वाराणसी: पूरे विश्व में आतंक का पर्याय बने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे इस महामारी को जड़ से समाप्त किया जा सके. भारत में भी अब जिस तरीके से मामले बढ़ रहे हैं, उसको देखते हुए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है. वहीं सरकार द्वारा लॉकडाउन की अवधि को और बढ़ाने का पूरा अंदेशा है, जिसको लेकर मध्यम वर्ग के लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं.
बढ़ रही मध्यम वर्ग की समस्याएं
सरकार गरीब लोगों के लिए तमाम तरह की योजनाएं क्रियान्वित कर रही है, जिससे संकट की घड़ी में उनको दो वक्त की रोटी मिल जाए. इस समय मध्यम वर्ग के परिवारों को भी सबसे ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
बता दें कि जो लोग नौकरी पेशा वाले हैं, उनकी महीने की सैलरी रुक गई है, जिसकी वजह से उनके सामने भुखमरी की समस्या उत्पन्न होने लगी है. यही समस्या जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम एक मध्यमवर्गीय परिवार के घर पहुंचकर उनसे बात की. परेशान लोगों का कहना था , कि राशन की व्यवस्था तो हो भी जाएगी, लेकिन दवा का क्या करें. दुकानदार बिना पैसे के तो दवा नहीं देगा.
लॉकडाउन ने बिगाड़ा किचन
एक निजी स्कूल की प्रधानाध्यापिका वंदना चतुर्वेदी ने बताया कि उनके स्कूल में तो आधी सैलरी मिल रही है, लेकिन बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिनको उनकी सैलरी नहीं मिल पा रही है. जिससे उनको बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि कुछ लोगों ने तो 21 दिन का स्टॉक तैयार किया हुआ था, लेकिन लॉकडाउन की अवधि बढ़ जाने के कारण अन्य समस्याएं उत्पन्न होती जा रही हैं.
गृहणी किरन चतुर्वेदी का कहना है कि लॉकडाउन ने किचन की व्यवस्था को पूरी तरीके से खराब कर दिया है. उन्होंने बताया कि उनके सामने अनेकों संकट उत्पन्न हो रहे हैं. वो बच्चों की डिमांड पूरी नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि बच्चे लॉकडाउन को नहीं समझ पा रहे हैं, जिससे वो थोड़े चिड़चिडे़ होते जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि वो सरकार की इस पहल का समर्थन करते हैं, लेकिन सामने आने वाली समस्याओं से मुंह भी नहीं मोड़ सकते हैं.