सीतापुर: भारत की धरती से कई महान हिंदी कवियों ने विश्व पटल पर अपना नाम जग जाहिर किया. देश को समृद्ध हिंदी साहित्य देने वाले कलमकारों ने अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया. कई कलमकारों ने शब्दों की माला पिरोकर कई उपन्यास, कविताएं और कहानियां लिखीं. हालांकि हिन्दी साहित्य में ऐसे लोग विरले ही हैं, जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है. एक ऐसे ही कवि हैं, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में जन्मे कवि नरोत्तमदास. जिनका खण्ड-काव्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है, जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है. इसके अलावा इनकी तीन अन्य रचनाएं 'विचार माला', संकीर्तन और 'ध्रुव चरित' का भी उल्लेख मिलता है.
15वीं सदी में जन्म होने का उल्लेख
माना जाता है कि महाकवि नरोत्तमदास का जन्म सीतापुर जिले के बाडी गांव में 15वीं सदी में हुआ था. महाकवि नरोत्तम की जन्मस्थली उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 50 किलोमीटर दूर सीतापुर जनपद के बाड़ी गांव में स्थित है. इनके लिखे ग्रंथों में एक 'सुदामा चरित' ही उपलब्ध है. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार 'सुदामा चरित' छोटी रचना है जो बहुत सरस और कवि की भावुकता का परिचय देती है. हालांकि अपने एक ही काव्य से दुनिया भर में विख्यात लेखक की जन्मस्थली को पर्यटन स्थल का दर्जा तो प्राप्त है, लेकिन सरकार की उपेक्षा की शिकार नरोत्तम की धरती बदहाली के आंसू बहा रही है.
महाकवि नरोत्तमदास की जन्मस्थली का नहीं हुआ विकास
मौजूद समय में महाकवि नरोत्तमदास के नाम पर उनकी कुटिया ही शेष बची है. जहां पर हजारी प्रसाद द्विवेदी जी जैसे हिन्दी भाषा के सिपाही आकर अपने को धन्य मानते थे. इस स्थान को पर्यटन विभाग ने अपने संरक्षण में लेकर एक छोटा सा हॉल और बाउंड्रीवॉल लगभग दो दशक पूर्व बनवाई थी. देखभाल के अभाव में बाउंड्रीवॉल जमींदोज हो गई.
सन् 1953 में हजारी प्रसाद द्विवेदी ने महाकवि नरोत्तमदास की जन्मस्थली का उद्घाटन किया था. नरोत्तमदास जी की जन्मस्थली को पर्यटन का दर्जा तो मिला, लेकिन आज वह दयनीय स्थिति में है. बाउंड्रीवॉल क्षतिग्रस्त अवस्था में पड़ी हुई है. प्राचीन कूप झांडियों से पटा हुआ है. आज भी नरोत्तमदासजी का समाधि स्थल कच्ची मिट्टी से बना है. समाधि को पक्के चबूतरे की शक्ल नहीं दी जा सकी है.
'सुदामा चरित' हिन्दी साहित्य की अमूल निधि
हिन्दी साहित्य के रीतकालीन महाकवि नरोत्तमदास की 'सुदामा चरित' रचना ने हिन्दी साहित्य में अमरत्व प्रदान किया. ब्रज भाषा में लिखा गया एक छोटा सा काव्य 'सुदामा चरित' हिन्दी साहित्य की अमूल निधि है. इस काव्य के अलावा इनकी तीन अन्य रचनाएं 'विचार माला', संकीर्तन और 'ध्रुव चरित' का भी उल्लेख मिलता है, लेकिन इन रचनाओं की प्रमाणिकता का अभाव है. वहीं इनके जन्म और मृत्यु के कोई प्रामाणिक साक्ष्य नहीं मिलते हैं. अनेक विद्वानों के मतानुसार इनका जन्म और मृत्यु 1493 ई. से 1582 ई. बताया गया है. हाईस्कूल में पढ़ाई जाने वाली काव्य संकलन के अनुसार नरोत्तमदास का जन्म 1493 में होना बताया जाता है, जबकि पं. राम चंद्र शर्मा की पत्रिका सुमन संचय में 1550 का जिक्र है और मृत्यु 1602 दर्शायी गई है, लेकिन इसकी भी कोई प्रमाणिकता नहीं है.
नरोत्तमदास की कुटिया में रुके थे तुलसीदास
स्थानीय लोगों का कहना है कि एक बार नैमिष के लिए जाते समय एक रात के लिए तुलसीदासजी भी इस स्थान पर रुके थे. पंडित कृष्ण बिहारी की स्थापित हिन्दी साहित्य को बढ़ावा देने वाली शीर्ष संस्था 'हिन्दी सभा' लालबाग स्थित सभागार का नाम भी नरोत्तम सभागार है. वहीं सिधौली नगर पंचायत में दो मोहल्ले बसाए गए हैं, जिसका नाम भी मोहल्ला नरोत्तम नगर उत्तरी और दक्षिणी रखे गए हैं. इसके अलावा तीन दशक तक महाकवि नरोत्तमदास के नाम पर कस्बा बाड़ी निवासी एमबी वारसी के सम्पादन में नरोत्तम टाईम समाचार पत्र निकाला जाता रहा है. 'सीस पगा न झगा तन पे प्रभु जाने को आहि बसे केहि ग्रामा' यह छंद नरोत्तमदास के द्वारा लिखे गए 'सुदामा चरित्र' काव्य संग्रह का है. यह एक ऐसा काव्य संग्रह है, जिसकी वजह से सीतापुर जनपद के छोटे से गांव 'बाड़ी' में जन्म लेने वाले कवि 'नरोत्तमदास' को उन कृष्ण भक्त कवियों में शामिल कर दिया. इस काव्य की संग्रह की वजह से उनकी ख्याति भारत ही नहीं पूरे विश्व भर में है.