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आरक्षण कानून की धारा 2 (सी) संवैधानिक करार, याचिका खारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र लोक सेवा (विकलांग, स्वतंत्रता सेनानी आश्रित और पूर्व सैनिक आरक्षण) कानून की धारा 2 (सी) को वैध करार दिया है. कोर्ट ने कहा पुलिस भर्ती और इसमें साम्यता नहीं है.

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Published : Mar 7, 2022, 9:59 PM IST

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इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उप्र लोक सेवा (विकलांग, स्वतंत्रता सेनानी आश्रित और पूर्व सैनिक आरक्षण) कानून की धारा 2 (सी) को वैध करार दिया है. इसके साथ कोर्ट ने कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन नहीं करती. कोर्ट ने कहा कि ग्राम विकास अधिकारी भर्ती 2016 में पूर्व सैनिक आरक्षण कोटे के लिए निर्धारित योग्यता मानक सेवा योग्यता होगी. पुलिस भर्ती और इसमें साम्यता नहीं है. नेवी से ली गई अनापत्ति स्थाई नहीं थी इसलिए याचियों को पूर्व सैनिक नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने याचियों को पूर्व सैनिक कोटे में आरक्षण के आधार पर नियुक्ति को शून्य माना और सेवा बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने बदायूं के सुधीर सिंह, वीरेंद्र कुमार और सुनील कुमार सिंह की याचिका पर दिया है.

इसे भी पढेंः बालिग को अपनी मर्जी से किसी के भी साथ रहने, शादी करने का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

याचिका के अनुसार उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 3133 ग्राम विकास अधिकारियों की 2016 में भर्ती निकाली. 18 जुलाई 2018 को याचीगण चयनित हुए. पूर्व सैनिक कोटे में चयनित 70 लोगों को 15 दिन के प्रशिक्षण के लिए भेजा गया. 19 मार्च 2019 को प्रशिक्षण पूरा हुआ और बदायूं, कासगंज, शाहजहांपुर, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, लखीमपुर खीरी में नियुक्ति आदेश जारी किया गया.

जिला विकास अधिकारी ने 19 फरवरी 2020 को कारण बताओ नोटिस जारी किया और 70 अभ्यर्थियों को नियुक्ति योग्यता न होने पर रोक दिया.नोटिस में पूछा क्यों न नियुक्ति अवैध मानी जाय क्योंकि वे आवेदन देते समय नेवी में कार्यरत थे. उन्हें पूर्व सैनिक नहीं माना जा सकता और उनके पास सीसीसी और अन्य प्रमाणपत्र नहीं थे. 28 अप्रैल 20 और 5 मई 20 को नियुक्ति रद्द कर दी गई. याचियों ने कानून की धारा 2(सी) की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा कि उनकी नियुक्ति विधि प्रक्रिया के तहत चयनित होने पर की गई है.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उप्र लोक सेवा (विकलांग, स्वतंत्रता सेनानी आश्रित और पूर्व सैनिक आरक्षण) कानून की धारा 2 (सी) को वैध करार दिया है. इसके साथ कोर्ट ने कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन नहीं करती. कोर्ट ने कहा कि ग्राम विकास अधिकारी भर्ती 2016 में पूर्व सैनिक आरक्षण कोटे के लिए निर्धारित योग्यता मानक सेवा योग्यता होगी. पुलिस भर्ती और इसमें साम्यता नहीं है. नेवी से ली गई अनापत्ति स्थाई नहीं थी इसलिए याचियों को पूर्व सैनिक नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने याचियों को पूर्व सैनिक कोटे में आरक्षण के आधार पर नियुक्ति को शून्य माना और सेवा बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने बदायूं के सुधीर सिंह, वीरेंद्र कुमार और सुनील कुमार सिंह की याचिका पर दिया है.

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याचिका के अनुसार उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 3133 ग्राम विकास अधिकारियों की 2016 में भर्ती निकाली. 18 जुलाई 2018 को याचीगण चयनित हुए. पूर्व सैनिक कोटे में चयनित 70 लोगों को 15 दिन के प्रशिक्षण के लिए भेजा गया. 19 मार्च 2019 को प्रशिक्षण पूरा हुआ और बदायूं, कासगंज, शाहजहांपुर, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, लखीमपुर खीरी में नियुक्ति आदेश जारी किया गया.

जिला विकास अधिकारी ने 19 फरवरी 2020 को कारण बताओ नोटिस जारी किया और 70 अभ्यर्थियों को नियुक्ति योग्यता न होने पर रोक दिया.नोटिस में पूछा क्यों न नियुक्ति अवैध मानी जाय क्योंकि वे आवेदन देते समय नेवी में कार्यरत थे. उन्हें पूर्व सैनिक नहीं माना जा सकता और उनके पास सीसीसी और अन्य प्रमाणपत्र नहीं थे. 28 अप्रैल 20 और 5 मई 20 को नियुक्ति रद्द कर दी गई. याचियों ने कानून की धारा 2(सी) की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा कि उनकी नियुक्ति विधि प्रक्रिया के तहत चयनित होने पर की गई है.

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