ETV Bharat / state

पान और मसालों में लपेटकर प्रकाशित होता था ये क्रांतिकारी अखबार - babu vishnu rao paradkar

आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारी वाराणसी से प्रकाशित 'रणभेरी' अखबार के माध्यम से क्रांतिकारियों को महत्वपूर्ण सूचनाएं पहुंचाने का काम करते थे. इसके बल पर क्रांतिकारी अपनी सूचनाओं, रैलियों और हर मूवमेंट की जानकारी के साथ अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों की जानकारियां हासिल करते थे.

बाबू विष्णु राव पराड़कर के प्रयासों से 'रणभेरी' अखबार की  हुई थी शुरुआत.
author img

By

Published : Aug 14, 2019, 11:57 AM IST

वाराणसी: इस साल देश आजादी की 73 वीं सालगिरह मनाने जा रहा है. आजादी की वर्षगांठ से पहले हर तरफ आजादी पाने के लिए हुए प्रयासों को लेकर चर्चाएं हो रही हैं. ऐसे में धर्मनगरी वाराणसी के प्रयासों के बारे में भी जानना बेहद जरूरी है.

आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की दमनकारी नीति के बाद भी क्रांतिकारी महत्वपूर्ण सूचनाएं एक-दूसरे तक पहुंचाने का काम करते थे. इस प्रयास को नाम दिया गया था 'रणभेरी'. A4 साइज के पेपर पर निकलने वाले इस क्रांतिकारी अखबार बनारस के गढ़वासी टोला से प्रकाशित होता था. पुरुषोत्तम दास जी खत्री के प्रयासों के बल पर इस क्रांतिकारी अखबार को आजादी की अलख जगाए रखने के लिए बड़े ही अनोखे तरीके से इस्तेमाल किया जाता था.

बाबू विष्णु राव पराड़कर के प्रयासों से 'रणभेरी' अखबार की हुई थी शुरुआत.

बाबू विष्णु राव पराड़कर के प्रयासों से 'रणभेरी' अखबार की हुई शुरुआत
आजादी के वक्त के क्रांतिकारियों के इस अखबार के बारे में क्रांतिकारी पुरुषोत्तम दास जी खत्री के बेटे वासुदेव ओबरॉय ने ईटीवी भारत के साथ खासबातचीत की. उन्होंने बताया कि उस वक्त आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव, संपूर्णानंद जी, श्री प्रकाश जी समेत उनके पिताजी पुरुषोत्तम दास वाराणसी में आजादी के आंदोलन को धार देने में जुटे हुए थे. जब गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा और अंग्रेजों ने दमनकारी नीति शुरू कर पत्र-पत्रिकाओं समेत तमाम लेखनी पर रोक लगाई. तब बाबू विष्णु राव पराड़कर के प्रयासों से इस 'रणभेरी' अखबार की शुरुआत उनके घर से की गई.

खाने-पीने की चीजों में लपेटकर क्रांतिकारियों तक पहुंचता था ये अखबार
1929- 30 में इस अखबार की शुरुआत बनारस से हुई. इंग्लैंड में बनी एक डुप्लीकेटर मशीन जो हाथ से चलती थी, उसमें कागज रखकर स्याही और छापे की मदद से हाथों से रणभेरी नाम से अखबार प्रकाशित किया जाने लगा. जिसे कभी पान में तो कभी मसालों या फिर कभी खाने-पीने की चीजों में लपेटकर क्रांतिकारियों तक पहुंचाने का काम किया जाता था.

संपादक का नाम बदल अंग्रेजों को करते थे भ्रमित
वासुदेव ओबरॉय बताते हैं कि उस वक्त हर रोज अखबार के संपादक का नाम बदलकर अंग्रेजों को भ्रमित किया जाता था. कभी राधेश्याम कभी सीताराम क्योंकि संपादक का नाम बदलने की वजह यह थी कि अंग्रेज डुप्लीकेट अखबार निकालकर क्रांतिकारियों को गुमराह करते थे. ऐसी स्थिति में बाजार में यह मैसेज जाता था कि आज इस नाम का रणभेरी ही असली है, जिसके बल पर क्रांतिकारी अपनी सूचनाओं अपनी रैलियों अपने हर मूवमेंट की जानकारी के साथ अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों की जानकारियां इस अखबार से हासिल करते थे. सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी यह मशीन इस घर में मौजूद है और रणभेरी कि वह प्रति भी फोटो स्टेट कॉपी के रूप में है, जिसे देखकर आजादी के मतवालों के संघर्षों की यादें ताजा हो जाती हैं.

वाराणसी: इस साल देश आजादी की 73 वीं सालगिरह मनाने जा रहा है. आजादी की वर्षगांठ से पहले हर तरफ आजादी पाने के लिए हुए प्रयासों को लेकर चर्चाएं हो रही हैं. ऐसे में धर्मनगरी वाराणसी के प्रयासों के बारे में भी जानना बेहद जरूरी है.

आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की दमनकारी नीति के बाद भी क्रांतिकारी महत्वपूर्ण सूचनाएं एक-दूसरे तक पहुंचाने का काम करते थे. इस प्रयास को नाम दिया गया था 'रणभेरी'. A4 साइज के पेपर पर निकलने वाले इस क्रांतिकारी अखबार बनारस के गढ़वासी टोला से प्रकाशित होता था. पुरुषोत्तम दास जी खत्री के प्रयासों के बल पर इस क्रांतिकारी अखबार को आजादी की अलख जगाए रखने के लिए बड़े ही अनोखे तरीके से इस्तेमाल किया जाता था.

बाबू विष्णु राव पराड़कर के प्रयासों से 'रणभेरी' अखबार की हुई थी शुरुआत.

बाबू विष्णु राव पराड़कर के प्रयासों से 'रणभेरी' अखबार की हुई शुरुआत
आजादी के वक्त के क्रांतिकारियों के इस अखबार के बारे में क्रांतिकारी पुरुषोत्तम दास जी खत्री के बेटे वासुदेव ओबरॉय ने ईटीवी भारत के साथ खासबातचीत की. उन्होंने बताया कि उस वक्त आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव, संपूर्णानंद जी, श्री प्रकाश जी समेत उनके पिताजी पुरुषोत्तम दास वाराणसी में आजादी के आंदोलन को धार देने में जुटे हुए थे. जब गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा और अंग्रेजों ने दमनकारी नीति शुरू कर पत्र-पत्रिकाओं समेत तमाम लेखनी पर रोक लगाई. तब बाबू विष्णु राव पराड़कर के प्रयासों से इस 'रणभेरी' अखबार की शुरुआत उनके घर से की गई.

खाने-पीने की चीजों में लपेटकर क्रांतिकारियों तक पहुंचता था ये अखबार
1929- 30 में इस अखबार की शुरुआत बनारस से हुई. इंग्लैंड में बनी एक डुप्लीकेटर मशीन जो हाथ से चलती थी, उसमें कागज रखकर स्याही और छापे की मदद से हाथों से रणभेरी नाम से अखबार प्रकाशित किया जाने लगा. जिसे कभी पान में तो कभी मसालों या फिर कभी खाने-पीने की चीजों में लपेटकर क्रांतिकारियों तक पहुंचाने का काम किया जाता था.

संपादक का नाम बदल अंग्रेजों को करते थे भ्रमित
वासुदेव ओबरॉय बताते हैं कि उस वक्त हर रोज अखबार के संपादक का नाम बदलकर अंग्रेजों को भ्रमित किया जाता था. कभी राधेश्याम कभी सीताराम क्योंकि संपादक का नाम बदलने की वजह यह थी कि अंग्रेज डुप्लीकेट अखबार निकालकर क्रांतिकारियों को गुमराह करते थे. ऐसी स्थिति में बाजार में यह मैसेज जाता था कि आज इस नाम का रणभेरी ही असली है, जिसके बल पर क्रांतिकारी अपनी सूचनाओं अपनी रैलियों अपने हर मूवमेंट की जानकारी के साथ अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों की जानकारियां इस अखबार से हासिल करते थे. सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी यह मशीन इस घर में मौजूद है और रणभेरी कि वह प्रति भी फोटो स्टेट कॉपी के रूप में है, जिसे देखकर आजादी के मतवालों के संघर्षों की यादें ताजा हो जाती हैं.

Intro:15 अगस्त के लिए स्पेशल स्टोरी उसकी एडिटिंग हैदराबाद में होगी इसलिए शॉट ज्यादा दिया है।

वाराणसी: इस साल हम आजादी की 73 मी सालगिरह मनाने जा रहे हैं आजादी की वर्षगांठ से पहले हर तरफ आजादी पाने के लिए हुए प्रयासों को लेकर चर्चाएं हो रही हैं ऐसे में धर्मनगरी वाराणसी के प्रयासों के बारे में भी जाना जाना बेहद जरूरी है हम आज आपको आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों के योगदान के अलग-अलग तरीकों के क्रम में उस क्रांतिकारी तरीके के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बल पर अंग्रेजों की दमनकारी नीति के बाद भी क्रांतिकारी महत्वपूर्ण सूचनाएं एक दूसरे तक पहुंचाने का काम करते थे इस प्रयास को नाम दिया गया था. रणभेरी A4 साइज के पेपर पर निकलने वाले इस क्रांतिकारी अखबार किन्ही बनारस के गढ़वासी टोला स्थित अट्ठारह सौ पचासी में बने एक मकान में पड़ी उस वक्त के क्रांतिकारियों में शामिल पुरुषोत्तम दास जी खत्री जिन्हें का के बाबू के नाम से जाना जाता था. उनके प्रयासों के बल पर इस क्रांतिकारी अखबार को आजादी की अलख जगाए रखने के लिए बड़े ही अनोखे तरीके से इस्तेमाल किया जाता था


Body:वीओ-01 आजादी के वक्त के क्रांतिकारियों के इस अखबार के बारे में उस वक्त के क्रांतिकारी पुरुषोत्तम दास जी खत्री के बेटे वासुदेव ओबरॉय ने ईटीवी भारत के साथ इस अखबार के शुरू होने से लेकर इसके आजादी के लड़ाई में योगदान पर जानकारी दी. उन्होंने बताया कि उस वक्त आचार्य कृपलानी आचार्य नरेंद्र देव संपूर्णानंद जी श्री प्रकाश जी समेत उनके पिताजी पुरुषोत्तम दास वाराणसी में आजादी के आंदोलन को धार देने में जुटे हुए थे जब गांधी जी ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन छेड़ा और अंग्रेजों ने दमनकारी नीति शुरू कर पत्र-पत्रिकाओं समेत तमाम लेखनी पर रोक लगाई तब बाबू विष्णु राव पराडकर के प्रयासों से इस रणभेरी अखबार की शुरुआत उनके घर से की गई.


Conclusion:वीओ-02 1929- 30 में इस अखबार की शुरुआत बनारस कैसी घर से हुई इंग्लैंड में बनी एक डुप्लीकेटर मशीन जो हाथ से चलती थी उसमें कागज रखकर शाही और छापे की मदद से हाथों से रणभेरी नाम से अखबार प्रकाशित किया जाने लगा जिसे कभी पान में तो कभी मसालों या फिर कभी खाने पीने की चीजों में लपेटकर क्रांतिकारियों तक पहुंचाने का काम किया जाता था. वासुदेव ओबरॉय बताते हैं कि उस वक्त हर रोज अखबार के संपादक का नाम बदलकर अंग्रेजों को भ्रमित किया जाता था, कभी राधेश्याम कभी सीताराम क्योंकि संपादक का नाम बदलने की वजह यह थी कि अंग्रेज डुप्लीकेट अखबार निकालकर क्रांतिकारियों को गुमराह करते थे ऐसी स्थिति में बाजार में यह मैसेज जाता था कि आज इस नाम का रणभेरी ही असली है, जिसके बल पर क्रांतिकारी अपनी सूचनाओं अपनी रैलियों अपने हर मूवमेंट की जानकारी के साथ अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों की जानकारियां इस अखबार से हासिल करते थे. सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी यह मशीन इस घर में मौजूद है और रणभेरी कि वह प्रति भी फोटो स्टेट कॉपी के रूप में है जो 1930 में निकला करती थी जिसे देखकर आजादी के मतवालों के संघर्षों की यादें ताजा हो जाती हैं.

बाईट- वासुदेव ओबरॉय, क्रांतिकारी पुरुषोत्तम दास के बेटे


gopal mishra
9839809074
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.