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मिर्जापुर में बन रहा उच्च क्वालिटी का हाइड्रोजन, पूरी दुनिया को सप्लाई करने की है क्षमता

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Published : Mar 1, 2021, 4:12 PM IST

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बीजल ग्रीन एनर्जी कंपनी ने एक अनोखा प्लांट लगाया है. फसलों के अवशेष से हाइड्रोजन के साथ मिथेन बायोकोल और कार्बन डाइऑक्साइड प्रोड्यूस किया जा रहा है. यहां महज 36 घंटे में ही उच्च क्वालिटी का हाइड्रोजन भारी मात्रा में बन रहा है, जो दुनिया के लिए वरदान साबित हो सकता है. बड़ी बात यह भी है कि अब किसानों के खेतों के अवशेष खरीद लिए जाएंगे, जिससे किसानों को भी भारी मुनाफा होगा.

हाइड्रोजन प्लांट
हाइड्रोजन प्लांट

मिर्जापुरः विदेश से लौटे वैज्ञानिक प्रीतम सिंह ने फसलों के अवशेष से दुनिया का सबसे शुद्ध हाइड्रोजन के साथ ही मिथेन बायोकॉल और कार्बन डाइऑक्साइड बनाया है. बायोहाइड्रोजन प्रोड्यूस करने का यह अनोखा प्लांट है. डॉक्टर प्रीतम थर्मली एक्सेलरेटेड अनोरोबिक डाइजेसन (thermally-accelerated anaerobic digestion) तकनीक की मदद से फसलों के अवशेष से 36 घंटे में हाइड्रोजन तैयार कर रहे हैं. यह मार्केट रेट से काफी सस्ता है.

मिर्जापुर में बन रहा उच्च क्वालिटी का हाइड्रोजन.

उच्च क्वालिटी का है हाइड्रोजन
वैज्ञानिक प्रीतम सिंह ने बताया कि बीजल ग्रीन एनर्जी कंपनी की छमता इतनी है कि आज भी दुनिया को तीन से चार डॉलर प्रति किलोग्राम में ultra-high प्योरिटी अति शुद्धता का हाइड्रोजन प्रोवाइड करा सकते हैं. जबकि वर्ल्ड हाइड्रोजन काउंसिल का टारगेट सन् 2050 तक में 5 डालर प्रति किलोग्राम हाइड्रोजन सप्लाई करने का है. हमने उसे अभी प्राप्त कर लिया है. यह डीजल पेट्रोलियम से सस्ता फ्यूल होगा. पूरी दुनिया को हाइड्रोजन से चलाया जा सकता है. भारत सरकार को अब हाइड्रोजन की चिंता करने की जरूरत नहीं है. भारत के किसान भारत के खेत से पर्याप्त हाइड्रोजन मुहैया कराएंगे. शुद्ध हाइड्रोजन की ऊर्जा क्षमता सैटेलाइट परिक्षेपण में सहायक यान जियोस्टेशनरी सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) के ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले हाइड्रोजन जितनी है.

हाइड्रोजन प्रोड्यूस करने का अनोखा प्लांट
चुनार तहसील के शक्तेशगढ़ रामपुर में स्थित बीजल ग्रीन एनर्जी कंपनी ने थर्मली एक्सेलरेटेड अनोरोबिक डाइजेसन (thermally-accelerated anaerobic digestion) तकनीक की मदद से 4 रियेक्टर बनाए हैं. यह इस तरह का रिएक्टर डेवलपमेंट किया गया है जिसमें किसानों के फसलों के अवशेष (पराली और गेहूं गन्ने का छिलका नारियल का छिलका, अरहर के पेड़ ,धान की भूसी और लकड़ी जैसे अवशेष) से हाइड्रोजन के साथ ही मिथेन, बायोकॉल और कार्बन डाइऑक्साइड बनाया जा रहा है. 25 किलो वाट की क्षमता से लगभग 1500 से 2000 किलोग्राम बायोमास को 36 घंटे में 60 किलो हाइड्रोजन, लगभग ढाई सौ किलोग्राम मिथेन, 400 से 450 किलोग्राम बायोकोल और 600 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड अलग कर देते हैं. उन्होंने बताया कि जो हमारी गैस मिक्सर होती है उसमें 70 से 80 प्रतिशत हाइड्रोजन 20 से 25 प्रतिशत तक मिथेन होती है. इस गैस क्रायोकंप्रेसर में ले जाकर नान हाइड्रोजन प्रोडक्ट्स को लिक्विड नेचुरल गैस या तरलीकृत नेचुरल गैस में बदल दिया जाता है.

मार्केट से सस्ता होगा यह हाइड्रोजन
कोल्ड रखने के लिए एनटीपीसी बरौनी में हाइड्रोजन की सप्लाई वेंडर के थ्रू की गई है. वेल्डिंग करने के लिए उच्च क्वालिटी के हाइड्रोजन को भी सप्लाई किया गया है. एनटीपीसी सोनभद्र के साथ भी बात चल रही है. एनटीपीसी को डॉक्टर प्रीतम 600 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से हाइड्रोजन बेच रहे हैं जबकि बाजार में इसकी कीमत 2100 से 2200 रुपये प्रति किलोग्राम है. देश के साथ इजरायल और अमेरिका कंपनियों ने भी हाइड्रोजन खरीदने के लिए संपर्क किया है. इसके अलावा रिएक्टर में मीथेन (एलएनजी-तरलीकृत प्राकृतिक गैस सीएनजी- संपीडित प्राकृतिक गैस) और विश्व की सबसे उच्च ईंधन क्षमता वाले कोयले का उत्पादन भी हो रहा है. इस कोयले की खासियत है कि धुंआ नहीं करता है.

प्लॉट से बना बिना धुएं का कोयला.
प्लॉट से बना बिना धुएं का कोयला.

हजारों सालों में जो होता था वह 36 घंटे में हो रहा है
जमीन के अंदर दबे जीवाश्म को ईंधन बनाने में हजारों साल का समय लगता है. थर्मली एक्सेलरेटेड अनोरोबिक डाइजेसन तकनीक की मदद से डॉ प्रीतम ने इस चक्र को 36 घंटे में कर दिया है. इस तकनीक में फसल के अवशेष को जलाया नहीं जाता है, बल्कि उसकी पूरी गैस निकाली जाती है. एक बार में रिएक्टर में 1500 से 2000 किलोग्राम बायोमास डाला जाता है रिएक्टर में ताप बढ़ते ही सबसे पहले कार्बन और ऑक्सीजन के बांड टूटते हैं. इससे कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है, जिसे एक चेंबर में इकट्ठा कर लिया जाता है इसी क्रम में हाइड्रोजन टूटता है और कार्बन के साथ क्रिया करके मिथेन बनाता है. तापमान थोड़ा और बढ़ाया जाता है तो सबसे शुद्ध हाइड्रोजन मिलता है. इसे एक क्रायो इस्टोरेज (बेहद निम्न तापमान पर संपीड़ित करके रखना) टैंक में इक्कठा कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया में कुल 36 घंटे लगते हैं. सबसे आखरी में बचता है शून्य कार्बन उत्सर्जन वाला कोयला. भारत में सबसे उच्च कोटि का कोयला एंथ्रेसाइट (85 फीसद कार्बन) है. रियेक्टर से प्राप्त बियो कोल की एनर्जी एंथ्रेसाइट कोल से 2000 कैलोरी प्रति ग्राम ज्यादा है.

यह भी पढ़ेंः-प्राइमरी स्कूल पहुंचे सीएम योगी, बच्चों को दी चॉकलेट

भारत के खेतों से हाइड्रोजन पूरी दुनिया को होगा उपलब्ध
डॉ. प्रीतम सिंह के मुताबिक एलएनजी की प्राइज दुनिया में बहुत तेजी से बढ़ रही है और दुनिया सीएनजी के जगह लिक्विड फाई नेचुरल गैस की तरफ जा रही है. अब एलएनजी की डिमांड पूरे देश से यहां पर आ रही है इसके अलावा ultra-high प्यूरिटी की डिमांड भी बहुत तेजी से बढ़ रही है. इसलिए अब हम अपने प्लांट को विस्तार की तरफ ले जा रहे हैं. भारत सरकार ने जो हाइड्रोजन मिशन लांच किया है सरकार को सब्सिडी देने की जरूरत नहीं है न ही किसी तरह की आय और व्यय की जरूरत है, बल्कि किसान के अवशेषों को 5 रुपये किलोग्राम से लेकर 10 रुपये किलोग्राम तक की कीमत देते हुए इस तकनीक से भारत के अंदर हाइड्रोजन बनाया जा सकता है. देश में टोटल बायोमास या एग्रीकल्चर का बेस्ट जो है वह हिंदुस्तान के टोटल पेट्रोलियम और कोल के निट का चार गुना ज्यादा है यदि हमारी टेक्नोलॉजी के कन्वर्जन से किया जाता है. भारत सरकार को अब हाइड्रोजन की चिंता करने की जरूरत नहीं है भारत के किसान भारत के खेत से हाइड्रोजन पूरी दुनिया को उपलब्ध कराएगा.

बीएचयू में कार्यरत हैं प्रीतम सिंह
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में केमिस्ट्री के नोबेल विजेता प्रो. जान. बी. गुडइनफ के साथ सोडियम आयन बैटरी पर शोध करके मिर्जापुर चुनार के नियामतपुर कला गांव के रहने वाले दौलत सिंह के बेटे डॉ. प्रीतम सिंह 2016 में भारत लौटे हैं. आईआईएससी बेंगलुरु के डॉक्टर कोंडा शिवा के साथ मिलकर बीजल ग्रीन एनर्जी कंपनी बनाई है. इससे पहले वर्ष 2004 से 2011 तक आईआईएससी से पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टर एम एस हेंगडे के मार्गदर्शन में पीएचडी की है. इस दौरान ही उन्होंने हाइड्रोजन की तकनीक पर कार्य किया था. अब आईआईटीबीएचयू वाराणसी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं.

मिर्जापुरः विदेश से लौटे वैज्ञानिक प्रीतम सिंह ने फसलों के अवशेष से दुनिया का सबसे शुद्ध हाइड्रोजन के साथ ही मिथेन बायोकॉल और कार्बन डाइऑक्साइड बनाया है. बायोहाइड्रोजन प्रोड्यूस करने का यह अनोखा प्लांट है. डॉक्टर प्रीतम थर्मली एक्सेलरेटेड अनोरोबिक डाइजेसन (thermally-accelerated anaerobic digestion) तकनीक की मदद से फसलों के अवशेष से 36 घंटे में हाइड्रोजन तैयार कर रहे हैं. यह मार्केट रेट से काफी सस्ता है.

मिर्जापुर में बन रहा उच्च क्वालिटी का हाइड्रोजन.

उच्च क्वालिटी का है हाइड्रोजन
वैज्ञानिक प्रीतम सिंह ने बताया कि बीजल ग्रीन एनर्जी कंपनी की छमता इतनी है कि आज भी दुनिया को तीन से चार डॉलर प्रति किलोग्राम में ultra-high प्योरिटी अति शुद्धता का हाइड्रोजन प्रोवाइड करा सकते हैं. जबकि वर्ल्ड हाइड्रोजन काउंसिल का टारगेट सन् 2050 तक में 5 डालर प्रति किलोग्राम हाइड्रोजन सप्लाई करने का है. हमने उसे अभी प्राप्त कर लिया है. यह डीजल पेट्रोलियम से सस्ता फ्यूल होगा. पूरी दुनिया को हाइड्रोजन से चलाया जा सकता है. भारत सरकार को अब हाइड्रोजन की चिंता करने की जरूरत नहीं है. भारत के किसान भारत के खेत से पर्याप्त हाइड्रोजन मुहैया कराएंगे. शुद्ध हाइड्रोजन की ऊर्जा क्षमता सैटेलाइट परिक्षेपण में सहायक यान जियोस्टेशनरी सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) के ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले हाइड्रोजन जितनी है.

हाइड्रोजन प्रोड्यूस करने का अनोखा प्लांट
चुनार तहसील के शक्तेशगढ़ रामपुर में स्थित बीजल ग्रीन एनर्जी कंपनी ने थर्मली एक्सेलरेटेड अनोरोबिक डाइजेसन (thermally-accelerated anaerobic digestion) तकनीक की मदद से 4 रियेक्टर बनाए हैं. यह इस तरह का रिएक्टर डेवलपमेंट किया गया है जिसमें किसानों के फसलों के अवशेष (पराली और गेहूं गन्ने का छिलका नारियल का छिलका, अरहर के पेड़ ,धान की भूसी और लकड़ी जैसे अवशेष) से हाइड्रोजन के साथ ही मिथेन, बायोकॉल और कार्बन डाइऑक्साइड बनाया जा रहा है. 25 किलो वाट की क्षमता से लगभग 1500 से 2000 किलोग्राम बायोमास को 36 घंटे में 60 किलो हाइड्रोजन, लगभग ढाई सौ किलोग्राम मिथेन, 400 से 450 किलोग्राम बायोकोल और 600 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड अलग कर देते हैं. उन्होंने बताया कि जो हमारी गैस मिक्सर होती है उसमें 70 से 80 प्रतिशत हाइड्रोजन 20 से 25 प्रतिशत तक मिथेन होती है. इस गैस क्रायोकंप्रेसर में ले जाकर नान हाइड्रोजन प्रोडक्ट्स को लिक्विड नेचुरल गैस या तरलीकृत नेचुरल गैस में बदल दिया जाता है.

मार्केट से सस्ता होगा यह हाइड्रोजन
कोल्ड रखने के लिए एनटीपीसी बरौनी में हाइड्रोजन की सप्लाई वेंडर के थ्रू की गई है. वेल्डिंग करने के लिए उच्च क्वालिटी के हाइड्रोजन को भी सप्लाई किया गया है. एनटीपीसी सोनभद्र के साथ भी बात चल रही है. एनटीपीसी को डॉक्टर प्रीतम 600 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से हाइड्रोजन बेच रहे हैं जबकि बाजार में इसकी कीमत 2100 से 2200 रुपये प्रति किलोग्राम है. देश के साथ इजरायल और अमेरिका कंपनियों ने भी हाइड्रोजन खरीदने के लिए संपर्क किया है. इसके अलावा रिएक्टर में मीथेन (एलएनजी-तरलीकृत प्राकृतिक गैस सीएनजी- संपीडित प्राकृतिक गैस) और विश्व की सबसे उच्च ईंधन क्षमता वाले कोयले का उत्पादन भी हो रहा है. इस कोयले की खासियत है कि धुंआ नहीं करता है.

प्लॉट से बना बिना धुएं का कोयला.
प्लॉट से बना बिना धुएं का कोयला.

हजारों सालों में जो होता था वह 36 घंटे में हो रहा है
जमीन के अंदर दबे जीवाश्म को ईंधन बनाने में हजारों साल का समय लगता है. थर्मली एक्सेलरेटेड अनोरोबिक डाइजेसन तकनीक की मदद से डॉ प्रीतम ने इस चक्र को 36 घंटे में कर दिया है. इस तकनीक में फसल के अवशेष को जलाया नहीं जाता है, बल्कि उसकी पूरी गैस निकाली जाती है. एक बार में रिएक्टर में 1500 से 2000 किलोग्राम बायोमास डाला जाता है रिएक्टर में ताप बढ़ते ही सबसे पहले कार्बन और ऑक्सीजन के बांड टूटते हैं. इससे कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है, जिसे एक चेंबर में इकट्ठा कर लिया जाता है इसी क्रम में हाइड्रोजन टूटता है और कार्बन के साथ क्रिया करके मिथेन बनाता है. तापमान थोड़ा और बढ़ाया जाता है तो सबसे शुद्ध हाइड्रोजन मिलता है. इसे एक क्रायो इस्टोरेज (बेहद निम्न तापमान पर संपीड़ित करके रखना) टैंक में इक्कठा कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया में कुल 36 घंटे लगते हैं. सबसे आखरी में बचता है शून्य कार्बन उत्सर्जन वाला कोयला. भारत में सबसे उच्च कोटि का कोयला एंथ्रेसाइट (85 फीसद कार्बन) है. रियेक्टर से प्राप्त बियो कोल की एनर्जी एंथ्रेसाइट कोल से 2000 कैलोरी प्रति ग्राम ज्यादा है.

यह भी पढ़ेंः-प्राइमरी स्कूल पहुंचे सीएम योगी, बच्चों को दी चॉकलेट

भारत के खेतों से हाइड्रोजन पूरी दुनिया को होगा उपलब्ध
डॉ. प्रीतम सिंह के मुताबिक एलएनजी की प्राइज दुनिया में बहुत तेजी से बढ़ रही है और दुनिया सीएनजी के जगह लिक्विड फाई नेचुरल गैस की तरफ जा रही है. अब एलएनजी की डिमांड पूरे देश से यहां पर आ रही है इसके अलावा ultra-high प्यूरिटी की डिमांड भी बहुत तेजी से बढ़ रही है. इसलिए अब हम अपने प्लांट को विस्तार की तरफ ले जा रहे हैं. भारत सरकार ने जो हाइड्रोजन मिशन लांच किया है सरकार को सब्सिडी देने की जरूरत नहीं है न ही किसी तरह की आय और व्यय की जरूरत है, बल्कि किसान के अवशेषों को 5 रुपये किलोग्राम से लेकर 10 रुपये किलोग्राम तक की कीमत देते हुए इस तकनीक से भारत के अंदर हाइड्रोजन बनाया जा सकता है. देश में टोटल बायोमास या एग्रीकल्चर का बेस्ट जो है वह हिंदुस्तान के टोटल पेट्रोलियम और कोल के निट का चार गुना ज्यादा है यदि हमारी टेक्नोलॉजी के कन्वर्जन से किया जाता है. भारत सरकार को अब हाइड्रोजन की चिंता करने की जरूरत नहीं है भारत के किसान भारत के खेत से हाइड्रोजन पूरी दुनिया को उपलब्ध कराएगा.

बीएचयू में कार्यरत हैं प्रीतम सिंह
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में केमिस्ट्री के नोबेल विजेता प्रो. जान. बी. गुडइनफ के साथ सोडियम आयन बैटरी पर शोध करके मिर्जापुर चुनार के नियामतपुर कला गांव के रहने वाले दौलत सिंह के बेटे डॉ. प्रीतम सिंह 2016 में भारत लौटे हैं. आईआईएससी बेंगलुरु के डॉक्टर कोंडा शिवा के साथ मिलकर बीजल ग्रीन एनर्जी कंपनी बनाई है. इससे पहले वर्ष 2004 से 2011 तक आईआईएससी से पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टर एम एस हेंगडे के मार्गदर्शन में पीएचडी की है. इस दौरान ही उन्होंने हाइड्रोजन की तकनीक पर कार्य किया था. अब आईआईटीबीएचयू वाराणसी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं.

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