हैदराबाद: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने भारत की अंतरिक्ष यात्रा में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं और अब 2025 में एक नया इतिहास रचने की कगार पर हैं. इसरो के सबसे महत्वपूर्ण स्पेस सेंटर्स में से एक सतीश धवन स्पेस सेंटर है, जो एक नया रिकॉर्ड कायम करने वाला है. दरअसल, इसरो अपने इस स्पेस सेंटर से 100वां रॉकेट लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है.
पूरी दुनिया में अभी तक कुछ ही ऐसे स्पेस सेंटर्स हैं, जहां से 100 या उससे भी ज्यादा रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजा गया है. अब उस लिस्ट में भारत के आंध्र प्रदेश में स्थित श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर का नाम भी शामिल होना वाला है, क्योंकि यह स्पेस सेंटर भी 100वें रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए तैयार है.
सतीश धवन स्पेस सेंटर की ऐतिहासिक यात्रा
आपको बता दें कि सतीश धवन स्पेस सेंटर से 99वां रॉकेट, हाल ही में 30 दिसंबर 2024 को लॉन्च किया गया था. उस मिशन का नाम SpaDeX है. अब इसरो अपने इसी ऐतिहासिक स्पेस सेंटर से 100वां रॉकेट लॉन्च करने वाला है. यह ऐतिहासिक लॉन्च NVS-02 सैटेलाइट के साथ किया जाएगा, जिसे जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) के जरिए श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से भेजा जाएगा. आइए हम आपको अपने इस आर्टिकल में भारत और इसरो के इस ऐतिहासिक स्पेस सेंटर यानी सतीश धवन स्पेस सेंटर के इतिहास पर एक नज़र डालते हैं. हम आपको इसकी स्थापना से लेकर 100वें रॉकेट तक की पूरी कहानी का ब्यौरा देंगे.
सतीश धवन स्पेस सेंटर (SHAR), श्रीहरिकोटा में स्थित है, जो आंध्र प्रदेश के पूर्वी तट पर एक पतली और लंबी द्वीप है. यह चेन्नई से करीब 80 किलोमीटर उत्तर में है. इस द्वीप को 1969 में एक सैटेलाइट लॉन्चिंग स्टेशन के लिए चुना गया था. श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के एक छोटे से कस्बे सुलुरुपेटा के पास स्थित है. चेन्नई और कोलकाता को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे से सुलुरुपेटा पहुंचा जा सकता है. वहां से पुलीकट झील के ऊपर से बनी सड़क पर 20 मिनट की यात्रा करके श्रीहरिकोटा जा सकते हैं. श्रीहरिकोटा का कुल क्षेत्रफल करीब 43,360 एकड़ (175 स्क्वॉयर किलोमीटर) है, जिसमें 50 किलोमीटर लंबा समुद्रतट भी शामिल है.
श्रीहरिकोटा को कैसे चुना गया
सतीश धवन स्पेस सेंटर (SHAR) की शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी, जब भारत के महान व्यक्तियों में से एक डॉ. विक्रम ए साराभाई ने भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान (Space Reseach) गतिविधियां शुरू कीं. उन्होंने यह सपना देखा था कि, "हमें एडवांस टेक्नोलॉजी को इंसान और समाज की वास्तविक समस्याओं के समाधान के लिए लागू करने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए." उसके बाद भारत में स्वदेशी सैटेलाइट बनाने और उनके लॉन्च व्हीकल को डेवलप करने के लिए, देश के पूर्वी तट पर एक रॉकेट लॉन्च स्टेशन स्थापित करने का निर्णय लिया गया.
- 1960 के दशक में, जब भारत ने स्वदेशी सैटेलाइट और लॉन्च व्हीकल डेवलप करने का फैसला किया तो इसके लिए एक अच्छे स्थान की ढूंढने का काम शुरू हुआ. इस तलाश का नेतृत्व भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई कर रहे थे. उन्होंने अपने साथी वैज्ञानिक ईवी चिटनिस से कहा कि वे देश के पूर्वी तट पर एक लॉन्च स्थल की तलाश करें.
- मार्च 1968 में, ईवी चिटनिस ने आंध्र प्रदेश के तत्कालीन उद्योग निदेशक अबिद हुसैन से संपर्क किया. हुसैन ने उन्हें संभावित स्थलों की जानकारी जुटाने और नक्शे तैयार करने में मदद की. इन स्थलों में श्रीहरिकोटा भी शामिल था.
- अगस्त 1968 में, डॉ. साराभाई ने श्रीहरिकोटा का सर्वेक्षण किया. अक्टूबर 1968 तक, इस स्थान पर लगभग 40,000 एकड़ जमीन अधिग्रहित कर ली गई. इस प्रकार, श्रीहरिकोटा को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख लॉन्च स्थल के रूप में चुना गया, जो आज भी देश की अंतरिक्ष यात्रा की नींव है.
- इस तरह से श्रीहरिकोटा का चयन भारत के रॉकेट लॉन्च स्टेशन के लिए चुना गया. 9 अक्टूबर 1971 को श्रीहरिकोटा स्थित रॉकेट लॉन्च स्टेशन से ‘Rohini-125’ नाम का एक छोटा साउंडिंग रॉकेट लॉन्च किया गया. यह श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से उड़ान भरने वाला पहला रॉकेट था.
- इसके बाद, यहां की सुविधाओं का लगातार विस्तार किया गया ताकि इसरो की बढ़ती जरूरतों को पूरा किया जा सके. 5 सितंबर 2002 को, इसे प्रोफेसर सतीश धवन, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व अध्यक्ष थे, की स्मृति में "सतीश धवन स्पेस सेंटर (SHAR)" नाम दिया गया.
रॉकेट लॉन्च के लिए श्रीहरिकोटा को क्यों चुना गया?
श्रीहरिकोटा को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए आदर्श लॉन्च स्थल के रूप चुना गया है, इसके पीछे कई विशेषताएँ हैं. सबसे पहले, यह पूर्वी तट पर स्थित है, जिससे रॉकेटों को पूर्व दिशा में लॉन्च करना आसान होता है. दूसरा, यह भूमध्य रेखा (Equator Line) के पास स्थित है, जिससे पृथ्वी की घूर्णन (Rotation) गति का लाभ उठाया जा सकता है. भूमध्य रेखा के करीब होने पर रॉकेट को लगभग 450 मीटर प्रति सेकंड की अतिरिक्त गति मिलती है, जिससे अधिक पेलोड भेजने में मदद मिलती है. साथ ही, जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स के लिए यह स्थान और भी उपयुक्त है, क्योंकि उन्हें भूमध्य रेखा के पास ही स्थित होना चाहिए.
इसके अतिरिक्त, श्रीहरिकोटा एक मजबूत भौगोलिक प्लेटफॉर्म है, जो रॉकेट लॉन्च के दौरान उत्पन्न होने वाली तीव्र कंपन का सामना करने में सक्षम है. यह समुद्र के पास स्थित है और इस जगह से आसपास बहुत ही कम लोग रहते हैं, जिससे रॉकेट के उड़ने वाले रूट को सुरक्षित तरीके से समुद्र के ऊपर रखा जा सकता है. इससे किसी भी दुर्घटना के मामले में नुकसान की संभावना बहुत कम हो जाती है. इसके अलावा, श्रीहरिकोटा पर अधिकतर समय मौसम साफ रहता है, जिससे लॉन्च के लिए उपयुक्त दिनों की संख्या बढ़ जाती है. इन सभी विशेषताओं के कारण, श्रीहरिकोटा विशेष रूप से भूमध्य रेखीय कक्षाओं के लिए उपयुक्त है, जो संचार और मौसम सैटेलाइट्स के लिए आदर्श होते हैं. सतीश धवन स्पेस सेंटर में रॉकेट लॉन्च, टेलीमेट्री, डेटा प्रोसेसिंग और अन्य समर्थन सेवाओं के लिए कई प्रमुख सुविधाएं भी उपलब्ध हैं.
सतीश धवन सेंटर से लॉन्च किए गए रॉकेट्स
18.07.1980: Satellite Launch Vehicle-3 (SLV-3E2): यह भारत का पहला प्रयोगात्मक सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा (तत्कालीन श्रीहरिकोटा रेंज) से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया.
15.10.1994: PSLV-D2 ने सफलतापूर्वक IRS-P2 को लॉन्च किया.
21.03.1996: PSLV-D3 ने सफलतापूर्वक IRS-P3 को लॉन्च किया.
26.05.1999: PSLV ने पहली बार विदेशी सैटेलाइट्स को लॉन्च किया. इनमें Oceansat-1, जर्मनी का DLRTubsat और दक्षिण कोरिया का Kitsat-3 शामिल थे.
18.04.2001: GSLV-D1 की पहली उड़ान सफलतापूर्वक संपन्न हुई. इसने 1,540 किलोग्राम का प्रायोगिक सैटेलाइट GSAT-1 को Geo-synchronous Transfer Orbit (GTO) में प्लेस किया.
22.10.2001: PSLV-C3 की छठी उड़ान के दौरान, इसने तीन सैटेलाइट्स (Technology Experiment Satellite (TES) - ISRO, BIRD - Germany, PROBA - Belgium) को उनकी निर्धारित कक्षाओं तक पहुंचाया. यह दूसरा मौका था जब PSLV ने एक साथ तीन सैटेलाइट्स लॉन्च किए थे.
12.09.2002: PSLV-C4 की सातवीं उड़ान में इसने 1,060 किलोग्राम का METSAT-1 सैटेलाइट को GTO में सफलतापूर्वक प्लेस किया था.
08.05.2003: Geosynchronous Satellite Launch Vehicle (GSLV) परियोजना का उद्देश्य Geo-synchronous सैटेलाइट्स को लॉन्च करने की क्षमता हासिल करना था.
10.01.2007: ISRO के Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV-C7) ने सफलतापूर्वक चार सैटेलाइट्स (India’s CARTOSAT-2 और Space Capsule Recovery Experiment (SRE-1), इंडोनेशिया का LAPAN-TUBSAT और अर्जेंटीना का PEHUENSAT-1) को 635 किमी की ऊंचाई पर Polar Sun Synchronous Orbit (SSO) तक पहुंचाया था.
22.10.2008: भारत का ऐतिहासिक Chandrayaan-1 मिशन लॉन्च किया गया. पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी PSLV-C11 ने Chandrayaan-1 को इसकी शुरुआती ऑर्बिट में सफलतापूर्वक पहुंचाया था. यह पहला मौका था जब भारत ने किसी अंतरिक्ष यान को चंद्रमा तक भेजा था.
23.09.2009: पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी PSLV-C14 ने अपनी 16वीं उड़ान में 958 किलोग्राम का Oceansat-2 और छह नैनो-सैटेलाइट्स को 720 किमी की Sun Synchronous Polar Orbit (SSPO) तक पहुंचाया था.
09.09.2012: यह ISRO का 100वां मिशन था. पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी PSLV-C21 ने दो विदेशी सैटेलाइट्स को ऑर्बिट में प्लेस किया था. इस ऐतिहासिक पल को देखने वालों में सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा में कई प्रमुख लोग शामिल थे.
05.11.2013: Mars Orbiter Mission (MOM) को लॉन्च किया गया था. इसे मंगलयान (Mangalyaan) के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन था, जिसे PSLV-C25 के माध्यम से मंगल ग्रह पर भेजा गया था. इसरो ने इसे 5 नवंबर 2013 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था. इस मिशन ने 7 वर्षों तक मंगल की कक्षा में अपना काम जारी रखा.
15.02.2017: PSLV-C37 ने एक ही उड़ान में 104 सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक लॉन्च किया. अपनी 39वीं उड़ान में, ISRO के PSLV-C37 ने Cartosat-2 Series सैटेलाइट के साथ 103 अन्य सह-यात्री सैटेलाइट्स को सतीश धवन स्पेस सेंटर (SHAR), श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया था. यह PSLV का लगातार 38वां सफल मिशन था. इन सभी 104 सैटेलाइट्स का कुल वजन 1,378 किग्रा था.
23.06.2017: ISRO के Polar Satellite Launch Vehicle ने अपनी 40वीं उड़ान (PSLV-C38) में 712 किग्रा का Cartosat-2 Series सैटेलाइट और 30 अन्य सह-यात्री सैटेलाइट्स को Sun Synchronous Orbit (SSO) तक पहुंचाया था. यह लॉन्च सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा के पहले लॉन्च पैड से किया गया.
14.11.2018: ISRO ने GSAT-29 सैटेलाइट को श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया था. यह सबसे भारी सैटेलाइट में से एक था, जिसे बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए लॉन्च किया गया था.
22.07.2019: Chandrayaan-2 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था. ISRO के GSLV MkIII-M1 ने Chandrayaan-2 को सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया था. यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर लैंडिंग की योजना के साथ भेजा गया था, लेकिन यह मिशन सफल नहीं हो पाया था.
26.03.2023: LVM3 M3/OneWeb India-2 मिशन को पूरा किया गया. LVM3 M3/OneWeb India-2 मिशन ISRO के GSLV MkIII की छठी लगातार सफल उड़ान थी. इसने OneWeb Group Company के 36 सैटेलाइट्स को लॉन्च किया था. यह लॉन्च सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से किया गया था.
14.07.2023: Chandrayaan-3 के रूप में इसरो ने लूनर मिशन लॉन्च किया था. इस दिन सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा से Chandrayaan-3 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था. इस मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र यानी साउथ पोल के सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करना और रिसर्च करना था.
02.09.2024: Aditya L1 Mission इसरो का पहला सफल सौर मिशन था, जिसे सतीश धवन स्पेस सेंटर से सूरज के मिशन के लिए सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था. इस मिशन के जरिए इसरो का मकसद सूर्य के करीब जाकर, वहां की संभावनाओं पर रिसर्च करना था.
12.01.2024: ब्लैक होल्स का अध्ययन करने के लिए इसरो ने XPoSat लॉन्च किया था. इसका फुल फॉर्म X-ray Polarimeter Satellite है. इसका उद्देश्य ब्लैक होल गहन अध्ययन करना था.
05.12.2024: ISRO ने यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) के Proba-3 मिशन को PSLV-C59 के माध्यम से सतीश धवन स्पेस सेंटर से सफलतापूर्वक लॉन्च किया था.
30.12.2024: इसरो ने 30 दिसंबर 2024 को SpaDEx (The Space Docking Experiment) मिशन लॉन्च किया था. इसरो ने इस मिशन को सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया था. इस मिशन में PSLV-C60 रॉकेट ने दो छोटे सैटेलाइट्स, SDX01 (Chaser) और SDX02 (Target), के साथ 24 अन्य पेलोड्स को लेकर उड़ा था.
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