वाराणसी: 24 मार्च का दिन तपेदिक को लेकर काफी खास है, क्योंकि इस दिन इस बीमारी के बैक्टीरिया की पहचान हुई थी. डॉ. रॉबर्ट कोच ने 24 मार्च 1882 को यह ऐलान किया था कि उन्होंने माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस का पता लगाया है. यह इंसानों में तपेदिक की बीमारी के लिए जिम्मेदार है और यही वजह है कि दुनिया भर में 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस के रूप में मनाया जाता है.
भारत में हर साल 20 लाख लोग टीबी के चपेट में आते हैं. लगभग 50 हजार लोग प्रतिवर्ष मर जाते हैं. भारत में टीबी के मरीजों की संख्या दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है. यदि एक औसत निकाले तो दुनिया के 30 प्रतिशत टीबी रोगी भारत में पाए जाते हैं.
ऐसे फैलता है ये रोग
यदि हम इस रोग के फैलाव की बात करें तो बैक्टीरिया सांस के द्वारा फेफड़ों में पहुंच जाते है. फेफड़ो में यह अपनी संख्या बढ़ाते रहते है. इनके संक्रमण से फेफड़े में छोटे-छोटे घाव बन जाते हैं. जिसको एक्स-रे के द्वारा जाना जाता है. घाव होने की अवस्था के लक्षण हल्के नजर आते हैं. यदि व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो तो इसके लक्षण नजर आने लगते हैं और वह पूरी तरीके से रोगग्रस्त हो जाते है. टीबी के रोकथाम के लिए मरीजों के परिजनों को भी दवा दी जाती हैं, ताकि मरीज का इंफेक्शन बाकी सदस्यों में न फैले.
15 दिन पुरानी खांसी पर ही क्षय रोग का संक्रमण होने की आशंका व्यक्त की जाती है. डॉट्स पद्धति में मरीज इलाज कराता है तो उसे क्षय रोग से मुक्त होने में 10 महीने से भी कम समय लगता है. शर्त यही है कि दवा नियमित और रोज लेना चाहिए. जो लोग बीच में दवा खाना छोड़ देते हैं उनके क्षय रोग के कीटाणु नष्ट नहीं होते हैं बल्कि दवा के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न कर लेते हैं. क्षयरोग प्रमुखता 15 से 60 वर्ष की आयु में होता है.
डॉ. वकील अहमद अंसारी