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कांग्रेस के 'हाथ' से खिसक रहा नेताओं और कार्यकर्ताओं का भरोसा, इस वजह से छोड़ रहे पार्टी

गुजरात में कांग्रेस के सबसे मजबूत युवा नेता हार्दिक पटेल के पार्टी छोड़ने की घोषणा से हलचल मच गई है. इसके बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता सुनील जाखड़ ने भी इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस से आखिर उसके पुराने सिपहसलार क्यों दूर हो रहे हैं चलिए जानते हैं इसकी वजह.

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यह बोले लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय गुप्ता.
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Published : May 20, 2022, 6:39 PM IST

लखनऊ : गुजरात में कांग्रेस के सबसे मजबूत युवा नेता हार्दिक पटेल के पार्टी छोड़ने की घोषणा से हलचल मच गई है. तीन पीढ़ियों से कांग्रेस से जुड़े रहे पंजाब के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने इस्तीफा दे दिया.

कांग्रेस (Congress) के चिंतन शिविर और भारत जोड़ों के नारे के बाद ताबड़तोड़ इस्तीफों ने एक बार फिर पार्टी के भविष्य को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं.

यह बोले लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय गुप्ता.
विशेषज्ञों का कहना है कि पार्टी को चिंतन इस बात का करना चाहिए कि नेतृत्व में कहीं कोई ऐसी कमी तो नहीं जिसके कारण कार्यकर्ताओं और कर्मठ नेताओं की उपेक्षा हो रही है. हार्दिक पटेल ( Hardhik Patel) जैसा नेता अगर यह कहता है कि उसे अपने शीर्ष नेतृत्व से मिलने के लिए समय तक नहीं मिलता, उसकी बात नहीं सुनी जाती तो यह चिंतनीय विषय है. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय गुप्ता (Pro. Sanjay Gupta) कहते हैं कि राजनीतिक दल कभी अपने कार्यकर्ताओं को वेतन नहीं देता. कार्यकर्ता तो विचारधारा और नेतृत्व के चलते जुड़ा होता है. अब अगर कार्यकर्ता और नेता के बीच दूरी होगी तो जाहिर सी बात है ऐसी पार्टी कभी खड़ी नहीं हो सकती. प्रोफेसर संजय गुप्ता की सलाह है कि भविष्य में अगर कांग्रेस पार्टी को दोबारा खड़ा करना है, उसे जीवित रखना है तो कार्यकर्ताओं को जोड़कर चलना होगा. राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेताओं को साथ लेना होगा. यह काम अभी नहीं हो रहा है. यही कारण है जिसके चलते कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस का साथ छोड़ रहे हैं तो कभी अदिति सिंह भाजपा का दामन थाम लेती है.
यूपी में इन नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस पार्टी के कई कद्दावर नेताओं की ऐसी पूरी लिस्ट है जिन्होंने पार्टी की नीतियों के चलते हाथ का साथ ही छोड़ दिया. खास बात यह है कि कांग्रेस के इन बगावती चेहरों को भारतीय जनता पार्टी और दूसरे राजनीतिक दलों ने हाथों हाथ लिया. हालत यह है कि पिछली विधानसभा में पार्टी के 7 विधायकों में से 5 ने चुनाव से पहले ही हाथ का साथ छोड़ दिया था.
1. आरपीएन सिंह (RPN Singh) : इन्हें राहुल की कोर टीम का सदस्य माना जाता था. इनके पिता सीपीएन सिंह इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं. कांग्रेस ने इन्हें झारखंड राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रभारी की जिम्मेदारी दी और इस चुनाव में पार्टी में शानदार प्रदर्शन किया था.
2. जितिन प्रसाद : इन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता था. मनमोहन सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री भी रहे. इन्होंने भी कांग्रेस को छोड़ते समय कहा था कि पार्टी और लोगों के बीच संपर्क टूट गया. पार्टी को दोबारा पटरी पर लाने की कोई योजना नहीं है.
3. अदिति सिंह: अखिलेश सिंह रायबरेली विधायक रहे. 2019 में उनका निधन हो गया. उनकी बेटी अदिति सिंह हमेशा कांग्रेस विरोधी बयानों को लेकर चर्चा में रहीं. 2022 चुनाव से पहले उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया.
4. ललितेश त्रिपाठी : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के पोते ललितेश पति त्रिपाठी ने भी चुनाव से पहले ही कांग्रेस का साथ छोड़ दिया.

इन्होंने भी छोड़ा साथ

इमरान मसूद : पद छोड़ते वक्त यह उत्तर प्रदेश के प्रदेश उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय सचिव थे.
सुप्रिया एरोन : बरेली की पूर्व मेयर सुप्रिया ने कांग्रेस का दामन छोड़कर समाजवादी पार्टी का साथ लिया.
हैदर अली : रामपुर के इस युवा नेता ने कांग्रेस का साथ छोड़ अपना दल में शामिल होने का फैसला लिया था.

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लखनऊ : गुजरात में कांग्रेस के सबसे मजबूत युवा नेता हार्दिक पटेल के पार्टी छोड़ने की घोषणा से हलचल मच गई है. तीन पीढ़ियों से कांग्रेस से जुड़े रहे पंजाब के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने इस्तीफा दे दिया.

कांग्रेस (Congress) के चिंतन शिविर और भारत जोड़ों के नारे के बाद ताबड़तोड़ इस्तीफों ने एक बार फिर पार्टी के भविष्य को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं.

यह बोले लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय गुप्ता.
विशेषज्ञों का कहना है कि पार्टी को चिंतन इस बात का करना चाहिए कि नेतृत्व में कहीं कोई ऐसी कमी तो नहीं जिसके कारण कार्यकर्ताओं और कर्मठ नेताओं की उपेक्षा हो रही है. हार्दिक पटेल ( Hardhik Patel) जैसा नेता अगर यह कहता है कि उसे अपने शीर्ष नेतृत्व से मिलने के लिए समय तक नहीं मिलता, उसकी बात नहीं सुनी जाती तो यह चिंतनीय विषय है. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय गुप्ता (Pro. Sanjay Gupta) कहते हैं कि राजनीतिक दल कभी अपने कार्यकर्ताओं को वेतन नहीं देता. कार्यकर्ता तो विचारधारा और नेतृत्व के चलते जुड़ा होता है. अब अगर कार्यकर्ता और नेता के बीच दूरी होगी तो जाहिर सी बात है ऐसी पार्टी कभी खड़ी नहीं हो सकती. प्रोफेसर संजय गुप्ता की सलाह है कि भविष्य में अगर कांग्रेस पार्टी को दोबारा खड़ा करना है, उसे जीवित रखना है तो कार्यकर्ताओं को जोड़कर चलना होगा. राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेताओं को साथ लेना होगा. यह काम अभी नहीं हो रहा है. यही कारण है जिसके चलते कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस का साथ छोड़ रहे हैं तो कभी अदिति सिंह भाजपा का दामन थाम लेती है.
यूपी में इन नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस पार्टी के कई कद्दावर नेताओं की ऐसी पूरी लिस्ट है जिन्होंने पार्टी की नीतियों के चलते हाथ का साथ ही छोड़ दिया. खास बात यह है कि कांग्रेस के इन बगावती चेहरों को भारतीय जनता पार्टी और दूसरे राजनीतिक दलों ने हाथों हाथ लिया. हालत यह है कि पिछली विधानसभा में पार्टी के 7 विधायकों में से 5 ने चुनाव से पहले ही हाथ का साथ छोड़ दिया था.
1. आरपीएन सिंह (RPN Singh) : इन्हें राहुल की कोर टीम का सदस्य माना जाता था. इनके पिता सीपीएन सिंह इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं. कांग्रेस ने इन्हें झारखंड राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रभारी की जिम्मेदारी दी और इस चुनाव में पार्टी में शानदार प्रदर्शन किया था.
2. जितिन प्रसाद : इन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता था. मनमोहन सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री भी रहे. इन्होंने भी कांग्रेस को छोड़ते समय कहा था कि पार्टी और लोगों के बीच संपर्क टूट गया. पार्टी को दोबारा पटरी पर लाने की कोई योजना नहीं है.
3. अदिति सिंह: अखिलेश सिंह रायबरेली विधायक रहे. 2019 में उनका निधन हो गया. उनकी बेटी अदिति सिंह हमेशा कांग्रेस विरोधी बयानों को लेकर चर्चा में रहीं. 2022 चुनाव से पहले उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया.
4. ललितेश त्रिपाठी : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के पोते ललितेश पति त्रिपाठी ने भी चुनाव से पहले ही कांग्रेस का साथ छोड़ दिया.

इन्होंने भी छोड़ा साथ

इमरान मसूद : पद छोड़ते वक्त यह उत्तर प्रदेश के प्रदेश उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय सचिव थे.
सुप्रिया एरोन : बरेली की पूर्व मेयर सुप्रिया ने कांग्रेस का दामन छोड़कर समाजवादी पार्टी का साथ लिया.
हैदर अली : रामपुर के इस युवा नेता ने कांग्रेस का साथ छोड़ अपना दल में शामिल होने का फैसला लिया था.

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