प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों की वर्चुअल सुनवाई में कई बार अजब-गजब नजारे सामने आ जाते हैं. 25 जून को भी ऐसी ही एक घटना हुई थी. कोर्ट ने स्कूटर पर यात्रा करते हुए केस की बहस करने वाले अधिवक्ता को न केवल सुनने से इनकार कर दिया था बल्कि भविष्य में ऐसा न करने की नसीहत भी दी थी. वहीं अब हाईकोर्ट ने वर्चुअल सुनवाई के दौरान अधिवक्ताओं के पहनावे व व्यवहार को अनुचित व अस्वीकार्य करार दिया है. हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों से कहा है कि वह सदस्यों से कोर्ट की कार्यवाही में उचित स्वीकृत पहनावा पहनने और शांतिपूर्ण वातावरण में अपना पक्ष रखने की सलाह दे.
कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ताओं का कैजुअल रवैया न्याय प्रशासन में अवरोध उत्पन्न कर रहा है. जैसे खुली अदालत में बहस की जाती है, वैसे वर्चुअल सुनवाई में भी घर, ऑफिस या चेम्बर को कोर्ट का हिस्सा समझकर बहस की जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति एस.एस शमशेरी ने ज्योति कि जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान दिया. अर्जी की सुनवाई वर्चुअल तरीके से हुई. याची अधिवक्ता से संपर्क नहीं हो सका. सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता के अधिवक्ता रंगीन शर्ट पहनकर बहस करने आ गए. जिस पर कोर्ट ने अर्जी की सुनवाई 28 जुलाई तक के लिए टाल दी.
कोर्ट ने कहा कि पिछले डेढ़ साल से कोरोना संक्रमण के चलते दिक्कत बढ़ी है. लोगों को मास्क पहनना, दूरी बनाए रखना, वैक्सीन लगवाना और अलग तरीके से जीवन शैली अपनानी पड़ रही है. कोर्ट ने भी वर्चुअल सुनवाई के जरिये न्याय देने का तरीका अपनाया है. अधिवक्ताओं को कोर्ट गाउन न पहनने की छूट दी गई है. सफेद शर्ट पैंट, सफेद कमीज सलवार, साड़ी, गले में बैंड पहनकर घर, ऑफिस या चेम्बर से बहस करने की छूट दी गई है, लेकिन यह देखने में आ रहा है कि अधिवक्ता वर्चुअल सुनवाई प्रक्रिया को हल्के में ले रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट ने ऐसी कई घटना देखी जब अधिवक्ता टी शर्ट और रंगीन शर्ट में बहस करने आ गए. यहां तक कि स्कूटर चलाते हुए, पूजा करते, टहलते, बाइक पर बैठे, शोर-शराबे के बीच बाजार में, सुनवाई के दौरान दूसरे फोन पर बात करते हुए वर्चुअल बहस कर रहे हैं, जो कतई उचित नहीं है. वर्चुअल सुनवाई में ऑडियो-वीडियो चल रहा है, बिस्तर पर बैठे हैं, लेडीज अधिवक्ता फेस पैक लगाए बहस करती दिखाई दीं.
कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ताओं को सोचना चाहिए कि वर्चुअल सुनवाई भी कोर्ट कार्यवाही है. कोर्ट का दायरा घर, ऑफिस और चेम्बर तक बढ़ गया है. इसे कोर्ट के रूप में लें. कोर्ट की आपत्ति के बाद भी गलती का अहसास नहीं है. कोर्ट ने कहा कि वह ऐसे रवैये पर हर्जाना नहीं लगा रहे हैं, लेकिन कैजुअल रवैया न अपनाने की सलाह देने को कह रहे हैं. बार एसोसिएशन सदस्यों को कोर्ट कार्यवाही उसी तरह करने की सलाह दे.