वाराणसी: भगवान शिव की नगरी काशी मां गंगा के तट पर स्थित है. यहां आने वाले देशी-विदेशी सैलानी काशी के घाटों पर बैठकर मां गंगा की छटा निहारते हैं. यहां के घाटों पर बैठकर काशी की छटा निहारने में स्वर्ग की अनुभूति होती है. लेकिन, इसी काशी में गंगा सिमटने लगी थी. बताया जाता है कि, चार दशक पहले यहां गंगा का पाठा 200 मीटर से ज्यादा हुआ करता था. लेकिन, अब ये सिमटकर 100 मीटर पर आ गया है और कुछ घाटों पर तो यह 80 मीटर तक पहुंच गया है. ऐसे में काशी में गंगा मईया को उनके चार दशक पुराने स्वरूप में लाने की तैयारी हो रही है.
कछुआ सेंचुरी बनने से सिमट रही थी गंगा
दरअसल, 1986 में राजघाट से रामनगर के बीच में कछुआ सेंचुरी बनाए जाने के बाद से गंगा का पाठा लगातार सिमटने लगा था और रेत के टीलों का विस्तार होने लगा था. जिसकी वजह से गंगा का 200 मीटर चौड़ा पाठा सिमटकर मात्र 100 मीटर हो गया था और कुछ घाटों के सामने तो लगभग 80 मीटर ही पाठा बचा था. इसके साथ ही गंगा किनारे बने पक्के घाटों पर भी पानी का दबाव बढ़ने लगा था. जिससे घाटों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया था.
वैज्ञानिकों का प्रयास लाया रंग
गंगा को अपने पुराने स्वरूप में लाने के लिए गंगा वैज्ञानिकों की ओर से विभिन्न मंचों से कछुआ सेंचुरी को स्थानांतरित करने की मांग की जा रही थी. इसको लेकर नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी के गठन से उसके नमामि गंगे में परिवर्तन होने तक वैज्ञानिकों का प्रयास लगातार जारी रहा. जिसके बाद अब केंद्र सरकार ने यहां से कछुआ सेंचुरी को हटाने का निर्णय लिया.
कुछ माह से चल रहा कार्य
गंगा के उस पार बीते कुछ माह से राजघाट से रामनगर के बीच रेत के टीले को हटाने का काम वन विभाग और सिंचाई विभाग की ओर से संयुक्त रूप से किया जा रहा है. जिसका परिणाम अब दिखने लगा है. मौजूदा समय में रेत का बड़ा हिस्सा हट चुका है. इसके बाद अब पूर्व दिशा की ओर से खुदाई का काम शुरू होगा.
अब नहीं धसेंगे काशी के घाट
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने बताया कि कछुआ सेंचुरी के कारण काशी में रेत का विस्तार पूरब से पश्चिम की ओर तेजी से होने लगा था. ऐसे में काशी के पक्के घाटों के धंसने का खतरा उत्पन्न हो गया था. जल के दबाव के कारण पक्के घाट नीचे से पोपले होने लगे थे. रेत को हट जाने से जल राशि का विस्तार पुनः पूर्व दिशा की ओर हो जाएगा. इससे न सिर्फ काशी में गंगा अपने पुराने स्वरूप में आ जाएगी, बल्कि पक्के घाटों के धंसने का खतरा भी समाप्त हो जाएगा.