लखनऊ : 50 सालों से ज्यादा समय से लोगों को यही बताया जा रहा है कि धरती का केंद्र लोहे का एक ठोस गोला है. जिसके बाहर तरल कोर है. ये रिसर्च जर्नल फिजिक्स ऑफ द अर्थ एंड प्लैनेटरी इंटीरियर्स में प्रकाशित हुई है. इसके अनुसार, इनर कोर पूरी तरह से ठोस नहीं है. ये कई जगहों पर थोड़ा नरम से लेकर तरल धातु की तरह है यानी पिलपिला (Mushy) है.
भूकंप विज्ञानी जेसिका इरविंग ने कहा कि हम जितना ज्यादा धरती के इनर कोर का अध्ययन कर रहे है, उतने ही नए खुलासे हो रहे हैं. धरती का इनर कोर किसी बोरिंग ठोस लोहे का गोला नहीं है. हम धरती के केंद्र में एक पूरी नई दुनिया देख रहे हैं.
धरती का केंद्र तब तक एक बड़ा रहस्य था, जबतक जूल्स वर्ने ने 1864 में जर्नी टू द सेंटर ऑफ द अर्थ नहीं लिखी थी. वर्ने ने लिखा था कि धरती का केंद्र खोखला है. लेकिन 1950 में वैज्ञानिकों ने यह बात दरकिनार कर दी. वैज्ञानिकों ने बताया कि धरती के केंद्र में भयानक गर्मी और दबाव है. यह इतना ज्यादा है कि यहां तक इंसान या इंसान द्वारा बनाया गया कोई यान भी नहीं जा सकता.
इन तरंगों के बहने का दो तरीका होता है. पहला- सीधी रेखा में बहने वाली कंप्रेस्ड तरंगे और दूसरी लहरदार हल्के स्तर की तरंगें हर तरह की तरंग अपनी गति बढ़ा सकती है, घटा सकती है. उछल सकती है. ये तरंगे धरती को बनाने वाली परतों के बीच बहाव बनाए रखती हैं. कम या ज्यादा ये अलग-अलग तरह की भौगोलिक गतिविधियों पर निर्भर करता है.
रेट बटलर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि कैसे उन लोगों ने बड़े भूकंपों से उटने वाले भूगर्भीय तरंगों की जांच की. उन्होंने धरती पर आए बड़े भूकंपों से निकलने वाली तरंगों को पांच अलग-अलग स्थानों पर मापा. उन्होंने देखा कि तरंगें धरती के कोर तक जाती हैं, फिर वहां से निकल कर पूरी दुनिया में फैलती हैं. इसका मतलब ये है कि इनर कोर के अंदर धातु ठोस, तरल और नरम तीनों रूप में मौजूद है. यह एक अलग तरह की दुनिया है. जिसके बारे में बरसों बाद पता चला है.