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मुरादाबाद: बाजार में बढ़ी इको फ्रेंडली गजानन की मांग, खड़िया-मिट्टी और खाने के कलर से तैयार हो रहीं मूर्तियां

गणेश चतुर्थी महोत्सव को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल बना हुआ है. शिल्पकार गणेश की प्रतिमाएं बनाने में लगे हैं. बदलते समय और पर्यावरण को लेकर बाजारों में इको फ्रेंडली प्रतिमाओं की मांंग बढ़ गई है.

बाजार में बढ़ी इको फ्रेंडली गजानन की मांग.
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Published : Aug 31, 2019, 12:56 AM IST

Updated : Aug 31, 2019, 1:02 AM IST

मुरादाबाद: गणेश चतुर्थी महोत्सव को लेकर बाजार सज चुके हैं. भगवान गणेश की प्रतिमाएं हर किसी का मन मोह रहीं हैं. बदलते समय और पर्यावरण को लेकर वैश्विक चिंता का असर गणेश महोत्सव पर भी नजर आ रहा है. बाजारों में भगवान गणेश की इको फ्रेंडली प्रतिमाओं की मांग जोर पकड़ रही है, जिसके बाद खड़िया-मिट्टी और खाने का रंग मिलाकर प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है.

बाजार में बढ़ी इको फ्रेंडली गजानन की मांग.

पहले गणेश प्रतिमाओं को प्लास्टर ऑफ पेरिस के साथ कैमिकल मिलाकर तैयार किया जाता था, लेकिन पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बाद अब प्रतिमाओं को पर्यावरण फ्रेंडली तैयार किया जा रहा है.

खूबसूरत पंडाल में सजी भगवान गजानन की विशालकाय प्रतिमा हो या फिर घर में स्थापित बाल गणेश. गणेश चतुर्थी के मौके पर भगवान गणेश की अलग-अलग आकार और डिजाइन में तैयार प्रतिमाओं से बाजार सज चुके हैं.

पढ़ें- देश भर में गूंजने लगे गणपति बप्पा मोरया के जयकारे

दो सितंबर को भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित होनी है. उससे पहले लोग बाजारों में गणेश प्रतिमा पसंद कर रहें है. मुरादाबाद के मझोला क्षेत्र में राजस्थान से आए कारीगर गणेश प्रतिमाओं को तैयार करते हैं. राजस्थानी खड़िया मिट्टी और चाक की मिट्टी से तैयार प्रतिमाओं को जूट के धागों के सहारे खड़ा किया जाता है. स्थानीय स्तर पर पर्यावरण के अनुकूल तैयार इन प्रतिमाओं की डिमांड हर साल बढ़ रही है.

मुरादाबाद में तैयार इन प्रतिमाओं को खरीदने दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं. कुछ सालों पहले भगवान गणेश की प्रतिमाओं को प्लास्टर ऑफ पेरिस और कैमिकल से तैयार किया जाता था और इसमें प्लास्टिक भी लगाई जाती थी, लेकिन पर्यावरणीय चिंताओं और ग्राहकों की मांग पर अब प्रतिमा बनाने वाले कारीगर मिट्टी का इस्तेमाल कर रहे हैं. मिट्टी से बनी इन प्रतिमाओं को खूबसूरत बनाने के लिए जहां पहले कैमिकल वाले रंग इस्तेमाल किये जा रहे थे, वहीं अब मिठाइयों और खाने में इस्तेमाल होने वाले रंग प्रयोग में लाये जा रहे हैं. मिट्टी और खाने के रंग इस्तेमाल होने से जहां यह प्रतिमाएं पानी में आसानी से विसर्जित हो जाती हैं. वहीं इसका जलीय जीवों पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है.

भगवान गणेश की इको फ्रेंडली प्रतिमाओं की बढ़ी मांग जहां पर्यावरण को लेकर लोगों की जागरूकता को जाहिर कर रही है. वहीं प्रतिमा बनाने वाले कारीगर भी इससे खुश हैं. बाजार में हर साल भगवान गणेश की प्रतिमाओं की मांग बढ़ रही है, ऐसे में जरूरी हो जाता है कि पर्यावरण की चिंता की जाए, ताकि लोग हर साल गणपति को अपने घर बुला सकें.

मुरादाबाद: गणेश चतुर्थी महोत्सव को लेकर बाजार सज चुके हैं. भगवान गणेश की प्रतिमाएं हर किसी का मन मोह रहीं हैं. बदलते समय और पर्यावरण को लेकर वैश्विक चिंता का असर गणेश महोत्सव पर भी नजर आ रहा है. बाजारों में भगवान गणेश की इको फ्रेंडली प्रतिमाओं की मांग जोर पकड़ रही है, जिसके बाद खड़िया-मिट्टी और खाने का रंग मिलाकर प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है.

बाजार में बढ़ी इको फ्रेंडली गजानन की मांग.

पहले गणेश प्रतिमाओं को प्लास्टर ऑफ पेरिस के साथ कैमिकल मिलाकर तैयार किया जाता था, लेकिन पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बाद अब प्रतिमाओं को पर्यावरण फ्रेंडली तैयार किया जा रहा है.

खूबसूरत पंडाल में सजी भगवान गजानन की विशालकाय प्रतिमा हो या फिर घर में स्थापित बाल गणेश. गणेश चतुर्थी के मौके पर भगवान गणेश की अलग-अलग आकार और डिजाइन में तैयार प्रतिमाओं से बाजार सज चुके हैं.

पढ़ें- देश भर में गूंजने लगे गणपति बप्पा मोरया के जयकारे

दो सितंबर को भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित होनी है. उससे पहले लोग बाजारों में गणेश प्रतिमा पसंद कर रहें है. मुरादाबाद के मझोला क्षेत्र में राजस्थान से आए कारीगर गणेश प्रतिमाओं को तैयार करते हैं. राजस्थानी खड़िया मिट्टी और चाक की मिट्टी से तैयार प्रतिमाओं को जूट के धागों के सहारे खड़ा किया जाता है. स्थानीय स्तर पर पर्यावरण के अनुकूल तैयार इन प्रतिमाओं की डिमांड हर साल बढ़ रही है.

मुरादाबाद में तैयार इन प्रतिमाओं को खरीदने दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं. कुछ सालों पहले भगवान गणेश की प्रतिमाओं को प्लास्टर ऑफ पेरिस और कैमिकल से तैयार किया जाता था और इसमें प्लास्टिक भी लगाई जाती थी, लेकिन पर्यावरणीय चिंताओं और ग्राहकों की मांग पर अब प्रतिमा बनाने वाले कारीगर मिट्टी का इस्तेमाल कर रहे हैं. मिट्टी से बनी इन प्रतिमाओं को खूबसूरत बनाने के लिए जहां पहले कैमिकल वाले रंग इस्तेमाल किये जा रहे थे, वहीं अब मिठाइयों और खाने में इस्तेमाल होने वाले रंग प्रयोग में लाये जा रहे हैं. मिट्टी और खाने के रंग इस्तेमाल होने से जहां यह प्रतिमाएं पानी में आसानी से विसर्जित हो जाती हैं. वहीं इसका जलीय जीवों पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है.

भगवान गणेश की इको फ्रेंडली प्रतिमाओं की बढ़ी मांग जहां पर्यावरण को लेकर लोगों की जागरूकता को जाहिर कर रही है. वहीं प्रतिमा बनाने वाले कारीगर भी इससे खुश हैं. बाजार में हर साल भगवान गणेश की प्रतिमाओं की मांग बढ़ रही है, ऐसे में जरूरी हो जाता है कि पर्यावरण की चिंता की जाए, ताकि लोग हर साल गणपति को अपने घर बुला सकें.

Intro:एंकर:मुरादाबाद: गणेश चतुर्थी महोत्सव को लेकर बाजार सज चुके है और भगवान गणेश की प्रतिमाएं हर किसी का मन मोह रहीं है. बदलते समय और पर्यावरण को लेकर वैश्विक चिंता का असर गणेश महोत्सव पर भी नजर आ रहा है. बाजारों में भगवान गणेश की इको फ्रेंडली प्रतिमाओं की मांग जोर पकड़ रहीं है जिसके बाद खड़िया मिट्टी और खाने का रंग मिलाकर प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है. पहले गणेश प्रतिमाओं को प्लास्टर ऑफ पेरिस के साथ कैमिकल मिलाकर तैयार किया जाता था लेकिन पर्यावरण को हो रहें नुकशान के बाद अब प्रतिमाओं को पर्यावरण फ्रेंडली तैयार किया जा रहा है.
सर वीडियो दुबारा भेज दिया है.
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स्लग से.



Body:वीओ वन: खूबसूरत पंडाल में सजी भगवान गजानन की विशालकाय प्रतिमा हो या फिर घर में स्थापित बाल गणेश. जी हां गणेश चतुर्थी के मौके पर भगवान गणेश की अलग-अलग आकार और डिजाइन में तैयार प्रतिमाओं से बाजार सज चुके है. दो सितंबर को भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित होनी है और उससे पहले लोग बाजारों में गणेश प्रतिमा पसंद कर रहें है. मुरादाबाद के मझोला क्षेत्र में राजस्थान से आए कारीगर गणेश प्रतिमाओं को तैयार करते है. राजस्थानी खड़िया मिट्टी और चाक की मिट्टी से तैयार प्रतिमाओं को जुट के धागों के सहारे खड़ा किया जाता है.स्थानीय स्तर पर पर्यावरण के अनुकूल तैयार इन प्रतिमाओं की डिमांड हर साल बढ़ रहीं है.
बाईट: बंटी- ग्राहक
बाईट: संजू: ग्राहक
वीओ टू: मुरादाबाद में तैयार इन प्रतिमाओं को खरीदने दूर-दूर से लोग पहुंच रहें है. कुछ सालों पहले भगवान गणेश की प्रतिमाओं को प्लास्टर ऑफ पेरिस और कैमिकल से तैयार किया जाता था और इसमें प्लास्टिक भी लगाई जाती थी. लेकिन पर्यावरणीय चिंताओं और ग्राहकों की मांग पर अब प्रतिमा बनाने वाले कारीगर मिट्टी का इस्तेमाल कर रहें है. मिट्टी से बनी इन प्रतिमाओं को खूबसूरत बनाने के लिए जहां पहले कैमिकल वाले रंग इस्तेमाल किये जा रहे थे वहीं अब मिठाइयों और खाने में इस्तेमाल होने वाले रंग प्रयोग में लाये जा रहें है. मिट्टी और खाने के रंग इस्तेमाल होने से जहां यह प्रतिमाएं पानी में आसानी से विसर्जित हो जाती है वही इसका जलीय जीवों पर भी कोई नुकशान नहीं होता.
बाईट: खेमराम: कारीगर


Conclusion:वीओ तीन: भगवान गणेश की इको फ्रेंडली प्रतिमाओं की बढ़ी मांग जहां पर्यावरण को लेकर लोगों की जागरूकता को जाहिर कर रही है वहीं प्रतिमा बनाने वाले कारीगर भी इससे खुश है. बाजार में हर साल भगवान गणेश की प्रतिमाओं की मांग बढ़ रही है ऐसे में जरूरी हो जाता है कि पर्यावरण की चिंता की जाय ताकि लोग हर साल गणपति को अपने घर बुला सकें.
भुवन चन्द्र
ईटीवी भारत
मुरादाबाद
9634544417
Last Updated : Aug 31, 2019, 1:02 AM IST
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