मिर्जापुर: एक दशक से बंद जिले के कंबल कारखाने में फिर से काम शुरू हो गया गया. इससे लाॅकडाउन में बेरोजगार हुए बुनकरों सहित अन्य कामगारों में रोजगार मिलने की उम्मीद जगी है. कोरोना काल में कारखाने में काम शुरू होने से मौजूदा समय में 50 बुनकर काम कर रहे हैं. इनके द्वारा तैयार किए गए कंबल गांधी आश्रमों के अलावा अन्य जिले में भेजे जाएंगे. बुनकरों को 10 हजार रुपये से 12000 रुपये प्रति माह भुगतान किया जाता है.
वहीं लाॅकडाउन में पलायन कर आए प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने में वरीयता दी जाएगी. जिले के पथरहिया में स्थित जिला ग्रामोद्योग कार्यालय परिसर एक दशक से बंद पड़े कंबल कारखाने को फिर से शुरू कर दिया गया है. यहां पर तैयार किए गए कंबलों की आपूर्ति जेल और आपदा प्रभावित क्षेत्रों में की जाती है.
साल 2010 से बंद था कारखाना
प्रवासी मजदूरों और स्थानीय बुनकरों को रोजगार देने के लिए साल 2010 से बंद कंबल कारखाने को जून 2020 में दोबारा से शुरू किया गया है. कारखाने में प्रतिदिन 100 से 120 कंबल तैयार किए जाते हैं. कारखाना शुरू होने के कारण अब जिले में अन्य राज्यों से कंबल की आपूर्ति नहीं होगी.
कबंल तैयार करने में फाइबर का होता है इस्तेमाल
कंबल तैयार करने में 67 प्रतिशत और 33 प्रतिशत मिक्स फाइबर का उपयोग किया जा रहा है. अधिकारियों ने बताया कि अभी करीब 250 कामगारों को और रोजगार दिया जाएगा. जैसे ही आने वाले दिनों में कंबल की मांग बढ़ेगी. वैसे ही रोजगार भी बढ़ेगा. विभाग की ओर से करीब 500 कामगारों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है. एक दिन में एक बुनकर 12 कंबल बना सकता है और उसे प्रति कंबल 100 रुपये का भुगतान किया जाता है.
यहां के कंबलों की रहती है मांग
जिला ग्रामोद्योग अधिकारी जवाहरलाल ने बताया कि पहले कारखाने में तैयार किए गए कंबल की काफी मांग रहती थी. काम बंद होने के कारण स्थानीय बुनकर सहित कारखाने में काम करने वाले मजदूर बेरोजगार हो गए. रोजगार के लिए ज्यादातर कामगार पलायन कर गए, जो लाॅकडाउन में फिर वापस आए हैं. उन्होंने कहा कि कारखाना दोबारा से शुरू होने से लोगों को रोजगार भी मिलेगा और अच्छी क्वालिटी का कंबल भी तैयार होगा.
बुनकरों ने कहा, रोजगार मिलेगा तो नहीं जाएंगे बाहर
वहीं कारखाने में काम करने वाले बुनकर मोहम्मद गुलाम ने बताया कि पहले घर में ही कंबल बनाने का काम करता था, लेकिन लाॅकडाउन में कारोबार पुरी तरह से बर्बाद हो गए. अब कारखाना शुरू हो गया है तो यहीं पर काम कर रहा हूं. वहीं लाॅकडाउन में पलायन कर आए बुनकर मोहम्मद शफीक ने बताया कि अगर इसी तरह से रोजागर मिलता रहे तो रोजी-रोटी के लिए अन्य राज्यों में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.