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भगवान बुद्ध की तपोस्थली गढा उपेक्षित, जहां से गूंज रहा 'बुद्धम शरणम गच्छामि' का संदेश

सुलतानपुर में स्थित भगवान बुद्ध की तपोस्थली गढा आज भी लोगों को शांति का संदेश दे रहा है. मानवता समरसता का संदेश दे रहा यह स्थल प्रशासनिक और राजनीतिक उपेक्षा के शिकार के कारण जर्जर हालत में है.

भगवान बुद्ध की तपोस्थली गढा.
भगवान बुद्ध की तपोस्थली गढा.
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Published : Oct 31, 2020, 4:54 PM IST

सुलतानपुर: जनपद में सारनाथ, कौशांबी, श्रावस्ती की तरह भगवान बुद्ध की तपोस्थली गढा आज भी शांति संदेशों की प्रेरणा स्थली बना हुआ है. ढांचा भले ही जमींनदोज जो चुका हो, लेकिन आज भी बुद्ध अनुयायियों को एएसआई की खोजबीन का इंतजार है. अनुयायी यहां आते हैं और पौराणिक वट वृक्ष के नीचे ऊर्जा और महात्मा बुद्ध के संदेश प्राप्त करते हैं. मानवता समरसता का संदेश दे रहा यह स्थल प्रशासनिक और राजनीतिक उपेक्षा के शिकार के तौर पर भी देखा जा रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.

बौद्ध भिक्षुओं का प्रेरणास्रोत गढा
सुलतानपुर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गढ़ा क्षेत्र आज भी बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए आस्था, श्रद्धा और महात्मा बुद्ध के संदेशों का प्रेरणा स्रोत बना हुआ है. बड़े पैमाने पर बौद्ध भिक्षु यहां आते हैं, निवास करते हैं, साधना करते हैं और ईश्वरीय प्रेरणा लेकर शांति संदेशों के प्रचार-प्रचार के लिए निकल पड़ते हैं. प्राचीन कुआं और वट वृक्ष आज भी महात्मा बुद्ध की उपस्थिति का साक्षी बना हुआ है.

गढा बहुत प्राचीन स्थल है. यहां बौद्ध भिक्षुओं का कार्यक्रम होता रहता है. भोज भंडारा आदि प्रोग्राम भी चलते रहते हैं. दूर-दूर से दर्शनार्थी और श्रद्धालु यहां आते रहते हैं. बताया जाता है कि यहां भगवान बुद्ध के नाख यानी नाखून और केस यानी बाल छूट गए थे, जो आज भी श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं.

प्रोफेसर प्रभात श्रीवास्तव कहते हैं कि एएसआई यानि आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की हम बात करते हैं तो उनके प्राचीन शोध में गढा का अहम स्थान रहा है. साहित्यिक स्रोत की तरफ जाएं तो एचआर नेविल साहब के गैजेटियर गजेटियर ऑफ अवध और गजेटियर ऑफ सुलतानपुर में भी गढ़ा का जिक्र है.

दिवंगत पत्रकार राजेश्वर सिंह ने अपनी पुस्तक सुलतानपुर की झलक में इसका बखूबी जिक्र किया था. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रविंद्र कुमार जैन की पुस्तक में भी 'गोमती तट पर मानव के आवास विकास की प्रक्रिया' में भी गढ़ा का स्पष्ट उल्लेख और विस्तार पूर्वक वर्णन है.

एएसआई जांच से जगी थी उम्मीद
संजय गांधी पीजी कॉलेज चौकिया की किताब में भी इसका स्पष्ट उल्लेख है. इसमें बोधगया से श्रावस्ती तक की यात्रा में गड़ा को एक कड़ी के रूप में देखा गया है. भगवान बुद्ध ने यहां तपस्या की थी, रात्रि विश्राम भी किया था और बौद्ध भिक्षुओं को शांति का पाठ पढ़ाया था. महात्मा बुद्ध की सभी यात्राओं में गढा अनिवार्य रूप से महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल है. महात्मा बुध का संदेश आज भी कानों में गूंज रहा है. एएसआई की जांच से इसमें नवीनता आना और खोजबीन होने का जो प्रयास था, वह अभी तक अधूरा रहा है.

महात्मा बुद्ध का यह तपोस्थली क्षेत्र आज भी शिक्षा रोजगार के लिहाज से काफी पीछे है. यहां बहुत कम आबादी है. दूर-दूर तक चुनिंदा आवास ही हैं. शिक्षा के लिए लोगों को लगभग 5 किलोमीटर दूर कुड़वार कस्बे और बाजार की तरफ जाना पड़ता है.

जनप्रतिनिधियों की मदद से संवारेंगे गढा
सुलतानपुर के डीएम रवीश कुमार बताते हैं कि गढा भी एक महत्वपूर्ण पौराणिक स्थल है, जैसा कि मैंने पहले भी बताया है. सुलतानपुर में बहुत से महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल हैं. माननीय जनप्रतिनिधियों के सहयोग से इसको अहम स्थान देने का प्रयास किया जाएगा. गढा के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इसकी प्राथमिकता तय करनी पड़ेगी.

इसे भी पढ़ें- सुलतानपुर: पीएम आवास योजना से सुधरेगा भूगर्भ जलस्तर, जानिए कैसे

सुलतानपुर: जनपद में सारनाथ, कौशांबी, श्रावस्ती की तरह भगवान बुद्ध की तपोस्थली गढा आज भी शांति संदेशों की प्रेरणा स्थली बना हुआ है. ढांचा भले ही जमींनदोज जो चुका हो, लेकिन आज भी बुद्ध अनुयायियों को एएसआई की खोजबीन का इंतजार है. अनुयायी यहां आते हैं और पौराणिक वट वृक्ष के नीचे ऊर्जा और महात्मा बुद्ध के संदेश प्राप्त करते हैं. मानवता समरसता का संदेश दे रहा यह स्थल प्रशासनिक और राजनीतिक उपेक्षा के शिकार के तौर पर भी देखा जा रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.

बौद्ध भिक्षुओं का प्रेरणास्रोत गढा
सुलतानपुर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गढ़ा क्षेत्र आज भी बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए आस्था, श्रद्धा और महात्मा बुद्ध के संदेशों का प्रेरणा स्रोत बना हुआ है. बड़े पैमाने पर बौद्ध भिक्षु यहां आते हैं, निवास करते हैं, साधना करते हैं और ईश्वरीय प्रेरणा लेकर शांति संदेशों के प्रचार-प्रचार के लिए निकल पड़ते हैं. प्राचीन कुआं और वट वृक्ष आज भी महात्मा बुद्ध की उपस्थिति का साक्षी बना हुआ है.

गढा बहुत प्राचीन स्थल है. यहां बौद्ध भिक्षुओं का कार्यक्रम होता रहता है. भोज भंडारा आदि प्रोग्राम भी चलते रहते हैं. दूर-दूर से दर्शनार्थी और श्रद्धालु यहां आते रहते हैं. बताया जाता है कि यहां भगवान बुद्ध के नाख यानी नाखून और केस यानी बाल छूट गए थे, जो आज भी श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं.

प्रोफेसर प्रभात श्रीवास्तव कहते हैं कि एएसआई यानि आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की हम बात करते हैं तो उनके प्राचीन शोध में गढा का अहम स्थान रहा है. साहित्यिक स्रोत की तरफ जाएं तो एचआर नेविल साहब के गैजेटियर गजेटियर ऑफ अवध और गजेटियर ऑफ सुलतानपुर में भी गढ़ा का जिक्र है.

दिवंगत पत्रकार राजेश्वर सिंह ने अपनी पुस्तक सुलतानपुर की झलक में इसका बखूबी जिक्र किया था. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रविंद्र कुमार जैन की पुस्तक में भी 'गोमती तट पर मानव के आवास विकास की प्रक्रिया' में भी गढ़ा का स्पष्ट उल्लेख और विस्तार पूर्वक वर्णन है.

एएसआई जांच से जगी थी उम्मीद
संजय गांधी पीजी कॉलेज चौकिया की किताब में भी इसका स्पष्ट उल्लेख है. इसमें बोधगया से श्रावस्ती तक की यात्रा में गड़ा को एक कड़ी के रूप में देखा गया है. भगवान बुद्ध ने यहां तपस्या की थी, रात्रि विश्राम भी किया था और बौद्ध भिक्षुओं को शांति का पाठ पढ़ाया था. महात्मा बुद्ध की सभी यात्राओं में गढा अनिवार्य रूप से महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल है. महात्मा बुध का संदेश आज भी कानों में गूंज रहा है. एएसआई की जांच से इसमें नवीनता आना और खोजबीन होने का जो प्रयास था, वह अभी तक अधूरा रहा है.

महात्मा बुद्ध का यह तपोस्थली क्षेत्र आज भी शिक्षा रोजगार के लिहाज से काफी पीछे है. यहां बहुत कम आबादी है. दूर-दूर तक चुनिंदा आवास ही हैं. शिक्षा के लिए लोगों को लगभग 5 किलोमीटर दूर कुड़वार कस्बे और बाजार की तरफ जाना पड़ता है.

जनप्रतिनिधियों की मदद से संवारेंगे गढा
सुलतानपुर के डीएम रवीश कुमार बताते हैं कि गढा भी एक महत्वपूर्ण पौराणिक स्थल है, जैसा कि मैंने पहले भी बताया है. सुलतानपुर में बहुत से महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल हैं. माननीय जनप्रतिनिधियों के सहयोग से इसको अहम स्थान देने का प्रयास किया जाएगा. गढा के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इसकी प्राथमिकता तय करनी पड़ेगी.

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