ETV Bharat / state

प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं सक्षम करने को लेकर एएसजीआई ने कोर्ट से मांगा समय

उत्तर प्रदेश में कोरोना के बढ़ते संक्रमण व प्रदेश की चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर स्वतः कायम जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से प्रदेश के कुछ चुनिंदा जिलों की स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है, इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए समय की मांग की.

एएसजीआई ने कोर्ट से मांगा समय
एएसजीआई ने कोर्ट से मांगा समय
author img

By

Published : May 22, 2021, 9:34 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण व प्रदेश की चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर स्वतः कायम जनहित याचिका पर सुनवाई की. सुनवाई के दौरान एडिशनल सालिसीटर जनरल (एएसजीआई) एसवी राजू ने कोर्ट से प्रदेश के कुछ चुनिंदा जिलों की स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है, इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए समय की मांग की. एएसजीआई ने कोर्ट से यह भी कहा कि उन्हें इस बात का भी पता करने के लिए समय दिया जाय कि सरकार के पास उत्तर प्रदेश में प्राइवेट डायग्नोस्टिक सेन्टरों द्वारा डायग्नोस्टिक चार्ज की अधिकतम रकम को तय करने की क्या योजना है.


27 मई को होगी अगली सुनवाई

जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा व जस्टिस अजीत कुमार की खंडपीठ ने एएसजीआई के इस अनुरोध को स्वीकार कर इस जनहित याचिका पर आगे सुनवाई के लिए 27 मई की तारीख नियत की है. उस दिन अदालत इस केस की सुनवाई 11 बजे करेगी. ज्ञात हो कि हाईकोर्ट ने पिछली तारीख पर प्रदेश की चिकित्सा व स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर गंभीर टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि चिकित्सा व्यवस्था "राम भरोसे" है.


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी प्रदेश में कोरोना महामारी संक्रमण को लेकर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था को लेकर दिया था. कोर्ट ने कहा कि जब मेरठ जैसे बड़े शहर व मेडिकल कॉलेज में इतनी लापरवाही है तो प्रदेश के छोटे शहरों व कस्बों की चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे ही है. कोर्ट ने कहा था कि मरीज हॉस्पिटल में पूरी तरह से डाक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ की देखभाल में रहता है, और अगर डॉक्टर व तैनात पैरामेडिकल स्टाफ लापरवाही से ड्यूटी करेंगे तो उनका यह कार्य दुराचरण की श्रेणी में माना जाएगा. यह वैसा ही कार्य होगा जैसे कि किसी मासूम के जीवन के साथ खिलवाड़ करना.

इसे भी पढ़ें- हर जिले में विशेष शिविर लगाकर पत्रकारों और न्यायिक अधिकारियों का किया जाएगा टीकाकरण


कोर्ट ने एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मेडिकल व हेल्थ को निर्देश दिया था कि वह हलफनामा दाखिल करें. कोर्ट ने बिजनौर जिला के मामले में वहां की चिकित्सा व्यवस्था को परखा था, और वहां 31 मार्च से 12 मई तक कराए गए टेस्ट पर अपनी असंतुष्टि जताई थी. कोर्ट ने कहा था कि सरकार छोटे शहरों व कस्बों में चिकित्सा व्यवस्था को ठीक करें. कोर्ट ने कहा कि अधिकतर शहरों में लेवल- तीन हॉस्पिटल सुविधा नहीं है. शहरों में आबादी के हिसाब से व ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस महामारी से निपटने के लिए जैसी व्यवस्था की जरूरत है, अभी अपर्याप्त है. कोर्ट ने कहा था कि समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार जिसे कल्याणकारी राज्य कहती है वह क्यों नहीं वैक्सीन उत्पादन का काम कर रही है. कोर्ट ने कहा था कि प्रदेश में सभी अस्पतालों व नर्सिंग होम की चिकित्सा व्यवस्था में सुधार किया जाय. कहा गया था कि एसजीपीजीआई में जैसी व्यवस्था व चिकित्सा सुविधा मुहैया है, उसी प्रकार यूपी के सभी पांच मेडिकल कॉलेजों व अन्य जगहों पर भी चार सप्ताह में चिकित्सा व्यवस्था ठीक किया जाय. इसके लिए जरूरी बजट की व्यवस्था की जाय.

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण व प्रदेश की चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर स्वतः कायम जनहित याचिका पर सुनवाई की. सुनवाई के दौरान एडिशनल सालिसीटर जनरल (एएसजीआई) एसवी राजू ने कोर्ट से प्रदेश के कुछ चुनिंदा जिलों की स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है, इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए समय की मांग की. एएसजीआई ने कोर्ट से यह भी कहा कि उन्हें इस बात का भी पता करने के लिए समय दिया जाय कि सरकार के पास उत्तर प्रदेश में प्राइवेट डायग्नोस्टिक सेन्टरों द्वारा डायग्नोस्टिक चार्ज की अधिकतम रकम को तय करने की क्या योजना है.


27 मई को होगी अगली सुनवाई

जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा व जस्टिस अजीत कुमार की खंडपीठ ने एएसजीआई के इस अनुरोध को स्वीकार कर इस जनहित याचिका पर आगे सुनवाई के लिए 27 मई की तारीख नियत की है. उस दिन अदालत इस केस की सुनवाई 11 बजे करेगी. ज्ञात हो कि हाईकोर्ट ने पिछली तारीख पर प्रदेश की चिकित्सा व स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर गंभीर टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि चिकित्सा व्यवस्था "राम भरोसे" है.


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी प्रदेश में कोरोना महामारी संक्रमण को लेकर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था को लेकर दिया था. कोर्ट ने कहा कि जब मेरठ जैसे बड़े शहर व मेडिकल कॉलेज में इतनी लापरवाही है तो प्रदेश के छोटे शहरों व कस्बों की चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे ही है. कोर्ट ने कहा था कि मरीज हॉस्पिटल में पूरी तरह से डाक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ की देखभाल में रहता है, और अगर डॉक्टर व तैनात पैरामेडिकल स्टाफ लापरवाही से ड्यूटी करेंगे तो उनका यह कार्य दुराचरण की श्रेणी में माना जाएगा. यह वैसा ही कार्य होगा जैसे कि किसी मासूम के जीवन के साथ खिलवाड़ करना.

इसे भी पढ़ें- हर जिले में विशेष शिविर लगाकर पत्रकारों और न्यायिक अधिकारियों का किया जाएगा टीकाकरण


कोर्ट ने एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मेडिकल व हेल्थ को निर्देश दिया था कि वह हलफनामा दाखिल करें. कोर्ट ने बिजनौर जिला के मामले में वहां की चिकित्सा व्यवस्था को परखा था, और वहां 31 मार्च से 12 मई तक कराए गए टेस्ट पर अपनी असंतुष्टि जताई थी. कोर्ट ने कहा था कि सरकार छोटे शहरों व कस्बों में चिकित्सा व्यवस्था को ठीक करें. कोर्ट ने कहा कि अधिकतर शहरों में लेवल- तीन हॉस्पिटल सुविधा नहीं है. शहरों में आबादी के हिसाब से व ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस महामारी से निपटने के लिए जैसी व्यवस्था की जरूरत है, अभी अपर्याप्त है. कोर्ट ने कहा था कि समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार जिसे कल्याणकारी राज्य कहती है वह क्यों नहीं वैक्सीन उत्पादन का काम कर रही है. कोर्ट ने कहा था कि प्रदेश में सभी अस्पतालों व नर्सिंग होम की चिकित्सा व्यवस्था में सुधार किया जाय. कहा गया था कि एसजीपीजीआई में जैसी व्यवस्था व चिकित्सा सुविधा मुहैया है, उसी प्रकार यूपी के सभी पांच मेडिकल कॉलेजों व अन्य जगहों पर भी चार सप्ताह में चिकित्सा व्यवस्था ठीक किया जाय. इसके लिए जरूरी बजट की व्यवस्था की जाय.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.