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कारगिल विजय दिवस: शहादत से कुछ दिन पहले ही गांव आए थे शहीद मनोज पांडे

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Published : Jul 25, 2019, 11:55 PM IST

Updated : Jul 26, 2019, 12:28 PM IST

साल 1999 में करगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पूरी आन, बान और शान के साथ दुश्मनों से लड़ाई लड़ी. इस दौरान देश ने कई वीर और जांबाज योद्धाओं को खो दिया. उनमें एक थे परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडेय. ईटीवी भारत ने उनके पैतृत गांव पहुंचकर उनके बचपन के बारे में जाना.

कैप्टन मनोज कुमार पांडेय.

सीतापुर: करगिल युद्ध के नायक कैप्टन मनोज पांडेय बचपन से ही काफी गंभीर स्वभाव के थे. वह पढ़ने में काफी तेज थे. शहादत से कुछ दिन पहले वे अपनी जन्मस्थली रूढा गांव आए थे. यहां पर वे एक-एक चीज को काफी गौर से देखते रहे. जब लोगों ने उनसे इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि गांव का शांत वातावरण बहुत अच्छा लगता है. तब गांव के लोगों ने यह सोचा भी नहीं था कि यह जन्मस्थली की उनकी अंतिम यात्रा है. इसके कुछ दिनों बाद जब उनकी शहादत की खबर आई तो पूरा गांव शोक में डूब गया. वहीं यह सोचकर गौरवान्वित भी था कि यहां की मिट्टी में जन्म लेने वाला एक शख्स देश के लिए शहीद हुआ है.

कैप्टन मनोज पांडेय की बचपन की कहानी, देखे वीडियो.

कैप्टन मनोज पांडेय की पूरी कहानी-

  • करगिल युद्ध के नायक परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे का जन्म 25 जून 1975 को ब्लॉक कसमंडा के रूढा गांव में हुआ था.
  • करगिल युद्ध के दौरान 30 जुलाई 1999 को दुश्मनों के नापाक इरादों को ध्वस्त करते हुए वे देश के लिए शहीद हो गए.
  • उनकी शहादत के बाद सरकार की ओर से किए गए वादों की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने उनके जन्म स्थान रूढा का दौरा किया.
  • टीम ने कैप्टन मनोज पांडेय के साथ बचपन के पल बिताने वालों से बातचीत की.
  • उनके पैतृक निवास के एकदम सामने के घर में रहने वाली संगीता शुक्ला ने बातचीत में बताया कि वे हमसे पांच साल बड़े थे.
  • बहुत छोटी उम्र में वे लोग साथ में खेले हैं.
  • संगीता के मुताबिक मनोज पांडे बचपन से बहुत गंभीर और शांत स्वभाव के थे.
  • वे लखनऊ चले गए और सैनिक स्कूल के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की.

बचपन से देश भक्ति की थी भावना

  • संगीता का कहना है कि देश सेवा की भावना उनमें बचपन से थी.
  • इसी भावना ने उन्हें देश के लिए न्यौछावर कर दिया.
  • कैप्टन मनोज पांडे के परिवार की माली हालत पहले बहुत अच्छी नहीं थी.
  • उनके पिता गोपी चंद्र पांडेय कपड़े की दुकान में काम करके अपना परिवार चलाते थे.
  • मनोज के भीतर देश प्रेम के जज्बे ने आर्थिक संकट को अड़चन नहीं बनने दिया.
  • उन्होंने मेहनत के साथ अपनी पढ़ाई पूरी की.
  • संगीता का कहना है कि मनोज पांडे की युद्ध में शहादत की खबर जब गांव पहुंची थी तो लोग अवाक रह गए थे.
  • हमेशा वाह्य आडम्बरों से दूर रहने वाले मनोज पांडे के बारे में गांव वालों को यह भी नहीं पता था कि मनोज सेना में इतने बड़े पद पर हैं.

कैप्टन मनोज पांडेय की शहादत के बाद सरकार ने गांव में कैप्टन मनोज पांडे की प्रतिमा लगवाने, पार्क और डिग्री कॉलेज बनवाने की घोषणा की थी जो आज तक अधूरी है.

सीतापुर: करगिल युद्ध के नायक कैप्टन मनोज पांडेय बचपन से ही काफी गंभीर स्वभाव के थे. वह पढ़ने में काफी तेज थे. शहादत से कुछ दिन पहले वे अपनी जन्मस्थली रूढा गांव आए थे. यहां पर वे एक-एक चीज को काफी गौर से देखते रहे. जब लोगों ने उनसे इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि गांव का शांत वातावरण बहुत अच्छा लगता है. तब गांव के लोगों ने यह सोचा भी नहीं था कि यह जन्मस्थली की उनकी अंतिम यात्रा है. इसके कुछ दिनों बाद जब उनकी शहादत की खबर आई तो पूरा गांव शोक में डूब गया. वहीं यह सोचकर गौरवान्वित भी था कि यहां की मिट्टी में जन्म लेने वाला एक शख्स देश के लिए शहीद हुआ है.

कैप्टन मनोज पांडेय की बचपन की कहानी, देखे वीडियो.

कैप्टन मनोज पांडेय की पूरी कहानी-

  • करगिल युद्ध के नायक परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे का जन्म 25 जून 1975 को ब्लॉक कसमंडा के रूढा गांव में हुआ था.
  • करगिल युद्ध के दौरान 30 जुलाई 1999 को दुश्मनों के नापाक इरादों को ध्वस्त करते हुए वे देश के लिए शहीद हो गए.
  • उनकी शहादत के बाद सरकार की ओर से किए गए वादों की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने उनके जन्म स्थान रूढा का दौरा किया.
  • टीम ने कैप्टन मनोज पांडेय के साथ बचपन के पल बिताने वालों से बातचीत की.
  • उनके पैतृक निवास के एकदम सामने के घर में रहने वाली संगीता शुक्ला ने बातचीत में बताया कि वे हमसे पांच साल बड़े थे.
  • बहुत छोटी उम्र में वे लोग साथ में खेले हैं.
  • संगीता के मुताबिक मनोज पांडे बचपन से बहुत गंभीर और शांत स्वभाव के थे.
  • वे लखनऊ चले गए और सैनिक स्कूल के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की.

बचपन से देश भक्ति की थी भावना

  • संगीता का कहना है कि देश सेवा की भावना उनमें बचपन से थी.
  • इसी भावना ने उन्हें देश के लिए न्यौछावर कर दिया.
  • कैप्टन मनोज पांडे के परिवार की माली हालत पहले बहुत अच्छी नहीं थी.
  • उनके पिता गोपी चंद्र पांडेय कपड़े की दुकान में काम करके अपना परिवार चलाते थे.
  • मनोज के भीतर देश प्रेम के जज्बे ने आर्थिक संकट को अड़चन नहीं बनने दिया.
  • उन्होंने मेहनत के साथ अपनी पढ़ाई पूरी की.
  • संगीता का कहना है कि मनोज पांडे की युद्ध में शहादत की खबर जब गांव पहुंची थी तो लोग अवाक रह गए थे.
  • हमेशा वाह्य आडम्बरों से दूर रहने वाले मनोज पांडे के बारे में गांव वालों को यह भी नहीं पता था कि मनोज सेना में इतने बड़े पद पर हैं.

कैप्टन मनोज पांडेय की शहादत के बाद सरकार ने गांव में कैप्टन मनोज पांडे की प्रतिमा लगवाने, पार्क और डिग्री कॉलेज बनवाने की घोषणा की थी जो आज तक अधूरी है.

Intro:सीतापुर: कारगिल युद्ध के नायक कैप्टन मनोज पांडेय बचपन से ही काफी गंभीर स्वभाव के थे और पढ़ने में काफी तेज थे.शहादत से कुछ दिन पहले वे अपनी जन्मस्थली रूढा गांव आये थे.यहां पर वे एक एक चीज को काफ़ी गौर से देखते रहे,जब लोगों ने उनसे इसके बारे में पूंछा तो उन्होंने कहा कि गांव का शांत वातावरण बहुत अच्छा लगता है, तब गांव के लोगों ने यह सोचा भी नही था कि यह जन्मस्थली की उनकी अंतिम यात्रा है.इसके कुछ दिनों बाद जब उनकी शहादत की खबर आई तो पूरा गांव शोक में डूब गया लेकिन यह सोचकर गौरवान्वित भी था कि यहां की मिट्टी में जन्म लेने वाला एक शख्स देश के लिए शहीद हुआ है.


Body:कारगिल युद्ध के नायक परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे का जन्म 25 जून 1975 को ब्लॉक कसमंडा के रूढा गांव में हुआ था.कारगिल युद्ध के दौरान 30 जुलाई 1999 को दुश्मनों के नापाक इरादों को ध्वस्त करते हुए वे देश के लिए शहीद हो गए. उनकी शहादत के बाद सरकार की ओर से किये गए वायदों की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने उनके जन्मस्थान रूढा का दौरा किया और उनके साथ बचपन के पल बिताने वालो से बातचीत की. उनके पैतृक निवास यानी कि जन्मस्थली के एकदम सामने के घर मे रहने वाली संगीता शुक्ला ने बातचीत में बताया कि वे हमसे पांच साल बड़े थे लेकिन बहुत छोटी उम्र में वे लोग साथ मे खेले हैं.संगीता के मुताबिक मनोज पांडे बचपन से बहुत गंभीर और शांत स्वभाव के थे.उम्र बढ़ने पर वे लखनऊ चले गए और सैनिक स्कूल के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की.संगीता का कहना है कि देश सेवा की भावना उनमें बचपन से थी और इसी भावना ने उन्हें देश के लिए न्यौछावर कर दिया. कैप्टन मनोज पांडे के परिवार की माली हालत पहले बहुत अच्छी नहीं थी उनके पिता गोपी चंद्र पांडे कपड़े की दुकान में काम करके अपना परिवार चलाते थे लेकिन मनोज के भीतर देश प्रेम के जज्बे ने आर्थिक संकट को अड़चन नही बनने दिया और उन्होंने मेहनत के साथ अपनी पढ़ाई पूरी की.


Conclusion:बताते है कि मनोज पांडे की युद्ध मे शहादत की खबर जब गांव पहुंची थी तो लोग अवाक रह गए थे हमेशा वाह्य आडम्बरों से दूर रहने वाले मनोज पांडे के बारे में गांव वालों को यह भी नही पता था कि मनोज सेना में इतने बड़े पद पर है. गांव वालों में उनके शहीद होने के बाद इस बात की चर्चा आम हुई.बताते हैं कि उनकी शहादत के बाद सरकार ने गांव में कैप्टन मनोज पांडे की प्रतिमा लगवाने, पार्क और डिग्री कालेज बनवाने की घोषणा की थी जो आज तक अधूरी है. वन 2 वन- संगीता शुक्ला (कैप्टन मनोज पांडे की पड़ोसी) सीतापुर से नीरज श्रीवास्तव की रिपोर्ट,9415084887
Last Updated : Jul 26, 2019, 12:28 PM IST
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