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वसंत पंचमी से आरंभ हुआ धूनी तप, जानिए साधक कैसे करते हैं जप

वसंत पंचमी मनाने के साथ ही तपस्वी नगरी में 'भभूता धूनी की साधना' शुरू हो गई. भभूता धूनी की साधना में साधक आग के कई घेरे बनाकर उसके बीच में बैठकर साधना करते हैं. जानिए इस साधना से जुड़ी खास बातें...

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भभूता धूनी की साधना करते संत.
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Published : Feb 16, 2021, 9:52 PM IST

प्रयागराज : बसंत पंचमी साधना तपस्या के साथ-साथ विभिन्न साधनाओं के संकल्प का पर्व है. इन दिनों प्रयागराज में आयोजित माघ मेला साधनाओं के विविध संकल्पों और साधनाओं का साक्षी बन रहा है. ऐसी ही एक साधना है 'भभूता धूनी की साधना'. अखिल भारतीय श्री पंच तेरा भाई त्यागी खाक चौक अयोध्या के साधु-संत इस समय भभूती धूनी साधना कर रहे हैं. यह साधना त्याग और संयम की स्थिति में पहुंचने के बाद की जाती है. साधक आग जलाकर उसके बीच बैठकर यह साधना की जाती है. यह अग्नि साधना बसंत पंचमी के स्नान पर्व से प्रयागराज में शुरू हो चुकी है.

भभूता धूनी की साधना शुरू

संगम नगरी में माघ मेला क्षेत्र जप, तप और साधना का क्षेत्र है. यहां के हर कोने में साधक साधना करते हुए नजर आते है. माघ मेला इन दिनों पंच तेराह भाई त्यागी संतों की एक खास तरह की साधना यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कौतूहल का विषय बन गई है.

संत कई वर्षों तक करते हैं साधना.
संत कई वर्षों तक करते हैं साधना.
भभूता धूनी साधना होती है विशिष्ट

भभूता धूनी की साधना में साधक अपने चारों ओर आग के कई घेरे बनाकर साधना करते हैं. जिस आंच से इंसान की त्वचा झुलस जाती है, उससे कई गुना अधिक आग के घेरे में बैठकर ये तपस्वी अपनी साधना करते हैं.

तपस्वी नगरी में संतो का धूनी तप शुरू.
तपस्वी नगरी में संतो का धूनी तप शुरू.
कई वर्षों तक करते हैं साधना

भभूता धूनी की साधना अखिल भारतीय श्री पंच तेरा भाई त्यागी के साधकों की विशेष साधना है. यह साधना 18 वर्षों की होती है. सबसे पहले साधक इस साधना के लिए गाय के गोबर के उपले एकत्र करते हैं. इसके बाद साधना के स्थान को गंगा जल से अभिसिंचित करने के बाद गोले के आकर में उपले रखकर उनमें आग लगा देते हैं. इसके बाद आग के घेरे के बीच में खुद साधना आरंभ कर देते हैं.

साधना में लीन संत.
साधना में लीन संत.
छह चरणों में पूरी होती है साधना

साधक अगले दिन फिर यही क्रम दोहराता है. एक चरण के तहत तीन वर्षों तक बसंत पंचमी से ज्येष्ठ गंगा दशहरा तक यह अनुष्ठान चलता है. यह साधना का पहला चरण है. साधक को इस साधना के लिए छह चरणों को पूरा करना होता है. 'अग्नि स्नान' के छह चरणों में क्रमश: अभ्यास का क्रम बढ़ता जाता है और प्रत्येक चरण के साथ अनुष्ठान और कठिन होता जाता है. 18 वर्षों की साधना में तीन-तीन वर्षों की साधना अलग-अलग चरणों के नाम होती है.

भभूता धूनी की साधना करते संत.
भभूता धूनी की साधना करते संत.
सभी चरणों के हैं अलग-अलग नाम

भभूता धूनी की साधना में साधक अपने चारों ओर पंच धूनी जलाते हैं. पंच धूनी से शुरुआत के बाद सप्तधूनी, द्वादश धूनी, चौरासी धूनी, कोटि धूनी और अंत में कोटि खप्पर से तपस्या का संकल्प पूरा होता है. इसमें सबसे कठिन होती है कोटि खप्पर साधना. कोटि खप्पर साधना में सिर पर आग रखकर साधना की जाती है.

धूनी रमाने की ये है प्रक्रिया

धूनी रमाने की प्रक्रिया गुरु के लिए अपने शिष्य की प्रथम परीक्षा होती है. धूनी रमाने का अनुष्ठान आरंभ होने के 18 साल तक वैरागी को वर्ष में 4 माह बसंत पंचमी से अषाण माह के गंगा दशहरा तक नियमित साधना करनी होती है. साधु इस दौरान अपनी साधना से गुरु को प्रभावित करता है. इस अनुष्ठान में साधक अपने चारों ओर उपले रखकर आग जलाता है. इसके साथ-साथ मुख्य गुरुस्वरूप अग्निकुंड से आग को लेकर अपने आसपास छोटे-छोटे अग्नि पिंड प्रज्वलित करता है. हर अग्नि पिंड में रखी जाने वाली अग्नि को चिमटे में दबाकर वैरागी अपने ऊपर से घुमाता है और फिर पिंड में रखता है. इसके साथ ही साधक पैरों पर कपड़ा डालकर गुरु मंत्र का उच्चारण करता है. बेहद गुप्त और संवेदनशील प्रक्रिया के दौरान साधक को अपने तन-मन पर नियंत्रण करना होता है.

साधु की क्षमता और सहनशीलता का होता है परीक्षण

संत बीनय दास बताते हैं कि कड़ी आग के बीच बैठकर इस अनुष्ठान को पूरा करने के पीछे न सिर्फ साधना के उद्देश्य की पूर्ति करनी होती है, बल्कि साधु की क्षमता और सहनशीलता का परीक्षण भी होता है. लगातार 18 वर्ष तक साल के 4 माह इस कठोर तप से गुजरने के बाद उस साधु को वैरागी की उपाधि हासिल होती है.

प्रयागराज : बसंत पंचमी साधना तपस्या के साथ-साथ विभिन्न साधनाओं के संकल्प का पर्व है. इन दिनों प्रयागराज में आयोजित माघ मेला साधनाओं के विविध संकल्पों और साधनाओं का साक्षी बन रहा है. ऐसी ही एक साधना है 'भभूता धूनी की साधना'. अखिल भारतीय श्री पंच तेरा भाई त्यागी खाक चौक अयोध्या के साधु-संत इस समय भभूती धूनी साधना कर रहे हैं. यह साधना त्याग और संयम की स्थिति में पहुंचने के बाद की जाती है. साधक आग जलाकर उसके बीच बैठकर यह साधना की जाती है. यह अग्नि साधना बसंत पंचमी के स्नान पर्व से प्रयागराज में शुरू हो चुकी है.

भभूता धूनी की साधना शुरू

संगम नगरी में माघ मेला क्षेत्र जप, तप और साधना का क्षेत्र है. यहां के हर कोने में साधक साधना करते हुए नजर आते है. माघ मेला इन दिनों पंच तेराह भाई त्यागी संतों की एक खास तरह की साधना यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कौतूहल का विषय बन गई है.

संत कई वर्षों तक करते हैं साधना.
संत कई वर्षों तक करते हैं साधना.
भभूता धूनी साधना होती है विशिष्ट

भभूता धूनी की साधना में साधक अपने चारों ओर आग के कई घेरे बनाकर साधना करते हैं. जिस आंच से इंसान की त्वचा झुलस जाती है, उससे कई गुना अधिक आग के घेरे में बैठकर ये तपस्वी अपनी साधना करते हैं.

तपस्वी नगरी में संतो का धूनी तप शुरू.
तपस्वी नगरी में संतो का धूनी तप शुरू.
कई वर्षों तक करते हैं साधना

भभूता धूनी की साधना अखिल भारतीय श्री पंच तेरा भाई त्यागी के साधकों की विशेष साधना है. यह साधना 18 वर्षों की होती है. सबसे पहले साधक इस साधना के लिए गाय के गोबर के उपले एकत्र करते हैं. इसके बाद साधना के स्थान को गंगा जल से अभिसिंचित करने के बाद गोले के आकर में उपले रखकर उनमें आग लगा देते हैं. इसके बाद आग के घेरे के बीच में खुद साधना आरंभ कर देते हैं.

साधना में लीन संत.
साधना में लीन संत.
छह चरणों में पूरी होती है साधना

साधक अगले दिन फिर यही क्रम दोहराता है. एक चरण के तहत तीन वर्षों तक बसंत पंचमी से ज्येष्ठ गंगा दशहरा तक यह अनुष्ठान चलता है. यह साधना का पहला चरण है. साधक को इस साधना के लिए छह चरणों को पूरा करना होता है. 'अग्नि स्नान' के छह चरणों में क्रमश: अभ्यास का क्रम बढ़ता जाता है और प्रत्येक चरण के साथ अनुष्ठान और कठिन होता जाता है. 18 वर्षों की साधना में तीन-तीन वर्षों की साधना अलग-अलग चरणों के नाम होती है.

भभूता धूनी की साधना करते संत.
भभूता धूनी की साधना करते संत.
सभी चरणों के हैं अलग-अलग नाम

भभूता धूनी की साधना में साधक अपने चारों ओर पंच धूनी जलाते हैं. पंच धूनी से शुरुआत के बाद सप्तधूनी, द्वादश धूनी, चौरासी धूनी, कोटि धूनी और अंत में कोटि खप्पर से तपस्या का संकल्प पूरा होता है. इसमें सबसे कठिन होती है कोटि खप्पर साधना. कोटि खप्पर साधना में सिर पर आग रखकर साधना की जाती है.

धूनी रमाने की ये है प्रक्रिया

धूनी रमाने की प्रक्रिया गुरु के लिए अपने शिष्य की प्रथम परीक्षा होती है. धूनी रमाने का अनुष्ठान आरंभ होने के 18 साल तक वैरागी को वर्ष में 4 माह बसंत पंचमी से अषाण माह के गंगा दशहरा तक नियमित साधना करनी होती है. साधु इस दौरान अपनी साधना से गुरु को प्रभावित करता है. इस अनुष्ठान में साधक अपने चारों ओर उपले रखकर आग जलाता है. इसके साथ-साथ मुख्य गुरुस्वरूप अग्निकुंड से आग को लेकर अपने आसपास छोटे-छोटे अग्नि पिंड प्रज्वलित करता है. हर अग्नि पिंड में रखी जाने वाली अग्नि को चिमटे में दबाकर वैरागी अपने ऊपर से घुमाता है और फिर पिंड में रखता है. इसके साथ ही साधक पैरों पर कपड़ा डालकर गुरु मंत्र का उच्चारण करता है. बेहद गुप्त और संवेदनशील प्रक्रिया के दौरान साधक को अपने तन-मन पर नियंत्रण करना होता है.

साधु की क्षमता और सहनशीलता का होता है परीक्षण

संत बीनय दास बताते हैं कि कड़ी आग के बीच बैठकर इस अनुष्ठान को पूरा करने के पीछे न सिर्फ साधना के उद्देश्य की पूर्ति करनी होती है, बल्कि साधु की क्षमता और सहनशीलता का परीक्षण भी होता है. लगातार 18 वर्ष तक साल के 4 माह इस कठोर तप से गुजरने के बाद उस साधु को वैरागी की उपाधि हासिल होती है.

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