लखनऊ : खेती में उत्तर प्रदेश के किसान अब अनूठे प्रयोग कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड का एक ऐसा ही किसान (Bundelkhand, Uttar Pradesh) है जो गोमूत्र से खेती करता है. हरी सब्जियों की अच्छी पैदावार करता है. खेत में फास्फोरस की कमी को बेसन के घोल से दूर करता है और फसलों में लगने वाले कीटाणुओं को भगाने के लिए कीटनाशक के स्थान पर नीम के तेल का इस्तेमाल करता है. किसान धर्मेंद्र नामदेव का कहना है कि 'गोमूत्र से फसल की अच्छी पैदावार हो रही है. फास्फोरस की कमी बेसन से दूर कर रहा है और उससे उत्पादन क्षमता भी बढ़ रही है. यह अनूठा प्रयोग काफी काम आ रहा है. उनके दिमाग में बेसन के घोल के इस्तेमाल करने का आइडिया संस्कृत के एक ग्रंथ के एक श्लोक से आया और इसने अपना चमत्कार दिखाया.'
झांसी जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले किसान धर्मेंद्र ने रासायनिक उत्पादों का इस्तेमाल करने के बजाय प्राकृतिक उत्पादों का सहारा लेकर फसलों की ऐसे किस्म तैयार की है जो उनकी कमाई का बड़ा जरिया बन रही है और लोगों के आकर्षण का केंद्र भी. किसान धर्मेंद्र ने भिंडी की बड़े स्तर पर झांसी में खेती की है और सबसे खास बात है कि इस खेती के लिए उन्होंने सिर्फ गोमूत्र का ही इस्तेमाल किया है. फसलों के लिए जो फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं उसकी जगह धर्मेंद्र ने बेसन के घोल का इस्तेमाल करना शुरू किया और इसके चमत्कारिक परिणाम सामने आए. "ईटीवी भारत" से बातचीत में धर्मेंद्र ने बताया कि उनके इस तरह के अभिनव प्रयोग और उसकी सफलता को देखते हुए झांसी के कृषि विश्वविद्यालय ने अपने परिसर में खेती करने का आमंत्रण दिया है.
उनका कहना है कि 'मैं उत्तर प्रदेश का ऐसा पहली किसान हूं जो सिर्फ गोमूत्र और फास्फोरस के साथ नीम के तेल का इस्तेमाल कर अपने खेत की फसलों की पैदावार कर रहा है और उत्पादन भी बढ़ा रहा है. खासकर इंसानों की सेहत के लिए ऐसी सब्जियां, दलहन और तिलहन काफी लाभदायक भी साबित हो रहे हैं. किसान धर्मेंद्र बताते हैं कि उन्होंने भिंडी की फसल पर पहली बार फास्फोरस के बजाय बेसन के घोल का इस्तेमाल किया और यह काफी अच्छा प्रयोग रहा. जब धर्मेंद्र से पूछा गया कि फास्फोरस की तुलना में बेसन तो काफी महंगा पड़ता होगा तो फिर इसका क्या फायदा निकला? इस पर उनका कहना है कि ऐसा नहीं है. बेसन सस्ता पड़ रहा है. उसकी वजह है कि आधा लीटर पानी में सिर्फ 10 ग्राम बेसन ही घोलना है और उसका छिड़काव कर देना है वह फास्फोरस से ज्यादा असरकारक साबित हो रहा है. हमारी भिंडी 20 सेंटीमीटर की है वो भी काफी मुलायम और स्वादिष्ट.'
संस्कृत के श्लोक से आया मन में विचार : खेतों में फास्फोरस की जगह बेसन का इस्तेमाल करने का आइडिया दिमाग में कैसे आया? इस सवाल पर धर्मेंद्र का कहना है कि 'अष्टांग हृदय सूत्र एक ग्रंथ है, उसमें एक श्लोक है. उसके अनुसार शरीर की अधिकांश बीमारी और पेट की जितनी खराबी है उसको सही करता है तो मैंने सोचा कि जब मनुष्य के पेट को यह सही कर सकता है तो यह पौधे की जड़ के जितनी भी मिट्टी की समस्या है उनको भी हल कर सकता है. हमने बेसन का घोल डाल दिया. इसके बाद हमें चमत्कारिक परिणाम देखने को मिले. जहां हमारे बिना बेसन के घोल की शाखाएं दो-तीन या चार ही निकल रही थीं उसके बाद छह से लेकर सात आठ तक शाखाएं निकलने लगीं और जबरदस्त फूल उगा है और अच्छी फसल हो रही है. किसान धर्मेंद्र नामदेव का कहना है कि फास्फोरस के स्थान पर बेसन के घोल का इस्तेमाल भिंडी की खेती के अलावा खीरे की खेती और बैंगन की खेती में कर रहे हैं.'
कीटाणुनाशक की जगह करते हैं नीम के तेल का इस्तेमाल : आमतौर पर किसान फसलों को कीटाणुओं से बचाने के लिए रासायनिक उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन यहां पर भी किसान धर्मेंद्र नामदेव ने प्राकृतिक उत्पाद का ही सहारा लिया है. उनका कहना है कि फसल में कीटाणु न लगे इसके लिए वह रासायनिक उत्पादों का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि इसके स्थान पर नीम के तेल का इस्तेमाल कर रहे हैं. खासकर बैंगन की खेती के लिए. इससे कीड़े आसानी से मर जाते हैं.