वाराणसी: कड़कड़ाती ठंड के बीच आप और हम बंद कमरे में कंबल या रजाई ओढ़कर सुकून की नींद लेते हैं. लेकिन क्या आपने कल्पना की है वे लोग कैसे रात गुजारते होंगे जो इस भरी ठंड में खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं. वैसे तो सरकार द्वारा गरीबों के लिए रैन बसेरों की व्यवस्था की गई है, लेकिन ये व्यवस्थाएं नाकाफी साबित हो रही है. अब सवाल ये उठता है कि इन लोगों की मदद के लिए कौन आगे आएगा?
मुख्यमंत्री योगी भले ही सर्द रातों में सड़कों पर उतरकर रैन बसेरों का निरीक्षण कर रहे हैं, लेकिन पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सड़कों पर सो रहे लोगों के मुकाबले रैन बसेरों में जगह कम पड़ चुकी है. जिसकी वजह से रैन बसेरों के आसपास बड़ी संख्या में लोग खुले आसमान के नीचे कड़कड़ाती ठंड में सड़कों पर रात गुजारने को मजबूर हैं.
रैन बसेरों की बदहाली की सच्चाई ईटीवी भारत के रियलिटी चेक में सामने आई है. हर रोज बीएचयू, कैंसर संस्थान समेत अन्य अस्पतालों में बड़ी संख्या में लोग अपनों का इलाज करवाने पहुंचते हैं. इसके अलावा बाहर से आने वालों की संख्या भी हर रोज ज्यादा होती है. इतना ही नहीं मैदागिन, गोदौलिया, लहुराबीर, राजघाट, चौक पर बड़ी संख्या में मौजूद मजदूर सर्द रातों में सुरक्षित ठिकाना तलाशते हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या के बाद भी बनारस में स्थाई रैन बसेरों में लोगों को पनाह देने के मामले में तैयारियां ऊंट के मुंह में जीरे के समान है.
इतनी बड़ी आबादी पर सिर्फ 200 की व्यवस्था
निगम के अधिकारियों का कहना है कि बनारस में बने स्थाई शेल्टर होम में लगभग 200 लोगों के रुकने की व्यवस्था है. एक शेल्टर होम में महज 15 लोगों को ही रोका जा सकता है, जबकि अकेले मैदागिन इलाके में सड़कों पर 100 से ज्यादा लोग ईटीवी भारत को अपने रियलटी चेक में मिल गए. इस दौरान सड़क किनारे बंद दुकानों के बाहर या फिर नालियों के ऊपर बनी थोड़ी सी जगह में एक कंबल या शॉल के सहारे रात काटने की जुगत में बहुत से लोग दिखाई दिए.
सर्द रातों में खुले आसमान के नीचे इन्हें देखने के बाद जब हमने शहर के अलग-अलग इलाकों के शेल्टर होम का जायजा लिया तो वहां हैरान कर देने वाली सच्चाई सामने आई. जिसने यह सवाल खड़ा कर दिया कि आखिर यह शेल्टर होम हैं किस काम के?
मैदागिन टाउनहॉल स्थित जिस शेल्टर होम का निरीक्षण मुख्यमंत्री योगी ने किया था वहां 15 लोगों की क्षमता ही है जबकि इस स्थान से कुछ दूरी पर 50 से ज्यादा मजदूर खुले आसमान के नीचे सड़कों पर ही रात काट रहे थे. बनारस में अलग-अलग जगहों पर बनाए गए स्थाई रैन बसेरों में कम क्षमता की पड़ताल करने के लिए जब ई टीवी भारत की टीम सड़कों पर सो रहे लोगों के हालात जानने पहुंची.
यहां मौजूद लोगों ने अपनी-अपनी परेशानी बयां की. केयरटेकर का खुद कहना था कि क्षमता 15 की है और ज्यादा से ज्यादा 17 से 18 लोगों को रोका जा सकता है. कोविड-19 जैसे ज्यादा लोगों को रखने की मनाई है. इसलिए यदि क्षमता पूरी होने के बाद कोई आता है तो उसे लौटाना पड़ जाता है.
वहीं सड़कों पर रात काटने वाले मजदूरों से बातचीत करने पर उनका दर्द सामने आया. उनका कहना था कि पापी पेट के लिए सड़कों पर सोना पड़ता है. सोने के लिए शेल्टर होम में जाते हैं तो वहां से यह कहकर लौटा दिया जाता है कि जगह नहीं है.