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परिवार से इतर बना 'कांग्रेस का बॉस' तो क्या पार्टी को आएगा रास, क्या कहता है इतिहास? - up news

पहले राहुल गांधी और फिर उनकी बहन और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी का यह बयान कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी, नेहरू परिवार से होना चाहिए. यह बताता है कि राहुल और प्रियंका भाजपा के परिवारवाद वाले आरोप से मुक्ति पाना चाहते हैं. देश को यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस में परिवारवाद नहीं है, लेकिन वाकई अगर ऐसा होता है कि 'कांग्रेस का बॉस' गैर गांधी, नेहरू परिवार से बन जाता है तो क्या यह नया बॉस कांग्रेस को रास आएगा? क्या सच में कांग्रेस ऐसा कर भी पाएगी?

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कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का इतिहास और उसका राजनीतिक समीकरण.
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Published : Nov 1, 2020, 4:26 PM IST

Updated : Nov 1, 2020, 10:57 PM IST

लखनऊ: राहुल गांधी और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका भाजपा के परिवारवाद वाले आरोप से मुक्ति पाना चाहते हैं. देश को यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस में परिवारवाद नहीं है. ऐसे में कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधी और नेहरू परिवार से नहीं चुना जाता है तो क्या कांग्रेस को रास आएगा? क्योंकि अब तक का जो इतिहास रहा है उसमें कांग्रेस का बॉस भले गांधी, नेहरू परिवार से अलग कोई भी रहा हो, लेकिन चली गांधी, नेहरू परिवार की ही है. आजादी से अब तक भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद का ताज ज्यादातर गैर नेहरू, गांधी परिवार के सिर पर सजा हो, लेकिन संख्या कम होने के बावजूद अवधि के मामले में गांधी नेहरू परिवार इन सभी पर भारी रहा है. गैर गांधी, नेहरू बॉस का अब तक का क्या रहा इतिहास, अगर बॉस बदलता है तो क्या इससे कांग्रेस को होगा नफा या फिर उठाना पड़ेगा नुकसान? पेश है 'ईटीवी भारत' की खास रिपोर्ट.

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का इतिहास और उसका राजनीतिक समीकरण

राहुल को प्रियंका के साथ

राहुल गांधी ने जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था तो उन्होंने साफ तौर पर यह बयान दिया था कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधी, नेहरू परिवार के बजाय अलग होना चाहिए. इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इसी तरह का बयान देकर अपने भाई राहुल गांधी के बयान पर मुहर लगा दी. प्रियंका का तो यहां तक कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई भी बने मैं उसे अपना बॉस मानूंगी, हर बात मानूंगी. अगर वह मुझसे उत्तर प्रदेश को छोड़कर अंडमान निकोबार जाने को कहेगा तो भी मैं सहर्ष तैयार रहूंगी. फिलहाल वर्तमान में राहुल और प्रियंका की मां सोनिया गांधी कांग्रेस की कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, लेकिन कांग्रेस के अंदरखाने से ही उनके इस्तीफे की मांग उठने लगी है. राजनीतिक नेतृत्व परिवर्तन की भी मांग मुखर हो रही है. ऐसे में अब कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष फिर गांधी या नेहरू परिवार से होगा या फिर गैर गांधी, नेहरू परिवार का, यह तभी तय हो पाएगा जब कांग्रेस का नया अध्यक्ष बन जाएगा, लेकिन आजादी से लेकर साल 2020 तक कांग्रेस में बॉस का जो इतिहास रहा है वह बताता है कि गैर गांधी, नेहरू परिवार के कांग्रेस की राजनीति खूब चमकी है. जब भी ऐसा हुआ जनता ने कांग्रेस पार्टी को स्वीकार किया. आजादी के बाद से अब तक के कांग्रेस के बॉस के इतिहास पर डालते हैं एक नजर.

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राहुल को प्रियंका के साथ


ये रहे कांग्रेस के अध्यक्ष

आचार्य जेबी कृपलानी 1947 से 1948, पट्टाभि सीतारमैय्या 1948 से 1950, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन 1950 से 1951, जवाहरलाल नेहरू 1951 से 1955, यूएन थेबर 1955 से 1959, इंदिरा गांधी 1959 से 1960, इंदिरा गांधी 1978 से 1984, नीलम संजीव रेड्डी 1960 से 1964, के.कामराज 1964 से 1968, एस निजलिंगप्पा 1968 से 1969, पी. मेहुल 1969 से 1970, जगजीवनराम 1970 से 1972, शंकर दयाल शर्मा 1972 से 1974, देवकांत बरुआ 1975 से 1977, राजीव गांधी 1985 से 1991, कमलापति त्रिपाठी 1991 से 1992, पीवी नरसिम्हा राव 1992 से 1996, सीताराम केसरी 1996 से 1998, सोनिया गांधी 1998 से 2017, राहुल गांधी 2017 से 2019 तक, सोनिया गांधी 2019 से अब तक

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ये रहे कांग्रेस के अध्यक्ष

आधे समय तक किया परिवार ने राज

स्वतंत्र भारत से लेकर अब तक कांग्रेस में कुल 19 अध्यक्ष बने जबकि 1885 में पार्टी की स्थापना के बाद कुल 87 कांग्रेस अध्यक्षों ने नेतृत्व किया. आजादी के बाद 72 साल में जो 19 अध्यक्ष बने इनमें से 37 साल यानी आधे से ज्यादा समय तक नेहरू, गांधी परिवार का ही कोई न कोई सदस्य पार्टी का अध्यक्ष रहा. जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के अध्यक्ष बनने के बीच सात बार गैर नेहरू, गांधी परिवार से अध्यक्ष बनाए गए, जबकि राजीव गांधी से लेकर सोनिया गांधी के कार्यकाल तक दो बार गैर नेहरू, गांधी अध्यक्ष बने. यह थे पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी. इन दोनों बार कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई. गैर गांधी, नेहरू अध्यक्षों ने सात लोकसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किया जिनमें से चार में पार्टी को जीत मिली. इतिहास में दर्ज है कि गैर गांधी नेहरू परिवार के सदस्य ने जब राष्ट्रीय अध्यक्ष का पदभार संभाला तो कहीं ज्यादा फायदा कांग्रेस को मिला. रिकॉर्ड पर नजर दौड़ाई जाए तो साल 1959 को छोड़ दिया जाए तो 1955 से लेकर 1978 तक कांग्रेस की कमान गैर गांधी परिवार के व्यक्ति के पास ही रही. इस दौरान कांग्रेस ही सत्ता पर काबिज रही.

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ये रहे कांग्रेस के अध्यक्ष

गैर गांधी, नेहरू कांग्रेस अध्यक्षों का चुनावों में प्रदर्शन


-1957 यूएन ढेबर 494 सीटों में से 371 -1962 नीलम संजीव रेड्डी 494 में से 361-1967 के. कामराज 520 में से 283- 1971 बाबू जगजीवन राम 518 सीटों में से 352 सीटें -1977 देवकांत बरुआ 542 में से 153 सीटें -1996 नरसिम्हा राव 543 सीटों में से 140 सीटें -1998 सीताराम केसरी 545 में से 141

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कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी


गांधी परिवार के अध्यक्ष फिर भी मिली हार


राजीव गांधी सोनिया गांधी और राहुल गांधी ऐसे अध्यक्ष रहे हैं जिनके नेतृत्व में कांग्रेस को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. राजीव गांधी 1989 में अध्यक्ष थे और कांग्रेस चुनाव हार गई. सोनिया गांधी 1999 में अध्यक्ष थीं और पार्टी चुनाव हार गई. 2014 में भी उनके अध्यक्ष रहते पार्टी चुनाव हारी. इस चुनाव में पार्टी को इतिहास की सबसे कम सिर्फ 44 सीटें ही मिलीं. इसके बाद राजीव और सोनिया के बेटे राहुल गांधी 2019 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब भी पार्टी सिर्फ 52 सीटों पर ही चुनाव जीत पाई.

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कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी


गिरता ही गया प्रतिशत

राजीव गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते 1984 में जहां कांग्रेस ने रिकॉर्ड बनाया 49% मत हासिल किए, वहीं राजीव के ही काल में 1989 में कांग्रेस का ग्राफ गिरना शुरू हो गया. इस चुनाव में कांग्रेस को 39.5 प्रतिशत ही मत मिले. इसके बाद 1991 में मत प्रतिशत और गिरा यह सिर्फ 36.6℅ रह गया. इसके बाद गैर गांधी नेहरू परिवार के पीवी नरसिम्हा राव अध्यक्ष थे जिनके समय कांग्रेस का मत प्रतिशत 28.8 पर्सेंट रहा, वहीं सीताराम केसरी के समय घटकर 25.8% रह गया. इसके बाद जब नेहरू गांधी परिवार की बहू सोनिया गांधी ने कमान संभाली तो 1999 के चुनाव में फिर मतदान प्रतिशत बढ़ा और यह 28.3 प्रतिशत हो गया, लेकिन अगली बार 2004 में यह 26.7℅ रह गया. 2009 में एक बार फिर सोनिया गांधी के ही नेतृत्व में यह आंकड़ा 28.5% पहुंच गया, लेकिन 2014 में जबरदस्त गिरावट आई और कांग्रेस को महज 19.3% मत ही मिले. इसके बाद 2019 में जब राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर काबिज थे इस चुनाव में सोनिया गांधी से .2 फीसद ज्यादा यानी 19.5 फीसद मत ही हासिल कर पाए.

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कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी

चुना हुआ प्रेसिडेंट होगा फायदेमंद

बेहतर तो यही होगा कि राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष पद कबूल कर लें, लेकिन अगर वह नहीं मानते हैं अपनी बात पर अड़े रहते हैं तो सबसे अच्छा तरीका यही है कि चुनाव के जरिए नया प्रेसिडेंट चुना जाए. चुनाव ही बेहतर रहेगा मनोनीत अध्यक्ष के बजाय. अव्वल तो कांग्रेस की पहली प्राथमिकता यही है कि नेहरू-गांधी परिवार से ही अध्यक्ष हो. इस सरकार से सबसे ज्यादा मुखर होकर राहुल गांधी ही लड़ाई लड़ रहे हैं तो यही सबसे बेहतर विकल्प है. अगर ऐसा नहीं होता है तो चुना हुआ प्रेसिडेंट ही पार्टी को बहुत फायदा पहुंचा सकता है.

लखनऊ: राहुल गांधी और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका भाजपा के परिवारवाद वाले आरोप से मुक्ति पाना चाहते हैं. देश को यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस में परिवारवाद नहीं है. ऐसे में कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधी और नेहरू परिवार से नहीं चुना जाता है तो क्या कांग्रेस को रास आएगा? क्योंकि अब तक का जो इतिहास रहा है उसमें कांग्रेस का बॉस भले गांधी, नेहरू परिवार से अलग कोई भी रहा हो, लेकिन चली गांधी, नेहरू परिवार की ही है. आजादी से अब तक भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद का ताज ज्यादातर गैर नेहरू, गांधी परिवार के सिर पर सजा हो, लेकिन संख्या कम होने के बावजूद अवधि के मामले में गांधी नेहरू परिवार इन सभी पर भारी रहा है. गैर गांधी, नेहरू बॉस का अब तक का क्या रहा इतिहास, अगर बॉस बदलता है तो क्या इससे कांग्रेस को होगा नफा या फिर उठाना पड़ेगा नुकसान? पेश है 'ईटीवी भारत' की खास रिपोर्ट.

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का इतिहास और उसका राजनीतिक समीकरण

राहुल को प्रियंका के साथ

राहुल गांधी ने जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था तो उन्होंने साफ तौर पर यह बयान दिया था कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधी, नेहरू परिवार के बजाय अलग होना चाहिए. इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इसी तरह का बयान देकर अपने भाई राहुल गांधी के बयान पर मुहर लगा दी. प्रियंका का तो यहां तक कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई भी बने मैं उसे अपना बॉस मानूंगी, हर बात मानूंगी. अगर वह मुझसे उत्तर प्रदेश को छोड़कर अंडमान निकोबार जाने को कहेगा तो भी मैं सहर्ष तैयार रहूंगी. फिलहाल वर्तमान में राहुल और प्रियंका की मां सोनिया गांधी कांग्रेस की कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, लेकिन कांग्रेस के अंदरखाने से ही उनके इस्तीफे की मांग उठने लगी है. राजनीतिक नेतृत्व परिवर्तन की भी मांग मुखर हो रही है. ऐसे में अब कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष फिर गांधी या नेहरू परिवार से होगा या फिर गैर गांधी, नेहरू परिवार का, यह तभी तय हो पाएगा जब कांग्रेस का नया अध्यक्ष बन जाएगा, लेकिन आजादी से लेकर साल 2020 तक कांग्रेस में बॉस का जो इतिहास रहा है वह बताता है कि गैर गांधी, नेहरू परिवार के कांग्रेस की राजनीति खूब चमकी है. जब भी ऐसा हुआ जनता ने कांग्रेस पार्टी को स्वीकार किया. आजादी के बाद से अब तक के कांग्रेस के बॉस के इतिहास पर डालते हैं एक नजर.

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राहुल को प्रियंका के साथ


ये रहे कांग्रेस के अध्यक्ष

आचार्य जेबी कृपलानी 1947 से 1948, पट्टाभि सीतारमैय्या 1948 से 1950, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन 1950 से 1951, जवाहरलाल नेहरू 1951 से 1955, यूएन थेबर 1955 से 1959, इंदिरा गांधी 1959 से 1960, इंदिरा गांधी 1978 से 1984, नीलम संजीव रेड्डी 1960 से 1964, के.कामराज 1964 से 1968, एस निजलिंगप्पा 1968 से 1969, पी. मेहुल 1969 से 1970, जगजीवनराम 1970 से 1972, शंकर दयाल शर्मा 1972 से 1974, देवकांत बरुआ 1975 से 1977, राजीव गांधी 1985 से 1991, कमलापति त्रिपाठी 1991 से 1992, पीवी नरसिम्हा राव 1992 से 1996, सीताराम केसरी 1996 से 1998, सोनिया गांधी 1998 से 2017, राहुल गांधी 2017 से 2019 तक, सोनिया गांधी 2019 से अब तक

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ये रहे कांग्रेस के अध्यक्ष

आधे समय तक किया परिवार ने राज

स्वतंत्र भारत से लेकर अब तक कांग्रेस में कुल 19 अध्यक्ष बने जबकि 1885 में पार्टी की स्थापना के बाद कुल 87 कांग्रेस अध्यक्षों ने नेतृत्व किया. आजादी के बाद 72 साल में जो 19 अध्यक्ष बने इनमें से 37 साल यानी आधे से ज्यादा समय तक नेहरू, गांधी परिवार का ही कोई न कोई सदस्य पार्टी का अध्यक्ष रहा. जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के अध्यक्ष बनने के बीच सात बार गैर नेहरू, गांधी परिवार से अध्यक्ष बनाए गए, जबकि राजीव गांधी से लेकर सोनिया गांधी के कार्यकाल तक दो बार गैर नेहरू, गांधी अध्यक्ष बने. यह थे पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी. इन दोनों बार कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई. गैर गांधी, नेहरू अध्यक्षों ने सात लोकसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किया जिनमें से चार में पार्टी को जीत मिली. इतिहास में दर्ज है कि गैर गांधी नेहरू परिवार के सदस्य ने जब राष्ट्रीय अध्यक्ष का पदभार संभाला तो कहीं ज्यादा फायदा कांग्रेस को मिला. रिकॉर्ड पर नजर दौड़ाई जाए तो साल 1959 को छोड़ दिया जाए तो 1955 से लेकर 1978 तक कांग्रेस की कमान गैर गांधी परिवार के व्यक्ति के पास ही रही. इस दौरान कांग्रेस ही सत्ता पर काबिज रही.

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ये रहे कांग्रेस के अध्यक्ष

गैर गांधी, नेहरू कांग्रेस अध्यक्षों का चुनावों में प्रदर्शन


-1957 यूएन ढेबर 494 सीटों में से 371 -1962 नीलम संजीव रेड्डी 494 में से 361-1967 के. कामराज 520 में से 283- 1971 बाबू जगजीवन राम 518 सीटों में से 352 सीटें -1977 देवकांत बरुआ 542 में से 153 सीटें -1996 नरसिम्हा राव 543 सीटों में से 140 सीटें -1998 सीताराम केसरी 545 में से 141

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कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी


गांधी परिवार के अध्यक्ष फिर भी मिली हार


राजीव गांधी सोनिया गांधी और राहुल गांधी ऐसे अध्यक्ष रहे हैं जिनके नेतृत्व में कांग्रेस को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. राजीव गांधी 1989 में अध्यक्ष थे और कांग्रेस चुनाव हार गई. सोनिया गांधी 1999 में अध्यक्ष थीं और पार्टी चुनाव हार गई. 2014 में भी उनके अध्यक्ष रहते पार्टी चुनाव हारी. इस चुनाव में पार्टी को इतिहास की सबसे कम सिर्फ 44 सीटें ही मिलीं. इसके बाद राजीव और सोनिया के बेटे राहुल गांधी 2019 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब भी पार्टी सिर्फ 52 सीटों पर ही चुनाव जीत पाई.

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कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी


गिरता ही गया प्रतिशत

राजीव गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते 1984 में जहां कांग्रेस ने रिकॉर्ड बनाया 49% मत हासिल किए, वहीं राजीव के ही काल में 1989 में कांग्रेस का ग्राफ गिरना शुरू हो गया. इस चुनाव में कांग्रेस को 39.5 प्रतिशत ही मत मिले. इसके बाद 1991 में मत प्रतिशत और गिरा यह सिर्फ 36.6℅ रह गया. इसके बाद गैर गांधी नेहरू परिवार के पीवी नरसिम्हा राव अध्यक्ष थे जिनके समय कांग्रेस का मत प्रतिशत 28.8 पर्सेंट रहा, वहीं सीताराम केसरी के समय घटकर 25.8% रह गया. इसके बाद जब नेहरू गांधी परिवार की बहू सोनिया गांधी ने कमान संभाली तो 1999 के चुनाव में फिर मतदान प्रतिशत बढ़ा और यह 28.3 प्रतिशत हो गया, लेकिन अगली बार 2004 में यह 26.7℅ रह गया. 2009 में एक बार फिर सोनिया गांधी के ही नेतृत्व में यह आंकड़ा 28.5% पहुंच गया, लेकिन 2014 में जबरदस्त गिरावट आई और कांग्रेस को महज 19.3% मत ही मिले. इसके बाद 2019 में जब राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर काबिज थे इस चुनाव में सोनिया गांधी से .2 फीसद ज्यादा यानी 19.5 फीसद मत ही हासिल कर पाए.

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कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी

चुना हुआ प्रेसिडेंट होगा फायदेमंद

बेहतर तो यही होगा कि राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष पद कबूल कर लें, लेकिन अगर वह नहीं मानते हैं अपनी बात पर अड़े रहते हैं तो सबसे अच्छा तरीका यही है कि चुनाव के जरिए नया प्रेसिडेंट चुना जाए. चुनाव ही बेहतर रहेगा मनोनीत अध्यक्ष के बजाय. अव्वल तो कांग्रेस की पहली प्राथमिकता यही है कि नेहरू-गांधी परिवार से ही अध्यक्ष हो. इस सरकार से सबसे ज्यादा मुखर होकर राहुल गांधी ही लड़ाई लड़ रहे हैं तो यही सबसे बेहतर विकल्प है. अगर ऐसा नहीं होता है तो चुना हुआ प्रेसिडेंट ही पार्टी को बहुत फायदा पहुंचा सकता है.

Last Updated : Nov 1, 2020, 10:57 PM IST
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