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मकान खाली करने का नोटिस जारी करने का अधिकार सिर्फ मकान मालिक को: हाईकोर्ट - उत्तर प्रदेश समाचार

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सम्पत्ति खाली करने का नोटिस जारी करने व इस संबंध में वाद दाखिल करने का अधिकार सिर्फ मकान मालिक को है. हाईकोर्ट ने यह फैसला भारत संघ द्वारा सचिव पोस्टल विभाग बनाम बलविंदर कौर केस पर सुनाया है.

भारत संघ द्वारा सचिव पोस्टल विभाग बनाम बलविंदर कौर केस.
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Published : Aug 17, 2019, 10:53 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सम्पत्ति खाली करने का नोटिस जारी करने व इस संबंध में वाद दाखिल करने का अधिकार सिर्फ मकान मालिक को है. किराया लेने को अधिकृत व्यक्ति इस सम्बंध में न तो नोटिस जारी कर सकता है और न ही वाद दायर कर सकता है. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह तभी सम्भव है, जबकि उक्त अभिकर्ता को इसके लिए मकान मालिक द्वारा विशेष रूप से अधिकृत किया जाए.

भारत संघ द्वारा सचिव पोस्टल विभाग बनाम बलविंदर कौर केस

यह निर्णय न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने भारत संघ द्वारा सचिव पोस्टल विभाग बनाम बलविंदर कौर व अन्य शीर्षक से दाखिल मामले पर पारित किया. याची का कहना था कि वर्ष 1983 में उसने सवर्न कौर का मकान किराए पर लिया था. बाद में उनकी मृत्यु के बाद उनके पति सेवा सिंह सम्पत्ति के मालिक हो गए व किराया उन्हें दिया जाने लगा. वर्ष 2000 में सेवा सिंह की मृत्यु के पश्चात उनके दो पुत्रों ने पत्र लिखकर किराया अपनी पत्नियों बलविंदर कौर व चरनजीत कौर को देने का निर्देश दिया.

वर्ष 2004 में बलविंदर कौर व चरनजीत कौर ने याची को सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 106 के तहत नोटिस भेजकर सम्पत्ति खाली करने को कहा. खाली न होने पर निचली अदालत में वाद दाखिल कर दिया. जिसके बाद निचली अदालत ने याची को सम्पत्ति खाली करने व नोटिस की तिथि से प्रतिमाह सौ रुपये के हिसाब से किराया लेने के लिए अधिकृत दोनों महिलाओं को अदा करने का आदेश दिया. याची की ओर से निचली अदालत के इस फैसले को चुनौती देते हुए दलील दी गई कि दोनों महिलाएं मात्र किराया लेने के लिए अधिकृत थीं लिहाजा न तो उन्हें धारा 106 के तहत नोटिस भेजने का अधिकार प्राप्त था और न ही निचली अदालत में वाद दायर करने का.

न्यायालय ने याची पक्ष की दलील को सही मानते हुए, सर्वोच्च न्यायालय के इस विषय पर दिये एक निर्णय के आलोक में कहा कि मकान मालिक द्वारा किराया लेने के लिए अधिकृत व्यक्ति न तो धारा 106 के तहत नोटिस जारी कर सकता है और न ही सम्पत्ति खाली करने का वाद दायर कर सकता है. चुंकि याची पक्ष पूर्व में ही सम्पत्ति खाली कर चुका था. लिहाजा न्यायालय ने सौ रुपये प्रतिमाह अदा करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया.

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सम्पत्ति खाली करने का नोटिस जारी करने व इस संबंध में वाद दाखिल करने का अधिकार सिर्फ मकान मालिक को है. किराया लेने को अधिकृत व्यक्ति इस सम्बंध में न तो नोटिस जारी कर सकता है और न ही वाद दायर कर सकता है. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह तभी सम्भव है, जबकि उक्त अभिकर्ता को इसके लिए मकान मालिक द्वारा विशेष रूप से अधिकृत किया जाए.

भारत संघ द्वारा सचिव पोस्टल विभाग बनाम बलविंदर कौर केस

यह निर्णय न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने भारत संघ द्वारा सचिव पोस्टल विभाग बनाम बलविंदर कौर व अन्य शीर्षक से दाखिल मामले पर पारित किया. याची का कहना था कि वर्ष 1983 में उसने सवर्न कौर का मकान किराए पर लिया था. बाद में उनकी मृत्यु के बाद उनके पति सेवा सिंह सम्पत्ति के मालिक हो गए व किराया उन्हें दिया जाने लगा. वर्ष 2000 में सेवा सिंह की मृत्यु के पश्चात उनके दो पुत्रों ने पत्र लिखकर किराया अपनी पत्नियों बलविंदर कौर व चरनजीत कौर को देने का निर्देश दिया.

वर्ष 2004 में बलविंदर कौर व चरनजीत कौर ने याची को सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 106 के तहत नोटिस भेजकर सम्पत्ति खाली करने को कहा. खाली न होने पर निचली अदालत में वाद दाखिल कर दिया. जिसके बाद निचली अदालत ने याची को सम्पत्ति खाली करने व नोटिस की तिथि से प्रतिमाह सौ रुपये के हिसाब से किराया लेने के लिए अधिकृत दोनों महिलाओं को अदा करने का आदेश दिया. याची की ओर से निचली अदालत के इस फैसले को चुनौती देते हुए दलील दी गई कि दोनों महिलाएं मात्र किराया लेने के लिए अधिकृत थीं लिहाजा न तो उन्हें धारा 106 के तहत नोटिस भेजने का अधिकार प्राप्त था और न ही निचली अदालत में वाद दायर करने का.

न्यायालय ने याची पक्ष की दलील को सही मानते हुए, सर्वोच्च न्यायालय के इस विषय पर दिये एक निर्णय के आलोक में कहा कि मकान मालिक द्वारा किराया लेने के लिए अधिकृत व्यक्ति न तो धारा 106 के तहत नोटिस जारी कर सकता है और न ही सम्पत्ति खाली करने का वाद दायर कर सकता है. चुंकि याची पक्ष पूर्व में ही सम्पत्ति खाली कर चुका था. लिहाजा न्यायालय ने सौ रुपये प्रतिमाह अदा करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया.

सम्पत्ति खाली करने की नोटिस जारी करने का अधिकार सिर्फ मकानमालिक को  
विधि संवाददाता
लखनऊ
। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सम्पत्ति खाली करने की नोटिस जारी करने व इस सम्बंध में वाद दाखिल करने का अधिकार सिर्फ मकानमालिक को है। किराया लेने को अधिकृत व्यक्ति इस सम्बंध में न तो नोटिस जारी कर सकता है और न ही वाद दायर कर सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह तभी सम्भव है जबकि उक्त अभिकर्ता को इसके लिए मकानमालिक द्वारा विशेष रूप से अधिकृत किया जाए।
    यह निर्णय न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने भारत संघ द्वारा सचिव पोस्टल विभाग बनाम बलविंदर कौर व अन्य शीर्षक से दाखिल मामले पर पारित किया। याची का कहना था कि वर्ष 1983 में उसने सवर्न कौर का मकान किराए पर लिया था। बाद में उनकी मृत्यु के बाद उनके पति सेवा सिंह सम्पत्ति के मालिक हो गए व किराया उन्हें दिया जाने लगा। वर्ष 2000 में सेवा सिंह की मृत्यु के पश्चात उनके दो पुत्रों ने पत्र लिखकर किराया, अपनी पत्नियों बलविंदर कौर व चरनजीत कौर को देने का निर्देश दिया।
   वर्ष 2004 में बलविंदर कौर व चरनजीत कौर ने याची को सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 106 के तहत नोटिस भेजकर सम्पत्ति खाली करने को कहा। खाली न होने पर निचली अदालत में वाद दाखिल कर दिया। जिसके बाद निचली अदालत ने याची को सम्पत्ति खाली करने व नोटिस की तिथि से प्रतिमाह सौ रुपये के हिसाब से किराया लेने के लिए अधिकृत दोनों महिलाओं को अदा करने का आदेश दिया। याची की ओर से निचली अदालत के इस फैसले को चुनौती देते हुए दलील दी गई कि दोनों महिलाएं मात्र किराया लेने के लिए अधिकृत थीं लिहाजा न तो उन्हें धारा 106 के तहत नोटिस भेजने का अधिकार प्राप्त था और न ही निचली अदालत में वाद दायर करने का।
    न्यायालय ने याची पक्ष की दलील को सही मानते हुए, सर्वोच्च न्यायालय के इस विषय पर दिये एक निर्णय के आलोक में कहा कि मकानमालिक द्वारा किराया लेने के लिए अधिकृत व्यक्ति न तो धारा 106 के तहत नोटिस जारी कर सकता है और न ही सम्पत्ति खाली करने का वाद दायर कर सकता है। चुंकि याचीपक्ष पूर्व में ही सम्पत्ति खाली कर चुका था लिहाजा न्यायालय ने सौ रुपये प्रतिमाह अदा करने के निचली अदालत के आदेश को रद् कर दिया।    

 


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Chandan Srivastava
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