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यहां तो सिस्टम ही 'विकलांग', भला क्या करें दिव्यांग

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Published : Jun 9, 2021, 5:26 AM IST

एक तरफ सरकार दिव्यांगों की सहूलियत के लिए तमाम योजनाएं चला रही है तो वहीं अधिकारी उनके प्रति अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं. अपने हक के लिए दर-दर भटक रहे दिव्यांग की फरियाद सुनने को कोई तैयार नहीं है. राजधानी लखनऊ में एक दिव्यांग बेटा अपनी मां को न्याय दिलाने के लिए दर-दर भटक रहा है.

lucknow news
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लखनऊ: कोरोना काल में अस्पतालों के दरवाजे बंद थे. इस दौरान इलाज न मिलने के कारण गुर्दे की बीमारी से पीड़ित एक महिला की मौत हो गई. उसका बेटा मूक बधिर है. मूक बधिर बेटे का बाप अब बेटे को लेकर इंसाफ के लिए अधिकारियों और नेताओं के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. उसने जिले के जिलाधिकारी से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक फरियाद की. मंगलवार को एक बार फिर महिला के पति ने अपने मुख बधिर बेटे के साथ प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य विभाग में इंसाफ के लिए अर्जी लगाई है.

गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थी नर्जिस
राजधानी के चौपटिया कटरा वफा बेग निवासी हसीब अहमद की पत्नी नर्जिस फातिमा का इलाज 2016 से लोहिया संस्थान में चल रहा था. वह गुर्दे की गंभीर बीमारी से पीड़ित थीं. उन्हें ब्लड प्रेशर और शुगर भी था. पति हसीब ने बताया कि 12 अप्रैल को उनकी पत्नी की हालत बिगड़ी. अस्पतालों की ओपीडी बंद थी. संस्थान में ऑनलाइन पंजीकरण कराया. 16 अप्रैल को संस्थान की तरफ से मरीज की ऑनलाइन जानकारी जुटाई गई. 15 दिन की दवा लिखी, लेकिन इलाज से फायदा नहीं हुआ. 18 अप्रैल को निजी पैथोलॉजी सेंटर में जांच कराई. उसी दिन मरीज की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. कई सरकारी व प्राइवेट अस्पताल में संपर्क किया. ऑक्सीजन के अभाव में किसी अस्पताल ने मरीज को भर्ती नहीं किया. नतीजा यह हुआ कि नर्जिस फातिमा का ऑक्सीजन लेवल 73 से नीचे आ गया.

सीएमओ से लगाई थी गुहार
हसीब ने पत्नी की जान बचाने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में गुहार लगाई. इस दौरान उसका मूक बधिर बेटा आंसू बहाता रहा, लेकिन नियंत्रण कक्ष के कर्मचारी ने उन्होंने कोविड-19 नियमावली और निर्देशों का हवाला दिया और कहा कि बिना कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट के मरीज को यहां से भर्ती नहीं कराया जा सकता है. मायूस बाप-बेटे मरीज को तड़पता देख रहे थे. मरीज को भर्ती न कराने की बेबसी में बेटा बेहोश हो गया था. अब दोहरी दिक्कत आ गई. बेटे को बचाएं या फिर पत्नी को. हालांकि कुछ देर बाद बेटे को होश आ गया.

लोहिया संस्थान की इमरजेंसी में नहीं मिला प्रवेश
19 अप्रैल को मलिहाबाद के स्वास्थ्य केंद्र से कोरोना की एंटीजेन जांच कराई, जो कि नेगेटिव आई. मरीज की हालात लगातार बिगड़ती गई. मरीज की भर्ती के लिए लोहिया इमरजेंसी में संपर्क किया. संस्थान ने बिना आरटी-पीसीआर जांच मरीज को भर्ती करने से मना कर दिया. थकहार कर नर्जिस फातिमा की ठाकुरगंज के निजी अस्पताल में डायलिसिस कराई. मरीज का ऑक्सीजन स्तर निरंतर गिरता चला गया. समुचित इलाज व ऑक्सीजन के अभाव में नर्जिस फातिमा की मौत हो गई.

इसे भी पढ़ें:- मौत वाली मॉक ड्रिल: जिला प्रशासन की लापरवाही से दहशत में आए तीमारदार

मांगी नौकरी और अनुग्रह राशि
हसीब अहमद ने प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर संपूर्ण स्थिति से अवगत कराया है. साथ ही अनुग्रह राशि परिवार को उपलब्ध कराने की मांग की है. साथ ही दिव्यांग बेटे को सरकारी नौकरी देने की मांग की है.

लखनऊ: कोरोना काल में अस्पतालों के दरवाजे बंद थे. इस दौरान इलाज न मिलने के कारण गुर्दे की बीमारी से पीड़ित एक महिला की मौत हो गई. उसका बेटा मूक बधिर है. मूक बधिर बेटे का बाप अब बेटे को लेकर इंसाफ के लिए अधिकारियों और नेताओं के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. उसने जिले के जिलाधिकारी से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक फरियाद की. मंगलवार को एक बार फिर महिला के पति ने अपने मुख बधिर बेटे के साथ प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य विभाग में इंसाफ के लिए अर्जी लगाई है.

गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थी नर्जिस
राजधानी के चौपटिया कटरा वफा बेग निवासी हसीब अहमद की पत्नी नर्जिस फातिमा का इलाज 2016 से लोहिया संस्थान में चल रहा था. वह गुर्दे की गंभीर बीमारी से पीड़ित थीं. उन्हें ब्लड प्रेशर और शुगर भी था. पति हसीब ने बताया कि 12 अप्रैल को उनकी पत्नी की हालत बिगड़ी. अस्पतालों की ओपीडी बंद थी. संस्थान में ऑनलाइन पंजीकरण कराया. 16 अप्रैल को संस्थान की तरफ से मरीज की ऑनलाइन जानकारी जुटाई गई. 15 दिन की दवा लिखी, लेकिन इलाज से फायदा नहीं हुआ. 18 अप्रैल को निजी पैथोलॉजी सेंटर में जांच कराई. उसी दिन मरीज की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. कई सरकारी व प्राइवेट अस्पताल में संपर्क किया. ऑक्सीजन के अभाव में किसी अस्पताल ने मरीज को भर्ती नहीं किया. नतीजा यह हुआ कि नर्जिस फातिमा का ऑक्सीजन लेवल 73 से नीचे आ गया.

सीएमओ से लगाई थी गुहार
हसीब ने पत्नी की जान बचाने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में गुहार लगाई. इस दौरान उसका मूक बधिर बेटा आंसू बहाता रहा, लेकिन नियंत्रण कक्ष के कर्मचारी ने उन्होंने कोविड-19 नियमावली और निर्देशों का हवाला दिया और कहा कि बिना कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट के मरीज को यहां से भर्ती नहीं कराया जा सकता है. मायूस बाप-बेटे मरीज को तड़पता देख रहे थे. मरीज को भर्ती न कराने की बेबसी में बेटा बेहोश हो गया था. अब दोहरी दिक्कत आ गई. बेटे को बचाएं या फिर पत्नी को. हालांकि कुछ देर बाद बेटे को होश आ गया.

लोहिया संस्थान की इमरजेंसी में नहीं मिला प्रवेश
19 अप्रैल को मलिहाबाद के स्वास्थ्य केंद्र से कोरोना की एंटीजेन जांच कराई, जो कि नेगेटिव आई. मरीज की हालात लगातार बिगड़ती गई. मरीज की भर्ती के लिए लोहिया इमरजेंसी में संपर्क किया. संस्थान ने बिना आरटी-पीसीआर जांच मरीज को भर्ती करने से मना कर दिया. थकहार कर नर्जिस फातिमा की ठाकुरगंज के निजी अस्पताल में डायलिसिस कराई. मरीज का ऑक्सीजन स्तर निरंतर गिरता चला गया. समुचित इलाज व ऑक्सीजन के अभाव में नर्जिस फातिमा की मौत हो गई.

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मांगी नौकरी और अनुग्रह राशि
हसीब अहमद ने प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर संपूर्ण स्थिति से अवगत कराया है. साथ ही अनुग्रह राशि परिवार को उपलब्ध कराने की मांग की है. साथ ही दिव्यांग बेटे को सरकारी नौकरी देने की मांग की है.

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