प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि सरकार द्वारा कर्मचारियों को दिया जाने वाला वेतन संरक्षण का लाभ प्रचलित नीतिगत दिशा-निर्देशों पर आधारित होता है. कोर्ट को उसमें हस्तक्षेप करने का सीमित अधिकार होता है. हाईकोर्ट ने मेडिकल कॉलेज में नियुक्त एक प्रवक्ता की वेतन संरक्षण की मांग को खारिज करते हुए उनके हक में दिए एकल जज के आदेश से असमति व्यक्त कर यूपी सरकार की विशेष अपील को मंजूर कर लिया है.
यह निर्णय हाईकोर्ट के जस्टिस विश्वनाथ सोमद्दर व जस्टिस डॉ. वाईके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार द्वारा एकल जज के आदेश के खिलाफ दाखिल विशेष अपील को मंजूर करते हुए दिया है. एकल जज ने झांसी मेडिकल कॉलेज में नियुक्त प्रवक्ता डॉ. राज कमल सिंह की वेतन संरक्षण की मांग को को मंजूर कर लिया था. जिसके खिलाफ सरकार ने विशेष अपील दो जजों के समक्ष दायर की थी.
मामले के अनुसार यूपी लोक सेवा आयोग द्वारा जारी विज्ञापन के तहत याची का चयन पहले 26 अगस्त 2015 को मेडिकल कॉलेज आजमगढ़ हुआ. इसके तहत उसे एक माह में ज्वॉइन करना था. याची ने ऐसा नहीं किया. बाद में उसे दोबारा नियुक्ति पत्र पूर्व के क्रम में 20 सितम्बर 16 को जारी हुआ, जिसके आधार पर याची ने मेडिकल कॉलेज झांसी में प्रवक्ता के पद पर 7 अक्तूबर 16 को ज्वॉइन कर लिया. वेतन संरक्षण के सम्बन्ध में जारी शासनादेश 24 सितम्बर 15 के अनुसार वेतन संरक्षण का लाभ उन्हीं को मिलेगा, जिनकी नियुक्ति शासनादेश के बाद हुई है, न कि पहले नियुक्ति प्राप्त सरकारी सेवक को.
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याची का कहना था कि उसकी नियुक्ति 20 सितम्बर 16 की है, इस कारण वह उक्त शासनादेश के तहत वेतन संरक्षण का लाभ पाने का हकदार है. कोर्ट ने सरकार की दलील को स्वीकार कर कहा कि याची की पहली नियुक्ति आयोग के विज्ञापन के तहत 26 अगस्त 15 में मेडिकल कॉलेज आजमगढ़ में हुई थी और उसने वहां ज्वॉइन नहीं किया. दोबारा नियुक्ति पत्र प्रथम नियुक्ति के क्रम में जारी हुआ है. ऐसे में यह माना जाएगा कि याची की पहली नियुक्ति शासनादेश के पहले की है. इस कारण शासनादेश के शर्तों के तहत वह वेतन संरक्षण का लाभ पाने का हकदार नहीं है.