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नहीं भूल पाएंगे हमेशा याद आएंगे, सुनिए शहीद अशफाक उल्ला खां और पं. बिस्मिल की अमर कहानी

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Published : Aug 15, 2021, 9:42 PM IST

Updated : Aug 16, 2021, 3:22 PM IST

भारत को आजादी दिलाने के लिए हंसते-हंसते अपनी जान देने वाले आजादी के सिपाही पं. राम प्रसाद बिस्‍मिल और अशफाक उल्‍ला खां को साल 1927 में फांसी दे दी गई थी. देश के खातिर अपनी जान न्यौछावर करने वाले वीर सपूत अशफाक उल्ला खां (Shaheed Ashfaq Ullah Khan) और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल (Pandit Ram Prasad Bismil) की कुछ ऐसी अनुसनी कहानियां हैं, जिसे आपने कभी नहीं सुनी होगी. सुनिए वीर सपूतों के दोस्ती की दास्तान, उनके प्रपौत्र अशफाक उल्ला की जुबानी...

फाइल फोटो.
फाइल फोटो.

शाहजहांपुर: 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा', यह चंद लाइनें शाहजहांपुर के अमर शहीद अशफाक उल्ला खां (Shaheed Ashfaq Ullah Khan) पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं, जो मुल्क की आजादी के खातिर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. अशफाक उल्ला खां (Shaheed Ashfaq Ullah Khan) और शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल (Pandit Ram Prasad Bismil) की दोस्ती हिंदू-मुस्लिम एकता की एक मिसाल है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. इन शहीदों की कुर्बानी पर भारतवासियों को गर्व है. काकोरी कांड (kakori kand) के महानायक अशफाक उल्ला खां का परिवार उनकी एक-एक ऐतिहासिक पल को संजोए हुए है.

अमर शहीदों के दोस्ती की अनसुनी कहानी.

दरअसल, शाहजहांपुर को शहीदों की नगरी के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह स्थान काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है और शाहजहांपुर से ही काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसके बाद काकोरी कांड को अंजाम तक पहुंचाया गया था, जिसके बाद अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया, जिसके बाद 19 दिसंबर 1927 को इन तीनों काकोरी कांड के महानायकों को फांसी दे दी गई.

फाइल फोटो.
फाइल फोटो.


शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. उन्होंने शाहजहांपुर के एवी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की थी. यहां उनके साथ राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. यह दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. जिले का आर्य समाज मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. इस मंदिर के पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे. इसी आर्य समाज मंदिर में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जो कि पंडित है और अशफाक उल्ला खां जो कट्टर मुसलमान थे. इन दोनों की दोस्ती आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है. दोनों एक ही थाली में खाना खाया करते थे. मुस्लिम होते हुए भी अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे और देश की आजादी के लिए नई-नई योजनाएं बनाया करते थे. इन दोनों की अमर दोस्ती ने काकोरी कांड (Kakori kand) करके अंग्रेजों से लोहा लिया था काकोरी कांड (Kakori kand) के बाद दोनों दोस्तों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई और दोनों 19 दिसंबर 1927 को हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए.

शहीद अशफाक उल्ला खां.
शहीद अशफाक उल्ला खां.

शहीद अशफाक उल्ला खां (Shaheed Ashfaq Ullah Khan) के प्रपौत्र अशफाक उल्ला ने बताया कि शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इन सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने काकोरी कांड को अंजाम देने वाला मानते हुए 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी. हिंदुस्तान की आजादी के लिए इन क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया था. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन्हीं शहीदों को याद किया जाता है. शाहजहांपुर इसमें अग्रणी है, क्योंकि यहां काकोरी कांड के तीन शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह शाहजहांपुर के हैं.

शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल.
शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल.

19 दिसंबर को शाहजहांपुर में अशफाक उल्ला खां की मजार पर विशेष कार्यक्रम किया जाता है और उनको याद किया जाता है, उनको याद करना बेहद जरूरी है, क्योंकि हिंदुस्तान की आजादी में बच्चों और नौजवानों को इतिहास के बारे में पूरी जानकारी हो. हम सभी क्रांतिकारियों के परिवार के लोग चाहते हैं कि पढ़ाई के स्लेबस में क्रांतिकारियों के योगदान के बारे में भी पढ़ाया जाए, जिससे लोगों में राष्ट्र प्रेम जागृत हो. अशफाक उल्ला खां ने फांसी से पहले एक आखरी शेर भी कहा था," कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह है, रख दे कोई जरा सी खाके वतन कफन में''.

इसे भी पढ़ें-जल्द शुरू होगा गोरखपुर का शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणि उद्यान

शाहजहांपुर: 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा', यह चंद लाइनें शाहजहांपुर के अमर शहीद अशफाक उल्ला खां (Shaheed Ashfaq Ullah Khan) पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं, जो मुल्क की आजादी के खातिर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. अशफाक उल्ला खां (Shaheed Ashfaq Ullah Khan) और शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल (Pandit Ram Prasad Bismil) की दोस्ती हिंदू-मुस्लिम एकता की एक मिसाल है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. इन शहीदों की कुर्बानी पर भारतवासियों को गर्व है. काकोरी कांड (kakori kand) के महानायक अशफाक उल्ला खां का परिवार उनकी एक-एक ऐतिहासिक पल को संजोए हुए है.

अमर शहीदों के दोस्ती की अनसुनी कहानी.

दरअसल, शाहजहांपुर को शहीदों की नगरी के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह स्थान काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है और शाहजहांपुर से ही काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसके बाद काकोरी कांड को अंजाम तक पहुंचाया गया था, जिसके बाद अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया, जिसके बाद 19 दिसंबर 1927 को इन तीनों काकोरी कांड के महानायकों को फांसी दे दी गई.

फाइल फोटो.
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शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. उन्होंने शाहजहांपुर के एवी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की थी. यहां उनके साथ राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. यह दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. जिले का आर्य समाज मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. इस मंदिर के पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे. इसी आर्य समाज मंदिर में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जो कि पंडित है और अशफाक उल्ला खां जो कट्टर मुसलमान थे. इन दोनों की दोस्ती आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है. दोनों एक ही थाली में खाना खाया करते थे. मुस्लिम होते हुए भी अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे और देश की आजादी के लिए नई-नई योजनाएं बनाया करते थे. इन दोनों की अमर दोस्ती ने काकोरी कांड (Kakori kand) करके अंग्रेजों से लोहा लिया था काकोरी कांड (Kakori kand) के बाद दोनों दोस्तों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई और दोनों 19 दिसंबर 1927 को हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए.

शहीद अशफाक उल्ला खां.
शहीद अशफाक उल्ला खां.

शहीद अशफाक उल्ला खां (Shaheed Ashfaq Ullah Khan) के प्रपौत्र अशफाक उल्ला ने बताया कि शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इन सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने काकोरी कांड को अंजाम देने वाला मानते हुए 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी. हिंदुस्तान की आजादी के लिए इन क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया था. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन्हीं शहीदों को याद किया जाता है. शाहजहांपुर इसमें अग्रणी है, क्योंकि यहां काकोरी कांड के तीन शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह शाहजहांपुर के हैं.

शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल.
शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल.

19 दिसंबर को शाहजहांपुर में अशफाक उल्ला खां की मजार पर विशेष कार्यक्रम किया जाता है और उनको याद किया जाता है, उनको याद करना बेहद जरूरी है, क्योंकि हिंदुस्तान की आजादी में बच्चों और नौजवानों को इतिहास के बारे में पूरी जानकारी हो. हम सभी क्रांतिकारियों के परिवार के लोग चाहते हैं कि पढ़ाई के स्लेबस में क्रांतिकारियों के योगदान के बारे में भी पढ़ाया जाए, जिससे लोगों में राष्ट्र प्रेम जागृत हो. अशफाक उल्ला खां ने फांसी से पहले एक आखरी शेर भी कहा था," कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह है, रख दे कोई जरा सी खाके वतन कफन में''.

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Last Updated : Aug 16, 2021, 3:22 PM IST
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