मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए यूपी की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी और तीसरे नंबर की बड़ी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल बीजेपी से मुकाबले के लिए और खुद को मजबूत करने के लिए सोशल इंजीनियरिंग का सहारा ले रही हैं. इतना ही नहीं कुछ माह पूर्व पिछले साल हुए उपचुनाव में वेस्टर्न यूपी की खतौली सीट को बीजेपी से छीनकर गठबंधन के हौसले बुलंद हैं. अब पश्चिमी यूपी में बीजेपी से 2024 में मुकाबले के लिए गठबंधन मजबूत कद्दावर गुर्जर नेताओं को साथ लेकर अपनी नैय्या पार लगाने की तरफ बढ़ते दिखाई दे रहे हैं.
ईटीवी भारत से इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शादाब रिजवी ने भविष्य की बन रही संभावनाओं को लेकर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश का जो आज का राजनीतिक सिनेरियो है, वह लगातार सोशल इंजीनियरिंग की तरफ बढ़ता जा रहा है. चाहे आप भाजपा की स्थिति देखें, चाहे बसपा को देखें. वहीं, अब नई सोशल इंजीनियरिंग गठबंधन ने शुरू की है. यहां गठबंधन से उनका मतलब समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल से है.
वह कहते हैं कि अभी तक जो खासतौर से पश्चिम उत्तर प्रदेश की स्थिति थी, वह खासकर किसान आंदोलन से जुड़ी थी. किसानों को जोड़ने की बात थी. उसमें भी जाट और गुर्जर को ज्यादा अहमियत देने की बात थी. चाहे बीजेपी हो या चाहे अन्य पार्टियां. अब खासकर देख रहे हैं कि हाल में हुए उपचुनाव में खतौली विधानसभा में गठबंधन की जीत के बाद गठबंधन के हौसले बुलंद हैं और जो सोशल इंजीनियरिंग उसने यहां उपचुनाव में लगाई थी, उसी को बढ़ावा देने की तरफ चल रही है.
रालोद ने गुर्जर समाज के नेता को बनाया युवा विंग का राष्ट्रीय अध्यक्ष
वह कहते हैं कि इसको आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि हाल ही में राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने अपने विधायक चंदन सिंह चौहान को युवा राष्ट्रीय लोकदल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है. चंदन चौहान गुर्जर समाज से ताल्लुक रखते हैं और उनका परिवार पश्चिमी यूपी की राजनीति में बेहद दमदार रहा है. उनके दादा यूपी के उप मुख्यमंत्री और पिता सांसद भी रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक शादाब रिजवी का कहना है कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी इसलिए दी गई है. क्योंकि, खतौली में गठबंधन के गुर्जर प्रत्याशी का तोड़ भाजपा के पास नहीं था और वहां गठबंधन की सोशल इंजीनियरिंग कारगर साबित हुई. इसके बाद रालोद ने अपने इस फार्मूले को आजमाने के लिए गुर्जर नेता को बड़ी जिम्मेदारी दी है.
सपा ने भी गुर्जर नेता को बनाया पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव
समाजवादी पार्टी का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सादाब रिजवी कहते हैं कि उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए समाजवादी पार्टी ने भी एक मजबूत दोस्त की तरह सियासी पैंतरा चला है. गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले बड़े घराने को सपा ने भी पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दी है. मेरठ के पूर्व सांसद रहे हरीश पाल सिंह के पुत्र नीरज चौधरी को अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय महासचिव बनाया है.
बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग को गठबंधन दे रहा ऐसे चुनोती
वह कहते हैं कि रालोद ने मदन भैया और चंदन चौहान को जोड़ा है तो वहीं सपा ने नीरज चौधरी को जोड़ा है.
राजनीतिक विश्लेषक सादाब कहते हैं कि पिछले तीन चुनावों तक माना जाता था कि गुर्जर अधिकतर बीजेपी के साथ थे. वहीं, अब गठबंधन भी इस दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रहा है.
बीजेपी ने गुर्जर नेताओं को दिया महत्व
बीजेपी में भी बड़े गुर्जर नेताओं का जिक्र वह करते हुए बताते हैं कि भाजपा में भी गुर्जर नेताओं को खूब प्रमोट किया गया है. इनमें केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल चौधरी, सांसद सुरेंद्र नागर, प्रदेश में ऊर्जा राज्यमंत्री सोमेंद्र तोमर, पिछली सरकार में मंत्री रहे अशोक कटारिया और तेजा गुर्जर किसान मोर्चा के पश्चिमी यूपी के अध्यक्ष हैं. वह कहते हैं कि कहीं न कहीं गठबंधन अब नई सोशल इंजीनियरिंग करके बीजेपी के साथ इस गुर्जरों के जुड़ाव को कम करने की दिशा में काम कर रहा है और अपने साथ लेकर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर वह ऐसा कर रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हरिशंकर जोशी कहते हैं कि बीजेपी ने पिछले कई चुनावों में ओबीसी को साथ लेकर जीत दर्ज की है. अब इस ओबीसी समुदाय में सेंधमारी विपक्षी दलों ने शुरू की है और इस समुदाय का एक बड़ा पार्ट गुर्जर समाज भी है.
एकजुटता के लिए मशहूर हैं गुर्जर
राजनीतिक विश्लेषक हरिशंकर जोशी कहते हैं कि गुर्जर समुदाय को देखा गया है कि जहां भी प्रत्याशी गुर्जर समुदाय से होते हैं, वह भेदभाव भूलकर दलगत राजनीति से उठकर उन्हें ज्यादा प्राथमिकता देते हैं. वह बताते हैं कि अगर राजनीति में इस बिरादरी के दो नेता आपस में चुनाव लड़ रहे होते हैं तो जो अधिक प्रभावशाली और मजबूत होता है प्रायः वह सफल हो जाता है. इस फार्मूले पर यूपी की सियासत में भी खासकर पश्चिमी यूपी में राजनीतिक पार्टियां प्रयोग करती रही हैं.
वह मानते हैं कि विपक्षी दल बीजेपी की रणनीति को समझकर सबक ले रहे हैं. ओबीसी बीजेपी की जीत का बड़ा फैक्टर है. उस पर सभी दलों की निगाह है. राजनीतिक दलों को लगता है कि पश्चिम में गुर्जरों को साथ लेकर मजबूत हुआ जा सकता है.
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