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मुख्यमंत्री योगी ने तोड़ा उपचुनाव हारने का मिथक, 8 सीटों पर लहराया जीत का परचम - 11 विधानसभा उपचुनाव का परिणाम घोषित

यूपी में विधानसभा उपचुनाव के परिणाम आ गए है. भाजपा ने 11 सीटों में 8 सीटों पर कब्जा जमाया है. इस चुनाव की खास बात यह रही कि भाजपा ने यह चुनाव दो शिखर नेताओं नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के बगैर लड़ा.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
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Published : Oct 25, 2019, 8:35 PM IST

लखनऊ: यूपी में 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के परिणाम आ चुके हैं. उपचुनाव में भी भाजपा सबसे बड़ा दल बनकर उभरा है. इस विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने आठ सीटों पर जीत दर्ज की है. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता का कहना है कि किसी भी उपचुनाव में उनका केन्द्रीय नेतृत्व प्रचार में नहीं उतरता है. इन बड़े नेताओं के बावजूद सीएम योगी के नेतृत्व में भाजपा ने 8 सीटें जीतीं. इस जीत से योगी की नेतृत्व क्षमता एक बार फिर से देखने को मिली.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने जीती उपचुनाव में 8 सीटें.

2018 लोकसभा उपचुनाव में हारे
मुख्यमंत्री योगी के ही नेतृत्व में 2018 में तीन लोकसभा सीटों पर हुए उप चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी. वर्ष 2018 में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार हुई थी. कैराना लोकसभा सीट पर भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. वर्ष 2019 में हुए उपचुनाव पर सब की नजर थी. इस उपचुनाव में योगी के नेतृत्व में भाजपा ने 11 विधानसभा सीटों में 8 सीट पर विजय प्राप्त की.

प्रदेश की जनता है बधाई की पात्र
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय राय का कहना है कि उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अच्छी संख्या में सीटें मिली हैं. इसके लिए प्रदेश की जनता बधाई की पात्र है. हमारा केंद्रीय नेतृत्व कभी भी उपचुनाव के प्रचार में नहीं उतरता. इसी पॉलिसी के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अन्य नेताओं ने मिलकर चुनाव लड़ा और भाजपा को आठ सीटों पर जीत मिली है. यदि मतदान प्रतिशत इतना कम नहीं गया होता तो निश्चित तौर पर हमारी पार्टी और भी सीटों पर विजयी होती.

बसपा को हुआ घाटा
राजनीतिक विश्लेषक पी. एन. द्विवेदी का कहना है कि योगी के नेतृत्व में उपचुनाव हारने का एक मिथक बन गया था. 2018 में दो लोकसभा सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा दोनों सीटें हार गई थी. इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यह मिथक टूटा है. इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान तो बहुजन समाज पार्टी का हुआ है. बसपा जल्दी उपचुनाव नहीं लड़ती है. इस बार लड़ा और उसे हार का सामना करना पड़ा. एक भी सीट उसके खाते में नहीं गई.

इसे भी पढ़ें - योगी की बची साख, सपा को संजीवनी, बसपा का नहीं खुला खाता- ये हैं आपके नए विधायक

लखनऊ: यूपी में 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के परिणाम आ चुके हैं. उपचुनाव में भी भाजपा सबसे बड़ा दल बनकर उभरा है. इस विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने आठ सीटों पर जीत दर्ज की है. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता का कहना है कि किसी भी उपचुनाव में उनका केन्द्रीय नेतृत्व प्रचार में नहीं उतरता है. इन बड़े नेताओं के बावजूद सीएम योगी के नेतृत्व में भाजपा ने 8 सीटें जीतीं. इस जीत से योगी की नेतृत्व क्षमता एक बार फिर से देखने को मिली.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने जीती उपचुनाव में 8 सीटें.

2018 लोकसभा उपचुनाव में हारे
मुख्यमंत्री योगी के ही नेतृत्व में 2018 में तीन लोकसभा सीटों पर हुए उप चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी. वर्ष 2018 में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार हुई थी. कैराना लोकसभा सीट पर भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. वर्ष 2019 में हुए उपचुनाव पर सब की नजर थी. इस उपचुनाव में योगी के नेतृत्व में भाजपा ने 11 विधानसभा सीटों में 8 सीट पर विजय प्राप्त की.

प्रदेश की जनता है बधाई की पात्र
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय राय का कहना है कि उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अच्छी संख्या में सीटें मिली हैं. इसके लिए प्रदेश की जनता बधाई की पात्र है. हमारा केंद्रीय नेतृत्व कभी भी उपचुनाव के प्रचार में नहीं उतरता. इसी पॉलिसी के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अन्य नेताओं ने मिलकर चुनाव लड़ा और भाजपा को आठ सीटों पर जीत मिली है. यदि मतदान प्रतिशत इतना कम नहीं गया होता तो निश्चित तौर पर हमारी पार्टी और भी सीटों पर विजयी होती.

बसपा को हुआ घाटा
राजनीतिक विश्लेषक पी. एन. द्विवेदी का कहना है कि योगी के नेतृत्व में उपचुनाव हारने का एक मिथक बन गया था. 2018 में दो लोकसभा सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा दोनों सीटें हार गई थी. इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यह मिथक टूटा है. इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान तो बहुजन समाज पार्टी का हुआ है. बसपा जल्दी उपचुनाव नहीं लड़ती है. इस बार लड़ा और उसे हार का सामना करना पड़ा. एक भी सीट उसके खाते में नहीं गई.

इसे भी पढ़ें - योगी की बची साख, सपा को संजीवनी, बसपा का नहीं खुला खाता- ये हैं आपके नए विधायक

Intro:लखनऊ: मोदी-शाह के चेहरे के बगैर सीएम योगी ने लड़ा उपचुनाव, जीतीं 11 में से आठ सीटें

लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी के दो शिखर नेताओं नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बगैर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ा। सहयोगी दल को मिलाकर आठ सीटों पर जीत दर्ज की। वैसे तो भाजपा का कहना है कि किसी भी उपचुनाव में उसका केंद्रीय नेतृत्व नहीं उतरता है। लेकिन सत्ता के गलियारे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर चर्चा शुरू हो गई है। चर्चा यह है कि भाजपा 11 सीटों में से भले ही तीन सीटों पर हर गई हो लेकिन सीएम योगी के नेतृत्व में भाजपा के उप चुनाव हारने का मिथक टूटा है।


Body:वर्ष 2018 में हारे लेकिन 2019 के उपचुनाव में मिली जीत

मुख्यमंत्री योगी के ही नेतृत्व में 2018 में तीन लोकसभा सीटों पर हुए उप चुनाव में भाजपा का करारी शिकस्त खानी पड़ी थी। वर्ष 2018 में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार हुई थी। कैराना लोकसभा सीट पर भी भाजपा को हार का मुह देखना पड़ा था। वर्ष 2019 में हुए उपचुनाव पर सब की नजर थी। सवाल सीएम योगी के नेतृत्व में चल रही यूपी सरकार के प्रति जनता के विश्वास का था। सवाल भाजपा के विश्वास का था। विपक्ष द्वारा कानून व्यवस्था पर उठाए जा रहे सवालों पर जनता के रुख जानने का था।

सरकार होने का लाभ भी मिला

योगी सरकार बाकायदा अपनी योजनाओं कोधरातल तक पहुंचाने पर पूरा फोकस किया। योजनाएं के जमीन तक कम या ज्यादा पहुंचने को लेकर सवाल हो सकता है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार जनता के बीच ब्रांड योगी को स्थापित करने में जुटी रही है। प्रचार प्रसार में कोई कमी नहीं छोड़ी गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बार-बार जिलाधिकारियों, पुलिस कप्तानों और सूबे के आला पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग कर जनता के बीच यह संदेश देने में सफल रहे कि वह राज्य का भला करने में पूरी शिद्दत से लगे हैं।

सबका साथ सबका विकास नारे पर सवाल

पार्टी के एक नेता कहते हैं के सबका साथ सबका विकास के आधार पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार काम कर रही है। लेकिन इस नारे का असर इस उप चुनाव में देखने को नहीं मिला। अगर सरकार की मंशा और उसकी कार्य प्रणाली को जनता ने पूरी तरह से स्वीकार लिया होता तो जलालपुर, जैदपुर और रामपुर जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा ने ही जीत दर्ज की होती।

आजम पर शिकंजा कसने का क्या रहा असर

रामपुर के सांसद व समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान पर गरीबों की भूमि हड़पने के आरोप में स्थानीय प्रशासन ने मुकदमा लिखने का आंकड़ा सैकड़ा में पहुंचा दिया। सरकार और भारतीय जनता पार्टी आजम खान को भू माफिया कहती रही। जनता के बीच आजम को खलनायक के रूप में स्थापित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई। उपचुनाव के दौरान आजम खान की पत्नी तंजीन फातिमा समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं। चुनावी मंचों से दोनों तरफ से हिसाब किताब शुरू हुआ। जुबानी जंग हुई। आजम खान स्थानीय जनता के बीच चुनावी सभाओं के दौरान कई बार रोये भी। उन्होंने जनता को यह बताने का प्रयास किया कि सरकार उन्हें अनायास ही प्रताड़ित कर रही है। शायद वह जनता को समझाने में सफल रहे और उनकी पत्नी तंजीन फातिमा अच्छे मतों से विजई घोषित हुई।

बाईट- भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय राय का कहना है कि उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अच्छी संख्या में सीटें मिली हैं। इसके लिए प्रदेश की जनता बधाई की पात्र है। केंद्रीय नेतृत्व कभी भी उपचुनाव के प्रचार में नहीं उतरता। इसी पॉलिसी के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अन्य नेताओं ने मिलकर चुनाव लड़ा और भाजपा को आठ सीटों पर जीत मिली है। यदि मतदान प्रतिशत इतना कम नहीं गया होता तो निश्चित तौर पर हमारी पार्टी की सीटें और भी होतीं।

बाईट- राजनीतिक विश्लेषक पी एन द्विवेदी का कहना है कि योगी के नेतृत्व में उपचुनाव हारने का एक मिथक बन गया था। 2018 में तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव हुआ था। भाजपा सभी सीटें हार गई थी। इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यह मिथक टूटा है जोकि मुख्यमंत्री के लिए बेहतर माना जा सकता है। सबसे ज्यादा नुकसान तो बहुजन समाज पार्टी का हुआ। पहली बार वह उपचुनाव में कूदी और उसे हार का सामना करना पड़ा। एक भी सीट उसके खाते में नहीं गई। उसके पास अंबेडकरनगर के जलालपुर सीट थी। उसने वह भी गंवा दी।

दिलीप शुक्ला, 9450663213


Conclusion:
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