनों खुराक के बाद) के 14 दिन बाद शुरू होता है। साथ ही यह भी सत्य है की न सिर्फ कोरोना का, बल्कि कोई भी टीका शत-प्रतिशत प्रभावी नहीं होता है। आंकड़ों की माने तो डॉ. जोनास साल्क द्वारा विकसित पोलियो का टीका 80-90% और खसरा का 94% प्रभावी था।

वहीं कोविड-19 के लिए फाइजर और मॉडर्न के टीके को भी 94-95% तक ही प्रभावी माना गया है। इसलिए पूर्ण टीकाकरण के बाद भी, वायरस का शरीर पर प्रभाव होना संभव है।

'ब्रेकथ्रू संक्रमण'

भले ही टीकाकरण से व्यक्ति को संक्रमण से शत प्रतिशत सुरक्षा ना मिले लेकिन चिकित्सक तथा जानकार बताते हैं की टीकाकरण के उपरांत यदि व्यक्ति को संक्रमण होता है तो उसके शरीर पर संक्रमण के ज्यादा गंभीर लक्षण या प्रभाव नजर नहीं आते हैं| वर्तमान में चूंकि कोरोना डेल्टा संक्रमण के फैलने की रफ्तार लगातार बढ़ रही है ऐसे में विशेषज्ञ उन लोगों को भी जिन्हे टीकों की दोनों खुराकों की सुरक्षा मिल चुकी है, सतर्क रहने और सभी सुरक्षात्मक उपायों का पालन करने की सलाह दे रहे हैं।

अमेरिका में 15 दिसंबर 2020 और 31 मार्च 2021 के बीच ऐसे 2,58,716 लोगों, जिन्हे फाइजर या मॉडर्न के दोनों टीके लगवाए गए थे, पर किए गए अध्धयन में सामने आया है की उनमें से सिर्फ 410 लोगों पर ही संक्रमण का व्यापक असर हुआ था, जो की कुल संख्या का मात्र 0.16% है। इसी तरह, 1 फरवरी और 20 अप्रैल के बीच न्यूयॉर्क में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि पूरी तरह से टीकाकरण करवा चुके 1,26,367 लोगों में से केवल 86 लोगों में संक्रमण का व्यापक असर नजर आया था, जो पूरी तरह से टीकाकरण की गई आबादी के 0.07% के बराबर था।

गौरतलब है की 'ब्रेकथ्रू संक्रमण' से पीड़ित लोगों में बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जिनमें संक्रमण के लक्षण नजर नहीं आ रहे थे। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार 'ब्रेकथ्रू संक्रमण' के कुल मामलों में से लगभग 27% ऐसे थे जिनमें संक्रमण का कोई लक्षण नहीं था। जिसके चलते उनमें से केवाल 10% मरीज अस्पताल में भर्ती हुए। ऐसे मरीजों में मृत्यु का आंकड़ा केवल 2% था।

'ब्रेकथ्रू संक्रमण' के कारण

सम्पूर्ण तालाबंदी के उपरांत जैसे-जैसे प्रतिबंधों में ढील दी जाने लगी, कोविड-19 संक्रमण के पीड़ितों की संख्या भी पुनः बढ़ने लगी। संक्रमण के दोबारा तीव्र गति से फैलने के लिए कुछ कारणों को जिम्मेदार माना जा सकता है।

  • रेस्तरां, त्योहारों और पार्टियों जैसे सार्वजनिक समारोहों से लोगों के एकत्रित होने से 'ब्रेकथ्रू संक्रमण' की आशंका बढ़ी है।
  • कोविड रोगियों की सेवा करने वाले स्वास्थ्य और स्वच्छता कर्मियों में संक्रमण होने की पूरी आशंका रहती है।
  • उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर और हृदय, गुर्दे और फेफड़ों जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों में भी इस बीमारी के टीकाकरण के उपरांत भी होने की आशंका अधिक होती है।
  • ट्रांसप्लांटेशन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों का अंग प्रत्यारोपण हुआ है, उनमें हालांकि टीकाकरण के उपरांत संक्रमण होने की दर अपेक्षाकृत कम यानी केवल 0.83%, थी लेकिन सामूहिक स्तर पर आंकड़ों की बात की जाय तो यह अभी भी सामान्य टीकाकरण करवा चुके लोगों की तुलना में 82 गुना अधिक है। वहीं गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों में यह दर 485 गुना अधिक थी। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के एक ट्रांसप्लांट सर्जन डोर्री सेगेव बताते हैं की इस अध्ययन में सामने आया है अंग प्रत्यारोपण करवा चुके लोगों में टीकाकरण से मिलने वाली सुरक्षा अपेक्षाकृत कम पाई गई है।

डेल्टा संक्रमण का प्रभाव

सर्व विदित है की बहुत से वैज्ञानिक एस.ए.आर.एस-सीओवी-2 वायरस के उपभेदों को रोकने के लिए टीके विकसित कर चुके हैं। जिनसे वायरस के नित नए उभरते संस्करणों को भी प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है। ये टीके संक्रमण के प्रभाव को नियंत्रण में रखने तथा मरीज को अस्पताल जाने जैसी गंभीर अवस्था से बचाने में काफी हद तक कारगर हैं।

पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के अनुसार, एमआरएनए टीकों की दो खुराक, लक्षणों से पूर्ण डेल्टा के प्रभाव को रोकने में केवल 79% तक प्रभावी रहे हैं, वहीं अल्फा संस्करण के मामले में यह 89% तक प्रभावी थीं। इसके अतिरिक्त इस टीके की एक एकल खुराक डेल्टा के खिलाफ केवल 35% सुरक्षात्मक मानी जा रही है।

इज़राइल से जारी एक सूचना में बताया गया है की फाइजर वैक्सीन का पूर्ण टीकाकरण, डेल्टा संक्रमण के चलते होने वाली गम्भीरता के मामलों में केवल 39% से 40.5% तक प्रभावी हो सकता है। जो की पहले माने जा रहे अनुमानित आंकड़ों से 90% तक कम है। हालांकि, यह टीका अभी भी डेल्टा संस्करण से पीड़ित कोरोना मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने जैसी स्तिथि से बचाव करने में 88% तक और कोरोना की गंभीर अवस्था से बचाने में 91.4% तक कारगर माना जा रहा है।

पढ़ें: यात्रा के दौरान नियमों के पालन के साथ सावधानियां भी बरते यात्री

Last Updated : Aug 6, 2021, 4:16 PM IST
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